(अखिलेश दुबे)
सिवनी । मध्य प्रदेश सरकार की जनहितकारी योजनाओं को जन जन तक पहुंचाने के लिए पाबंद जिला जनसंपर्क कार्यालय का काम क्या महज अखबारों को गिनना है? क्या शासन, प्रशासन और मीडिया के बीच सामंजस्य बिठाने का काम उनके कर्तव्यों में शामिल नहीं है? सूचना के अधिकार के तहत निकाली गई जानकारी में उक्ताशय की बात सामने आई है।
मध्य प्रदेश के सिवनी जिले का जिला जनसंपर्क कार्यालय किस कदर मटरगश्ती के आलम में है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां पदस्थ लगभग नब्बे प्रतिशत स्टाफ पच्चीस साल सेभ्ज्ञाी अधिक समय से यहीं पदस्थ है। आरोपित है कि जिला जनसंपर्क कार्यालय द्वारा पत्रकारों के साथ मुंहदेखा व्यवहार किया जा रहा है।
बहरहाल, सूचना के अधिकार कानून के तहत निकाली गई जानकारी में सिवनी में अनेक हैरत अंगेज जानकारियां सामने आई हैं। दैनिक समाचार पत्रों में किसी की तीन तो किसी को दो प्रतियां प्रतिदिन प्राप्त होना जिला जनसंपर्क कार्यालय द्वारा दर्शाया गया है।
मजे की बात तो यह है कि फरवरी माह में आठ तारीक के कालम में जिला जनसंपर्क कार्यालय में प्राप्त समाचार पत्रों की संख्या शून्य एवं उसके स्थान पर बीच में एक जगह कर्फ्यू दर्शाया गया है। इसका मतलब साफ है कि 7 फरवरी की रात्रि लगाए गए कर्फ्यू के उपरांत 8 फरवरी को सिवनी शहर में प्रेस पर अघोषित सैंसरशिप लगा दी गई थी। इस दिन अखबार बटने परभ्ज्ञाी प्रतिबंध लगा दिया गया था।
देखा जाए तो यह प्रेस की स्वतंत्रता के साथ जिला प्रशासन द्वारा किया गया खिलवाड़ है। यह प्रेस की स्वतंत्रता का हनन है। इस सबके बावजूद जिला जनसंपर्क कार्यालय सिवनी द्वारा ना तो जिला कलेक्टर से इस बावत कोई पत्रव्यवहार किया और ना ही अपने उच्चाधिकारियों को प्रेस के साथ हुई इस नाईंसाफी से आवगत करवाया गया।
हालात देखकर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि जिला जनसंपर्क अधिकारी का काम सरकारी समाचारों का ईमेल के माध्यम से बिना जांचे पढ़े संप्रेषण और उनके कार्यालय में आने वाले समाचार पत्रों की गिनती का ही रह गया है। पत्रकार जगत के अधिकार कर्तव्य उन्हें होने वाली असुविधा परेशानी से पीआरओ कार्यालय को कोई सरोकार नहीं बचा है।
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