ब्यूरो प्रमुख // दस्तगीर भाभा (बिलासपुर // टाइम्स ऑफ क्राइम)
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बिलासपुर । ड्राइविंग लाइसेंस से लेकर गाडिय़ों के फिटनेस और परमिट जारी करने तक सारे काम आरटीओ के दलाल ही कर रहे हैं। दलालों की इतनी तगड़ी घुसपैठ है कि उनकी मर्जी के बिना यहां पत्ता नहीं हिलता। इसी का फायदा उठाकर दलाल लोगों की जेबें काट रहे हैं। ड्राइविंग लाइसेंस बनाने वाले सबसे ज्यादा परेशान हैं। 600 में बनने वाले लाइसेंस के लिए 15 सौ देने पड़ रहे हैं। दरअसल पूरे आरटीओ में दलालों का ऐसा नेटवर्क फैला है कि उनकी मदद के बिना ड्राइविंग लाइसेंस बनाने वाले को केवल धक्के मिल रहे हैं। टाइम्स ऑफ क्राइम की टीम ने को आरटीओ में कुछ घंटे गुजारे। इस दौरान ड्राइविंग लाइसेंस बनाने वाले परेशान हाल दिखे और दलालों की एकतरफा मोनोपल्ली नजर आई। दलाल जिस काउंटर पर जा रहे थे उनका काम बिना रोक-टोक हो रहा था। लाइसेंस फीस जहां अदा की जाती है, उस कक्ष का दरवाजा बंद था। आरटीओ दलाल उस काउंटर की खिडक़ी से अपना हाथ भीतर पहुंचाकर फाइलों को उलट-पलट रहा था। बाद में पता चला कि वह अपने क्लाइंट का रिकार्ड तलाश रहा था। दफ्तर के कर्मचारी सबकुछ देखते हुए उसे कुछ नहीं बोल रहे थे।
उसी कक्ष के बाजू बायोमेट्रिक सिस्टम वाला कमरा था। वहां फोटो डिजिटल खिंचवाने और हस्ताक्षर करने वालों की भीड़ थी। लेकिन दलालों के मार्फत लाइसेंस बनवा रहे लोगों के लिए लाइन सिस्टम नहीं था। दलाल बायोमेट्रिक सिस्टम वाले कक्ष के बाहर खड़े थे। उनके हाथों में अर्जियों का पुलिंदा था। उनके इर्दगिर्द लाइसेंस बनवाने वाले थे। अर्जियों के पुलिंदे से दलाल ने वहां खड़े अपने क्लाइंट के नाम का आवेदन छांटा और भीतर चला गया। उसे देखकर भीतर मौजूद कर्मियों तत्काल हरकत में आ गए। दलाल ने इशारा किया। उसका संकेत देखकर कर्मियों ने उसके क्लाइंट का फोटो पहले खींचा। बाकी वहां खड़े दूसरे लोग मन मसोस कर देखते रहे। ड्राइविंग लाइसेंस का फार्म लेने से लेकर लाइसेंस हाथ में आने तक आठ काउंटरों पर कतार लगानी पड़ती हैं। एक दिन में इतनी औपचारिकता पूरी करना आम आदमी के बस की बात नहीं। दफ्तर में कागजी खानापूर्ति कैसे पूरी करनी है, यह बताने वाला भी कोई नहीं है। ऐसी दशा में लाइसेंस बनवाने के लिए आने वाले युवक-युवतियां कार्यालय में पहुंचने के बाद दुविधा में फंस जाते हैं।
उसी कक्ष के बाजू बायोमेट्रिक सिस्टम वाला कमरा था। वहां फोटो डिजिटल खिंचवाने और हस्ताक्षर करने वालों की भीड़ थी। लेकिन दलालों के मार्फत लाइसेंस बनवा रहे लोगों के लिए लाइन सिस्टम नहीं था। दलाल बायोमेट्रिक सिस्टम वाले कक्ष के बाहर खड़े थे। उनके हाथों में अर्जियों का पुलिंदा था। उनके इर्दगिर्द लाइसेंस बनवाने वाले थे। अर्जियों के पुलिंदे से दलाल ने वहां खड़े अपने क्लाइंट के नाम का आवेदन छांटा और भीतर चला गया। उसे देखकर भीतर मौजूद कर्मियों तत्काल हरकत में आ गए। दलाल ने इशारा किया। उसका संकेत देखकर कर्मियों ने उसके क्लाइंट का फोटो पहले खींचा। बाकी वहां खड़े दूसरे लोग मन मसोस कर देखते रहे। ड्राइविंग लाइसेंस का फार्म लेने से लेकर लाइसेंस हाथ में आने तक आठ काउंटरों पर कतार लगानी पड़ती हैं। एक दिन में इतनी औपचारिकता पूरी करना आम आदमी के बस की बात नहीं। दफ्तर में कागजी खानापूर्ति कैसे पूरी करनी है, यह बताने वाला भी कोई नहीं है। ऐसी दशा में लाइसेंस बनवाने के लिए आने वाले युवक-युवतियां कार्यालय में पहुंचने के बाद दुविधा में फंस जाते हैं।