आर पी सिंह
राष्ट्रव्यापी भ्रष्टाचार के हो रहे नित नये खुलासों से न सिर्फ भारतीय गणतंत्र बेपर्द हुआ है, बल्कि तंत्र की अव्यवस्था भी पूरे राष्ट्र के समक्ष उजागर हो गयी है। हालांकि सियासी चाल चल रहे शातिर व बेशर्म नेताओं के लिए यह कोई बड़ी परेशानी की बात नहीं है। लंपट पूंजी का वर्चस्व जब तक देश पर है तब तक इनके कृत्य इसी तरह लोकतंत्र की अस्मत तार-तार करते रहेंगे। इनके सत्ता-शतरंज का घिनौना खेल भी योंही चलता रहेगा, और भ्रष्टाचार के उजागर होने पर राजनेता एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप मढ़ते रहेंगे। पक्ष-विपक्ष आपस में टकरायेंगे। कदाचार को ले थोड़े समय के लिए जनता में भी उबाल आता रहेगा। हम अर्से से यह खेल देख रहे हैं। देश की जनता यह समझती है कि हमारा मीडिया बखूबी अपना धर्म निभा रहा है। दरअसल बात ऐसी नहीं है। भ्रष्टाचार की जो थोड़ी-बहुत सूचनाएं लोगों तक पहुंचती हैं, उसे खुद तंत्र ही उजागर कर देता है। इसके भी अपने निहितार्थ हैं। नेताओं, कालाबाजारियों, नौकरशाहों, संवाद माध्यमों, लाबीस्ट-बिचौलियों, उद्योगपतियों, कॉरपोरेट घरानों के चरम द्बन्द्ब-संघात के ही ये परिणम हैं। अब तो स्थिति यह है कि देश के अंदरूनी मामलों में कॉरपोरेट लॉबीस्ट निर्णायक साबित हो रहे हैं। यहां चिंता की बात तो यह कि कॉरपोरेट घरानों के हित में वे सरकार की नीतियों को प्रभावित करने लगे हैं। दरअसल उनके लिए राष्ट्रहित अहम नहीं होता, बल्कि वे अपने हितों का सौदा राष्ट्र की अस्मत से करते हैं। हमारे मक्कार राजनेता और नौकरशाह उन्हें यह सहूलियत प्रदान कर रहे हैं। देश के प्रधानमंत्री भी इससे वाकिफ़ हैं। किस जाहिल को कौन सा मंत्रालय मिले, इसे कॉपोरेट लाबीस्ट तय कर रहे हैं। देश की जनता तो सिर्फ वोट डालती है। मगर उसके भाग्य का निर्धारण और कोई कर रहा है। किसके पक्ष में हवा बनायी जाय, इसके लिए तो सुनियोजित तरीके से प्रचार माध्यमों के प्रबंधन से सौदा तय किया जाता है। लंबे समय तक प्रिंट व दृश्य मीडिया में काम करने का यह मेरा अपना अनुभव है। पेड न्यूज का वाकया पिछले लोकसभा व विधानसभा चुनावों में खूब देखा गया। चुनाव आयोग भी उनका कुछ न बिगाड़ पाया। प्रचार माध्यमों को देह मंडी का जींस होते हुए सबने देखा। समाचार माध्यमों की निजता व अस्मिता को खंडित करने की एक गहरी साजिश चलाई जा रही है और इसमें शामिल हैं तथाकथित बड़े लोग। लंपट पूंजी। कॉरपोरेट घराने। देश की दिशा क्या हो? राजनीति की डोर किनके हाथ में हो?? एक साधारण साइकिल चोर को हम चौराहे पर पीट-पीट कर मार देते हैं जबकि देश की अस्मत का सौदा करने वालों को हम फूल-मालाओं से स्वागत करते हैं। उनकी जय-जयकार करते हैं। मूल्यहीन होते जा रहे समाज का यह प्रतीक है।