Saturday, March 30, 2013

धर्म और प्रेम के पुनर्जागरण का दिन ईस्टर


Sunil Kumar Chaube

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ईसाई धर्म में गुड फ्रायडे से तीसरा दिन रविवार अधिक महत्व रखता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन सूली पर लटकाए जाने के तीसरे दिन प्रभु यीशु पुन: जीवित हो गए थे। ईस्टर खुशी का दिन होता है। इस पवित्र रविवार को खजूर इतवार भी कहा जाता है। ईस्टर का पर्व नए जीवन और जीवन के बदलाव के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इस त्योहार का आधार है पुनरुत्थान और नवजीवन में विश्वास। ईसाई धर्म के अनुयायी ऐसा मानते हैं कि पुन: जीवित होने के बाद प्रभु यीशु ४० दिन तक शिष्यों और मित्रों के साथ रहे और अंत में स्वर्ग चले गये। पुराने समय में किश्चियन चर्च ईस्टर रविवार को ही पवित्र दिन के रूप में मानते थे। किंतु चौथी सदी से गुड फ्रायडे सहित ईस्टर के पूर्व आने वाले प्रत्येक दिन को पवित्र घोषित किया गया। शुरुआती समय में ईसाई धर्म को मानने वाले अधिकांश यहूदी थे। जिन्होंने प्रभु यीशु के जी उठने को ईस्टर घोषित कर दिया। साथ ही पूर्वी देशों में इसी समय वसंत ऋतु की देवी का भी त्योहार पड़ता है। इसलिए इसे नवजीवन या ईस्टर महापर्व का नाम दे दिया गया। यह समय भारत सहित पूर्वी देशों में वसंत ऋतु के आगमन का होता है और सर्दी के मौसम की विदाई का। इसलिए ईस्टर के त्योहार की अहमियत बढ़ जाती है। 

ईस्टर रविवार के पहले सभी गिरजाघरों में रात्रि जागरण तथा अन्य धार्मिक परंपराएं पूरी की जाती है तथा असंख्य मोमबत्तियां जलाकर प्रभु यीशु में अपने विश्वास प्रकट करते हैं। यही कारण है कि ईस्टर पर सजी हुई मोमबत्तियां अपने घरों में जलाना तथा मित्रों में इन्हें बांटना एक प्रचलित परंपरा है। ४0 दिन के कठिन व्रत के बाद आया यह त्योहार लोगों को खूब खाने पीने का और परिवार वालों के साथ समय गुजारने का मौका देता है। सारे बाजार रंग बिरंगे ईस्टर अंडों से सजे रहते हैं। साथ ही रंगे हुए अंडे या चॉकलेट के बने अंडे बच्चों में बांटना ईस्टर की लोकप्रिय परंपरा का अंग बन गया है। चॉकलेट, गत्तों और फूलों से बने ईस्टर खरगोश भी बच्चों को लुभाते हैं और बच्चे, बूढ़े और जवान, सभी कैंडी और चॉकलेट खाते हैं। अधिकांश कलीसियाओं में ईस्टर की सुबह 'सन राइज़ सर्विस'मनायी जाती है। यह सुबह सूर्य निकलने की आराधना नहीं है लेकिन पुत्र के जी उठने की आराधना है। लोग अपने प्रिय की कब्रों पर जाते हैं जैसे मरियम मगदलीनी और अन्य स्त्रियां गई थीं, जब उन्होंने कब्र को खुला और प्रभु यीशु को जीवित पाया था। वहां कुछ समय बिताते हैं। इस कामना के साथ प्रभु यीशु के समान अपने प्रियजनों से फिर से मिलेंगे। 

ईसाई धर्म की कुछ मान्यताओं के अनुसार ईस्टर शब्द की उत्पत्ति ईस्त्र शब्द से हुई है। यूरोप में प्रचलित पौराणिक कथाओं के अनुसार ईस्त्र वसंत और उर्वरता की एक देवी थी। इस देवी की प्रशंसा में अप्रैल माह में उत्सव होते थे। जिसके कई अंश यूरोप के ईस्टर उत्सवों में आज भी पाए जाते हैं। ईस्टर पर खरगोश और ईस्टर अंडों का रिवाज इन पुरानी कथाओं से जुड़ा हुआ है। अंडे को एक नई जिंदगी की उत्पत्ति और पुनर्निर्माण का प्राचीन निशान माना जाता है। यूरोप में ईस्टर कई अनूठे तरीकों से मनाया जाता है। शनिवार रात को घर के बड़े रंग-बिरंगे सजे धजे अंडे घरों के कोनों में छिपाते हैं और रविवार सुबह बच्चे इन अंडों को ढूंढ़ते हैं। कई बार छोटे बच्चों को यह लालच दिया जाता है कि यदि वे बड़ों का कहना मानेंगे, तो ईस्टर खरगोश उन्हें खुद आकर स्वादिष्ट अंडे देगा।

