Saturday, March 23, 2013

शिवराज ''शौचालय'' से ''सचिवालय'' तक


शिवराज ''शौचालय'' से ''सचिवालय'' तक



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 रामगोपाल शर्मा


...मुख्यमंत्री निवास - सूर्य की किरणें आलोकित होने को हैं और देश के हृदय प्रदेश का मुख्यमंत्री जाग्रत अवस्था में आते ही... फोन पर..

वंदे मातरम्...। जयहिंद...। गुडमार्निंग... कुछ समझ में नहीं आ रहा - शयनकक्ष में मोहन भागवत जी का फोन - जी शिवराज बोल रहा हूं। भाई साब... प्रणाम करता हूं।

बातचीत बताना असंभव क्योंकि सूत्र संचालक के 'संकेत'' शिवराज ही समझ सकते हैं। बात खत्म होते ही ताम्रपत्र का जल पिया और थोड़ा सा टहले - प्रेशर बन गया, जाने को उद्यत - पर यह क्या... आज तो सेवक के स्थान पर साधनाजी स्वयं चाय के साथ। मुख्यमंत्री ''प्रेशर'' के बावजूद रुक गये। एक कहावत है, किसी भी सफलता के पीछे किसी न किसी महिला का हाथ होता है, यह विश्व का आठवां आश्चर्य है (नजर न लगे) साधनाजी के 'चरण'' शिवराज जी के घर में पड़ते ही - ''जैत'' की ''जुताई'' छोड़कर 'सत्ता' की 'वनरोपिणी'तैयार कर रहे हैं। पूरा देश जानता है - भैय्या का दाम्पत्य जीवन सुखी है। टचवुड

खैर, चाय की तरफ सी.एम. ने ऐसे देखा जैसे बकरा कसाई को और म.प्र. का नौकरशाह आम आदमी को देखता है - चाय किसी तरह पी ही थी, सी.एम. बाथरूम की तरफ बढ़े ही थे कि हरकारा आ पहुंचा ''आई.जी.इंटेलीजेंस आई हैं'' - नीचे उतरना पड़ा - पेट में गुड़-गुड़, पूरे प्रदेश की रिपोर्ट ली (बताना संभव नहीं) - बदमाश कांग्रेसी ले भगेंगे - अपन क्यों भाजपा की बद्दुआ लें। आई.जी. गईं - साहब ऊपर आ गये एक पैर अंदर एक बाहर (बाथरूम) प्रेशर बढ़ चुका था।

दरवाजे पर 'हरकारा' भाई साब आये हैं - झल्ला कर सी.एम. बोल पड़े (वैसे सी.एम. कभी नाराज नहीं होते) कौन भाई साब? हम आपको बता दें कि ये भाई साब वो भाई साब हैं जिनकी भूमिका दूसरी बार सत्ता सौंपने में प्रमुख रही है वैसे  शिवराज जी के भाई साबों की कमी नहीं है, वे जिससे एक बार दिल से भाई साब बोल दें तो आदमी ''बाबूलाल गौर'' और बहन जी बोल दें तो ''उमा भारती'' की तरह शेष जीवन जीने को मजबूर हो जाता है - एक को दिल से भाई साब बोला था तो पुन: प्रदेशाध्यक्ष के सपने देखते देखते मैहर के दर्शन को मजबूर हो गये। फिर पूछा कौन से भाई साब -

उसने आव देखा न ताव, तपाक से बोल पड़ा - आपके ''आंख कान'' । वे समझ गये थे भाई साब और कोई नहीं वे भाई साब हैं जो छवि बनाने के विभाग के सर्वे सर्वा थे, अब अगली सरकार बनाने के लिये योजनाओं पर योजनायें तैयार कर रहे हैं।

उनका वश चले तो उनकी भी पंचायत बुलवा सकते हैं जो न 'पौरुष' के प्रतीक हैं न 'शक्ति' के। इन लोगों की हालत भी हम जैसे कलम घसीटों की तरह है जिनकी इज्जत दो कौड़ी की करके रख दी गई है - जो चापलूस किस्म के हैं वे चांदी चीर रहे हैं उनकी पत्नियां जब कुम्हार से 'मटका' खरीदती हैं तो कार से नहीं उतरतीं - और हमारी एक अदद बीबी बुधनी से बस में दो मटके लेकर आ रही थीं। बेचारी को क्या पता था उस दिन कक्का जी का किसान आंदोलन है - वे आए और प्रणाम करके हमारी धरम पत्नी से दोनों मटके झटक के ले गये।

