महाशय ,
मैं कम से कम दस बार माननीय मुख्य मंत्री जी के grievance cell में अपनी व्यथा के बारे में लिख चूका हूँ!
हमारी एक औद्योगिक इकाई जिसका नाम हिमालय एग्रो केमिकल्स प्राइवेट लिमिटेड है विगत 30 सालों से कार्यरत थी! दिनांक 18/12/2010 से यह कारखाना कृषि विभाग, बिहार द्वारा बंद करवाया जा चूका है!
कृषि विभाग में कार्यरत एक पदाधिकारी जिसका नाम संजय सिंह है जिसकी मूल पदस्थापना कृषि विभाग के सांख्यिकी विभाग में है लेकिन इनको कतिपय कारणों से कृषि विभाग के राज्यस्तरीय उर्वरक कोषांग, का प्रभारी 2007 से ही बना दिया गया था जब श्री बी० राजेंद्र कृषि निदेशक थे!
इनके अत्याचारों की कहानी इस प्रकार है :-
1. इस कहानी की पहली कड़ी तो इसने 2007 में ही शुरू कर दी थी!
2. कम शब्दों में कहना यह है की 09/03/2010 को ही हमलोगों ने (within specified time) अपने उर्वरक विनिर्माण और विपणन की अलग अलग अनुज्ञप्तियां के नवीनीकरण के लिए आवेदन कृषि विभाग को समर्पित कर दिया था!
3. 20 मई 2010 को (करीब 70 दिनों पश्चात) कृषि निदेशक महोदय ने हमारे प्रतिष्ठान में स्थापित उर्वरक गुण विश्लेषण प्रयोगशाला की जांच करवाई! इस जांच दल में श्री बैद्यनाथ यादव, तत्कालीन उप कृषि निदेशक (मीठापुर गुण नियंत्रण प्रयोगशाला), श्री अशोक प्रसाद, उप कृषि निदेशक (मुख्यालय) थे!
4. इन लोगों ने अपने जांचोपरांत प्रतिवेदन में निम्नलिखित बातों को दर्शाया :-
(क) प्रतिष्ठान में संचालित प्रयोगशाला में यन्त्र एवं उपकरण कार्यशील पाए गए! प्रयोगशाला में अपर्याप्त संख्या में यन्त्र और उपकरण पाया गया! प्रयोगशाला सीमित जांच सुविधा के साथ कार्यशील पाया गया!
(ख) रसायनज्ञ कार्यरत है एवं उसे विश्लेषण कार्य की जानकारी है!
(ग) विनिर्माण हेतु आधारभूत संरचना-उपलब्ध है तथा चालू हालत में है!
(घ) इसके अलावा यह भी कहा गया की प्रतिष्ठान में विनिर्माण इकाई में उत्पादित उर्वरक के प्रयोगशाला में गुणात्मक जांच सम्बन्धी अभिलेख आंकड़ा आदि संधारित नहीं पाया गया!
(ङ) उर्वरक सम्बन्धी कच्चा माल स्थानीय थोक विक्रेता शिवनारायण चिरंजीलाल से मुख्य रूप से प्राप्त किये जाते हैं एवं उत्पादित उर्वरक का अधिक से अधिक हिस्सा इसी प्रतिष्ठान के माध्यम से बेचे जाते हैं!
(च) एन०पी०के० मिक्सचर विनिर्माण इकाइयों को कच्चा माल के रूप में उर्वरक आपूर्ति हेतु भारत सरकार से समय समय पर निर्गत निदेश और इससे सम्बंधित अद्यतन निदेश (23011/1/2010-MPR, दिनांक 04/03/2010) जिससे वे अवगत हैं का अनुपालन नहीं किया जा रहा है!