इस त्योहार की दार्शनिक दृष्टि यह है कि यह जीवन का महोत्सव है, यह रात्रि के काले अंधकार को पार कर सुबह के उजाले में प्रवेश का महापर्व है। मृत्यु को पार कर जीवन में प्रवेश का महान पर्व है। इस अवसर पर वस्तुत: अंडा जीवन का प्रतीक है, इसके कठोर और सख्त छिलके को तोड़कर चूजा बाहर निकलता है इसीलिये प्रारंभ में ईसाई धर्मावलंबियों द्वारा अंडे को बंद कब्र से बाहर निकलकर आने वाले प्रभु यीशु का प्रतीक मान लिया गया। ईस्टर का एक और लोकप्रिय प्रतीक है खरगोश। सच तो यह है कि खरगोश की जनन क्षमता असाधारण होती है इसीलिये इसे जीवन और वसंत ऋतु का प्रतीक मान लिया गया है। देश, काल और वातावरण के अनुकूल यद्यपि विभिन्न देशों में लोग अपनी-अपनी परंपराओं और रुचि के अनुसार ईस्टर मनाते हैं फिर भी आनंद और आशा का भाव पूरी दुनिया में समान रहता है। 

ईस्टर इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके पूर्व गुडफ्राइडे पर शोक के रूप में अंधकार गहरा दिखाई देता है लेकिन फिर ईस्टर की सुबह का प्रकाश हमें यह बतलाता है कि अंधकार के बाद सुबह और भी आशा से भरी होती है। जीवन में जब बुरे समय के रूप में अंधकार के क्षण आएं और लगे कि अब सब समाप्त हो गया है। तब निराशा और असफलता के इस समय में ईस्टर की उस घटना को याद कर फिर से उत्साह से भर लें, जिसमें यीशु को सूली पर लटकाने के बाद उनके शिष्य भी भयभीत होकर घरों में बैठे रहें। लेकिन जब ईस्टर की सुबह ईसा के जीवित होते ही स्थिति बदली तो लोगों के जीवन बदल गये। वह लोग एक विजय के उत्सव में शामिल निर्भय उत्साही लोग बन गये।

ईस्टर मात्र एक त्योहार या परंपरा बनकर न रह जाये। त्योहार का मर्म यह है कि यह विश्वास का आधार है। यह अनंत जीवन का मार्ग है और आशा का द्वार है। यदि हम इस पर्व के मर्म को समझते हुए इसे मनाएं, तभी इस त्योहार का मनाना हमारे लिए सार्थक होगा। क्योंकि तभी प्रभु यीशु के बलिदान को समझ सकेंगे। उनके द्वारा बताए ईश्वर के प्रति असीमित प्रेम को अनुभव कर सकेंगे और विश्वास के साथ जी सकेंगे।


