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जयपुर। जीवन के करीब 54 साल चिकित्सकीय सेवा में गुजारने वाले सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ. रामेश्वर शर्मा ने करीब साढ़े चार साल पहले देहदान कर मिसाल कायम की थी लेकिन उनका यह जज्बा उनके ही कॉलेज के कर्ता-धर्ताओं की लापरवाही की भेंट चढ़ गया। बी.सी रॉय अवार्ड से सम्मानित शर्मा की देह एसएमएस मेडिकल कॉलेज में चूहे कुतर रहे हैं। 4 जनवरी 2007 को डॉ. शर्मा की मृत्यु हुई थी। अंतिम इच्छा के मुताबिक उनकी देह एसएमएस मेडिकल कॉलेज को दान कर दी गई लेकिन तब से आज तक यह देह यहां के शवगृह में बिना देखरेख ऎसे ही पड़ी है। एनाटोमी के विभागाध्यक्ष भी इससे अनजान हैं कि साढ़े चार साल से स्ट्रेचर पर पड़ी यह देह आखिर है किसकी? उनके हिसाब से डॉ.शर्मा की देह महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज भेज दी गई थी।
उधर, विभाग की एक अन्य प्रोफेसर डॉ. संगीता चौहान के अनुसार देह शर्मा की है, जिसे सरफेस मार्किग के हिसाब से सूखने के लिए रखा गया है।
क्या है सरफेस मार्किग? : एनाटोमी विभाग के प्रो. डॉ. धीरज बताते हैं कि सरफेस मार्किग के लिए मृत्यु के बाद देह सुखाई जाती है। इसका ममीफिकेशन होता है जिससे शरीर के आंतरिक भाग का सरफेस से पता लगाया जा सकता है। देह सूखने के बाद उसे केमिकली पेंट कर दिया जाता है ताकि खराब ना हो। आम तौर पर सूखे मौसम में देह को सूखने में दो से तीन महीने लगते हैं।
सिर्फ 25 बॉडी : एसएमएस कॉलेज प्रशासन अक्सर शोध व अध्ययन के लिए देह की कमी का रोना रोता है, लेकिन इस मामले में लापरवाही से सवाल उठता है कि जब प्रिंसिपल की देह का यह हाल है तो अन्य लोग कैसे आगे आएंगे? अभी कॉलेज में 25 देह हैं और इस साल तो मात्र दो देह आई हैं। अंदाजा लगा सकते हैं कि देह का कितना टोटा है। शिक्षकों के हिसाब से सालाना करीब 20 देह की जरूरत होती है। अघिक मृत देह आने पर अन्य कॉलेजों में भिजवाई जाती है।
मुझे अभी ज्वॉइन किए दो साल ही हुए हैं। जहां तक मुझे पता है डॉ. शर्मा की बॉडी महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज भेज दी गई थी।
सर्दी का मौसम होने के कारण परिजनों ने डॉ. शर्मा की देह को जिस कम्बल में सहेजकर दिया था, वह आज भी उसी में लिपटी हुई है। देह को बचाने के नाम पर उस पर सिर्फ रसायन का लेप किया हुआ है। इतने सालों में चूहों ने देह को इस तरह कुतर दिया कि उसकी तरफ देख पाना भी मुश्किल लगता है। ऎसे में सवाल उठता है कि यह छात्रों के पढ़ाई के क्या काम आएगी?
पापा की थी इच्छा
पापा जब प्रिंसिपल थे, तब स्टूडेंट्स यह समस्या लेकर आते थे कि एनाटोमी विभाग में बॉडीज की कमी रहती है। यही वजह है कि उन्होंने अपनी बॉडी कॉलेज को डोनेट करने की इच्छा जताई। वे कहते थे कि मैं जो कुछ हूं, इसी कॉलेज की वजह से हूं इसलिए कॉलेज के लिए कुछ करके जाना मेरा सौभाग्य होगा।
डॉ. प्रदीप शर्मा, पुत्र स्व. डॉ. रामेश्वर शर्मा
उधर, विभाग की एक अन्य प्रोफेसर डॉ. संगीता चौहान के अनुसार देह शर्मा की है, जिसे सरफेस मार्किग के हिसाब से सूखने के लिए रखा गया है।
क्या है सरफेस मार्किग? : एनाटोमी विभाग के प्रो. डॉ. धीरज बताते हैं कि सरफेस मार्किग के लिए मृत्यु के बाद देह सुखाई जाती है। इसका ममीफिकेशन होता है जिससे शरीर के आंतरिक भाग का सरफेस से पता लगाया जा सकता है। देह सूखने के बाद उसे केमिकली पेंट कर दिया जाता है ताकि खराब ना हो। आम तौर पर सूखे मौसम में देह को सूखने में दो से तीन महीने लगते हैं।
सिर्फ 25 बॉडी : एसएमएस कॉलेज प्रशासन अक्सर शोध व अध्ययन के लिए देह की कमी का रोना रोता है, लेकिन इस मामले में लापरवाही से सवाल उठता है कि जब प्रिंसिपल की देह का यह हाल है तो अन्य लोग कैसे आगे आएंगे? अभी कॉलेज में 25 देह हैं और इस साल तो मात्र दो देह आई हैं। अंदाजा लगा सकते हैं कि देह का कितना टोटा है। शिक्षकों के हिसाब से सालाना करीब 20 देह की जरूरत होती है। अघिक मृत देह आने पर अन्य कॉलेजों में भिजवाई जाती है।
मुझे अभी ज्वॉइन किए दो साल ही हुए हैं। जहां तक मुझे पता है डॉ. शर्मा की बॉडी महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज भेज दी गई थी।
डॉ. जी. सी. अग्रवाल, विभागाध्यक्ष एनाटॉमी , एसएमएस मेडिकल कॉलेज
किस काम आएगी! सर्दी का मौसम होने के कारण परिजनों ने डॉ. शर्मा की देह को जिस कम्बल में सहेजकर दिया था, वह आज भी उसी में लिपटी हुई है। देह को बचाने के नाम पर उस पर सिर्फ रसायन का लेप किया हुआ है। इतने सालों में चूहों ने देह को इस तरह कुतर दिया कि उसकी तरफ देख पाना भी मुश्किल लगता है। ऎसे में सवाल उठता है कि यह छात्रों के पढ़ाई के क्या काम आएगी?
पापा की थी इच्छा
पापा जब प्रिंसिपल थे, तब स्टूडेंट्स यह समस्या लेकर आते थे कि एनाटोमी विभाग में बॉडीज की कमी रहती है। यही वजह है कि उन्होंने अपनी बॉडी कॉलेज को डोनेट करने की इच्छा जताई। वे कहते थे कि मैं जो कुछ हूं, इसी कॉलेज की वजह से हूं इसलिए कॉलेज के लिए कुछ करके जाना मेरा सौभाग्य होगा।
डॉ. प्रदीप शर्मा, पुत्र स्व. डॉ. रामेश्वर शर्मा