Saturday, March 30, 2013

कोसी कलां दंगे की हो सीबीआई जांच- रिहाई मंच


सुनियोजित रणनीति के तहत दंगे करा रही है सपा सरकार- रिहाई मंच
जनसुनवाई में पीडि़तो ने बंयां की आपबीती

कल कोसी कलां दंगे की रिपोर्ट जारी करेंगे जस्टिस राजेन्दर सच्चर
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लखनऊ 30 मार्च 2013/ रिहाई मंच द्वारा कोसी कलां दंगा पीडि़तों की जनसुनवाई करते हुए कोसी कलां दंगे में राज्य मशीनरी की संदिग्ध भूमिका पर चर्चा करते हुये दंगे की सीबीआई जांच कराने की मांग की। इस दौरान कोसी कलां, मथुरा से लगभग पचास पीडि़त परिवारों के लोग मौजूद थे जिन्होंने अपने उत्पीड़न की दास्तां सुनाई, जिन्हें नौ महीने बीत जाने के बाद भी न्याय नहीं मिला है।

रिहाई मंच के महासचिव व पूर्व पुलिस महानिरिक्षक एसआर दारापुरी ने कहा कि सपा सरकार मुसलमानों को दंगे की आग में झोंककर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कराना चाहती है। जबकि सपा मुसलमानों के समर्थन से ही सत्ता तक पहुंची है। श्री दारापुरी ने कहा कि जिस तरह से कोसी कलां के दंगा पीडि़तों ने अपनी आप बीती सुनाई और बताया कि जांच कर रही पुलिस किस तरह सांप्रदायिक राजनेताओं को संरक्षण दे रही है उससे लगता है कि कोसी कलां यूपी में नहीं बल्कि मोदी के गुजरात में है। उन्होंने दंगे में पुलिस की संदिग्ध भूमिका पर सवाल करते हुए कहा कि इस पूरे मामले की जांच सीबीआई को सौंप देनी चाहिए क्योंकि प्रदेश की पुलिस अपने ही खिलाफ उठे सवालों पर जांच नहीं कर सकती।

मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड की सदस्य नसीम इक्तेदार अली ने कहा कि एक साल के शासन में 27 दंगे होने से साफ हो जाता है कि यह दंगे सपा सरकार की नीतियों के तहत हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह महज इत्तेफाक नहीं है कि एक तरफ पूरे सूबे में दंगे हो रहे हैं तो वहीं मुलायम सिंह मुसलमानों के खून से सने हाथ वाले आडवानी की तारीफ करते हैं और वरुण गांधी जैसे मुस्लिमों के हाथ काटने की खुलेआम धमकी और मुसलमानों को एक बीमारी कहने वाले सांप्रदायिक व्यक्ति को बरी करवा देते हैं।

वरिष्ठ पत्रकार अजय सिंह ने कहा कि सपा के शासन काल में हर बार मुस्लिम विरोधी दंगे होते रहे हैं इसलिए इसे अखिलेश के शासन की विफलता नहीं बल्कि सामाजिक न्याय के नाम पर मुसलमानों को ठगने की जो राजनीति रही है उसका परिणाम है। जो इस बार सपा की पिछली हुकूमतों से ज्यादा बर्बर तरीके से अभिव्यक्त हो रही है। इससे यह भी समझा जा सकता है कि देश में सांप्रदायिकता का खतरा सिर्फ भाजपा से ही नहीं सपा और कांग्रेस जैसी कथित सेक्युलर पार्टियों से भी है।

एपवा नेता ताहिरा हसन ने कहा कि जिस तरह मुसलमानों के वोट से सत्ता में पहुंची सपा ने मुस्लिम विरोधी दंगों की लाइन लगा दी है उससे तय हो गया है कि मुसलमानों को अब तय करना होगा कि मुलायम सिंह जैसे छद्म सेक्युलर नेता के हवाले अपना भविष्य नहीं छोड़ा जा सकता। उन्होंने कहा कि मुसलमानों को अब ऐसे नए राजनीतिक समीकरण की तरफ बढ़ना होगा जो सांप्रदायिकता के खिलाफ बिना समझौते के लड़ाई लड़ सके।

आॅल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के नेता दिनकर कपूर ने कहा कि दंगों से तय हो गया है कि मुलायम की अवसरवादी धर्मनिरपेक्षता सांप्रदायिकता से नहीं लड़ सकती। उन्होंने कहा कि सरकार आतंकवाद के नाम पर बंद निर्दोष युवकों को छोड़ने की बात कर रही है लेकिन आरडी निमेष जांच कमीशन की रिपोर्ट सरकार दबा कर रखी है, क्योंकि उसे जारी करने के बाद सिर्फ बेगुनाहों के छूटने का रास्ता ही नहीं खुलेगा बल्कि सांप्रदायिक और अपराधी एसटीएफ और खुफिया एजेंसियों के अधिकारियों के खिलाफ भी कार्यवाई करना होगा। जो सपा सरकार नहीं करना चाहती।

