एक परिवार ऐसा भी जिसके बच्चे बेघर होने को हैं मजबूर, दर दर की ठोकरे खाने मजबूर नन्हे मासूम चार बच्चे |
ब्यूरो चीफ बालाघाट // वीरेंद्र श्रीवास : 83196 08778
मां को सर पर से उठा छाया तो पिता अस्पताल में भर्ती, शासन की नहीं है इनपर निगाहें
बालाघाट । शासन द्वारा प्रतिवर्ष बैगा आदिवासीयो के नाम पर बैगा ओलंपिक का आयोजन कर करोङो रूपये फूंक दिये जा रहे है परन्तु यथार्थ मे उन्ही बैगा बच्चों की देखभाल करने और उनकी सुध लेने वाला भी कोई नहीं है !
जिले के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र परसवाङा मे एक परिवार ऐसा भी है जहां एक ही परिवार के चार बच्चे दर बदर की ठोकरे खाने को मजबूर है शासन की मंशा अनुरूप गरीब आदिवासीयो के लिए अनेकों योजनायें चलाई जा रही है बावजूद इसके अब भी आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र परसवाङा मे ऐसे परिवार है जहां के बच्चों को दो वक्त की रोटी तो क्या तन ठकने के लिए एक छोटा कपङा भी नसीब नही हो रहा है ।गौरतलब है कि इन बच्चों के देखरेख करने वाली मां एक माह पहले अपने दुधमुंहे बच्चे को जन्म देने के बाद मौत हो गयी तो वही बच्चों के पिता जंगल में लकङी लेने गया तो रीछ के हमले में दोनो पैर अपना तोङवा चुका है जिसका इलाज अस्पताल में चल रहा है..अब हालात यह है कि पङोसी की मेहरबानी रही तो बच्चो को दो वक्त का खाना नसीब हो जाता है नहीं तो भूखे ही नंगे बदन सोने पर मजबूर है।
जनपद पंचायत परसवाड़ा अंतर्गत आने वाले वनग्राम कुकड़ा में एक बैगा परिवार के चार बच्चे ऐसे हैं जिनकी देखरेख करने वाला तो दूर उनके पास तन ढकने के लिए कपड़ा भी नसीब नहीं हो पा रहा है ग्रामीणों द्वारा बताया जा रहा है कि इन तीनों बच्चों की उम्र बहुत कम कम है एक 7 वर्ष, 5 वर्ष, 3 वर्ष और एक तो मात्र एक महीने का ही है जिसे ग्रामीणों द्वारा अपने घर पर ही रख कर दूध पिला कर जैसे तैसे उनकी देखभाल कर रहे हैं वर्तमान समय में इन चारों नन्हे बच्चों की देखरेख करने वाला भी कोई नहीं है !
बच्चों के पिता के दोनो टांग टुटने से ग्रामीणो ने दी पनाह
उल्लेखनीय है कि ग्राम कुकड़ा के ग्रामीणों का कहना है कि चारों बैगा बच्चों के पिता इंदरजीत एक आम जो रोजमर्रा के जीवन यापन के लिए गांव से ही लगे जंगल में गए हुए थे संध्याकाल जंगल में ही रीच के हमले से बचाव के लिए वह एक पेड़ पर चढ़ गए जिसे पेड़ पर चढ़ते देख रीच भी पेड़ पर चढ़ गया जिससे पेड़ पर चढ़े इंदल सीने पेड़ से लगभग 20 फीट की ऊंचाई से जमीन पर छलांग लगा दी नीचे गिरते ही उनकी दोनों टांगे टूट गई इंदल सिंह के रात्रि काल तक घर नहीं लौटने पर जब ग्रामीणों ने खोजबीन प्रारंभ की तो जंगल में ही एक पेड़ के नीचे रात्रि तकरीबन 11:00 बजे बांस का एक गट्ठा पढ़ा हुआ ग्रामीणों ने देखा, जिसे देख ग्रामीणों को लगा कि आसपास ही होगा।
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. कोमल यादव, पङोसी, सन्नो बाई पङोसी रिश्तेदार
खोजबीन करने पर पेड़ के नीचे ही जख्मी हालत में ही इंदल दिखाई पड़ा जिसे ग्रामीणों की मदद से रात्रि में ही ग्राम में लाया गया जिसके पश्चात 108 की मदद ग्रामीणों ने लेनी चाही परंतु ग्राम चीनी से ग्राम कुकड़ा तक की सड़क की खस्ताहाल जर्जर सङक होने के चलते एवं रात्रि कॉल होने के चलते 108 की सहायता नहीं मिल पाई ! ग्रामीणों द्वारा प्रातः काल इंदल को 108 की सहायता से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र परसवाड़ा लाया गया ! जहाँ प्राथमिक उपचार किया गया ! ग्रामीणो द्वारा बताया जा रहा है कि उसके दोनों पैर टूट जाने के चलते जिला अस्पताल रेफर कर दिया गया !ग्रामीणो द्वारा बताया जा रहा है कि उक्त बैगा परिवार में इन चार बच्चों का एक ही लालन पालन करने वाला उनका पिता ही है जो वर्तमान में जख्मी हालत में अस्पताल में ही है जिसकी दोनों टांगे टूट गई हैं ग्रामीणों द्वारा बताया जा रहा है कि उसे भी स्वस्थ होने में तकरीबन 2 से 6 माह तक भी समय लग सकता है !
