By एस के भारद्वाज
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मध्य प्रदेश विधान सभा में बजट सत्र चल रहा है। यह बजट सत्र सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी का अपने कार्यकाल का अंतिम बजट सत्र है। इसी साल नवंबर में विधान सभा चुनाव होने है। चालू सत्र के दौरान जिस प्रकार की राजनीतिक परिस्थितियां देखने को मिल रही है। उससे सहज अन्दाजा लगाया जा सकता है कि भाजपा फीलगुड में होने का ढोंग कर रही है,तो विपक्षी दल कांग्रेस संगठन अपनी ढपली अपना राग की तर्ज पर नेता और कार्यकर्ता पार्टी के अन्तर्कलह से जूझ रहे है।
चुनिन्दा कांग्रेसी विधायक विधानसभा में एकाध ज्वलन्त मुद्दे का प्रश्न पूछ कर माहौल गर्म करने का प्रयास करते भी है, तो उन्हें भी सदन के अन्दर कम संख्या बल की उपस्थिति के कारण हताशा का सामना करना पड़ता है। हांलांकि भाजपा के विधायक और मंत्रियों की उपस्थिति कोई सम्मान जनक नहीं रहती है। चूकि सरकार है,पूर्ण बहुमत है तो उनके लिए कोई चिन्ता की बात नहीं है। सदन में मनमाफिक मांगो के अनुरूप हर विभाग के बजट पर प्रस्ताव पारित हो रहे है।
एक तरह से देखा जाय तो पिछले लगभग साढ़े नौ वर्षो में भाजपा के अदने से कार्यकर्ता से लेकर राष्ट्रीय नेता तक ने पानी पी-पी कर कांग्रेस को खूब कोसा है। अपने को हिन्दू समाज का अगुआ ठेकेदार बताया। लगभग हर नेता ने विपक्ष को प्रदेश को गर्त में ले जाने वाला समाज विरोधी करार दिया। 2003 के आम चुनाव में जब कैलाश जोशी की अध्यक्षता में सुश्री उमा भारती तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खिलाफ चन्द क्षेत्रीय पहुंच रखने वाले नेताओं के सहयोग से भगवा हिन्दुत्व का रूप लेकर मैदान में उतरी थीं, तो कांग्रेस तो क्या भाजपा को भी ये उम्मीद नहीं थी कि जनता कैलाश जोशी की अध्यक्षता और कट्टर हिन्दुत्व की प्रतीक सुश्री उमा भारती को सर आंखों पर बिठाकर उन्हें प्रचंन्ड बहुमत से सत्ता की गद्दी सौप देगी। पर दुर्भाग्य है कि आज म.प्र. में जन्मी सुश्री उमा भारती को जिसे जनता ने सर आंखों पर बिठाया था, उन्हें प्रदेश की भाजपा पार्टी के दगाबाज नेताओं ने प्रदेश की राजनीती से बेदखल कर प्रदेशबदर कर दिया है। यहां म.प्र.सरकार लाडली लक्ष्मी योजना और बेटी बचाओं अभियान चला रही है, वहां आज प्रदेश की राजनीतिक बेटी दूसरे राज्य में अपना समय गुजार रही है। एक सबसे खास बातऔर है कि आज प्रदेश सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान एक समय सुश्री उमाभारती के समर्थन में, नारा देते थे दीदी संघर्ष में तेरा जहां पसीना बहेगा वहां हरारा खून बहेगा। आज नारा तो बहुत बडी बात है,परिस्थितियां ही बदल गयी है। शिवराज सिंह चौहान सत्तासीन है, और उमाश्री सत्ता से दूर अपनों से चोट खाकर खून के आंसू रो रही है। निराधार छुटभैया ,गली मुहल्ले के नेता सरकार के खेवनहार बन गये है।
राजनीति से जन प्रतिनिधि के प्रथम पायदान पर चढऩे के प्रारंभिक दौर में शिवराज सिंह चौहान ने हिन्दू समाज की पूज्य नदियों में सर्वश्रेष्ठ और पवित्र नदी मॉ नर्मदा के मध्य खड़े होकर कसम खायी थी कि मैं आजीवन अविवाहित रहकर जनता की सेवा करुंगा। कसम खाने के कुछ समय पश्चात ही उन्होंने परप्रांतीय परिवार की पुत्री से विवाह कर लिया। आज उनके दो स्वस्थ पुत्र है।
