राजधानी पत्रकार में घमासान |
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल के पत्रकारों को सस्ते में जमीन इसलिए दी की उनके अपने घर बन जाएँ और वे सरकारी मकानों को खाली कर दें |इसके लिए पत्रकारों की दो समितियों अभिव्यक्ति और राजधानी पत्रकार ग्रह निर्माण समिति को जमीन भी दी गई |इनमे से एक राजधानी पत्रकार की जमीन को लेकर विवाद के हालात बन गए है ,इस के कर्ताधर्ताओं ने मनमर्जी से भाई ,बेटों ,रिश्तेदारों और फर्जी पत्रकारों ,सरकारी अधिकारीयों और उनके बच्चों तक को जमीन की बंदरबांट कर ली |सरकार से झूठ बोल कर और असल पत्रकारों की अनदेखी कर हर वह कार्य इसमें हुआ जो सहकारिता के नियम कानून को सरेआम ठेंगा दिखता है |यह सब करने वाले कोई और नहीं वह पत्रकार है जो अब जमीनखोर हो गये हैं |यह हम नहीं कह रहे यह संस्था के पदाधिकारी और पत्रकारों के नेता सुरेश शर्मा की एक चिट्ठी से जाहिर होता हैं | सुरेश शर्मा के इस बेबाक चिट्ठी के बाद राजधानी पत्रकार के मठाधीशों में हडकंप मच गया हैं | पत्रकारों को जमीन देते हुए सरकार की मंशा साफ थी कि किसी भी तरह असल पत्रकारों को जमीन मिले और वे उन सरकारी मकानों को खाली करें जिनमे वे सरकारी भाषा में अवैध कब्ज़ा करके रह रहे हैं , लेकिन राजधानी पत्रकार.... के हालात देखते हुए तो यह लगता हैं कि पत्रकारिता आड़ में कुछ जमीन के सौदागरों ने ऐसा खेल खेला हैं जिसके कारण भविष्य में कभी भी असल पत्रकारों को सस्ती सरकारी जमीन नहीं मिल पाएगी | पत्रकार सुरेश शर्मा का खुला ख़त आप सब कि नजर ........... संपादक दखल प्रति, माननीय सदस्यगण राजधानी पत्रकार गृह निर्माण सहकारी समिति मर्यादित, भोपाल। विषय:-माननीय अध्यक्ष महोदय के पत्र दिनांक 16 जून 2011 से उपजे सवालों और आये दिन हो रही शिकायतों के संबंध में वस्तुस्थिति की जानकारी विषयक। मान्यवर, आप सभी को माननीय अध्यक्ष श्री के.डी. शर्मा का पत्र मिला होगा। मुझे भी मिला है। जैसा कि आपको विदित ही है कि मुझे संस्था के वास्तविक पत्रकारों ने अपना अमूल्य वोट दिया था और एक गिरोह के विरोध करने के बाद भी आप सभी के आशीर्वाद से मैं संचालक बना। तभी से मुझे यह अहसाह हो गया था कि इस संस्था को हाईजैक किया जा रहा है। आप सभी के दो-दो लाख रूपये किनके हाथों में सुरक्षित रहे इसकी चिन्ता करने के बजाये बड़ी संख्या में लोगों ने भावनाओं में आकर मतदान किया और चुनाव परिणाम भी सामने आये और उसके बाद की कारगुजारियां भी।
खैर मैं पुरानी बातों में अधिक जाने की बजाय आप सभी को यह
बताना अब जरूरी समझता हूं कि आखिर जिन पांच लोगों को विलेन बनाने का
प्रयास किया जा रहा है या संचालक मंडल के सदस्य के नाते मेरे द्वारा उठाई
गई बातों को अनेदखा करके मनमाने तरीके से काम हो रहा है उससे केवल एक ही
संदेश जा रहा है कि सदस्यों को तंग किया जाये, काम में देरी की जावे,
भांति-भांति के पत्र और उनमें धमकी की भाषा लिखी जाये जिससे सज्जन लोग
संस्था की सदस्यता छोड़ कर चले जायें और खाली प्लाटों को भूमाफिया के हाथों
बेच दिये जायें। मैं इस पत्र में कुछ प्रमाण भर दूंगा और यह सिद्ध करने की
पूरी कौशिश करूंगा कि यह संस्था पूरी तौर पर श्री अरूण कुमार भंडारी के
हाथों गिरवी रखी जा चुका है और श्री के.डी. शर्मा जो सही व्यक्ति होते हुये
