भोपाल // आलोक सिंघई (टाइम्स ऑफ क्राइम)
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को सत्ता से बाहर खदेडऩे का षडयंत्र एक बार फिर नाकाम हो गया है. हर बार की तरह इस बार भी उन्होंने पूरी बुद्धिमत्ता के साथ सही और गलत के बीच सटीक फैसला लिया और भावनाओं में न बहकर अपनी राजनीतिक शह को मात दे दी.तय तो था कि शिवराज सविनय आग्रह उपवास पर बैठने की घोषणा करते और केन्द्र सरकार उनकी सरकार को संवैधानिक संकट बताकर निलंबित कर देती. इस राजनीतिक षडयंत्र की बू उन्होंने पहले ही भांप ली और पार्टी के नेताओं व कार्यकर्ताओं की भावनाओं से ऊपर उठकर संवैधानिक दायित्वों के निर्वहन को प्राथमिकता से पूरा किया. इससे जहां एक ओर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गड़करी के प्रयास सफल हुए हैं वहीं शिवराज सिंह ने अपने विरोधियों के कलेजे भी ठंडे कर दिए हैं.मामला इस कदर तूल न भी पकड़ता मगर स्वयं शिवराज सिंह पार्टी के भीतर से उमड़ रहे उपवास के आग्रह को टाल न सके और उन्होंने स्वयं आगे बढ़कर पार्टी के नेताओं को पूरा सहयोग किया.पार्टी ने भी पूरी गंभीरता के साथ सविनय आग्रह उपवास के आयोजन को युद्ध स्तर पर अंजाम दिया. जब इसकी जानकारी जनता तक पहुंचाने के लिए पत्रकार वार्ता आयोजित की जा रही थी तब पत्रकारों ने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा से सवाल भी किए थे कि क्या इस तरह का उपवास संवैधानिक आधार पर उचित होगा तो अपनी रौ में बोल रहे प्रभात झा ने कहा कि संविधान के दायरे में केन्द्र सरकार से आग्रह करना कहीं से असंवैधानिक नहीं है. इस पत्रकार वार्ता में प्रभात झा की चीख चीखकर जवाब देने की शैली बता रही थी कि वे स्वयं भी इस आयोजन से पूरी तरह सहमत नहीं थे. बल्कि पार्टी के आदेश को पूरी तन्मयता के साथ पालन करने में जुटे हुए थे. उपवास वाले दिन भाजपा के कार्यकर्ता भी तयशुदा कार्यक्रम के मुताबिक धरना स्थल पर पहुंचे और पार्टी के तमाम नेता भी इस एतिहासिक आयोजन को करीब से देखने के लिए पहुंचे थे. कई को लग रहा था कि एसा पहली बार होगा कि स्वयं मुख्यमंत्री केन्द्र सरकार के विरुद्ध धरने पर बैठ रहे हैं.जबकि इस अभियान को हवा देने वालों के लिए इस क्षण का बड़ी बेसब्री से इंतजार था कि जैसे ही मुख्यमंत्री उपवास की घोषणा करते वैसे ही राज्यपाल महोदय सरकार संवैधानिक संकट का हवाला देकर सरकार निलंबित तक कर सकते थे.
यह अभियान इसलिए सफल नहीं हुआ क्योंकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का भाग्य और उनकी राजनीतिक सूझबूझ ने चौसर की पूरी ही बाजी पलट दी. हालांकि इसकी गोटियां पहले ही जमाई जा चुकी थीं. इस चाल की भनक भी साथियों को लग चुकी थी इसलिए वाणिज्य और उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय आयोजन स्थल पर ही नहीं पहुंचे. प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा ने आयोजन के कारणों पर प्रकाश डाला और अपनी भूमिका पूरी तरह से निभाई, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने अपने भाषण में किसानों की समस्याओं का जिक्र किया, केन्द्र के असहयोग का हवाला भी दिया लेकिन उपवास को टालने की घोषणा करके उन्होंने इस राजनीतिक अभियान को बड़ी खूबसूरती से बाऊंड्री के पार कर दिया. मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के भेजे पत्र की प्रति भी दिखाई और कहा कि जब प्रधानमंत्री स्वयं किसानों की समस्याओं पर गौर करने तैयार हैं तो उपवास की कोई जरूरत नहीं है. लिहाजा वे इस उपवास को स्थगित करने की घोषणा करते हैं. उन्होंने इसके लिए पार्टी के केन्द्रीय नेताओं से हुई चर्चा का हवाला भी दिया और स्थानीय नेताओं की सहमति भी ले ली. बाद में पत्रकार वार्ता में तीखे सवालों के जवाब देने में भी श्री चौहान ने पूरी बुद्धिमत्ता का परिचय दिया और किसी भावुकता में न पड़ते हुए आरोपों से किनारा कर लिया.
दरअसल इस अभियान के माध्यम से शिवराज सिंह चौहान का राजनीतिक तौर पर हांका किया जा रहा था.यदि वे बाडे में पहुंच जाते तो उन्हें उमा भारती की तरह सत्ता के शीर्ष से वंचित होना पड़ सकता था.इस अभियान की हकीकत भी उन्होंने पहले से ही भांप ली थी. इसके बावजूद उन्होंने मुहिम को बंद नहीं कराया. वे चाहते तो उपवास स्थल पर ही नहीं जाते और सूचना पहुंचा देते कि केन्द्र के आग्रह के बाद उन्होंने उपवास न करने का फैसला लिया है. लेकिन उन्होंने हकीकत से मुंह नहीं चुराया और परिस्थितियों का पूरी जांबाजी से सामना किया.