एक समय शिवराज सिंह चौहान ने अपने लोकसभा चुनाव के दौरान विदिशा की आमसभा में जनता से कहा था कि आपका ही बेटा हॅू। मैं आपका सेवक हूं। यदि मैं चुनाव जीता, तो यही अपना एक ऐसा घर बनाऊॅगा जिसमें न दरवाजे होंगें, न खिड़की। मैं रात दिन यहीं रहूंगा आपकी सेवा में चौबीसो घण्टे हाजिर रहॅूगा। शिवराज सिंह चुनाव तो जीत गये लेकिन वह सब न हुआ जिसका उन्होंने वादा किया था। आज शिवराज सिंह चौहान के पास अरबों की धन दौलत विदिशा, भोपाल सहित अनेक स्थानों पर मकान, जमीन और खदानों की भरमार है। बहुत बड़े व्यवसायी भी बन गये है। परन्तु बिना खिड़की दरवाजे वाला मकान नही है। और जहॉ-जहॉ मकान है वहॉ इतना कड़ा पहरा है कि आम आदमी तो क्या बिना पहरेदारों की अनुमति के परिन्दा भी पैर नहीं मार सकता। शिवराज ने अपने राजनीतिक जीवन में वह हर शतरंजी चाल चली है, जिससे समाज में संदेश तो समाज सेवी मृदुभाषी का जाय, परन्तु अन्दरखाने काम अपना बनता जाय।
एक सफल राजनेता की यही महत्वाकांक्षा भी होती है। चाणक्य राजनीति के जानकार बताते है कि असली नेता वही बन सकता है। जो रहे तो सदा परिवार के साथ पर भरोसा अपने बाप पर भी न करे। दूसरा मंत्र है। अपने प्रतिद्वंद्वी की खूब तारीफ करे ,ताकि उसकी तह तक जाया जा सके। और जहॉ श्ंाका हो,अपने कार्य कलापों के हिसाब किताब के पूछपरख करने वालों की,तो जहांतक संभव हो बला को टालो,मजबूरी हो तो समय भांपकर राजनीतिक समाधान निकाल लेना चाहिए। प्रयाास ये करना चाहिए कि स्वयं विवादों से बचने के लिए सामने आये ही नहीं। ये वो सभी राजनीतिक नुस्खे है जिनको शिवराज सिंह चौहान ने अपने अन्दर ग्रहण किया हुआ है। शिवराज सिंह चौहान ने अपने कार्यकाल में जब भी राजनीतिक भ्रमण पर निकले,सरकारी घोषणाओं का पिटारा लेकर निकले जहॉ माहौल देखा पिटारा खोल दिया। जनता को भरोसे का झुनझुना देकर, दो चार गीता रामायण की भावनात्मक चौपाई सुनाकर खूब तालियां पिटवायी और चल दिये अगले मुकाम की ओर। पिछले आठ सालों शिवराज सिंह चौहान ने किस जगह पर किस घोषणा का पिटारा खोला था, किसको कौन सा भरोसे का झुनझुना देकर खूब तालियां पिटवाई थी, यह उन्हें खुद भी मालूम नहीं होगा। इसके लिए उन्हें एक जनसंपर्क विभाग का दल चाहिए जो बताए कि उन्होंने भरोसे का झुनझुना देकर खूब तालिया पिटवायी थी और समाचारों चैनलों में चलने के लिए खबरें भिजवायी थी।
शिवराज सिंह चौहान संस्कारवान बन कर समाज को कहते है मैं भक्त श्रवण कुमार बनकर प्रदेश के गरीबों को तीर्थ स्थलों के देव दर्शन करा रहा हॅू । परन्तु प्रदेश का शायद की कोई व्यक्ति होगा जिसने शिवराज सिंह चौहान चौहान को अपने पिता के साथ किसी तीर्थ स्थान पर देखा होगा,या अपने माता पिता की समाज के सामने आकर चरण स्पर्श करे होंगें। हॉ जनता ने हजारों राजनेताओं के चरण स्पर्श करते हुए खूब टी.व्ही.चैनलों पर देखा होगा। शायद वे जानते है कि पिताजी सिर्फ आशीर्वाद दे सकते है और कहीं गलती से कुछ मांग लिया तो शिक्षको मंाग भी मानने को कह सकते हैं। जो कि वे मूलरूप से शिक्षक ही हैं। तब मना भी नहीं कर पायेंगें। इससे अच्छा है। पिताजी के पैर नहीं अपने वरिष्ठ नेता श्री आडवानी, ठाकुर राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी आदि के छुओ तो सत्ताशीर्वाद निरन्तर बना रहेगा। शिवराज सिंह चौहान कुशल राजनेता के साथ-साथ कुशल शासक भी बन कर उभरे है। आन्तरिक रूप से अति महत्वाकांक्षी शिवराज सिंह चौहान ने जिस प्रकार से मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल की उसी चतुराई से धीरे-धीरे ही सही प्रशासन पर भी अपनी पकड़ बना ली है। प्रशासन को ऐंसे तन्त्र में बॉधा है कि भ्रटाचारी भी खुश,राजनेता