अब तक हरीश आ चुके थे - उन्होंने बता ही दिया, सर प्रिंसीपल सेक्रेटरी टू सी.एम. श्रद्धेय, आदरणीय, पूज्यनीय मनोज जी आये हैं - एक बात बता दें अधिनस्थ स्टाफ वही सफल होता है अपने बॉस का नाम तो दूर पद सम्बोधन तक न करे।
वे समझ गये मध्यप्रदेश में छोटे कद का बड़ा आदमी आया है - प्रणाम करके बैठ गये - बातचीत शुरू...
मुख्यमंत्री, बोलिये भाई साब...
(चेहरा पेट की खलबली से तमतमा रहा है लेकिन गोपनीयता भंग कैसे करें?) भाई साहब ने बोलना शुरू किया।
मनोज जी - ऽ + &  : । += ऽ&+ ऽ + &  : । += ऽ&+ ऽ + &  : । += ऽ&+ ऽ + &  : । += ऽ&+ ऽ + &  : ।
(यहां मनोज जी की बातचीत प्रकाशित नहीं की जा रही है अन्यथा कांग्रेसी ले भगेंगे।)
सी.एम. फिर इसका विकल्प क्या है?

मनोज जी - ऽ + &  : । += ऽ&+ ऽ + &  : । += ऽ&+ ऽ + &  : । += ऽ&+ ऽ + &  : । += ऽ&+ ऽ + &  : ।
सी.एम. - हमें केवल विकास चाहिये, उसमें जो भी रोड़ा हो हटा दीजिये।
मनोज जी - ऽ + &  : । += ऽ&+ ऽ + &  : । += ऽ&+ ऽ + &  : । += ऽ&+ ऽ + &  : । += ऽ&+ ऽ + &  : ।
सी.एम. - आपने पिछले चुनाव में तो पचौरी जी वाले मामले में विजय श्री प्राप्त कर ली थी - आप पर पूरी कार्य योजना रहती थी - आपने कमाल कर दिया था - आपने हमें पुन: सत्ता सौंपी थी - अब क्या परेशानी हो रही है? क्या आपके अब उन सज्जन से सम्बन्ध समाप्त हो गये जो एक साथ दो-दो राजनैतिक दलों का चुनाव संचालन करना जानते हैं। कहां हैं वो आजकल...?

मनोज जी - ऽ + &  : । += ऽ&+ ऽ + &  : । += ऽ&+ ऽ + &  : । += ऽ&+ ऽ + &  : । += ऽ&+ ऽ + &  : ।
(इसी बीच सुषमाजी का फोन - हां हां जानता हूं उदयपुर (देहरा) नहीं... हां हां तो मैं बात कर लूंगा जी, मैं फोन लगवाता हूं। पटवा जी से भी बात कर लूंगा... प्रेशर बढ़ चुका, पेट में भारी खलबली, अचानक तेजी में उठकर ऊपर चले गये और कहा कोई भी आये तो मना कर देना -

प्रेशर बढ़ चुका था... हरीश को पता नहीं था, वो दौड़ते हुए ऊपर आ गये और बोले .... सर... गुजरात से मोदी जी का फोन है...
सी.एम. - हां, बात करायें...
मोदी जी - अरे भाई.. मध्यप्रदेश में आजकल ये क्या छप रहा है, अभी तक तो केवल गुजरात का विकास ही छाया हुआ था, अब ये हो क्या रहा है?

''भाई साब आप तो जानते हैं मैंने भी आपका एक गुर तो सीख ही लिया है कि मध्यप्रदेश में विकास की ही बात करता हूं - एक बार एक पत्रकार के पुत्र को प्रथम पुत्र की प्राप्ति हुई, मैं अस्पताल में था तो मीडिया वालों ने प्रतिक्रिया जानना चाही तो मैंने कहा मैं तो केवल विकास की बात करता हूं। इस घटना से हमारे प्रदेश में विकास के रास्ते खुलेंगे और पत्रकारों के मनोबल में वृद्धि होगी। पत्रकार वृद्ध थे, वे दादा बने थे, लड़का भी पत्रकार था, उस दिन का दिन है कि आज का दिन है पता नहीं, राकेश का हाथ है या लाजपत का सारा मीडिया चिल्ला रहा है - आपकी जगह मैं भी प्रधानमंत्री हो सकता हूं।

हालांकि हमारे खबर छपाऊ विभाग ने उस पत्रकार को न तो माखनलाल में जगह दी, न संदेश का प्रधान सम्पादक बनाया, न ही अपने लोगों की तरह ''माध्यम'' का रास्ता दिखाया और तो और उस बेचारे को साल भर से विज्ञापन तक के लिये मोहताज कर दिया। वह आज भी मेरे प्रशस्ति गान में लगा हुआ है। अब मैं क्या कर सकता हूं...