जाहिर है यह व्यवस्था अधिक दिनों तक नहीं चल सकती। प्रचलित कानून-व्यवस्था की सघन पड़ताल होनी चाहिए। कारण क्या है कि छोटे चोर को बड़ी सज़ा मिलती है जबकि बड़े चोर को छोटी सज़ा। यह व्यवस्था मिटनी चाहिए। कारण कि तंत्र की खामियों को नजरंदाज कर हम आगे नहीं बढ़ सकते। दो-चार लोग चांद पर चले जायें तो भी इससे देश की सौ करोड़ जनता के जीवन में फर्क नहीं आ जायेगा। देश के गणतंत्र व इंसाफ पसंद अवाम इन बातों को लेकर काफी चिंतित हैं। अनगिनत वीर-योद्धाओं व राष्ट्रभक्तों ने अपनी शहादत देकर जिस लोकतंत्र की बुनियाद को पुख़्ता किया, उस पर भ्रष्टतंत्र अब पूरी तरह से हावी हो चुका है। देश में लोकतंत्र बचे कैसे? हमारे सामने आज यह एक अहम् सवाल है। हमने बचपन में पढ़ा था कि भारत एक गणतांत्रिक व सार्वभौम राष्ट्र है। हमारे गणतंत्र के चार मजबूत स्तंभ हैं। बस, हमने मान लिया कि हमारा गणतंत्र सुचिंतित, सुनिश्चित तथा सर्वाधिक सुरक्षित है। हम अपने गणतंत्र के जिस सबल स्तंभ विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका तथा प्रेस को लेकर अब तक गर्व करते रहे तथा दुनिया की नजऱों में इतरेतर होने का दंभ भरते रहे, उसकी सच्चाई अब परत दर परत खुलने लगी है।चिंता की बात तो यह है कि भ्रष्टाचार के घुन हमारे गणतंत्र के कथित स्तंभों को जर्जर बनाते जा रहे और हम शुतुरमुर्ग की तरह रेत में अपने सिर गाड़े खुद को सुरक्षित महसूस कर रहे हैं। समाज व राष्ट्र की मननशीलता में शिद्दत ये यह बात आनी चाहिए कि भ्रष्टाचार से भयानक, विध्वंशक व सर्वग्रासी राक्षस कोई दूसरा नहीं हो सकता। देश के प्रबुद्ध प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को यह बात समझनी होगी कि आतंकवाद भ्रष्टाचार की कोख में ही पलता व पनपता है। इसलिए आतंकवाद के संहार से आप इस देश को तब तक नहीं बचा सकते जब तक भ्रष्टाचार अमरबेल की तरह सत्ता-सियासत से लिपटा हुआ है। अगर आप अपने राजनैतिक स्वार्थ को ले इसे नजरंदाज किया तो जाहिर है आपकी निष्ठा पर लोग सवाल उठायेंगे। आपकी राष्ट्रभक्ति आपके कर्मों में दिखनी चाहिए। इतिहास ने आपको एक अवसर दिया है। आप पारदर्शी बनिए। अगर भ्रष्टाचार से आप नहीं लड़ पाये तो आतंकवाद से भी नहीं लड़ पायेंगे। हम नहीं चाहते कि आप देश के कमजोर प्रधानमंत्री साबित हों। आज समय का संकट गहराता जा रहा है। देश में भ्रष्टचारियों को सम्मान प्राप्?त हो रहा है। दुराचारियों के पांव पूजे जा रहे हैं। संविधान आयोग में भ्रष्ट लोग चुनकर आ रहे हैं। यह लंपट पूंजी की ही महिमा है जो लोकसभा में ऐसे लोग जा रहे हैं जिनका राष्ट्र के निर्माण में कोई योगदान नहीं रहा है। अगर समाज में निष्ठा, ईमानदारी तथा श्रम को यथेष्ट महत्व न मिले तो समाज विकास नहीं, विनाश की ओर बढ़ता है। ऐसे में राष्ट्रजीवन असंतुलित, अव्यवस्थित तथा अनियंत्रित होने लगता है। यह अत्यंत वेदनादायी है कि आज हमारा राष्ट्र उसी ओर अग्रसर हो रहा। राष्ट्र व्यापी भ्रष्टाचार, अराजकता तथा अंतहीन खूनी संघर्ष की वजह क्या है? क्या कारण है कि सक्षम व ईमानदार लोग आज हाशिए पर जा रहे हैं और सत्ता-शतरंज के माहिर खिलाड़ी व कॉरपोरेट लाबीस्ट के दलाल हमारी लोकसभा तथा विधान सभाओं के सरताज बने हुए हैं? देश की मननशीलता में यह बात आनी चाहिए। जाहिर है यह व्यवस्था जम्हूरियत की बुनियाद को दीमक की