भी खुश,पार्टी भी खुश,विरोधी भी खुश और जनता को ऐसी मार मार रहे हैं। कि जनता बोल भी नहीं पा रही है। और कहीं-कहीं समझ भी नही पा रही है। विपक्ष कमजोर भी है और अपने निजी स्वार्थो की खातिर कहीं अज्ञात भय के कारण मूक दर्शक भी है। जनता जब तक समझेगी,तब तक और जब बोलने का मौका मिलेगा तब तक खजाना और संसाधन का बहुत बड़ा हिस्सा लुट चुका होगा। प्रदेश की जनता आने वाले कल में देशी और विदेशी कर्ज के तले दबकर रोने के अलावा कुछ न कर सकेगी। प्रदेश का हर टुकड़ निजी देशी,विदेशी कंपनियों के मालिकाना हक में होगा। प्रदेश की लगभग सभी सड़कें 30 वर्ष और 90 वर्ष के लिए ठेकेदारेंा को सौप दी है। शिक्षा केन्द्र निजी हाथों में पहले से चले गये है।
ठाकुर ठाकुर होने के कारण शिवराज सिंह चौहान का दिग्विजय सिंह से मधुर संबन्ध है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खास माने जाने वाले मनोज श्रीवास्तव जो पहले दिग्विजय सिंह के खास हुआ करते थे आज वे शिवराज सिंह चौहान के खास और प्रमुख सचिव है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने सामाजिक सम्मेलन खूब कराये, शिवराज सिंह चौहान भी पंचायतें खूब करा रहे है। दिग्विजय सिंह ने अर्जुन सिंह को प्रदेश निकाला दे दिया था तो शिवराज सिंह चौहान ने भी सुश्री उमा भारती को प्रदेश की राजनीति से बाहर कर रखा है। कह सकते है कि शिवराज सिंह चौहान और दिग्विजय सिंह एक ही सिक्के के दो पहलू है। दल के हिसाव से एक दूसरे के विरोधी है परन्तु लाभ और काम में एक समान है। ऐसे में सहज ही मन में सवाल आता है कि क्या शिवराज सिंह चौहान भी अपने दल की वही दशा करेंगे जो दिग्विजय सिंह ने किया और खुद एक दशक के लिए प्रदेश निकाले पर चले गये?
सरकार के एक आदेश के अनुसार आने वाले समय में सरकारी अस्पताल भी निजी हाथों में चले जायेंगें। बिजली ,पानी ,परिवहन सबकुछ सरकार ने ठेके पर दे दिया है। यहां तक कि सरकारी की कार्य प्रणाली की खबरें भी अब टेंट हाउस और कैटरर्स वालों की तरह बड़े-बड़े अखबार और चैनलों में मोल भाव करके शिवराज सिंह चौहान को प्रदेश का हीरो बनाये रखने के लिए कूटरचित आंकड़ो एवं मनमोहक कल्पनाओं पर तैयार कर ठेके पर जनता के सामने परोसी जा रहीं है। इसके लिए कई कंपनियां और ठेकेदार भी सरकार ने तैयार कर लिए है। जिनका प्रदर्शन चुनाव के समय भव्य रूप में देखने को मिलेगा। अब कल्पना करें एक आम गरीब आदमी क्या मूलभूत सुविधाऐं सरकार से कैसे ले पायेगा? जब सरकार के पास कुछ बचेगा ही नहीं। तो उस समय कैसे पूरे होंगे शिवराज सिंह चौहान के भाषणों वाले सपने। जनता के सामने अब यह यक्ष प्रश्र है कि एक समय में शिवराज सिंह चौहान स्वदेशी एवं सरकारी सुविधाओं की बात करते है और अपने शासन काल में विदेशी कंपनियों के प्रदेश में उद्योग स्थापित करवा रहे हैं। एक तरफ चीन की तरफ से सावधान करते है। दूसरी तरफ चीन की कंपनी का अपने राज्य में स्थापन करा कर उद्घाटन कर रहे है।
इनके कार्यकाल में प्रदेश के अन्दर एक भी सरकारी संस्थान की स्थापना नहीं करायी गयी है। जो प्रदेश के कपड़ा मिल, गन्ना मिल, सोया मिल आदि जो बन्द पड़े है। उन प्लान्टों को बेचा जा रहा है। उनकी जमीनें बिल्डरों, कालोनाईजरों दलालों को औने पौने दामों में बेची जा रही है। प्रदेश के युवाओं को शिक्षित करके उनके निजी करोबार खुलवाने की बातें कही जा रही है। शिक्षित करके सरकार शासकीय सेवा की बात कहीं भी नहीं कर रही है। सब जानते है कि शिक्षित होने के बाद कितने लोग अपना रोजगार स्थापित कर पायेंगें। अगर आधे फेल हो गये तो प्रदेश में लगने वाले उद्योगो में नौकर बन कर ही रहेंगे। आधे बेतन में पेट पालेंगे आधे में बैंक का कर्ज चुकाऐंगें। ऐसा भी हो सकता है कि म.