Sunil Kumar Chaube
ईसाई धर्म में गुड फ्रायडे से तीसरा दिन रविवार अधिक महत्व रखता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन सूली पर लटकाए जाने के तीसरे दिन प्रभु यीशु पुन: जीवित हो गए थे। ईस्टर खुशी का दिन होता है। इस पवित्र रविवार को खजूर इतवार भी कहा जाता है। ईस्टर का पर्व नए जीवन और जीवन के बदलाव के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इस त्योहार का आधार है पुनरुत्थान और नवजीवन में विश्वास। ईसाई धर्म के अनुयायी ऐसा मानते हैं कि पुन: जीवित होने के बाद प्रभु यीशु ४० दिन तक शिष्यों और मित्रों के साथ रहे और अंत में स्वर्ग चले गये। पुराने समय में किश्चियन चर्च ईस्टर रविवार को ही पवित्र दिन के रूप में मानते थे। किंतु चौथी सदी से गुड फ्रायडे सहित ईस्टर के पूर्व आने वाले प्रत्येक दिन को पवित्र घोषित किया गया। शुरुआती समय में ईसाई धर्म को मानने वाले अधिकांश यहूदी थे। जिन्होंने प्रभु यीशु के जी उठने को ईस्टर घोषित कर दिया। साथ ही पूर्वी देशों में इसी समय वसंत ऋतु की देवी का भी त्योहार पड़ता है। इसलिए इसे नवजीवन या ईस्टर महापर्व का नाम दे दिया गया। यह समय भारत सहित पूर्वी देशों में वसंत ऋतु के आगमन का होता है और सर्दी के मौसम की विदाई का। इसलिए ईस्टर के त्योहार की अहमियत बढ़ जाती है।
ईस्टर रविवार के पहले सभी गिरजाघरों में रात्रि जागरण तथा अन्य धार्मिक परंपराएं पूरी की जाती है तथा असंख्य मोमबत्तियां जलाकर प्रभु यीशु में अपने विश्वास प्रकट करते हैं। यही कारण है कि ईस्टर पर सजी हुई मोमबत्तियां अपने घरों में जलाना तथा मित्रों में इन्हें बांटना एक प्रचलित परंपरा है। ४0 दिन के कठिन व्रत के बाद आया यह त्योहार लोगों को खूब खाने पीने का और परिवार वालों के साथ समय गुजारने का मौका देता है। सारे बाजार रंग बिरंगे ईस्टर अंडों से सजे रहते हैं। साथ ही रंगे हुए अंडे या चॉकलेट के बने अंडे बच्चों में बांटना ईस्टर की लोकप्रिय परंपरा का अंग बन गया है। चॉकलेट, गत्तों और फूलों से बने ईस्टर खरगोश भी बच्चों को लुभाते हैं और बच्चे, बूढ़े और जवान, सभी कैंडी और चॉकलेट खाते हैं। अधिकांश कलीसियाओं में ईस्टर की सुबह 'सन राइज़ सर्विस'मनायी जाती है। यह सुबह सूर्य निकलने की आराधना नहीं है लेकिन पुत्र के जी उठने की आराधना है। लोग अपने प्रिय की कब्रों पर जाते हैं जैसे मरियम मगदलीनी और अन्य स्त्रियां गई थीं, जब उन्होंने कब्र को खुला और प्रभु यीशु को जीवित पाया था। वहां कुछ समय बिताते हैं। इस कामना के साथ प्रभु यीशु के समान अपने प्रियजनों से फिर से मिलेंगे।
ईसाई धर्म की कुछ मान्यताओं के अनुसार ईस्टर शब्द की उत्पत्ति ईस्त्र शब्द से हुई है। यूरोप में प्रचलित पौराणिक कथाओं के अनुसार ईस्त्र वसंत और उर्वरता की एक देवी थी। इस देवी की प्रशंसा में अप्रैल माह में उत्सव होते थे। जिसके कई अंश यूरोप के ईस्टर उत्सवों में आज भी पाए जाते हैं। ईस्टर पर खरगोश और ईस्टर अंडों का रिवाज इन पुरानी कथाओं से जुड़ा हुआ है। अंडे को एक नई जिंदगी की उत्पत्ति और पुनर्निर्माण का प्राचीन निशान माना जाता है। यूरोप में ईस्टर कई अनूठे तरीकों से मनाया जाता है। शनिवार रात को घर के बड़े रंग-बिरंगे सजे धजे अंडे घरों के कोनों में छिपाते हैं और रविवार सुबह बच्चे इन अंडों को ढूंढ़ते हैं। कई बार छोटे बच्चों को यह लालच दिया जाता है कि यदि वे बड़ों का कहना मानेंगे, तो ईस्टर खरगोश उन्हें खुद आकर स्वादिष्ट अंडे देगा।
इस त्योहार की दार्शनिक दृष्टि यह है कि यह जीवन का महोत्सव है, यह रात्रि के काले अंधकार को पार कर सुबह के उजाले में प्रवेश का महापर्व है। मृत्यु को पार कर जीवन में प्रवेश का महान पर्व है। इस अवसर पर वस्तुत: अंडा जीवन का प्रतीक है, इसके कठोर और सख्त छिलके को तोड़कर चूजा बाहर निकलता है इसीलिये प्रारंभ में ईसाई धर्मावलंबियों द्वारा अंडे को बंद कब्र से बाहर निकलकर आने वाले प्रभु यीशु का प्रतीक मान लिया गया। ईस्टर का एक और लोकप्रिय प्रतीक है खरगोश। सच तो यह है कि खरगोश की जनन क्षमता असाधारण होती है इसीलिये इसे जीवन और वसंत ऋतु का प्रतीक मान लिया गया है। देश, काल और वातावरण के अनुकूल यद्यपि विभिन्न देशों में लोग अपनी-अपनी परंपराओं और रुचि के अनुसार ईस्टर मनाते हैं फिर भी आनंद और आशा का भाव पूरी दुनिया में समान रहता है।
ईस्टर इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके पूर्व गुडफ्राइडे पर शोक के रूप में अंधकार गहरा दिखाई देता है लेकिन फिर ईस्टर की सुबह का प्रकाश हमें यह बतलाता है कि अंधकार के बाद सुबह और भी आशा से भरी होती है। जीवन में जब बुरे समय के रूप में अंधकार के क्षण आएं और लगे कि अब सब समाप्त हो गया है। तब निराशा और असफलता के इस समय में ईस्टर की उस घटना को याद कर फिर से उत्साह से भर लें, जिसमें यीशु को सूली पर लटकाने के बाद उनके शिष्य भी भयभीत होकर घरों में बैठे रहें। लेकिन जब ईस्टर की सुबह ईसा के जीवित होते ही स्थिति बदली तो लोगों के जीवन बदल गये। वह लोग एक विजय के उत्सव में शामिल निर्भय उत्साही लोग बन गये।
ईस्टर मात्र एक त्योहार या परंपरा बनकर न रह जाये। त्योहार का मर्म यह है कि यह विश्वास का आधार है। यह अनंत जीवन का मार्ग है और आशा का द्वार है। यदि हम इस पर्व के मर्म को समझते हुए इसे मनाएं, तभी इस त्योहार का मनाना हमारे लिए सार्थक होगा। क्योंकि तभी प्रभु यीशु के बलिदान को समझ सकेंगे। उनके द्वारा बताए ईश्वर के प्रति असीमित प्रेम को अनुभव कर सकेंगे और विश्वास के साथ जी सकेंगे।
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