भी उनके हाथ का खिलौना बनकर सभी माननीय सदस्यों के हितों की रक्षा करने की
बजाये भंडारी जी को बचाने का प्रयास कर रहे हैं।
जिन पांच माननीय सदस्यों डा. नवीन जोशी, संजय प्रकाश शर्मा, अतुल पुरोहित, ब्रजेश द्विवेदी और सुबोध अग्रिहोत्री की शिकायत के आधार पर आप सभी को जो लिखा गया है उसमें यह नहीं बताया गया कि इन सदस्यों ने आखिर शिकायत क्या की है तथा सहकारी विभाग ने किनको नोटिस जारी किया है। मैं इन पांचों सदस्यों को साधुवाद देता हूं कि जिन्होंने हिम्मत करके आपके दो लाख रुपयों की रक्षा की है। मैंने भी कमोवेश संचालक मंडल की बैठक में पत्र लिख कर इसी प्रकार के सवाल उठाये थे। मैंने माननीय अध्यक्ष महोदय को 12/10/2010 को एक पत्र दिया था जिसकी प्रति संलग्र है में कुछ विषय उठाये थे।
मैंने कहा था कि संचालक मंडल ने
कुछ सदस्यों को सहकारिता विधान की धाराओं के आधार पर सदस्यता से हटाया है,
तो यह नियम उन सदस्यों पर भी लागू होना चाहिये जिन्होंने लावण्य गुरूकुल
गृह निर्माण सहकारी संस्था (पंचवटी) में प्लाट ले लिये हैं। उल्लेखनीय है
कि सहकारिता कानून के तहत कोई भी सदस्य दो संस्थाओं का सदस्य नहीं हो सकता
तथा पति पत्नि में से कोई एक यदि किसी अन्य संस्था में सदस्य है तो उनमें
कोई दूसरा या पहला किसी अन्य संस्था का सदस्य नहीं हो सकता है। ऐसे में
श्री अरूण कुमार भंडारी की पत्नी श्रीमती सुमन भंडारी ने लावण्य याने कि
पंचवटी में भूखंड लिया है तथा वहां मकान भी बनाया हुआ है। इससे आगे वहां की
समिति के खिलाफ सहाकारिता विभाग के अन्तर्गत प्रकरण पंजीबद्ध होकर नये
चुनाव कराये गये हैं उनमें न केवल श्री भंडारी अपितु श्री के.डी. शर्मा भी
सक्रिय रहे हैं। इस प्रकार दो संस्थाओं को अपने कब्जे में लेने की मानसिकता
ने मुझे और उन सभी सदस्यों को भयाक्रान्त कर दिया जिनके दो लाख रुपयों की
रक्षा करने का दायित्व आप सबने मुझे सौंपा है।
ऐसे में सबसे पहला हमारा प्रयास यह होना चाहिये था कि मैं संचालक मंडल की बैठक में इस विषय को उठाऊं और संस्था की बात को संस्था के अन्दर ही समाधान तक ले जाऊं। मैंने इस आशय का पत्र दिया जिसका उल्लेख मैं पूर्व में कर चुका हूं। इस पत्र को आज तक बैठक में नहीं रखा गया और मुझे कहा गया कि पहले समस्या के समाधान तक पहुंच जायें और जो निर्णय हो जायेगा उसे बैठक में ले आयेंगे। इसके लिये एक समिति गठित की गई। यह अधिकार संपन्न समिति थी लेकिन उसे प्रोसिंडिंग में नहीं लिया गया था क्योंकि ऐसा करने से पत्र को भी रिकार्ड में लेना होता। हम चाहते हैँ कि किसी प्रकार का वह विवाद नहीं हो जिससे संस्था को खतरा हो और जिन सदस्यों को प्लाट दिलवाने की जिम्मेदारी लेकर हम काम कर रहे हैं वह इन भूमाफियों को कोई मौका न दे दे। हमने हर उस बात को माना जिसमें हमारे कोई हित प्रभावित न हों। समिति का अध्यक्ष श्री एन.के. सिंह को बनाया गया। सदस्य के रूप में मैं (सुरेश शर्मा) और भंडारी जी रामभुवन जी और अध्यक्ष जी खुद बनाये गये। हम हिन्दूस्तान टाइम्स के कार्यालय में बैठे। श्री कुशवाह जी बाहर होने के कारण बैठक में नहीं आ पाये थे इस कारण हम चार लोग बैठे। सभी प्रकार के विषयों पर खुल कर चर्चा हुई और यह तय हुआ कि अब जब सब बातें श्री भंडारी और मेरे बीच हो गई हैँ तो श्री एन.