ज्योति सिंधिया की 2004 के शिवपुरी लोकसभा चुनाव में हरिवल्लभ शुक्ला ने हालत पतली कर दी. ऐसी बातों पर ही एक पर्चा शहर में बांटा गया. काफी तोड़ फोड़ हुयी. सिंधिया के साथ के एक काफी बड़े अखबार के मालिक की कार तोड़ दी गयी. हार समझ सिंधिया सड़क पर ही धरने पर बैठ गए. शक मेरे व मेरे अखबार दैनिक चम्बल वाणी पर गया लेकिन पुलिस मेरी बातों से सहमत हुयी.
अब नम्बर हरिवल्लभ शुक्ला का खुल कर आ गया. बदले में सिंधिया ने अपने विधायक रघुवंशी से हरिवल्लभ शुक्ला की दूसरी पत्नी ( बिना शादी की ) व लडके की साथ में पत्रकार वार्ता करवा दी. गोलियां चली . सिंधिया जान बचा कर भागे. सिंधिया की पिस्तौल छीन ली गयी . सिंधिया पर धारा 307 का केस चला. शिवपुरी व चम्बल संभाग बंद रहा. जबकि बीजेपी के मंत्री व अटल जी के भांजे अनूप मिश्रा पर 302 का केस लगा तो बीजेपी की जगह उलटा सिंधिया ने ग्वालियर बंद करवा. काफी दिन तक हंगामा करवाते रहे.
अब मुरेना जिले के जौरा इलाके में सिंधिया ने 2004 के कांग्रेस विधायक उम्मेद सिंह सिकरवार बना का 2009 में टिकट कटवा कर सिकरवारों को कमजोर कर अपने ही प्रत्याशी वृन्दावन सिंह सिकरवार ( बीजेपी विधायक गजराज सिकरवार के भाई ) को दिलाया. फिर भी जिता न सके. परिणाम स्वरुप BSP के विधायक मनीराम धाकड़ जीत गए.
कुल मिला कर कहने का मतलब यह है कि 2013 है. ऊपर से चुनाव है. यानी करेला उपर से नीम चडा होना ही है. देखते चलिए किस की कौन पोल खोलता जाता है. भई चुनाव जो जीतना है सभी को. सलमान खुर्शीद के अनुसार तो हमाम में सब नंगे हैं. लेकिन हमारी भगवान से यही प्रार्थना रहेगी कि सबकी रक्षा होती रहे और उनकी सबकी असली महारानियों को दाम्पत्य सुख मिलता रहे. शब्बाखैर
>>व्यक्तिगत जानकारी --> मैं 2009 में सिंधिया के खिलाफ लोकसभा का चुनाव इसलिए लड़ा क्योंकि एक तो सिंधिया ने हरिबल्लभ शुक्ला के पैर छूकर माफ़ी ही नहीं मांगी बल्कि हरिबल्लभ शुक्ला के घर जाकर कांग्रेस में शामिल किया. दूसरा बीजेपी सरकार के दयालु मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने इन दोनों का राजीनामा कराया. जिससे सारे पंडित व जैन समाज नाराज हो गया. आप सबकी की कृपा से बिना गुना - शिवपुरी गए 10 हजार वोट पा सका. साथ ही मैंने इस केस में सिंधिया की गिरफ्तारी न होने पर हाई कोर्ट में केस भी लड़ा.
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