5. इसी बीच दिनांक 20/07/2010 को कृषि निदेशक महोदय ने अपने आदेश संख्या 798/23/07/2010 के द्वारा हमारा विनिर्माण/विपणन प्रमाण पत्र हेतु समर्पित आवेदनों को अस्वीकृत कर दिया और इस आदेश में यह भी दर्शाया की उनके इस आदेश के विरूद्ध 30 दिनों के अंदर हमलोग कृषि उत्पादन आयुक्त, बिहार पटना के यहाँ अपील दायर कर सकते हैं!
6. हमलोगों ने विधिवत अपनी अपील कृषि उत्पादन आयुक्त महोदय के यहाँ समर्पित 30/07/2010 को ही कर दी!
7. कृषि उत्पादन आयुक्त महोदय के यहाँ से 60 दिनों बाद अपील का आदेश प्राप्त हुआ जिसमे प्रमुख बातें इस प्रकार है :-
(क) "रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय, भारत सरकार के पत्र संख्या 23011 दिनांक 04/03/2010 में यह स्पष्ट है की 'manufacturers of custimsed fertilizers and mixture fertilizers will be eligible to source subsidised fertilizers from the manufacturers/importers after their receipt in the districts as input for manufacturing customised fertilisers and mixture fertilizers for agriculture purpose .' इस पत्र से यह स्पष्ट होता है की मिश्रित उर्वरक विनिर्माताओं को अनुदानित उर्वरक उपयोग करने की अनुमति है! राज्य के लिए आवंटित अनुदानित उर्वरक की आपूर्ति manufacturers /importers द्वारा की जाती है, जिसका वितरण थोक विक्रेता के माध्यम से किया जाता है! राज्य को आवंटित अनुदानित उर्वरक के कोटा में से ही मिश्रित उर्वरक विनिर्माताओं को उर्वरक उपलब्ध कराया जाना है! मिश्रित उर्वरक विनिर्माताओं की आवश्यकता की पूर्ति के लिए अगर अतिरिक्त अनुदानित उर्वरक की आवश्यकता हो तो उसकी मांग निदेशक, कृषि रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय, भारत सरकार से कर सकते हैं! सभी पहलू पर विचार करते हुए यह आदेश दिया जाता है की तत्काल जिले के लिए आवंटित उर्वरक के कुछ प्रतिशत जिला कृषि पदाधिकारी मिश्रित उर्वरक विनिर्माताओं को उपलब्ध करायेंगे, इस हेतु निदेशक, कृषि सम्बंधित जिला कृषि पदाधिकारी को आवश्यक निदेश देंगे!
(ख) कृषि मंत्रालय की अधिसूचना दिनांक 16/04/1991 में यह स्पष्ट किया गया है की सभी एन०पी०के० मिश्रण विनिर्माताओं को अधिसूचना में उल्लेख किये गए न्यूनतम उपकरण को प्रयोगशाला में रखना ही होगा!
(ग) सभी तथ्यों पर गंभीरता से विचार करते हुए यह आदेश दिया जाता है की अपीलकर्ता प्रयोगशाला में सभी न्यूनतम उपकरणों की व्यवस्था कर निदेशक, कृषि को सूचित करेंगे! निदेशक, कृषि आवश्यक जांच कर संतुष्ट होने पर अपीलकर्ता के विनिर्माण प्रमाणपत्र को नवीकृत करेंगे! निदेशक, कृषि विनिर्माण प्रमाण पत्र निर्गत करते समय विपणन प्राधिकार पत्र के नवीकृत करने पर भी विचार करेंगे!
(N.B. :- this is verbatim replication of the order of APC, Bihar dated 30/09/2010 bearing no.4964. This order bears the signature of Sri K.C. Saha while he held the charge of APC when Sri A.K. Sinha had gone on a long leave )
8. 30/09/2010 को ही हमलोगों ने अपने प्रयोगशाला में सभी अनावश्यक (जिस उपकरण का आज के परिवेश में कोई मान्यता नहीं रह जाती है जैसे chemical Balance in place of electronic digital balance) आवश्यक उपकरणों की खरीद कर install कर देने सम्बन्धी पत्र निदेशक कृषि को पत्र द्वारा सूचित कर दिया और इसकी एक प्रति कृषि उत्पादन आयुक्त महोदय को भी दे दी!
