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एनआरसी यानी असम की राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर अभी बनी नहीं है। इसका ड्राफ्ट बना है। इस पर आपत्तियां आने और उन पर सुनवाई बाकी है। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में साफ भी कर दिया था और अब सुप्रीम कोर्ट ने भी यह साफ कर दिया है कि अंतिम रूप से एनआरसी तैयार होना बाकी है। अभी जो सामने आया है वह मसौदा भर है।
इस आधार पर देश में किसी को भी अधिकार नहीं है कि वह किसी भी व्यक्ति पर दंडात्मक कार्रवाई करे। फिर क्यों बरपा है हंगामा? जब सुप्रीम कोर्ट ने 40 लाख लोगों को घुसपैठिया नहीं माना है तो अमित शाह ने ऐसा कैसे घोषित कर दिया?
एनआरसी का मसौदा अधूरा है तो बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने ये कैसे घोषित कर दिया कि असम में 40 लाख घुसपैठिए हैं। यही आज देश में मूल सवाल है और होना चाहिए। विपक्ष अगर वास्तव में मुद्दों पर राजनीति करना चाहता है तो उसे अमित शाह से पूछना चाहिए कि देश में सुप्रीम कोर्ट बड़ा है या बीजेपी अध्यक्ष?
बीजेपी के एक-एक नेता ने चाहे वह असम के हों, बंगाल के हों या फिर कैलाशविजयर्गीय और गिरिराज सिंह जैसे केन्द्रीय मंत्री हों, सबने एक सुर से घुसपैठियों को देश से बाहर करने की आवाज़ बुलन्द कर दी। अजीब बात है घुसपैठियों की अभी पहचान नहीं हुई और उन्हें देश से बाहर निकालने का अभियान चल पड़ा?
ममता बनर्जी जैसी नेताओं को मानो बीजेपी नेताओं को उनके मनमाफिक राजनीति का मसाला दे दिया। ममता ने बीजेपी नेताओं को उन्हीं के सुर में जवाब दिया। पश्चिम बंगाल में एनआरसी को लागू नहीं करने देंगे। वह इतने पर ही चुप नहीं रहीं। उन्होंने कहा कि असम से घुसपैठिए भगाए जाएंगे, तो वे बंगाल में उन्हें पनाह देंगी। एक-दूसरे को चुनौती देने की राजनीति तेज होने लगी।
मीडिया ने भी आग में घी डालने का काम शुरू कर दिया। मीडिया में बहस छिड़ गयी कि घुसपैठियों को देश से बाहर क्यों न कर दिया जाए? जो लोग एनआरसी मसौदा पर सवाल खड़े कर रहे हैं वे घुसपैठियों का साथ दे रहे हैं। और इसलिए उनकी देशभक्ति भी संदिग्ध है। ममता बनर्जी सरीखे नेताओं को जो एनआरसी मसले पर बीजेपी के खिलाफ थी, उन्हें घुसपैठियों का साथ देने वाला बताया जाने लगा। कांग्रेस हमेशा की तरह ऐसे में मामलों में एकजुट नहीं दिख सकी।
मिशन 2019 में जुटी राजनीतिक पार्टियां उन्माद का हिस्सा बनती चली गयीं। आम लोगों के जीवन में दहशत पैदा न हो इस जिम्मेदारी को राजनीतिक दलों ने झटक दिया। बीजेपी ने सुप्रीम कोर्ट का नाम लेकर ही विरोधी राजनीतिक दलों पर हमला बोलना शुरू कर दिया। वह पूछने लगी कि जब एनआरसी रिपोर्ट तो सुप्रीम कोर्ट के कहने पर उसकी देखरेख में बनी है तो उस पर सवाल क्यों उठाए जा रहे हैं?
मगर, जवाब तो खुद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को देना है कि जब सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर और उसकी निगरानी में बनी एनआरसी रिपोर्ट ने किसी को घुसपैठिया घोषित ही नहीं किया, तो वह कैसे कहने लगे कि असम में 40 लाख घुसपैठिए हैं?
सच ये है कि बीजेपी अध्यक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के हवाले से गलत संदेश फैलाया है। वे इस बात के गुनहगार हैं। जब घुसपैठिए अभी तय ही नहीं हुए हैं तो उन्हें निकाल-बाहर करने की बात कैसे की जा रही है? गृहमंत्री राजनाथ सिंह और सुप्रीम कोर्ट दोनों की बातों से अलग बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और मोदी सरकार के मंत्रियों ने गलत बयानी की है और देश में अस्थिर राजनीतिक परिस्थिति पैदा की है।
सुप्रीम कोर्ट ने साफ-साफ 31 जुलाई मंगलवार को कह दिया है फाइनल एनआरसी रिपोर्ट बनेगी मगर उससे पहले 7 अगस्त से एनआरसी ड्राफ्ट का इन्सपेक्शन होगा और 8 अगस्त से आपत्तियों और दावों पर काम शुरू होगा। 28 सितम्बर तक यह काम पूरा कर लिया जाएगा। क्या इससे पहले किसी को घुसपैठिया करार देना गैरजवाबदेही नहीं है? क्या यह सुप्रीम कोर्ट के कामकाज में हस्तक्षेप करने जैसी बात नहीं है? इस सवाल का जवाब बीजेपी और बीजेपी सरकार को देना चाहिए।