बिते माह हुआ बच्चों की माता का देहांत
ग्रामीणों द्वारा बताया जा रहा है कि वनग्राम कुकड़ा के चार बैगा बच्चों की माता लगभग महीने भर पहले अपनी चौथी संतान को जन्म देने के तीन-चार दिनों के पश्चात इस दुनिया से चल बसी ! ऐसी दशा में ग्राम कुकड़ा के इस बैगा परिवार के चारों नन्हे बच्चों की देखरेख करने वाला भी वर्तमान में कोई नहीं है ! इन चारों बैगा बच्चों का कोई घर नहीं है नाही इनके खाने पीने की ही कोई व्यवस्था की जा सकी है ना ही इन बच्चों के पास तन ढकने भर के लिए कपड़ा है ऐसे में माता के गुजरने एवं पिता के जख्मी हो जाने के बाद बच्चों की देखरेख के लिए भी कोई नहीं है बारिश के इस मौसम में निर्वस्त्र ही यह बच्चे इधर उधर दिनभर खेलते रहते हैं ! वर्तमान समय मे कोरोना वायरस संक्रमण के चलते आंगनबाड़ी केंद्र और स्कूल भी बंद है जिसके चलते बालकों को विद्यालय से भी मिड डे मील या पूरक पोषक आहार नहीं मिल पा रहा ! आंगनबाड़ी केंद्र या स्कूल खुले हुए होते तो संभव था कि बच्चों के लिए कुछ ना कुछ व्यवस्था हो जाती !
ग्रामीणों ने दी बच्चों को पनाह
ग्रामीणों द्वारा बताया जा रहा है कि चारों बच्चों के पिता वर्तमान में अस्पताल में पड़े हुए हैं ऐसे में इनके दूर के रिश्तेदार होने के खातिर एक परिवार ने अपने घर पर चारों बच्चों को पनाह दे रखा है जिनके द्वारा उन्हें जैसे तैसे दो वक्त का भोजन ही दिया जा रहा है परंतु अब इस परिवार के सदस्यों का भी कहना है कि दूर के रिश्तेदार होने के चलते हम सप्ताह भर इनकी देखरेख कर सकते हैं परंतु बारिश के मौसम में हम जब काम करने के लिए इधर उधर चले गए तो ऐसे में इन बच्चों के साथ कुछ हुआ तो कौन इनकी जवाबदारी लेगा वहीं ग्रामीणों का कहना है कि 4 बच्चों में एक बच्चा तो केवल एक माह भर का है जिसे जैसे तैसे हम प्रति दिवस दूध पिलाकर पाल रहे हैं ! रोज रोज कहां से दुध खरीदे ! जैसे तैसे हम जंगल जाकर ही अपना पेट भर पा रहे है ऐसे मे हम कब तक इस तरह इन बच्चों की देखरेख करते रहेंगे ! हम घर में नहीं रहे और कोई अप्रिय घटना इन बच्चों के साथ घट गई तो बेवजह ही हम परेशान होंगे ! ऐसे में इन नन्हें चारो बैगा आदिवासी बच्चों की व्यवस्था शासन द्वारा किए जाने की मांग ग्रामीणों द्वारा की जा रही है !