9. कृषि उत्पादन आयुक्त महोदय के इस आदेश को कतिपय कारणों से कृषि निदेशक महोदय को प्राप्त होने में काफी विलम्ब हुआ, इसी कारण दिनांक 22/10/2010 को कृषि निदेशक महोदय के यहाँ से एक पत्र द्वारा त्रिसदस्सीय दल की गठन का आदेश निकला जिसको यह कहा गया की प्रतिष्ठान के प्रयोगशाला को पुनः जांच की जाये! स्पष्ट है की कुछ सीढियों के अंतर पर ही ये दोनों कार्यालय नया सचिवालय, पटना में है लेकिन "22” दिनों के बाद ही कृषि निदेशक महोदय प्रतिष्ठान के प्रयोगशाला सम्बन्धी जांच के आदेश दे पाए!
10. लेकिन यहाँ मात्र एक जांच सम्बन्धी आदेश को निकालने में 22 दिन लगे, फिर 23/11/2010 (यानि इस जांच दल के गठन होने के 1 महीने बाद) को ही इस त्रिसदस्सीय जांच दल ने हमारे प्रतिष्ठान के प्रयोगशाळा की जांच की, यानी एक महीने 1 दिन बाद ही यह संभव हो पाया! स्पष्ट है की कृषि उत्पादन आयुक्त महोदय के आदेश के 53(वें) दिन बाद हमारी प्रयोगशाला की जांच हो पायी!
11. इस जांच प्रतिवेदन में जांच दल ने निष्कर्ष में प्रतिवेदित किया की :-
- उर्वरक नियंत्रण आदेश 1985 की धारा 21(A) के तहत उक्त प्रतिष्ठान के पास न्यूनतम प्रयोगशाला की सुविधा एवं उपरोक्त वर्णित उपकरण उपलब्ध हैं तथा उर्वरक नियंत्रण आदेश 1985 की धारा 21(A) का पूर्ण-रूपेण पालन किया गया है! अतः उक्त प्रतिष्ठान के विनिर्माण पंजीकरण प्रमाण पत्र को नवीकरण करने हेतु विचार किया जा सकता है|"(this is again an exact replication of the report of findings of the three member inspecting team which is dated 23/11/2010).
12. हमलोगों ने 02/11/2010 से अपने इकाई का उत्पादन शुरू कर दिया था! इस आशय की सूचना विधिवत कृषि निदेशक महोदय को दे दी गयी थी! उत्पादन शुरू करने के मुख्य तीन कारण थे जो इस प्रकार हैं:-
(क) कृषि उत्पादन आयुक्त महोदय के आदेश के उपरांत कृषि निदेशालय द्वारा अनावश्यक विलम्ब हो रहा था, फिर भी इस आदेश के 1 महीने दो दिन बाद (यानी 32 दिनों बाद) काफी इंतज़ार करने के बाद रबी सीजन के चालू हो जाने के आलोक में, कृषकों के भी व्यापक हित में तथा मजदूर जो बहुत दिनों से बैठे हुए थे के कारण उत्पादन प्रारम्भ कृषि निदेशक को सूचित करते हुए कर दिया गया!
(ख) कृषि उत्पादन आयुक्त महोदय के आदेश में यह दर्शाया गया है की "तत्काल जिले के लिए आवंटित उर्वरक के कुछ प्रतिशत जिला कृषि पदाधिकारी मिश्रित उर्वरक विनिर्माताओं को उपलब्ध कराएँगे "इससे यह स्पष्ट हो जाता है की उत्पादन चालु रखने के लिए ही ऐसे आदेश को पारित किया गया है!