प्र.सरकार ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपने संसाधन और खनिज स्त्रोत्र सौंप कर प्रदेश की कर्मशील जनता को उद्योगपतियों का गुलाम बनाने का सिगूफा पाल रखा हो। क्योंकि शिवराज सिंह चौहान जो कहते परिणाम उसके उल्टे ही आते है। प्रदेश के नेता और अधिकारी जनता के भले की छोड़ मकान, खदान और लगान की जुगाड़ में इस कदर लगे कि मानों शिव राज न होकर बाप का राज हो। आम जनता के कोई काम बिना शुल्क चुकाये हो नहीं सकते। जिसमें सरकार का फीस रूपी दण्ड हो या सहयोग रूपी दलालों का नजऱाना। इसके अलावा काम समय पर कराने के लिए अधिकारी और बाबूओं को सुविधा शुल्क अलग से। पूरे प्रदेश में कोई भी काम छोटे से छोटा काम जैसे, आय, जाति, मूल निवास, खसरा, अक्श, खाता बही आदि कोई भी काम बिना शुल्क चुकाये नहीं हो सकता। प्रदेश में गरीबी का राशन कार्ड भी दो-दो हजार रूपये रिश्वत लेकर बनवाने को लोग मजबूर है।
पूर्व मुख्यमंत्री सुन्दर लाल पटवा के समय में प्रदेश पर करीब 5 हजार करोड़ का कर्ज था। दिग्विजय सिंह शासन काल में 26 हजार करोड़ का कर्ज हो गया। आज शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में 92 हजार करोड़ से भी अधिक का कर्ज राज्य सरकार पर हो गया हो गया है। अगर प्रदेश की 7 करोड़ की आबादी में इसको बॉटे तो हमारे नेताओं ने प्रत्येक व्यक्ति के नाम से करीब साढ़े तेरह हजार का कर्ज ले लिया है। जिसको वे आपके उपर वोट हासिल करने की खातिर तीर्थ यात्रा,मुख्यमंत्री निवास में पंडाल और भोजन,मिलन समारोह तथा राजनीतिक आयोजनों पर खूब उड़ा रहे हैं। और प्रदेश की जनता से तालियॉ भी खूब पिटवा रहे हैं। शिवराज सिंह चौहान ने अपने स्वार्थ एवं महत्वाकांक्षी योजनाओं के लिए सदा झूठ का सहारा लिया है। प्रदेश की आम जनता को इमोशनल ब्लैकमेल किया है। हिन्दुओं के पवित्र नगर बनाने की बात हो या हिन्दुओं के मठ मंदिरों की सुरक्षा की बात हो, धार में सरस्वती पूजन की बात हो या संत पुजारियों के सम्मान की बात सदा ही धोखा दिया है। प्रदेश में मठमंदिरों पर राजनीतिक अतिक्रमण कराकर अराजकता फैलायी जा रही है। हिन्दुओं को भी पुलिसिया डण्डों से खूब पिटवाया है।
शिवराज सिंह चौहान ने धर्मस्व विभाग ऐसे व्यक्ति को सौप रखा है जो है तो जन्म से तो ब्राह्मण है, परन्तु उनकी न हिन्दू संत महात्माओं में आस्था है और ना ही उनके प्रति आदर सम्मान। वे सिर्फ एक गिरगिट की तरह रंगबदलू चरित्रविहीन सिर्फ अतिमहत्वाकांक्षी राजनेता है। इनके चरित्र और संत महात्माओं में आस्था की चर्चा इनके विधानसभा क्षेत्र सिरोंज, एवं भोपाल के शासकीय आवास से संबंधित लोगों के श्रीमुख से कहीं भी सुनी जा सकती है। इसमें किसी के प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। शिवराज सिंह चौहान ने अपने खास लोगों में जिन्हें भी समक्षा अपना बनाया और खूब मालामाल किया है। फिर भी चुनाव के इस साल में यह कहना मुश्किल है कि मध्य प्रदेश में राजनीति का यह महत्वाकांक्षी ऊॅट किस करबट बैठेगा। यह भविष्य के गर्भ में है। राजनीतिक विश्लेषण और राजनेताओं को समझने के मामले में शिवराज के भाग्य से प्रदेश की जनता दूसरे राज्यों की तुलना में बहुत भोली है।
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