प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से हुई चर्चा में मुख्यमंत्री श्री चौहान को साफ बता दिया गया था कि इस उपवास की तुलना महात्मा गांधी के अवज्ञा आंदोलन से नहीं की जा सकती. गांधी जी तो अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन चला रहे थे. जबकि आज केन्द्र और राज्य की सरकारें एक ही संविधान के अंतर्गत कार्य करती हैं.राज्यपाल महामहिम रामेश्वर ठाकुर ने श्री चौहान को राजभवन बुलाकर केन्द्र सरकार की मंशा से भी उन्हें अवगत करा दिया था. इस दौरान राज्य के मुख्य सचिव अवनि वैश्य को भी राजभवन बुला लिया गया था. महामहिम ने मुख्यमंत्री से चर्चा में कहा कि केन्द्र सरकार किसानों की समस्याओं पर गंभीरता से विचार कर रही है और इस संबंध में जो भी फैसले लेने होंगे वह उन पर अमल करने तैयार है. इसके बाद भी यदि आप और आपकी पार्टी उपवास करना चाहती है तो वह स्वतंत्र हैं. सूत्र बताते हैं कि श्री चौहान से कहा गया कि केन्द्र और राज्य सरकारों को एक ही संविधान के अंतर्गत काम करने के अधिकार प्राप्त हैं. यदि बजट आबंटन जैसी बातों को लेकर राज्य सरकार केन्द्र सरकार के खिलाफ उपवास या अनशन करती है तो कल जिलों में पदस्थ कलेक्टर भी राज्य सरकार के खिलाफ अधिक बजट आबंटन की मांग को लेकर अनशन कर सकते हैं. बताते हैं कि इस तर्क ने श्री चौहान के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दीं और उन्होंने राज्यपाल महोदय को आश्वासन दे दिया कि वे कुछ न कुछ रास्ता निकालेंगे.
इस रणनीति के समानांतर कांग्रेस के भीतर भी उथल पुथल मच रही थी. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सुरेश पचौरी टकटकी लगाए बैठे थे कि जैसे ही संवैधानिक संकट की स्थिति निर्मित हो वे अपना प्रोफाईल चमका सकेंगे क्योंकि जब भारतीय किसान संघ ने किसानों की मांगों को लेकर सफल चक्काजाम किया तो पचौरी ने भी खाना पूर्ति के लिए एक छोटा मोटा धरना आयोजित किया था. पचौरी समर्थकों का मानना था कि इसे वे भाजपा सरकार को उकसाने वाला धरना सबित करके अपना राजनैतिक कद ऊंचा कर सकेंगे. लेकिन प्रदेश में क्षत्रिय राजनीति पर मजबूत पकड़ रखने वाले दिग्विजय सिंह कतई ये बर्दाश्त करने तैयार नहीं थे. उन्होंने भाजपा में अपने सिपहसालार और पूर्व संगठन महामंत्री कप्तान सिंह सोलंकी के अलावा भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और मुरैना सांसद नरेन्द्र सिंह तोमर के माध्यम से शिवराज सिंह चौहान तक कथित तौर पर संदेश पहुंचाया कि वे इस राजनीतिक ट्रेप में कतई न फंसें.यदि वे अनशन पर बैठेंगे तो उन्हें उमा भारती की तरह चलता कर दिया जाएगा.इसी तरह की राय उन्हें राज्यपाल महोदय से भी मिली थी.इस राजनीतिक संकट की सूचना मिलने पर जब मुख्य सचिव अवनि वैश्य राजभवन पहुंचे तो वे काफी तनाव में देखे गए थे लेकिन जब वे बाहर निकले तो पूरी तरह आश्वस्त थे कि सरकार का संकट लगभग टल जाएगा. बाद में वही हुआ जिसकी नींव राजभवन में डाली जा चुकी थी. उपवास की घोषणा और उसके अचानक टल जाने से कार्यकर्ता थोड़े निराश थे क्योंकि वे तो सोच रहे थे कि मुख्यमंत्री किसानों के हित में केन्द्र से सीधा टकराव लेंगे. जब उन्होंने अपने मुख्यमंत्री को पार्टी की घोषणा से मुकरते हुए देखा तो उन्होंने कहना शुरु कर दिया कि कांग्रेस और भाजपा एक ही हैं दोनों जनता को बेवकूफ बना रही हैं. जबकि हकीकत कुछ और थी. कृषि उपज के समर्थन मूल्य को लाभकारी मूल्य का रूप देने के लिए केन्द्र और राज्य दोनों की सरकारे सहमत हैं लेकिन उन्हें इसके संबंध में कोई फैसला लेने से पहले वैश्विक बाजार की स्थितियों पर गौर करना जरूरी है.
जाहिर है कि मौजूदा राजनीतिक स्थितियों के बीच देश में किसानों की समस्याओं पर नए सिरे से चिंतन शुरु हुआ है. मध्यप्रदेश से उठी किसानों की आवाज ने केन्द्र सरकार के लिए मजबूर किया है कि विश्व व्यापार संगठन की संधियों से ऊपर उठकर वह अपने किसानों की वास्तविक समस्याओं पर गौर करे. भारतीय जनता पार्टी किसानों की दुर्दशा के लिए केन्द्र सरकार को दोषी बताकर गेंद उसके पाले में फेंकना चाह रही थी, लेकिन कानूनी बाध्यताओं का सहारा लेकर केन्द्र सरकार ने अपना गोल बचा लिया. वहीं भाजपा का ये राजनीतिक दबाव भारतीय कृषि के विकास की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होने जा रहा है. जिसका असर देश भर किसानों और कृषि उत्पादों के कारोबार को निश्चित तौर पर प्रभावित करेगा. इसका श्रेय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ साथ भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी को भी दिया जाएगा क्योंकि उन्होंने ही सबसे पहले वायदा कारोबार को कटघरे में खड़ा करके किसानों की पीड़ा को स्वर देने की पहल की थी.
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