(ग) विनिर्माण और विपणन प्राधिकार पत्रों की नवीकरण का कृषि निदेशक महोदय द्वारा अस्वीकृत कर दिए जाने के उपरान्त कृषि उत्पादन आयुक्त के आदेश से अस्वीकृति का आदेश स्वतः विलोपित हो जाता है और उर्वरक नियंत्रण आदेश 1985 की धारा 18(4) जो इस प्रकार है:- "where the application for renewal is made within the time specified in sub-clause (1)or sub-clause (3), the applicant shall be deemed to have held a vaid {certificate of manufacture} until such date as the registering authority passes order on application for renewal. "इसी तरह विपणन प्राधिकार पत्र के बारे में धारा 11(4) है! इन धाराओं के तहत हमलोगों ने उत्पादन शुरू किया जो हमारी महीनों से बंद पड़े प्लांट जो उर्वरक के कारण जंग खा रहा था, कृषकों को रबी सीजन में संतुलित दानेदार की उपलब्धता को बनाये रखने के लिए तथा भूखमरी की समस्या से ग्रसित मजदूरों को त्राण दिलवाने की मंशा से ऐसा कदम उठा कर कोई पाप नहीं किया गया था! यह उद्योग विगत 30 वर्षों से स्थापित है और हमारी अनुज्ञप्तियों की नवीनीकरण की प्रक्रिया कम से कम दस बार विभाग द्वारा पूर्व में भी अपनाई गयी है!
13. दिनांक 18/12/2010 को कृषि निदेशक महोदय ने एक आदेश निकाला की (जो जिला कृषि पदाधिकारी, अररिया के नाम से प्रेषित था) "आपको आदेश दिया जाता है की में० हिमालय एग्रो केमिकल्स प्रा० ली० की फारविसगंज एवं पूर्णिया इकाई को पत्र प्राप्ति के साथ ही जांच कर लें एवं यदि विनिर्माण कार्य चालू रहने एवं उर्वरक विपणन का साक्षय पाया जाता है तो प्रतिष्ठान के प्रोपराइटर एवं प्रबंधन के विरूद्ध उर्वरक नियंत्रण आदेश 1985 के खंड 7 एवं 12 का उल्लंघन करने के आरोप में आवश्यक वस्तु अधिनियम की धारा 7 के अंतर्गत साक्षय जुटाते हुए स्थानीय थाना में प्राथमिकी दर्ज कर दोनों संयंत्र को सील करने की त्वरित कार्रवाई करें! कृत कार्रवाईका प्रतिवेदन लौटती डाक से उपलब्ध कराया जाये! " इस सन्दर्भ में कृषि निदेशक का पत्र संख्या 1427 दिनांक 15/12/2010 निर्गत हुआ है!
14. इसके उपरान्त दिनांक 18/12/2010 को जिला कृषि पदाधिकारी श्री बैद्यनाथ यादव ने परियोजना कार्यपालक पदाधिकारी, फारविसगंज श्री मक्केश्वर पासवान को आदेश देकर 18/12/2010 को ही सील करवा दिया और दिनांक 19/12/2010 को फारविसगंज थाने में प्राथमिकी दर्ज करवा दी गयी! दर्ज प्राथमिकी की भाषा इस प्रकार है:- “उपरोक्त विषय के सम्बन्ध में जिला कृषि पदाधिकारी, अररिया के पत्रांक 1065 दिनांक 18/12/2010 एवं कृषि निदेशक, बिहार, पटना के पत्र संख्या 1427 दिनांक 15/12/2010 के द्वारा दिए गए निदेश के अनुपालन में में० हिमालय एग्रो केमिकल्स प्रा० ली०, रानीगंज रोड, फारविसगंज की जांच की गयी! जांच के समय फेक्ट्री बंद पायी गयी किन्तु भण्डार पंजी एवं वितरण पंजी के अवलोकन से ज्ञात होता है की फेक्ट्री में विनिर्माण कार्य कराया जाता रहा है! दिनांक 01/12/2010 को मेरे द्वारा भण्डार पंजी एवं विक्री पंजी की जांच की गयी थी जिसमे विनिर्मित NPK धनवर्षा हरासोना 18:18:10 भण्डार में कुल 105 of 50 kgs पाया गया था किन्तु दिनांक 18/12/2010 तक विनिर्मित NPK हरासोना 18:18:10 7,415 बोरा 50 के०जी० विक्री दिखाया गया है इस प्रकार दिसम्बर माह में कुल 7,310 बोरा 50 के०जी० का विनिर्माण में० हिमालय एग्रो केमिकल्स, फारविसगंज द्वारा किया गया है जो उर्वरक नियंत्रण आदेश 1985 के खंड 7 एवं 12 का उल्लंघन किया गया है जो की गैर कानूनी और अवैध है! अतः में० हिमालय एग्रो केमिकल्स, रानीगंज रोड, फारविसगंज के द्वारा बगैर लाइसेंस नवीकरण कराये विनिर्माण इकाई में विनिर्माण एवं बिक्री करने के आरोप में प्रतिष्ठान के प्रबंधक सह प्रबंध निदेशक श्री शम्भू गोयल पिता ओंकार मल अग्रवाल, छुआ पट्टी रोड वार्ड न० 17 नगर परिषद, फारविसगंज के विरूद्ध प्राथिमिकी दर्ज की जाती है”! यह कार्य दिनांक 19/12/2010 को करवाया जाता है!
