प्रतिनिधि// सावित्री लोधी (अशोक नगर // टाइम्स ऑफ क्राइम)
ब्यूरो प्रमुख से सम्पर्क 98262 ८५५८१
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अशोक नगर। जिले में श्रम कानूनों का खुलेआम उल्लंघन यह दर्शाता हैं कि जिले में श्रम अधिकारी अपदस्थ हैं। एक श्रम निरीक्षक जो पडोसी जिले से आते हैं, उन पर एक नहीं कई-कई भार हैं। वे 6 दिन कड़ा परिश्रम कर रविवार को श्रम कानूनों की धज्जियां उडाते हैं। इसी प्रकार जिले में अभी पूरे विभागों के ऑफिस नहीं खुले हैं। अभी कई दफ्तर गुना से ही ही चल रहे हैं। इसलिए लोगों को छोटे-छोटे कामों के लिए गुना से ही चल रही हैं। जिला मुख्यालय ही नहीं बल्कि ईसागढ, चंदेरी, मुंगावली, शाढौरा, पिपरई, बंगलाचौराह, बहादुरपुर आदि कस्बो में श्रम एक्ट का बेधडक होकर उल्लंघन किया जा रहा हैं। इसके चलते सप्ताह मं एक भी दिन अवकाश नहीं हैं। दुकानों पर कार्य करने वाले श्रमिकों के लिए श्रम अधिनियम लागू हेाने के बाद भी अरेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। इस ओर प्रशासनिक अधिकारियों का भी ध्यान न होने से श्रम निरीक्षण आरके गोयल सुस्त और दुकानदार सख्त हैं। एक दुकानदार का कहना हैं कि लंबे समय से श्रम निरीक्षक द्वारा बाजार बंद नहीं कराया गया। इस कारण अब रविवार अवकाश का दिन नहीं लगता हैं और बाजार खुला रहता हैं।
समय से नहीं हो रहे बाजार बंद
श्रम नियमों का उल्लंघन करते हुए बाजार समय पर बंद नही किए जा रहे हैं। अकेले जिला मुख्यालय पर अनियमितताओं का आलम यह हैं कि तहसील मुख्यालय की स्थिति क्या होगी, आसानी से समझा जा सकता हैं। अशोकनगर में स्टेशन रोड, इंदिरा पार्क रोड, गांधी पार्क, ईसागढ, पछाडीखेडा, विदिशा रोड की दुकाने श्रम दुकानों के अनुसार नहीं चल रही हैं, जिस कारण श्रम नियमों को अंगूठा बताया जा रहा हैं। वहीं श्रमिकों से खूब काम लिया जाकर उन्हें पर्याप्त मेहनताना नहंी दिया जा रहा हैं। जबकि श्रम विभाग की दरे ओर दुकाने खुलने व बंद होने का समय निर्धारित हैं। इसके बाद भी सबकुछ ऐसे ही चल रहा हैं।
जिले में संपूर्ण नियमों की आज भी कमी
जिलेभर में सात वर्षों के उपरांत भी अब तक श्रम विभाग का कार्यालय नहीं खुलवाया हैं। सारा कार्य निकट जिले से चल रहा हैं। यदि देखा जाए तो सिर्फ श्रम विभाग ही नहीं बल्कि अन्य दो दर्जन विभागों से अधिक के कार्यालय नहीं हैं। एक ही छत और एक ही हाल में 6-6 दफ्तर संचालित हैं। इसके कारण आज शहर का शासकीय पोली कॉलेज और उसके छात्रावास में विभिन्न ऑफिस खुले हुए हैं। जगह कम ओर दफ्तरों की संख्या के कारण ठसाठस की स्थिति पैदा होती हैं। यहां उल्लेख करने वाली बात यह हैं कि अशोकनगर को जिला बने सात वर्ष से अधिक का समय निकल गया। वहीं जनप्रतिनिधियों ने अपने कर्तव्यों और दायित्वों का निर्वाहन क्यों नहीं किया। जिले में एक से एक धुरंधर और असरदार नेता, जनप्रतिनिधि मौजूद हैं। फिर भी जिले का कामकाज रामभरोसे चल रहा हैं।