तरह चाट रही है। दुनिया में गणतंत्र के जनक अब्राहम लिंकन ने एक समय कहा था कि हमने किसी ऐसी उम्दा चीज़ का लुत्फ न कभी उठाया है और न कभी उठा पायेंगे जिसमें कोई श्रम न लगा हो। चूंकि सभी उम्दा चीज़ें श्रम द्बारा पैदा की जाती हैं, इसलिए इसका सीधा निष्कर्ष यह है कि जिन्होंने श्रम करके चीज़ों को पैदा किया है, वे ही हर अधिकार के हकदार होते हैं। जो लोग लोकतंत्र के पैरोकार हैं उन्हें यह बात समझनी होगी। देश में गणतंत्र की स्थापना के लिए जिन्होंने फिरंगी हुकूमत के खिलाफ़ समझौताहीन जंग की, जीवन के खूबसूरत सपनों का भस्म किया और अंतत: अपने प्राणों की आहुति दी, इसलिए कि यह देश खुशहाल रहे। श्रम-संस्कृति से देश कटे नहीं। हमारे जल-जंगल व जमीन सुरक्षित रहें। हम शोषण-जुल्म के शिकार न हों। हमारे प्राकृतिक संसाधनों की लूट बंद हो। हम अपनी जरूरत के हिसाब से विकास की नीति तय करें। सम्प्रदायिकता, धार्मिक उन्माद व अंधविश्वास को बढ़ावा न मिले। हमारे जीवन-मूल्य का कोई हनन न करे। हमारी सोच में विज्ञान रहे तथा शिक्षा-चिकित्सा सर्व सुलभ हो। इसलिए नहीं कि लंपट-लुटरे व दलाल देश को चलाएं तथा हम पर शासन करें। विकास के नाम पर देश के प्राकृतिक संसाधनों (जल-जमीन व जंगल) का निर्ममतापूर्वक विनाश करें।जब हमारे गणतंत्र के कथित स्तंभ अपनी प्रासंगिकता खोते जा रहे हैं तो इंसाफ व जम्हूरियतपसंद अवाम को निर्णायक होना पड़ेगा। नेताओं, उद्योगपतियों, कॉरपोरेट घराने, नौकरशाहों बिचौलियों और प्रेस के काले कारनामें अब तो आये दिन उजागर हो रहे हैं। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला, आईपीएल घोटाला, लॉटरी घोटाला, आवासन घोटाला, मधुकोड़ा का निवेश कारोबार व हवाला घोटाला, तेलगी का स्टांप पेपर घोटाला, लालू यादव का चारा घोटाला, अलकतरा घोटाला, ताबूत घोटाला, हर्षद मेहता का शेयर घोटाला, बोफोर्स व पनडुब्बी घोटाला आदि। जाहिर है ऐसे सैकड़ों नहीं हजारों प्रकाशित-अप्रकाशित घोटाले हैं जो हमारे गणतंत्र व संविधान को सरेआम बेपर्द कर रहे हैं। दूसरी ओर बेलगाम महंगाई तथा बेरोजगारी देश की एक बड़ी समस्या बन चुकी है। लोग आक्रोश से भरे हुए हैं। युवकों में निराशा है। वक्त रहते अगर अब भी देश नहीं चेता तो जाहिर है कि परिस्थितियां बहुत जल्द अनियंत्रित हो जायेंगी और उत्तेजित जनता गणतंत्र के कथित स्तंभों को ध्वस्त करते हुए नजऱ आयेगी। भ्रष्ट नेताओं को लोग चौराहे पर खड़ा कर गोली मारेंगे और हमारी व्यवस्था उनकी रक्षा कर पाने में अपाहिज साबित होगी। हालात ऐसे न हों, इसके लिए यह जरूरी है कि देश के इंसाफ व जम्हूरियतपसंद अवाम गण्तांत्रिक मूल्यों की रक्षा को ले आगे आए। भ्रष्टाचारी किसी भी सूरत में न बच पायें, यह देखना सरकार का काम है। संभावित खतरे को टालने के लिए यह नितांत जरूरी है। देश के दुश्मनों से गणतंत्र की रक्षा करना हमारा प्राथमिक कार्य होना चाहिए।लेखक आरपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार तथा पश्चिम बंगाल से प्रकाशित आपका तीस्ता हिमालय के संपादक हैं.