15. इसी तरह हमारे पूर्णिया इकाई को भी बंद करवा दिया जाता है और 19/12/2010 को ही प्राथमिकी दर्ज कर दी गयी!
16. कृषि निदेशालय में अनावश्यक विलम्ब हो रहा था इसका प्रमाण ऊपर अंकित विभिन्न तिथियों से स्वतः ज्ञात हो सकता है! संजय सिंह द्वारा इनकी बदनीयती से सृजित कथा का अंत यहीं नहीं होता है! हमलोगों ने इनलोगों के द्वारा अपनाई गयी प्रताड़ित करने की प्रक्रिया को देखते हुए माननीय उच्च न्यायालय में एक writ petition भी दिया था, संजोग से जिसकी सुनवाई 20/12/2010 को हो गयी और उच्च न्यायलय द्वारा आदेश जो दिया गया वो इस प्रकार है :-
(क) CWJC NO.20251 of 2010: - “From the facts and circustances of this case, it is quite apprent that the matter for renewal of Certificate of Registration for manufacturing and sale of Mixture of Fertilizers is pending before the Director, Agriculture, Government of Bihar since 30/09/2010 when order passed by the Agriculture Production Commissioner, Bihar in Appeal no. 7 of 2010 was communicated.
(ख) Let the said matter be considered and disposed of by the Director, Agriculture within a period of three weeks from the date of receipt/production of a copy of this order. It may be noted that violation of this order shall entail serious consequences and will be deemed as contempt of court and this court shall be constrained to take actions against the contemnor.
(ग) A copyof this order be handed over to Government Advocate IV for proper compliance of this order.
17. हाई कोर्ट के इस आदेश के विभाग में पहुँचने के बाद महज एक खानापूर्ति करने के लिए दिनांक 29/12/2010 को एक पत्र जिसका पत्रांक 1470 दिनांक 29/12/2010 कृषि निदेशालय से हमारे नाम से स्पष्टीकरण मांगने के लिए प्रेषित किया जाता है जो इस प्रकार है :-
· उपर्युक्त विषयक कहना है की कृषि उत्पादन आयुक्त के आदेश ज्ञापांक 4964 दिनांक 30/09/2010 के आलोक में आपके प्रतिष्ठान के NPK मिश्रण विनिर्माण प्रमाण पत्र एवं विपणन प्राधिकार पत्र के नवीकरण की कार्रवाई प्रक्रियाधीन थी! इस बीच आपने अपने पत्र संख्या HAC-OUTLET-CMD/10/235/01 दिनांक 22/11/2010 के द्वारा सूचित किया है की आपके द्वारा NPK मिश्रण का विनिर्माण कार्य प्रारम्भ कर दिया गया है! आप अवगत हैं की बिना विनिर्माण प्रमाण पत्र विनिर्माण कार्य करना उर्वरक नियंत्रण आदेश 1985 के खंड 12 का उल्लंघन है! आपके द्वारा बिना विनिर्माण प्रमाण पत्र प्राप्त किये ही विनिर्माण कार्य प्रारम्भ कर दिया गया है जो उर्वरक नियंत्रण आदेश 1985 के खंड 12 का उल्लंघन है और आपका कृत उर्वरक नियंत्रण आदेश के विरूद्ध है तथा गैर कानूनी है! अतः आप स्पष्ट करें की उपरोक्त आरोप के आलोक में क्यों नहीं आपके प्रतिष्ठान का विनिर्माण प्रमाण पत्र एवं विपणन प्राधिकार पत्र के नवीकरण हेतु आपसे प्राप्त आवेदन को उर्वरक नियंत्रण आदेश के खंड 18(2) के अंतर्गत अस्वीकृत कर दिया जाए! आप अपना स्पष्टीकरण दिनांक 03/01/2011 तक अवश्य समर्पित करें अन्यथा एकतरफा निर्णय ले लिया जाएगा!
