नई दिल्ली: विधि आयोग ने बुधवार को कहा कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) को सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के दायरे में लाया जाना चाहिए. आयोग ने कहा कि यह लोक प्राधिकार की परिभाषा में आता है और इसे सरकार से अच्छा खासा वित्तीय लाभ मिलता है.
उच्चतम न्यायालय ने जुलाई 2016 में आयोग से इस बारे में सिफारिश करने के लिये कहा था कि क्रिकेट बोर्ड को सूचना का अधिकार कानून के तहत लाया जा सकता है या नहीं. पारदर्शिता लाने के लिए क्रिकेट बोर्ड को आरटीआई के तहत लाने की लंबे वक्त से मांग होती रही है.
विधि मंत्रालय को आज सौंपी गई रिपोर्ट में विधि आयोग ने कहा है कि बीसीसीआई को संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत ‘शासन’ की परिभाषा के तहत लाया जाना चाहिए. आयोग ने रिपोर्ट में कहा कि बीसीसीआई के कामकाज का विश्लेषण भी दिखाता है कि सरकार का उसके क्रियाकलापों तथा कामकाज पर नियंत्रण है.
रिपोर्ट में कहा गया कि भारत की विदेश नीति के अनुरूप बीसीसीआई दक्षिण अफ्रीका की रंगभेदी परंपराओं के कारण इस देश के किसी खिलाड़ी को मान्यता नहीं देता और तनावपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संबंधों को देखते हुए भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैचों को सरकार की मंजूरी की अनुमति होती है. ये स्थितियां बीसीसीआई को ‘‘शासन का अंग’’ बनाती हैं.
रिपोर्ट में कहा गया कि बीसीसीआई को उसके ‘‘एकाधिकार वाले चरित्र तथा कामकाज की लोक प्रकृति’’ के कारण ‘‘निजी संस्था’’ माना जाता है, फिर भी उसे ‘लोक प्राधिकार’ मानकर आरटीआई कानून के दायरे में लाया जा सकता है. रिपोर्ट में कहा गया कि बीसीसीआई को कर छूट और भूमि अनुदानों के रूप में सरकारों से ‘‘अच्छा खासा वित्तीय लाभ’’ मिलता है. इसमें कहा गया कि बीसीसीआई को ‘‘करोड़ों रुपयों’’ की कर छूट मिलती है.
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