नही है बच्चों का घर, ना कोई व्यवस्था
राष्ट्रीय मानव कहे जाने वाले इन बैगा आदिवासी बच्चों के पास वर्तमान में ना ही कोई घर है, ना कोई देखभाल करने वाला है, ना खाने की ही कोई व्यवस्था है, ना ही तन ढकने के लिए इनके पास मीटर भर कपड़ा ही है यहां के ग्रामीणों ने बताया कि चारों बैगा बच्चों के पिता इंदल सिंह द्वारा जैसे तैसे पाल पन्नी लगाकर गर्मी में इधर उधर गुजर बसर जीवन यापन किया जा रहा था ! आवास योजना के तहत दिया गया इनका घर टूट चुका है ! घर गिर जाने के बाद गांव में इधर उधर जैसे तैसे रह रहे थे ऐसे में बच्चों की माता के निधन के बाद पिता ने ही जैसे तैसे बच्चों का पालन पोषण किया हैं वर्तमान में टूटे हुए घर के समीप ही एक बांस की झोपड़ी तैयार की जा रही थी तभी बच्चों के पिता के पैर दूर जाने से वे अस्पताल में पड़े हुए हैं ! आवास के संदर्भ में ग्रामीणों का कहना है कि पूर्व में आवास योजना का लाभ इंदल सिंह को दिया गया था परंतु मकान निर्माण महज औपचारिकताओं में पूर्ण करने के चलते आज बच्चो के परिवार का मकान जमींदोज हो चुका है और बैगा जाति की यह नन्हे बालक बेघर होकर इधर उधर जीवन यापन करने मजबूर हैं !
शासन की योजनाओं का नही मिल रहा लाभ
बैगा आदिवासियों के नाम पर सरकार द्वारा बहुत सी महत्वाकांक्षी योजनाओं का संचालन किया जा रहा है ऐसे में इन बैगा आदिवासीयो को शासन की योजनाओं का कितना लाभ मिल पाया है इनकी परिस्थितियां ही बतला रही हैं राष्ट्रीय मानव कहे जाने वाले इन आदिवासी गांव के बच्चों के पास वर्तमान में तन ढकने के लिए भी कपड़ा नहीं है परंतु फिर भी इनकी सुध लेने वाला कोई नही है ! यूं तो बैगा आदिवासियों के नाम पर शासन द्वारा करोड़ों खर्च किये जाते हैं परंतु यथार्थ में बैगा आदिवासी परिवार हाल बेहाल होकर ही जीवन गुजारने को मजबूर हो रहे हैं शासन द्वारा चलाई जा रही महत्वाकांक्षी योजनाओं का उन्हें कोई भी लाभ नहीं मिल पा रहा है!
हालाकि जब इस मामले में बालाघाट कलेक्टर दीपक आर्य से जब चर्चा किया गया तो उनका कहना है कि महिला बाल बिकास अधिकारी को मौके पर भेजा गया है....तत्कालिक तौर पर बच्चो को देखभाल करने के लिये गांव के पङोसी रिश्तेदारो को कहा गया है ..हिला सशक्तिकरण अधिकारी सुश्री वंदना धूमकेती को निर्देशित किया गया है कि वे इंदलसिंह को 10 हजार रुपये की राशि शीघ्र उपलब्ध करायें और उसके चारों बच्चों के रहने एवं पालन पोषण की उचित व्यवस्था करायें।
जनपद पंचायत परसवाड़ा के मुख्य कार्यपालन अधिकारी को भी निर्देशित किया गया है कि वे कुकड़ा के इंदलसिंह के लिए आवास की व्यवस्था करायें।कलेक्टर द्वारा स्वास्थ्य विभाग के चिकित्सकों को भी निर्देशित किया गया है कि वे इंदलसिंह को बेहतर उपचार दिलायें, जिससे वह जल्द ठीक हो सके। ऐसे में जब शासन द्वारा बैगा परिवारों को सहूलियत देने एवं संरक्षण देने के लिए योजनाएं चलाई जा रही हैं यह अब देखने वाली बात होगी कि वन ग्राम कुकड़ा में घर से बेघर हो रहे इन बैगा आदिवासी बच्चों की व्यवस्था शासन द्वारा कैसे की जाती है !