अब भाई साब आप मान लें अगर मीडिया शिवराज को चाहता है तो मेरी गलती नहीं है - मैं तो मिलता भी नहीं हूं..., मुझे अच्छी तरह याद है कि मैं उन पत्रकारों को तो याद नहीं करता जो मेरी छबि बनाने में लगे हैं। हां ये मुंह लगे पत्रकार ही हैं जो जबरिया मिलते रहते हैं।

हमारे यहां मीडिया के अनेक पत्रकार संगठन हमारे खबरिया विभाग के कारण बन गये हैं - इसलिये जो प्रमुख संगठन हैं उनकी दादागिरी नहीं चल पाती - हमारे लिये तो ''विकास'' ही सब कुछ है -
भाई साब, दरअसल आज आडवाणी जी आ रहे हैं - मैं रात को लगाऊं तो कैसा रहेगा? हां हां पटवा जी से भी बात कर लूंगा। (प्रेशर बढ़ चुका था, वे बाथरूम की तरफ बढ़े ही थे और बाथरूम में जाने ही वाले थे कि कार लग गई।)
साब... आडवाणी जी की अगवानी करने चलना है - चलो। वही पजामा, वही कुर्ता - हवाई अड्डे अपने नेता के स्वागत में एक ''भरे पेट'' का मुख्यमंत्री हाथ जोड़ प्लास्टिक मुस्कान के साथ आडवाणी जी के सामने खड़ा था, जो पूरे प्रदेश का पेट भरता है वह हवाई अड्डे के स्टेट हैंगर पर भी अपना पेट खाली नहीं कर पाया। यहां सोचा ही था कि यहीं निपट लें, लेकिन मनोज जी का फोन....

भाई सा. वो मोदी जी का कनवरशेसन अड़वाणी जी को जरूर बता दें - मुख्यमंत्री तपाक से बोले, भाई आपको कैसे पता चला कि हमारी और मोदी जी की क्या बात हुई। भाई सा. सुबह के ही अखबारों की हैडलाइन में मध्यप्रदेश, गुजरात से आगे जाने की होड़ में खड़ा है - अब अकेले मोदी नहीं हैं प्रधानमंत्री की दौड़ में... आप भी हैं... गुजरात के पी.एस. का मुझे फोन आया था - मुझे विश्वास था मोदी जी आपको फोन करेंगे, आज मौका अच्छा है - आडवाणी जी नाराज चल ही रहे हैं। लगे हाथ ''अटल ज्योति'' की भी बात कर लें और लक्ष्मीकांत जी से विदिशा लोकसभा की रिपोर्ट भी मंगवा लें, सम्भावना देख लें, लक्ष्मीकांत जी को कह जरूर दें। आडवाणी जी के वापस जाने के पूर्व यह रिपोर्ट बताना जरूरी है।
जी...
गाड़ी सरपट दौड़ रही है - 11.40 हो चुका है - वल्लभ भवन में मंत्री मंडल के सदस्य प्रतीक्षा कर रहे हैं अपने नेता की जरूरी बैठक है - चीफ सेकेट्री का फोन...
Sir - We are waiting for you.
C.M. - But I want only 5 minut for my personal problum
C.S. - Sir some one candidate in our cabinet, He cring where is Shivraj Ji ....
C.M. - I know, O.K. I am coming  (उन्होंने सोचा अब मंत्रिमंडल की बैठक के बाद ही निपट लेंगे...)

...और काफिला वल्लभ भवन पहुंच गया। मंत्रिमंडल की बैठक की बातें होली के मौके पर भी बताईं तो सीक्रेट एक्ट लगा के हमारी दुर्गति कर सकते हैं तो अपन अंदर की बातें क्यों बतायें? हमें न तो कांतिलाल कुछ दे देंगे, न राहुल भैया।

अभी कम से कम दो अदद बच्चे और एक अदद पत्नी को पाल तो रहे हैं - अब तो बता रहे हैं लाईन में लगाकर श्रद्धानिधि भी देगी सरकार।