के. सिंह और श्री कुशवाह के साथ मुर्झे किसी फार्मूले पर चर्चा करनी थी। हम नास्ते पर श्री एन.के. सिंह के निवास पर मिले। हमने दो सुझाव रखे। 1. जब श्री अमित जैन सदस्य संचालक मंडल को अभिव्यक्ति जो श्री दिनेश गुप्ता की अध्यक्षता वाली समिति है में सदस्य होने के कारण त्याग पत्र देने के लिये कहा गया ताकि उनका सम्मान भी बना रहे और सहाकारिता कानून का उल्लंघन भी नहीं हो। श्री जैन ने त्याग पत्र दे दिया। वे संचालक मंडल के सदस्य थे और बाद में साधारण सदस्य भी नहीं रहे। तो ऐसे वे सभी सदस्य जो लावण्य में लाभ ले चुके हैं उनको भी त्याग पत्र देने के लिये कहा जावे अब चाहे वे श्री अरूण कुमार भंडारी हों या अध्यक्ष महोदय श्री के.डी. शर्मा हों। 2. यदि वे ऐसा करने से मना करें और सभी सदस्यों के हितों में काम करना चाहें तो वे संस्था को लिख कर दें कि वे अपना भूखंड माननीय सदस्यों के हित में वापस कर रहे हैं और लेना नहीं चाहते हैं। मैं मानता हूं कि जब हमने पति पत्नी के आधार पर श्री अरूण दीक्षित, श्री अनुराग उपाध्याय और भरत पटेल को प्लाट से वंचित किया है तो अरूण भंडारी क्यों कानून से ऊपर हैं। यदि वे संचालक मंडल का सदस्य और संस्था में सदस्य रहना चाहते हैं तो श्री अनुराग उपाध्याय की पत्नी जिनको प्लाट तो नहीं दिया जा रहा है लेकिन सदस्यता बरकरार रखी गई है उस नियम के आधार पर ये लोग बने रहें। हमें इसलिये आपत्ति नहीं है क्यों कि हम संस्था के सदस्यों के हित की रक्षा करने की बात कर रहे हैं न कि अपनी खुद की प्रतिष्ठा के कारण संस्था को दांव पर लगा रहे हैं। श्री एन.के. सिंह ने श्री भंडारी और श्री के.डी. शर्मा को इन दोनों प्रस्तावों से अवगत कराया तो उन्होंने किसी भी प्रकार की बात को मानने से इंकार कर दिया और जो सहाकारिता कानून है उसको धता बताते हुये संस्था को दांव पर लगा दिया। मित्रों, आपके मन में भी यह सवाल होगा कि आखिर आपको यह पत्र क्यों आया? मेरे मन में भी यह सवाल है। चूंकि आपके आशीर्वाद से मैं सचालक मंडल का सदस्य हूं इसलिये कारण को जल्दी जान गया और आपके साथ सांझा कर रहा हूं। वस्तुत जिन मित्रों के नाम का उल्लेख शिकायत करने के रूप में लिखा गया है तथा मैंने उनके कार्य के लिये उन्हें साधुवाद दिया है उन्होंने अपनी बात साधारण सभा में रखने के लिये समय और नियमों के आधार पर अध्यक्ष महोदय को पत्र दे दिया था। जैसे कि मैंने संचालक मंडल के सदस्य के नाते संचालक मंडल की बैठक के लिये अध्यक्ष जी को दिया हुआ है।
दोनों ही पत्रों में संस्था के हित की बात है लेकिन
दोनों पत्रों के एकरूपता नहीं है। मैं इसलिये पत्र लिख रहा हूं कि मुझे
संचालक होने का दायित्व आपने दिया है और जिन पांच माननीय सदस्यों ने पत्र
लिखा है उनमें कई सदस्यों ने परिर्वतन पैनल के नाम से चुनाव लड़ा था।
उन्होंने भी मेरी तरह हमारी संस्था को हाईजैक करने के तरीके और पंचवटी के
क्रियाक्लापों को नजदीक से देखा था। वे भी खतरा महसूस कर रहे हैं कि कहीं न
कहीं इने लोग मार्फत पत्रकारों के प्लाट भूमाफियाओं को न चले जायें।
साधारण सभा की बैठक में इन सभी सदस्यों ने अपने पत्र पर चर्चा कराने की
मांग की लेकिन अध्यक्ष श्री के.डी. शर्मा ने इस पत्र को संज्ञान में लेने
से इंकार कर दिया तथा यह भी साथ में कह दिया कि आप लोगों में दम हो तो इसे
सहकारिता विभाग में शिकायत के रूप में दे कर देखों। आपको याद दिला दें कि
