केरल की राजधानी तिरुअनन्तपुरम के मध्य में स्थित भगवान पद्मनाभ मंदिर के गर्भगृह में स्थित सेलार में जाकर मंदिर में रखे गये धन का बहीखाता तैयार किया जा रहा है. अभी अगले एक हफ्ते तक और आंकलन होता रहेगा. ऐसा अनुमान अब लगाया जा रहा है कि आखिरी सेलार की पड़ताल करने के बाद कुल संपत्ति करीब एक लाख करोड़ के आस पास पहुंच सकती है. यह भी सिर्फ अनुमान ही है क्योंकि सारी गणना करने के बाद गठित टीम अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपेगी, उसके बाद सुप्रीम कोर्ट से ही यह सच्चाई सामने आयेगी कि भगवान पद्मनाभ मंदिर में कितना धन मिला है.
करीब एक लाख करोड़ की परिसंपत्तियां जिस मंदिर के तहखाने में सुरक्षित रखी गयी हैं वह मंदिर आम मंदिर बिल्कुल नहीं है. भगवान विष्णु का यह मंदिर त्रावणकोर राजघारने से संबंध रखता है. मंदिर कितना पुराना है इसका आंकलन ही किया जा सकता है लेकिन मंदिर का वर्तमान स्वरूप उभरा अठारहवी सदी की शुरूआत में जब त्रावणकोर राजघराने ने आठ ताकतवर पिल्लई को परास्त करके मंदिर को अपने अधीन कर लिया. भगवान विष्णु का यह मंदिर इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह शैव और वैष्णव दोनों ही संप्रदायों में एकता का प्रतीक भी है. मंदिर में शयन मुद्रा में स्थित भगवान विष्णु की मूर्ति की नाभि में स्थित कमल पर ब्रह्मा विराजमान हैं तो खुद भगवान विष्णु शिवलिंग पर जल अर्पित कर रहे हैं. इस तरह यह मंदिर हिन्दू मान्यता के अनुसार सृष्टि के रचयिता, पालनकर्ता और संहारकर्ता तीनों को समर्पित है.
राजा मार्तण्ड वर्मा ने आठ पिल्लई को परास्त करके उनकी संप्तियों पर कब्जा कर लिया और सभी ताकतवर आठ पिल्लई या तो भाग गये या मारे गये. राजा मार्तण्ड वर्मा ने जिस त्रावणकोर राज्य की स्थापना की उस राज्य को उन्होंने भगवान पद्मनाभ के चरणों में समर्पित कर दिया था. राजा मार्तण्ड वर्मा ने 1729 से 1758 के दौरान शासन किया और इसी दौरान 1733 में उन्होंने वर्तमान मंदिर का निर्माण करवाया जिसे मंदिर का जीर्णोद्धार कहा जाता है. राजा मार्तण्ड वर्मा ने भगवान पद्मनाभ के नाम पर अपनी राजधानी का नाम भी पद्मनाभपुरम रखा जो बाद में 1795 में थिरुअनन्तपुरम हो गया. थिरू का अर्थ होता है श्री और अनन्तपुरम इस इलाके के पौराणिक नाम अनन्तवनम से लिया गया है.
अपने शासनकाल के दौरान ही 1750 में राजा मार्तण्ड वर्मा ने घोषणा कर दी कि हम भगवान विष्णु के दास हैं इसलिए अब राज्य की सभी परिसंपत्तियों के स्वामी भगवान पद्मनाभ होंगे. त्रावणकोर का शासन भी भगवान पद्मनाभ के प्रतिनिधि के रूप में करने की घोषणा राजा मार्तण्ड वर्मा ने कर दी. इसके बाद त्रावणकोर राजघराने का जो भी राजा हुआ उसके नाम के आगे पद्मनाभदास का संबोधन लगा दिया जाता था. यही व्यवस्था कमोबेश 1949 तक चलती रही. 1949 में त्रावणकोर राजघराने को भारत सरकार के अधीन कर लिया गया और राजपरिवार से जुड़े लोगों को पेन्शन दी जाने लगी. 1971 में भारत सरकार ने प्रीविपर्स खत्म कर दिया जिसके कारण राजघरानों को दी जानेवाली सभी सुविधाएं बंद कर दी गयीं और उनके न्यूनतम अधिकार उनसे छीन लिये गये.
त्रावणकोर राजघराने ने कला और साहित्य को प्रमुखता से बढ़ावा दिया यही कारण है कि सन 1900 में महान चित्रकार राजा रवि वर्मा की दो पौत्रियों को राजपरिवार ने गोद ले लिया था. इनमें से एक सेथु लक्ष्मीबाई थी जिन्होंने 1924 से 1931 तक त्रावणकोर राज्य का शासन संभाला. वर्तमान समय में भी राजपरिवार से जुड़े सदस्य पद्मनाभ मंदिर के संरक्षक समझे जाते हैं और साल के दो प्रमुख उत्सवों पल्लिवेत्ता और अरात्तू (पवित्र स्नान) में राजपरिवार के लोग उपस्थित रहते हैं. मंदिर का संचालन भी राजपरिवार द्वारा गठित एक ट्रस्ट के तहत किया जाता है.
सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि तहखाने में बंद परिसंपत्तियों का मूल्यांकन किया जाना चाहिए. याचिकाकर्ता टीपी सुंदरराजन का आरोप था कि मंदिर के संचालन में राजपरिवार नियंत्रित ट्रस्ट गड़बड़ियां कर रहा है. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के दो पूर्व जज और दो केरल हाईकोर्ट के पूर्व जजों को मिलाकर एक समिति का गठन किया गया जो मंदिर के बीस फिट नीचे दबे खजाने में मौजूद परिसंपत्तियों का मूल्यांकन कर रहे हैं. इस मूल्यांकन में अभी तक जो अंदाज लग रहा है उससे लगता है कि मंदिर के तहखाने में करीब एक लाख करोड़ की परिसंत्तियां मौजूद हैं.
इन संपत्तियों पर आखिरी दावा किसका होगा यह कहना अभी मुश्किल है. मंदिर का संचालन एक ट्रस्ट के हाथ में है और संपत्तियों पर ट्रस्ट का स्वाभाविक दावा बनता है लेकिन क्योंकि 1971 में प्रीवीपर्स खत्म कर दिया गया है इसलिए सरकार इन संपत्तियों पर अपना दावा कर सकती है. बहरहाल करीब एक लाख करोड़ रूपये की संपत्तियों की मौजूदगी के बाद तिरुअनन्तपुरम का यह भगवान अनंत पद्मनाभ का मंदिर दुनिया का सबसे धनवान मंदिर बन गया है.
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