(N.B.) विभाग द्वारा स्वयं ही यह स्वीकार किया जा रहा है की हमारे मिश्रण विनिर्माण प्रमाण पत्र एवं विपणन प्राधिकार पत्र के “नवीकरण” की कार्रवाई प्रक्रियाधीन थी! तब हमपर क्या नवीकरण की धाराओं के उल्लंघन में आरोप लगाना उचित होगा या की नए अनुज्ञप्ति पंजीकरण की धाराओं के उल्लंघन का आरोप लगाना कहाँ तक उचित होता है! ऐसे भी यह एक गहन चिंता का विषय है की प्राथमिकी दर्ज करवाने के निमित्त पत्र में खंड 12 और 7 के उल्लंघन का उल्लेख है जबकि स्पष्टीकरण में खंड 18(2) के उल्लंघन का आरोप भी लगाया जा रहा है!
एक सोची समझी हुई बदनीयती की तहत एक साजिश कर के प्राथमिकी के उपरान्त स्पष्टीकरण पूछने का एक ही तात्पर्य है की जिससे उच्च न्यायालय को पुख्ता जवाब दिया जा सके! ऐसे प्राथमिकी हो जाने के बाद ऐसे स्पष्टीकरण को कोई औचित्य ही नहीं रह जाता है!
संजय सिंह की मंशा तो शुरू से ही थी की रु० 10 लाख मिलने के बाद ही नवीकरण किया जाएगा! यह गैर कानूनी उगाही न होते देख इस व्यक्ति ने अपनी सारी ताकत झोंक कर और एक खास बेईमानी की नियत से न सिर्फ विभाग का समय बर्बाद करवाया है, इसके साथ सैकड़ों मजदूरों को भी बेरोजगार कर दिया है, लाखों रुपैये की खाद को पानी में परिवर्तित होकर बह जाने की खास कोशिश की है! हमारी बर्बादी करना तो इसके जेहन में 2007 से समा गयी थी जब यह व्यक्ति उल्टा सीधा आदेश डा० बी० राजेंद्र जी से करवाना शुरू कर दिया था! पर बिहार में भारतीय प्रशासनिक सेवा के ऐसे पदाधिकारी उल्टा सीधा आदेश देते ही रहते हैं जिससे इनका प्रभुत्व कायम रहे, भले ही जनता का नुकसान होते रहे, कम से कम कोर्ट-कचहरी के चक्कर में समय तो बर्बाद ये पदाधिकारी करवा ही देते हैं और इसी में इनको दीखता है अपना बांकपन/बड़प्पन, अपनी शक्ति! इन लोगों को यह भी शर्म नही है की कोर्ट के आदेश किस कदर इनके मुहं पर तमाचा लगाते है! कोर्ट ने इनके और एक खास कृषि उत्पादन आयुक्त के ऐसे ही आदेश के विरूद्ध एक अन्य मामले में जो हमारे मामले से हूबहू मिलता जुलता है में टिप्पणी की थी वो इस प्रकार है :- CWJC-16645 of 2010 order dated 1/10/2010 – “It is evident from the impugned order that they suffer from non-application of mind to the requirements of the Fertilizer Control Order not only with respect to the facts of the case but also the requirement of law.
