भोपाल । राज्य के भारतीय जनता पार्टी के मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने अपने १२ वर्षों के शासनकाल के दौरान भले ही इस प्रदेश के विभिन्न वर्गों में अपनी सरकार की विभिन्न जनहितैषी योजनाओं के चलते इस प्रदेश के लाखों मतदाताओं के दिलों में मुख्यमंत्री ने जगह बनाने में सफलता प्राप्त की हो, फिर चाहे वह लाड़ली लक्ष्मी योजना के अंतर्गत योजना हो या मुख्यमंत्री कन्यादान निकाह या विवाह योजना का मामला हो या फिर कोई अन्य मुख्यमंत्री को लोकप्रियता दिलाने वाले यह कार्यक्रम को कितनी सफलता मिली या नहीं मिली यह तो शोध और जांच का विषय है लेकिन इस तरह के कार्यक्रमों के चलते मुख्यमंत्री की छवि इस प्रदेश के हर वर्ग के लोगों में बनी है,
लेकिन पिछले दिनों मंदसौर में उग्र हुए किसानों और उन पर हुए गोली चालन के बाद जो परिस्थितियां इस प्रदेश में बनी हैं उसके चलते अब भाजपा से जुड़ा हर नेता मुख्यमंत्री पर सवाल खड़े करता नजर आ रहा है, तो वहीं इस आंदोलन में पुलिस गोली चालन से मारे गए किसानों को सरकार द्वारा दिये जाने वाली मुआवजे की राशि को लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं, ऐसा नहीं क यह पार्टी के वरिष्ठ नेता बिना सोचे-समझे इस तरह के आरोप लगाने में लगे हुए हैं, बल्कि इस तरह के सवालों के घेेरे में स्वयं मुख्यमंत्री घिरते जा रहे हैं.
क्योंकि शिवराज सिंह की अपने शासनकाल के दौरान यह नीति रही है कि वह अधिकारियों पर ज्यादा भरोसा करते हैं और अपनी पार्टी के जनप्रतिनिधियों पर कम और इसकी पुष्टि मंदसौर में हुए किसान आंदोलन के बाद भारतीय जनता पार्टी और संघ से जुड़े नेताओं के द्वारा उस क्षेत्र के लोगों जहां कभी संघ का बड़ा वर्चस्व रहा करता था और यही मालवा संघ की प्रयोगशाला माना जाता था, वहां इस तरह के किसान आंदोलन का पनपना और किसानों का आक्रोष सड़क पर फूटना इस बात का सबूत है कि इस आंदोलन के पीछे जहां किसानों के मन में पनप रहा आक्रोश था ही लेकिन उसे हवा देने का काम भाजपा के असंतुष्ट नेताओं की भी कारगुजारी का परिणाम है,लेकिन इस तरह की रिपोर्टें यह बात साबित करती नजर आ रही हैं कि राज्य में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सरकार और उनके खिलाफ जनता में नहीं बल्कि उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं में असंतोष पनप रहा है और यदि समय रहते इस तरह के असंतोष को शांत नहीं किया गया तो इसके परिणाम क्या होंगे, इसकी तो कल्पना ही की जा सकती है, लेकिन यह जरूर है कि प्रदेश में शिवराज सरकार की कार्यप्रणाली के खिलाफ उनकी ही पार्टी के लोग लामबंद होते नजर आ रहे हैं और आये दिन पार्टी नेताओं के जिस तरह के बयान सामने आ रहे हैं, हालांकि शिवराज सरकार के दौरान ऐसा कोई भी मौका नहीं आया जब मुख्यमंत्री या उनकी पार्टी किसवी ऐसे संकट में फंसी हो जिससे पार पाना मुश्किल हो ।
इस बात की पुष्टि पिछले दिनों पार्टी के महासचिव राममाधव द्वारा इस क्षेत्र का गोपनीय बैठकें और दौरे का जो सिलसिले के बाद जो खबरें बाहर आ रही हैं उनसे यही साबित होता है कि मंदसौर का किसान आंदोलन भाजपा के नेताओं में पनप रहे शिवराज सरकार में असंतोष और प्रदेश में व्याप्त भ्रष्टाचार और अधिकारियों की मनमानी का ही नतीजा है।
