(अखिलेश दुबे)
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सिवनी। किरण एग्रो के खिलाफ आये लोगों ने अब ये पूरी तरह से स्पष्ट कर दिया है कि उक्त फर्म के द्वारा शासकीय योजनाओं का फर्जीवाड़ा किया जा रहा है। ज्ञात होवे कि यह फर्म नितिनसिंह पिता ज्ञानेंद्रसिंह के नाम पर है, जिसका पंजीयन कृषि उपकरण के कार्याे हेतु करवाया गया था। इनका दफ्तर गुरूनानक काम्पलेक्स छिंदवाड़ा रोड पर दर्शाया जाता है जबकि उक्त स्थान पर न तो फर्म का कोई बोर्ड है और न ही कोई भवन साथ ही इनके बाऊचरों पर उल्लेखित नंबर 9685089996 और 7509183111 भी इन्हीं की तरह फर्जी है। सबसे बड़ा घालमेल तो टिन नंबर के साथ किया गया है। बिल-बाऊचर में अंकित टिन नंबर 23469019300 है, जबकि यह अप्रैल 2011 में जय महाकाल कन्स्ट्रक्शन कंपनी के नाम पर दर्ज है, जिसका कार्य ठेकेदारी करना है। हम आपको बता दें कि नितिन सिंह नामक यह युवक तथाकथित भाजपा का नेता बताया जाता है और वहीं दूसरी ओर इनके पिताजी ज्ञानेंद्रसिंह उद्यान विभाग के प्रभारी एवं शासकीय प्रोजनी आचर्ड के अधीक्षक है। ज्ञानेंद्र सिंह विगत 25 वर्षों से सिवनी में ही डटे हुए हैं और यह उनके राजनैतिक रसूख का एक नमूना मात्र है। इनके पुत्र के द्वारा वर्ष 2011-12 में ड्रिप स्प्रंकलर एवं पॉलि हाऊस में किसानों को लाभ दिये जाने हेतु आई योजना के साथ भारी घोटाला किया गया है। यह सभी यंत्र किरण एग्रो हाईटेक के द्वारा सप्लाई किये गये हैं, जो कि अतिगुणवत्ताविहीन है। जहां किरण एग्रो कंपनी को गोविंद ग्रीन हाऊस कन्स्ट्रक्शन के द्वारा बिना टिन नंबर और बिना पंजीयन के अपना डीलर नियुक्त कर दिया गया था, वहीं माइक्रो इरीगेशन योजना के अंतर्गत टैक्समो कंपनी के द्वारा भी इन्हें नियुक्त किया गया था, जिसमें कंपनी के द्वारा उमेश चौधरी एवं राजेंद्र चौधरी को बिलों के सत्यापन के लिये नियुक्त किया गया, किंतु किरण एग्रो के द्वारा हॉलमार्क कंपनी के उपकरण लगाये गये, जो कि समस्त नियमों की धज्जियां उड़ाते हैं।
ज्ञात होवे कि हमारे द्वारा वर्ष 2012 के दिसंबर माह में ही इस पूरे गड़बड़ झाले को आपके समक्ष ला दिया गया था, किंतु अब पुनरू सबूतों के साथ पोल खोलने की जिम्मेदारी गोविंद बोरकर एड।, अखिलेश यादव एड। और रविकुमार सनोडिया के द्वारा ली गई है। इस योजना पर बैंको का अनुदान भी होता है और ऋण भी दिया जाता है, किंतु इसका कहीं भी उल्लेख नहीं है। इन सभी उपकरणों का भुगतान बगैर नियमों की पूर्ति के जल्दबाजी में किया गया और इन सब में विभाग के ही परते का लेनदेन होना बताया जाता है। इन सभी भ्रष्टाचारों की जानकारी वाणिज्य कर विभाग में पदस्थ अधिकारी को भी दी गई थी, किंतु उनके द्वारा भी यह कहा गया कि हम कार्यवाही करने में असक्षम है। अब शासन की हितकारी योजनाओं पर अगर इस तरह का दीमक लग जाये तो फिर उसे कौन बचाये? (साई)
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