सामाजिक कार्यकर्ता केके वत्स पिछले दिनों पुलिस की पिटाई से आत्म हत्या करने वाले मुहम्मदपुर लखनऊ के निवासी समीर कांड को पुलिसिया सांप्रदायिकता का नया उदाहरण बताया जहां ठोस सुबूत होने के बावजूद अपराधी पुलिस कर्मी आजाद है। जनसुनवाई में मौजूद कोसी कलां दंगे में मारे गए दो जुड़वा भाईयों की सास फरजाना ने कहा कि उनकी आखों के सामने ही उनके दामाद कलुवा और भूरा को काटकर जिंदा जला दिया गया। और उनके साथ आबरुरेजी करने की कोशिश की गई पर आज तक उसके दोषी खुलेआम घूम रहे हैं।

जनसुनवाई में मौजूद मौलाना ताहिर ने कहा कि जिस तरह से जय श्री राम के नारों के साथ पुलिस की मौजूदगी में बस स्टैण्ड और कब्रिस्तान वाली मस्जिदों में मजहबी किताबों को जलाया गया और मस्जिद को छतिग्रस्त किया गया वह मंजर याद करके आज भी रुह कांप जाती है। एक तरफ मुलायम और आजम खान
मदरसांे के आधुनिकीकरण के नाम पर मुसलामानों को रिझाते हैं तो वहीं दूसरी ओर उनकी हुकूमत में मदरसों और मस्जिदों को नजर -ए-आतिश कर दिया जाता है।

जनसुनवाई में मौजूद मोहम्मद इदरीस ने कहा कि उन लोगों ने मेरी आंखों के सामने मेरे भतीजे सलाउद्दीन की गोली मारकर हत्या कर दी और अब विवेचना कर रहे सीओ बंशराज सिंह यादव मेरे भाई पर दबाव डाल रहे हैं कि वे दो लाख रुपए लेकर अभियुक्तों से समझौता कर लें।

जनसुनवाई में मौजूद कोसी कलां के पीस हिंद सोशल सोसाइटी के सचिव मोहम्मद शाहिद कुरैशी ने कहा कि इस दंगे की साजिश पांच रोज पहले वृंदावन में रची गई। जहां आरएसएस की तीन रोजा मीटिंग हुई थी। उसमें शरीक होकर नगर के भगवत प्रसाद रुहेला, भगवत अचार वाला, बंटी बीज वाला, लांगुरिया बैण्ड मास्टर, मुकेश गिडोहिया आदि आरएसएस, बजरंगदल और भाजपा के लोगों ने एक जून को कोसी कलां की सांप्रदायिक एकता को नेस्ता नाबूद कर दिया। जो आज तक बहाल नहीं हो सकी।

जनसुनवाई में मौजूद जान मोहम्मद ने कहा कि मेरी उम्र 60 से ज्यादा की हो गई है, सही से चल-फिर भी नहीं पाता हूं और मेरे ऊपर और मेरी ही तरह ऐसे बहुत से लोगों पर झूठे मुकदमें लगाकर पुलिस ने हमारी हंसती-खेलती जिन्दगी तबाह कर दी है।

जनसुनवाई में मौजूद बाबू ने कहा कि मेरा बेटा आस मोहम्मद जिसे हम प्यार से आशू कहते थे, वो सोलह साल का बच्चा था, जिसे अभी बहुत दुनिया देखनी थी। पर दंगाईयों को उसपर रहम नहीं आई और उन्होंने उसे गोलियों से छलनी कर दिया। आज तक न इस पर चार्जशीट दाखिल की गई है और न ही नौ महीने बीत जाने
के बाद अभियुक्तों को गिरफ्तार किया गया है। जनसुनवाई मे मौजूद मो0 फखरुद्दीन ने कहा कि मुझ पर दंगाइयांें ने तेजाब फेंका जिसकी जलन से मेरा बुरा हाल हो गया। आज भी उस मंजर को याद करके दिल दहल जाता है। दंगाईयों ने उनके भतीजे कयूम, भाई निजामुद्दीन की दुकान को लूटा और आग लगाई।

जनसुनवाई का संचालन कर रहे अवामी काॅउसिल के महासचिव असद हयात ने कहा कि विधान परिषद में राज्य सरकार द्वारा यह घोषणा करना कि एमएलसी लेखराज को पुलिस ने क्लीनचिट दे दी है, सत्य पर पर्दा डालना और मुसलमानों के साथ धोखा करना है। वास्तविकता यह है कि दंगाइयों ने दोपहर के समय फोन करके ग्रामीणों को लक्ष्मी नारायण और लेखराज सिंह का नाम लेकर एकत्र किया कि उन्होंने कहा है कि मुसलमानों की ईंट से ईंट बजा दो और रात्रि के समय इन लोगों द्वारा नकासा का दौरा किया और फायरिंग करवाकर दहशत फैलाई गई। इससे साबित है कि दंगा कराने और उसकी योजना में लक्ष्मी नारायण और एमएलसी लेखराज सिंह शामिल रहे। ऐसे में जब इस दंगे में राजनीतिज्ञों की षडयंत्रकारी भूमिका सामने आ रही है तो इस दंगे की निष्पक्ष विवेचना सीबीआई से ही कराई जानी चाहिए।

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