देश-दुनिया में बहुचर्चित हुए व्यापमं कांड में भी आग की लपटें उठीं लेकिन अपनी सूझबूझ से शिवराज ने इस ‘महाघोटाले के दाग भी अपने ऊपर प्रमाणित नहीं होने दिए। इन १२ सालों में विपक्ष ने भी शिवराज और उनकी सरकार को कई तरीकेक से घेरने का प्रयास किया पर उसे भी सफलता नहीं मिली। इस दौरान भाजपा हाईकमान और पिछले तीन साल में चतुर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी शिवराज पर लगे आरोपों और मध्यप्रदेश के अनेक घटनाक्रमों को नजरअंदाज करते चले गए। इसका एक कारण जो जान पड़ता है और जो बताया जाता है, वह है मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता उनकी छवि और गांव-गांव, घर-घर तक उनकी पैठ इस बात का अभियान शिवराज सिंह चौहान सहित पूरी प्रदेश भाजपा और केन्द्रीय नेतृत्व को था कि लोकप्रियता के मामले में उन्होंने एक मिसाल कायम की है।
इसी वजह से तो डंपर और व्यापमं जैसे मामलों को भी भाजपा में कभी गंभीरता से नहीं लिया गया। मगर हाल ही में मध्यप्रदेश में हुए किसान आंदोलन और इसके हिंसक स्वरूप ने मुख्यमंत्री चौहान सहित पूरी भाजपा के इस भ्रम को तोड़कर रख दिया है।
लोकप्रियता, छवि, पैठ जैसे भाजपा के दावे एक झटके में धराशायी हो गए और पूरी भाजपा और उसकी सरकार के मुखिया पूरी तरह से बैकफुट पर आ गए हैं। लोकप्रियता, छवि और पैठ की ऐसी हवा निकली है कि पूरा पखवाड़ा बीत जाने के बाद भी इससे उबर पाना मुश्किल हो रहा है। मध्यप्रदेश को पूरे देश में बदनाम करने वाले और इस ‘कृषि कर्मण प्रदेश की एक नकारात्मक छवि को उभारने वाली इस घटना के दो प्रमुख कारण हैं। एक तो खुद सरकार और दूसरा, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के वे विरोधी जो उनकी पार्टी में हैं, उनकी सरकार में हैं और उनके आसपास भी हैं। इन विरोधियों ने विरोध का ऐसा ताना-बाना बुना जिसे भांपने या समझने में शिवराज सरकार की खुफिया एजेंसियां संगठन का खुफिया तंत्र और विश्वस्त नौकरशाही भी नाकाम रही।
हिंसक आंदोलन और इसमें छह किसानों की मौत के बाद घिरी शिवराज सरकार के लिए यह पिछले १२ सालों में सबसे बुरा समय है। इस घटना के बाद बने हालातों से शिवराज के विराधियों को संजीवनी-सी मिल गई। सभी ने आग में घी डालने का काम किया है। ये विरोधी सरकार और संगठन के ही हैं। हालांकि, मुख्यमंत्री और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सहित पार्टी के आला नेता और यहां तक कि केंद्रीय मंत्रियों ने भी इसे विपक्षी दल कांग्रेस का षडय़ंत्र बताने का भरपूर प्रयास किया लेकिनल इस मामले में कांग्रेस से ज्यादा शिवराज के अप ने ही सक्रिय रहे। इसमें मंत्री से लेकर संगठन के पदाधिकारी और वरिष्ठ मंत्री से लेकर संगठन के पदाधिकारी और वरिष्ठ नेता सभी शामिल हैं।
शिवराज और उनकी सरकार की नीतियों पर सीधे-सीधे सवाल उठाने की बजाए उन्होंने पुलिस और प्रशासन के जरिए सरकार पर निशाना साधा। सार्वजनिक रूप से आग उनके बयान पार्टी संगठन की लाइन से हटकर और मुश्किलें बढ़ाने वाले थे। दरअसल, मध्यप्रदेश में दिखाई देता है, तो अक्सर होता नहीं है। यदि ऐसा नहीं होता, तो मध्यप्रदेश में इतना हिसंक और व्यापक किसान आंदोलन नहीं होता। इसी तरह प्रदेश की भाजपा सरकार और संगठन में भी जैसा दिखाई देता है, जो दिखाया जाता है, वैसा बिल्कुल भी नहीं है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जनता के बीच लोकप्रिय हो सकते हैं, लेकिन पार्टी के भीतर ऐसी स्थिति नहीं है।
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