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हमारे देश का कानून भी अजीब है। कोई भी नेता बन जाता है, चाहे वो अपराधी हो या अनपढ़ क्योंकि यही एक ऐसा पद है जो बिना डिग्री और योग्यता के मिल जाता है। इसी कानून का फायदा उठाते हुए अब एक नक्सली MLA बनने जा रहा है। इस नक्सली का नाम है कुंदन पाहन। इस नक्सली ने सेना के 25 जवानों को मारा। मंत्री को बीच सड़क पर काट डाला और इसे मौत की बजाए 15 लाख का चेक मिला है। ऊपर से खबर है कि ये अब MLA का चुनाव भी लड़ेगा।
आतंक का पर्याय बन चुके झारखंड के कुख्यात नक्सली कमांडर कुंदन पाहन ने पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया। वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की हत्या समेत 128 मामलों का सामना कर रहे माओवादी पर 15 लाख रुपये का इनाम घोषित था।
कुंदन पूर्व मंत्री और तत्कालीन विधायक रमेश सिंह मुंडा की 2008 में हत्या करने, पुलिस निरीक्षक फ्रांसिस इंदुवर का सिर कलम करने और आईसीआईसी बैंक के नकदी वाहन से पांच करोड़ रुपये की लूट करने में शामिल था।
उसके आदेश पर खूटी से स्पेशल ब्रांच के इंस्पेक्टर इंदुवर को किडनैप कर लिया गया था. बाद में सिर काट कर इंदुवर की हत्या कर दी गई थी।
कुंदन 16 साल की उम्र में 1999 में नक्सली आंदोलन से जुड़ा। वह 2006 में प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की क्षेत्रीय समिति का सदस्य बना और 2012 में समिति का सचिव बन गया। झारखंड की राजधानी रांची के अलाव खुटी और सरायकेला-खरसावा जिलों में कुंदन काफी कुख्यात है। रांची और जमशेदपुर जिलों से वह अपने नक्सली वारदातों को अंजाम देता था।
इसी महीने इससे पहले एक और दुर्दांत नक्सली और 15 लाख रुपये के इनामी नकुल यादव ने समर्पण किया था। समर्पण करने के बाद कुंदन ने कहा, "मैं जिन-जिन वारदातों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर शामिल रहा, उनकी जिम्मेदारी लेता हूं। मैं स्वीकार करता हूं कि मैंने गलतियां कीं और आगे खुद को सुधारने की कोशिश करूंगा। कुंदन के दो बड़े भाई भी नक्सली हैं, जिनमें से एक ने समर्पण कर दिया, जबकि दूसरे को गिरफ्तार कर लिया गया है।
झारखण्ड पुलिस पिछले दस दिनों में तीन बड़े माओवादी उग्रवादियों का सरेंडर करवाकर भले ही अपनी पीठ थपथपा रही हो लेकिन दूसरी तरफ पुलिस की कार्यशैली पर भी सवाल उठने लगे हैं।
खासकर पुलिस के उस अंदाज पर जिसके तहत सरेंडर के कार्यक्रम आयोजन करवाये जा रहे हैं। दरअसल, भाकपा माओवादी संगठन के तीन बड़े उग्रवादियों नकुल यादव, मदन यादव और कुंदन पाहन का जिस तरह सरेंडर कार्यक्रम आयोजित किया गया उसको लेकर राज्य पुलिस पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
पिछले दस दिनों में सरेंडर करने वाले तीनों उग्रवादियों के खिलाफ पुलिस वालों की हत्या, बच्चों के अपहरण और लेवी वसूलने के कई दर्जन मामले दर्ज हैं।
नकुल और मदन के ऊपर तो गुमला में कई बच्चों को संगठन शामिल कर उनका बाल दस्ता बनाने का भी आरोप है। जबकि कुंदन पाहन के ऊपर तत्कालीन तमाड़ के विधायक रमेश सिंह मुंडा, डीएसपी प्रमोद कुमार और स्पेशल ब्रांच ऑफिसर फ्रांसिस इन्द्वार की नृशंस हत्या का आरोप है।
कहने को माओवादियों के सरेंडर का आयोजन होता है लेकिन यह किसी समारोह से कम नहीं होता। बाकायदा टेंट लगाकर मंच पर माओवादी उग्रवादी की पेशी होती है। हत्या और हिंसा के आरोपी इन उग्रवादियों को पुलिस बाकायदा स्वागत करती है जिनके साथ कभी इनका एनकाउंटर हुआ करता रहा।
यही नहीं मंच पर खड़े होकर ये सभी अपनी सफाई तक देते हैं कि उनके ऊपर लगे आरोप महज आरोप हैं और ऐसी किसी भी हिंसक वारदातों में उनका कोई योगदान नहीं।