खैर, सी.एम. ने सोचा मंत्रिमंडल की बैठक के बाद निपट लेंगे - पेट अभी भी गुड़.. गुड़... बना हुआ था। गुडग़ुड़ाहट इतनी बढ़ गई थी जैसे कि सोनियाजी के बाद राहुल भैया को मध्यप्रदेश की चिंता सताने लगी है। नियमानुसार साधनाजी द्वारा तैयार ''ब्रेकफास्ट'' ज्यों का त्यों सचिवालय सी.एम. के कक्ष में आ चुका है - और जनसम्पर्क मंत्री लक्ष्मीकांत - अपना पहले से आसन लगाये बैठे हैं - सी.एम. बाथरूम जाना चाहते हैं, परंतु विदिशा की राजनैतिक स्थिति (सुषमाजी राघवजी सहित) जो आडवाणी जी को हवाई अड्डे पर देना है वह लक्ष्मीकांत जी के हाथ में है...
लक्ष्मीकांत - भाई साब एक नजर डाल लेते।

सी.एम. - लक्ष्मीकांत जी मुझे आप पर पूरा भरोसा है - । += ऽ&+ ऽ + &  : । += ऽ&+ ऽ + &  : । +=  आपकी पंगत की भी तो । += ऽ&+ ऽ + &  : । += ऽ&+ ऽ + &  : । += ऽ&+ ऽ  शिकायतें करवाई थीं... ये लोग कहते हैं..। += ऽ&+ ऽ +  पत्रकारों को आपकी दाढ़ी और माथे का चन्दन अच्छा लगता है - महामाई का आशीर्वाद बताते हैं, ये लोग यह भी कहते सुने गये हैं कि ऽ&+ ऽ +. आपकी हिम्मत की दाद देता हूं। लक्ष्मीकांत जी आपने कैसे कैसों को झेला है - आपके ही वश की बात है -
नहीं सर... आपकी बदौलत

नहीं नहीं लक्ष्मीकांत जी आप अपनी मर्यादा में रहकर अपना कद बढ़ाते रहें, मुझे चिंता नहीं है...।
... छिपाता नहीं हूं एक दिन की बात है दुबारा मंत्री बनने पर आपने अपने निवास पर पत्रकारों को भोजन दिया था - याद है उसी दिन एक जगह (मंत्रीजी) के यहां भी ठीक उसी समय भोजन था, कौए उड़ रहे थे उधर... खैर, अपने अपने सम्बन्ध हैं, हमें भी सलाह मिलती है पर ये खबरिया विभाग वालों की काटा-पीटी से हम परेशान हैं, इसलिये हमने सलाह लेना ही बंद कर दी अब तो। हमारे एक ही सलाहकार हैं - हमारे भाई साब (मनोज जी)... उनने ही बनवाई थी अब वे बनवायेंगे।

लक्ष्मीकांत जी एक भीतर की बात बताता हूं, उस समय पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का एक पत्रकार के यहां फोन आया था, उन्होंने कहा था - अकेले 'मनोज जी को'' हमें दे दो हम 'भाजपा को धूल चटा देंगे'' - इसलिये हमने उन्हें खबरिया विभाग का ही मालिक बनाए रखा, सरकार दोबारा बन गई। हमें भरोसा है हम नहीं आए तो साधना जी सम्हालेंगी प्रदेश की कमान। रहेगी भाजपा ही।
इन्होंने ही हमें बताया था कि यह तो बांसुरी विभाग है जितनी हवा भरोगे उतनी बजेगी पर अभी का पता नहीं है।

हां पिछले साल एक नेतानुमा पत्रकार ने होली का विशाल कार्यक्रम रखा था, खबरिया विभाग के आला अफसरों को रंग गुलाल के साथ बांसुरी भी भेंट की थी - बस क्या था, उसकी बांसुरी में खबरिया विभाग ने ऐसी हवा भरी कि फट के गरदन में आ गई। अब तो बात आई गई हो गयी, मैं तो इन चीजों में उलझता भी नहीं हूं।
विदिशा की जो रिपोर्ट है वह अच्छी ही होगी - अपन को बहुत लम्बा चलना है। विदिशा, रायसेन के पत्रकारों को पकड़े रहो, अपन को तो उनसे ही ........ है। बाकी 'दिल्ली'' और 'लन्दन''  'चैनल'' 'सोसल मीडिया'' 'स्वतंत्र लेखकों'' और 'फीचर्स'' के लिये मनोज जी हैं ही।