“Once the petitioner had taken the stand that shortage of equipments in the laboratory was rectified, either the respondent authorities ought have accepted the same or they could have made inspection of the Laboratory to verify the statements made and thereafter appropriate orders should have been passed keeping in view the valuable rights of the petitioner involved in the matter.
On consideration of the entire facts and circumstances the order dated 4/06/2010 of the Director, Agriculture and 13/09/2010 of the Agriculture Production Commissioner are set aside and the matter is remanded to the Director, Agriculture to consider the question of renewal of the registration certificate of the petitioner in accordance with law after considering the documents submitted by the petitioner and, if necessary by getting the inspection of the petitioner’s laboratory done by a team of competent Officers .
Let the application for renewal of the petioner be considered and disposed of within a period of three weeks from the date of receipt /production of a copy of this order.
The writ petition is disposed of with the afore said observations and directions.
Sd/- Ramesh Kumar Dutta ,J.
लेकिन शर्म तो इन प्रशासनिक पदाधिकारियों ने एक दानवी हैवान के पहलू में गिरवी रख दी है! इसका एक खास कारण यह भी है की ऐसे पदाधिकारिओं का मान बढ़ता है चोर और सिरफिरे राजनीतिज्ञों का प्रश्रय मिलने पर! और कम से कम आज के कृषि विभाग में ऐसा ही हो रहा है!
18. दिनांक 20/12/2010 के उच्च न्यायालय के आदेश के आलोक में उच्च न्यायालय के निर्देशानुसार हमारे अनुज्ञप्ति नवीकरण को नहीं करके कृषि निदेशक ने आदेश संख्या 25 दिनांक 07/01/2011 को हमारे आवेदन को पुनः अस्वीकृत कर दिया वह भी जब उच्च न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया था की “matter for renewal of certificate of Registration for manufacture and sale of Mixture of fertilizers is pending before the Director, Agriculture, Government of Bihar since 30/09/2010 when order passed by Agriculture Production Commissioner, Bihar in appeal no. 7 of 2010 was communicated.
कृषि निदेशक ने इस मद में एक आदेश निकाला जो दिनांक 06/01/2011 को दस्तखत किया गया और वह इस प्रकार है :-
- प्वाइंट नं० 6> “प्रतिष्ठान से प्राप्त स्पस्टीकरण संतोषप्रद एवं स्वीकार्य नहीं है! प्रतिष्ठान की ओर से प्राप्त स्पस्टीकरण से स्पस्ट होता है की उनके द्वारा उर्वरक नियंत्रण आदेश 1985 के खंड 18(4) एवं 11(4) के अंतर्गत प्रतिष्ठान के विनिर्माण एवं विपणन प्राधिकार पत्र को वैध माना गया है! इस सम्बन्ध में उक्त दोनों खण्डों का उल्लेख करना समीचीन प्रतीत होता है! खंड 18(4) निम्नवत है :-
“where the application for renewal is made within the time specified in sub-clause (1)or sub-clause (3), the applicant shall be deemed to have held a valid certificate of manufacture until such date as the registering authority passes order on application for renewal”.
तथा 11(4) निम्नवत है :-
“where the application for renewal of certificate of registration is made within the time specified in sub-clause (1)or sub-clause (3), the applicant shall be deemed to have held a valid certificate of registration until such date as the controller passes order on application for renewal”.
उपरोक्त दोनों खण्डों के अवलोकन से स्पष्ट है की नवीकरण हेतु लंबित विनिर्माण प्रमाण पत्र एवं विपणन प्राधिकार पत्र उस
From: Shambhu Goel shambhugoel@gmail.com