विदेशी पर्यटकों का शोषण जारी, अतिथि देवो भवः बेमानी


भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी
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आप अतिथि हैं, होंगे, होते रहिए। अतिथि देवो भवः संस्कृति भारत की हो सकती है। हम तो इण्डियन हैं। आप कहिए कि- इण्डिया जो भारत है, हम क्यों कहें। कौन वह...? वही सिनेमा का एक्टर छोड़िए वह तो पैसों की एवज में ‘अतिथि देवो भवः’ का विज्ञापन करता है। वास्तविक जीवन में कुछ भी ऐसा नहीं जैसा कि रील लाइफ में। देयर इज ग्रेट डिफरेन्स विटवीन रियल एण्ड रील लाइफ। एक्टर भी पैसा कमाता है और हम भी पैसा। हमारी निगाहें विदेशी पर्यटकों की जेबों और उनके शरीर पर ही रहती है। हमने हर तरह से पैसा कमाने के लिए व्यवसाय किया है। टूरिस्ट के हरने खाने-पीने और सुख-सुविधा का विशेष ध्यान देना हमारा उद्देश्य होता है। हम अपने उद्देश्य में सफल भी हैं। 
हमारी तरह के कइयों ने पर्यटन स्थलों पर होटल ढाबे एवं अन्य दुकानें खोलकर अच्छा खासा पैसा कमाना शुरू कर दिया। हमारा होटल का व्यवसाय है। हम अच्छे खासे किराए पर पर्यटकों को कमरे बुक करते हैं। देसी और विदेशी पर्यटकों के मन मुताबिक उनकी हर जरूरत का ख्याल रखना हमारा परम कर्तव्य है। हम अपने मेहमानों की हर तरह से सेवा करते हैं। उनकी मानसिक और शारीरिक थकान मिटाने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। अभी बीते दिनों हमारे एक हम पेशा भाई ने (जो एक होटल संचालक है) विदेशी महिला पर्यटक का इतना ख्याल किया कि अल सुबह 4 बजे के पूर्व ही, उसके शरीर की मालिश करने पहुँच गया। 
अब पता नहीं क्यों विदेशी महिला पर्यटक ने इस सेवा भाव को अन्यथा लिया और पहुँच गई थाना जहाँ होटल संचालक बन्धु पर कथित दुष्कर्म करने का प्रयास का आरोप लगाकर जेल भेजवा दिया। परिणाम यह हुआ कि हमारी पूरी बिरादरी में खौफ छा गया। भला बताइए ‘‘अतिथि देवो भवः’’ जैसी संस्कृति वाले देश के रहने वाले हम जैसे पर्यटक प्रेमियों को सेवा भाव के बदले जेल की सलाखें मिले यह कहाँ का न्याय है। वैसे एक बात बताऊँ ऐसा तो संभवतः प्रायः होता रहता है, यह घटना कोई नई नहीं है। मैं तो यह कहूँगा कि विदेशी पर्यटक महिला (दन्त चिकित्सक) को इस तरह का आरोप लगाने और होटल संचालक को जेल भिजवाने से बेहतर था कि वह अपने शरीर की मालिश करवा लेती। सुबह तरोताज हो जाती। 
बहरहाल जो होना था वह तो हो गया। अब हमें सचेत रहना होगा और पर्यटन स्थलों पर व्यवसाय करने वाले हमपेशा बन्धुओं को इस तरह की बेस्ट होस्टिंग नहीं करनी होगी। कोई तमगा तो मिलने से रहा उलटे पुलिस के डण्डे और जेल की सलाखें ही मिलेंगी। इतना ही लिख पाया था तभी सुलेमान जी का पदार्पण हुआ। बोले डियर कलमघसीट क्या लिख रहे हो? तो उनकी तरफ कागज बढ़ा दिया। वह सरसरी तौर पर पढ़कर खूब हँसें, और बोले मियाँ कलमघसीट देख नहीं रहे हो आज कल दुष्कर्म और हत्या आदि की खबरें प्रमुखता से पढ़ने/सुनने को मिल रही है। ऐसे में विदेशी महिला पर्यटक वाली खबर कोई आश्चर्यजनक तो नहीं। ऐसा पहली बार हुआ हो तो बात दीगर है। 
हत्या, दुष्कर्म और उसके प्रयास का माहौल चल रहा है। इसीलिए मीडिया में विदेशी महिला की खबर छपी है। और तुम हो कि उक्त खबर की प्रतिक्रिया में आलेख लिख रहे हो। छोड़ो यार यह सब मत लिखा करो। मुझे अच्छा नहीं लगता। मैंने लिखना बन्द कर दिया और हम दोनों मित्र राम भरोस चाय वाले की दुकान के लिए निकल पड़े। 
(लेखक अकबरपुर अम्बेडकरनगर (उ.प्र.) के निवासी एवं पत्रकार हैं।) 

मोबाइल कम्पनियों के इत्ते ज्यादा अपने मिनट क्यों...?


भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी
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अमाँ मियाँ कलमघसीट मोबाइल कम्पनियों पर कन्ट्रोल नहीं लगता क्या? आज सुलेमान भाई का चेहरा तमतमाया लग रहा था। मैंने उन्हें बैठने का इशारा किया तो बोल पड़े क्या बैठूं पहले से ही मूड ऑफ है। मैंने उनसे रिक्वेस्ट किया तो वह बैठे। आज उनके मुँह में पान की गिलौरी नहीं थी। एक दम से सूखा मुँह। मुझे ताज्जुब हुआ। मैंने लिखना बन्द कर दिया और घड़े में से पानी निकालकर एक गिलास सुलेमान भाई को पीने के लिए यिा।
तत्पश्चात् सुलेमान कुछ नार्मल हुए और मेरी तरफ देखकर कहने लगे डियर कुछ लिखो। आखिर ये मोबाइल कम्पनियाँ नई जेनरेशन को चौपट करने पर तुली हुई हैं। आज कल नए लड़के लड़कियाँ कानों से मोबाइल लगाए घण्टों बातें करते रहते हैं। सुलेमान की बात में काफी वजन था। ऐसा मैंने भी महसूस किया है। मैंने जो अनुभव किया है उसको यहाँ लिखकर आप सभी से शेयर करना चाहूँगा। एक मोबाइल कम्पनी है जो अपने सिम धारक ग्राहकों को असीमित टाक मिनट देती हे, वह भी कम पैसों में। 
युवा पीढ़ी या फिर आशिक मिजाज लोग (उम्र बाधा नहीं) घण्टों समय-असमय बातें करते हुए देखे जा सकते हैं। जिस-जिस को मोबाइल सेट कान से लगाए देखा जाए समझिए कि उसके सिम में मिनट हजारों/असीमित पड़ा है, वह भी कम पैसों में। यह तो रही कुछ साधारण सी जानकारी। कई लोगों के मुँह से सुना है कि युवक-युवतियाँ अपने मोबाइल सेट्स हमेशा अपने साथ रखते हैं। सोते-जागते और नित्यक्रियाओं के समय भी ये लोग अपने मोबाइल सेट्स विशेष पॉकेट्स में रखे रहते हैं या फिर कानों से लगाए बातचीत में व्यस्त ही रहते हैं। यह सब क्या है? कुछ दिनों पहले पढ़ा था कि मोबाइल फोन से निकलने वाली ध्वनि तरंगे कान एवं मस्तिष्क को हानि पहुँचाती हैं। मुझे तो डर लगने लगा लेकिन यह युवा पीढ़ी क्यों नहीं डरती?
मैंने इस चिन्ता के विषय को सुलेमान से शेयर किया तब वह और भी रिलैक्स हो गए। उनके चेहरे का भाव बता रहा था कि उनकी और मेरी चिन्ता एक ही है। वह पान की पीक मुँह से उगलकर बोले मियाँ कलमघसीट मैं तो आजिज आ गया हूँ। सुना है एक मिनट देने वाली मोबाइल कम्पनी पर महाराष्ट्र सरकार ने बैन लगा दिया है, इसकी खबर सुनकर तसल्ली हुई थी कि अब जल्द ही अपने यहाँ भी पाबन्दी लगेगी और बरबाद हो रही वर्तमान नस्ल तथा पुराने लोगों के बीच उत्पन्न दरार खत्म होगी। काश! जल्द ही ऐसी कम्पनियाँ अपना मिनट वाला स्पेशल टैरिफ बाउचर सुविधा समाप्त कर देंती तो...। हाँ-हाँ बोलो मियाँ रूक क्यों गए। यार कुछ बोलो मत जब देखो घर की महिलाएँ अपने रिश्तेदार महिलाओं से बेवजह की बातें करती हैं। एकाध मिनट की बातें नहीं एक-एक घण्टे। लड़के-लड़कियाँ अपने कथित दोस्त यार से बतियाते हैं। ऐसे में खाने-पीने की बात दूर। एक कप चाय या एक गिलास पानी मिलना मुश्किल है। मैं कहता हूँ यार घरेलू महिलाएँ जब फुर्सत पाती हैं तब अपनी बहने, भाइयों, माँ एवं अन्य दूर-दराज रहने वाले रिश्तेदारों से घण्टों बातें करके जी हल्का करती है, इसमें बुराई ही क्या है। सुलेमान इस पर कुछ न बोलकर कहते हैं कि चलो यह बात मान लेते हैं कि ठीक, लेकिन घरों के लाडले-लड़कियाँ इतनी लम्बी वार्ता क्यों करते हैं, उनके इस प्रश्न पर मैं निरूत्तर हो जाता है। 


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