संचालक मंडल की स्वीकृति के बिना जब कार्यालय व्यय के लिये राशि मांगी गई
थी तो पिछली साधारण सभा में मैंने विरोध किया था लेकिन जो बाद में दो हजार
रूपये वार्षिक के आधार से तय किया गया था। इन्हीं माननीय पांच सदस्यों के
विरोध के कारण कार्यालय व्यय की राशि घटा कर एक हजार रुपये की गई थी। इससे
सिद्ध होता है कि इस सबकी मानसिकता सदस्यों के हितरक्षण की है।
मुझे याद है कि सहकारिता विभाग की जांच में जांच अधिकारी सहकारिता निरीक्षक श्री मनोज कुमार श्रीवास्तव को जो बयान दर्ज कराया गया है उनमें दो संस्थाओं में सदस्य होने के आरोप सर्वश्री के. डी. शर्मा, अरूण कुमार भंडारी, प्रशान्त जैन, शरद द्विवेदी, मणीकान्त सोनी (पंचवटी) तथा एन.के. सिंह श्रमजीवी पत्रकार गृह निर्माण सहकारी संस्था पत्रकार कालोनी पर ही लगाये थे तथा कहा गया है कि इन्होंने अपने शपथ-पत्र में इन संस्थाओं में सदस्य होने का उल्लेख छुपा कर कानून का उल्लंधन किया है। जहां तक मुझे जानकारी हैं सहकारिता विभाग ने इन सदस्यों को ही नोटिस दिये हैं तथा इनके शपथ पत्रों की पुष्टि करने के लिये कहा है। श्री के.डी. शर्मा का पत्र इन लोगों की गलती पर परदा डालने के लिये हम सब लोगों को अविश्वसनीय सिद्ध करने का प्रयास है। इसमें सबसे गंभीर बात यह है कि इस प्रकार का पत्र लिखने के लिये संचालक मंडल को विश्वास में नहीं लिया गया जो पूर्णतया सहकारिता कानून का उल्लंन होने के साथ अपराध की श्रेणी में आता है। मैं मानता हूं कि अपने साथी को बचाने के लिये श्री शर्मा किसी भी हद तक जा सकते हैं और वे संस्था को खतरे में भी डाल सकते हैं। कुछ सवाल और भी हैं......? 1. क्या श्री अरूण कुमार भंडारी को शपथ पत्र व आवेदन पत्र पर वे हस्ताक्षर करने की छूट दी जा सकती है जो हस्ताक्षर उन्होंने सोसायटी में कभी नहीं किये। संस्था का कार्यवाही रजिस्टर देखा जा सकता है। 2. क्या श्री के.डी. शर्मा और श्री भंडारी सभी माननीय सदस्यों को यह बताने का प्रयास करेंगे कि जब 5/11/2009 को दोबारा चुनाव के लिये नामांकन पत्र दाखिल किये गये थे उस दिन श्री भंडारी दिल्ली में थे और भोपाल में उनका नामांकन पत्र किसने भरा और आपके हस्ताक्षर किसने किये? 3. संस्था पत्रकारों के लिये बनी, मुख्यमंत्री से पत्रकारों के नाम पर जमीन ली गई, कलेक्टर को पत्रकारों का वेरीफिकेशन कराया गया फिर संस्था के संविधान में पत्रकार ही सदस्य होगा ऐसा क्यों नहीं जोड़ा गया? इसकी आड़ में गैर पत्रकार संस्था के सदस्य बन गये? ऐसे में हम तथ्यों को परखें और फिर किसी भी प्रकार की अफवाह पर ध्यान दें। आप सहकारिता विभाग की जांच का इंतजार करें और दूध का दूध और पानी का पानी सामने आने दें। इससे यह सिद्ध हो जायेगा कि हम संस्था को बचाने के लिये मर्यादा में रह कर काम कर रहे हैं कि ये कुछ तत्व संस्था के सदस्यों की भावनाओं के साथ खेलकर अपने हितों को साधना चाह रहे हैं। आप सब विचार करें कि क्या इस प्रकार की संस्था की हमने कल्पना की थी जिसमें भूमाफियाओं को खेल खेलने की छूट दी जायेगी? सधन्यवाद। सुरेश शर्मा संचालक राजधानी पत्रकार गृह निर्माण सहकारी समिति मर्यादित, भोपाल |
Monday, December 17, 2012
राजधानी पत्रकार में घमासान
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