....आप एक काम और कर दो, हमारी ये इमेज तो बन ही गई है कि हम सीधे सादे मुख्यमंत्री हैं हम जैसे अंदर हैं वैसे बाहर हैं, हमारे परिजनों पर रंग फेंकने के आरोप नहीं हैं - पर हमारे नाम पर लोग रंग गुलाल तो ठीक, कालिख पोतने से भी नहीं चूक रहे, उनके लिये क्या करें?
लक्ष्मीकांत - भाई सा. मुझसे भी अनुभवी लोग यहां हैं, कई लोगों के यहां तो आप खुद चले जाते हैं...
जैसे?
मा. .... जी मा. ....जी, और तो और आप जैसे लोगों से भी सलाह लेते हैं मैं अदना सा आदमी जिसकी सोच सिरोंज नटेरन और शमशाबाद से आगे नहीं है - हां आपने उच्च शिक्षा देकर स्थान दिया है, पर मैं अभी भी ''कलम घिस्सू'' लोगों से ही सीखता रहता हूं।

... अच्छा अंग्रेजी में संदेश की तरह जो निकाला था वह कैसा निकल रहा है?
- भाई सा. उसी से तो मोदी जी पीडि़त हुये हैं - पूरे देश में तहलका मचा दिया - खबरिया विभाग की यही फितरत है, जिस अधिकारी को सजाये बतौर कहीं पदस्थ कर दो तो वह ''कमाल'' कर देता है।
... अच्छा अच्छा ये माध्यम... भाई साहब - रहने दो - उनसे बात कर लेना, यहां तो सबके खूंटे हैं....
आपका....?
फिर प्रेशर आया.... काफिला रास्ते में, रात के 11 बज रहे हैं - समिधा चलो। (वहां भी संकोच में नहीं कह पाये) लगा कि ये लोग क्या सोचेंगे - मुख्यमंत्री जैसा आदमी 'समिधा'' में 'शौच'' की बात करता है, पूरा मध्यप्रदेश पड़ा है।
पहले एक कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे उन्होंने सर्वाधिक ध्यान विश्रामगृहों के शौचालयों पर ही दिया था दरअसल उनकी ''हाईट'' अधिक थी -
शिवराज जी तो एक ही चम्मच से नमकीन और मीठा दोनों खा लेते हैं, लेकिन उन मुख्यमंत्री के नमकीन भी अलग थे तो चम्मच भी अलग ही हुआ करते थे। अंतर देखिए...
कमाल की बात ये है कि शिवराज सिंह वो मुख्यमंत्री हैं जिसे ''कल्लु बुआ के टूटे चश्मे'' की याद भी रहती है और ''जुम्मन शेख की पंचर की दुकान किसने हटाई'' उसका भी ध्यान उन्हें रहता है। वह हाल ही विधवा हुई कमला की विधवा पेंशन के बारे में भी पूछता है, और जानकारी प्राप्त करते हुए यदि उसे पेंशन नहीं मिली तो सक्षम अधिकारी को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर देता है।

लेकिन वाह रे लोकतंत्र... जो मुख्यमंत्री सबके पेट भरने की जिम्मेवारी का वहन कर रहा है वह अभी तक अपना पेट खाली नहीं कर पा रहा, वह अभी भी गुड़ गुड़ कर रहा है।

इतनी सज्जनता भी ठीक नहीं कि आप इतना संकोच करें कि अगर बात नहीं करूंगा तो अमुक आदमी बुरा मान जायेगा। अरे आपके मुंह लगे अधिकारियों से पूछो जो देखने के बाद भी आप ही से मीटिंग का बहाना लेकर ढीट बने रहते हैं और आम आदमी से कतराते हैं - इनके बंगलों से उत्तर मिलता है कि साहब बाथरूम में हैं। क्या विसंगति है मध्यप्रदेश के अफसरशाह बाथरूम में हैं और मुख्यमंत्री को शौचालय से सचिवालय तक की व्यस्तता में बाथरूम नसीब नहीं होता। आप इतना तो सीख ही सकते हैं कि नौकरशाह केवल आपको प्रसन्न रखते हैं और आप पूरे प्रदेश को -

हमारा रंग और गुलाल स्वीकारें,
मध्यप्रदेश को ऊंचाईयों पर पहुंचा कर
मोदी की राह दिल्ली पधारें....
आप बनो प्रधानमंत्री वे बनें राष्ट्रपति
हमारी पत्नी तो घर की मुर्गी है
हमें बना रहने दो उसका पति।.........
लेखक आइ एफ डब्ल्यु जे के म.प्र. के अध्यक्ष हैं....

(म.प्र. समाचार सेवा, होली न्यूज)
बुरा न मानो होली है...



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