डॉ. शशि तिवारी
‘‘विनाश काले विपरीत बुद्धि’’ यूं तो
राजा रावण त्रिकालदर्शी था, पंडित था, विद्वान था लेकिन, सीता हरण के पश्चात् उसकी पत्नि मंदोदरी ने उसे इस कृत्य के लिए काफी समझाया। बताया राम असाधारण मानव रूप में भगवान है लेकिन, रावण के अहंकार के पर्दे के आगे उसे कुछ भी दिखाई नहीं दिया, कुछ भी सुनाई नही दिया। यहाँ तक कि भाई विभीषण की याचना भी। अंत सभी के सामने पूरे खानदान को मिटाने के रूप में आया। दूसरा जब पेड़ काफी बड़ा एवं पुराना हो जाता है तो स्वयं के वजन से ही गिर नष्ट हो जाता है।
यहाँ दोनों लघु कहानी कही न कही परोक्ष रूप से कांग्रेस पर फिट बैठती नजर आ रही है और यह कई जगहों पर स्पष्ट दृष्टिगोचर भी हुआ है। फिर बात चाहे बाबा रामदेव के आंदोलन में बर्बरतापूर्वक लाठी भांजने के सिलसिले की हो जिसमें बाद में एक महिला राजबाला की मृत्यु भी हो गई थी। वही ‘‘जनलोकपाल’’ को ले अन्ना का देशव्यापी आंदोलन कांग्रेस की आँखें खोलने के लिये, समझ के लिए काफी था। ये दोनों ही आंदोलन जनभावनाओं की सुनामी का पूर्व संकेत थी। लेकिन पद और अहंकार में मदमस्त कांग्रेस के तथाकथित बयानवीरों ने उल्टा चोर कोतवाल को डाटें की तर्ज पर अन्ना की ही छीछालेदर करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। ये अलग बात है कि अन्ना का तो वो कुछ बिगाड़
नहीं पाए लेकिन, परोक्ष रूप से अपनी ही पार्टी की जरूर दुर्दशा
कर बैठे, जो आज तक जारी है। ऐसी स्थिति सामान्यतः तभी उठ खड़ी होती है जब व्यक्ति पार्टी से खुद को बड़ा, खुद से पार्टी को समझने की भूल करने लगता है।
यहाँ कुछ यक्ष प्रश्न स्वतः उठ खड़े होते है, अहंकार क्यों और किसके लिए? जब कांग्रेस की नियत मंे खोट ही नही है तो जनलोकपाल में देरी क्यों? केन्द्र में केवल कांग्रेस ही नही साथ में अन्य पार्टियां भी है लेकिन बदनामी का टीका केवल कांग्रेस के ही माथे पर लग रहा है क्यों? क्या पार्टी विनाश का इंतजार कर रही है? अन्य राजनीतिक पार्टियों को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर मुद्दा दे खुद की कब्र क्यों खुदवा रही है?
ऐसा सब कुछ हाल ही में 13 अक्टूबर को हिसार (हरियाणा) में हुए मतदान को लेकर आने वाले संकेतों से अब तो कांग्रेस को सबक लेना ही होगा? इस चुनाव में अन्ना टीम ने खुलकर कांग्रेस की खिलाफत की थी जिसके परिणामस्वरूप कुलदीप विश्नोई को अपने
पिता भजनलाल के चुनाव 2009 की तुलना में एक लाख से ज्यादा वोट मिले और कांग्रेस के उम्मीदवार जयप्रकाश अपनी जमानत भी नही बचा पाए।
क्या वाकई में कांग्रेस की ये शर्मनाक हार क्या जन लोकपाल विधेयक पास न करने का दुष्परिणाम का टेªलर है? क्या यह एक जन लोकपाल के लिए जनमत संग्रह है? क्या हिसार में अन्ना टीम ने हिसाब करने का जवाब दिया है? हकीकत में यह हाल केवल हिसार का ही नहीं है बल्कि महाराष्ट्र में खड्गवासला में भी खोई सीट का है। ऊपर से हरियाणा में कांग्रेस में चुनाव प्रभारी बी.के. हरिप्रसाद कहते है कि अन्ना का प्रभाव बिलकुल नहीं है, पिछली बार भी जीत की लहर में हम हिसार सीट हारे थे। अब तीसरे स्थान पर है, उन्होंने यह शर्मनाक बयान देते समय यह तनिक भी नहीं सोचा कि जनता को आखिर क्या सन्देश देना चाहते है कि हिसार में कांग्रेस आदतन हारने वाली पार्टी है? वही कांग्रेस के ही वरिष्ठ मंत्री प्रणव मुखर्जी हिसार की
हार को निराशाजनक तो मान रहे है लेकिन साथ में उनके भी अंदर दबी अहंकार की भावना जिसे वे दबा नहीं पाए कि इसमें
अन्ना की अपील का कोई भी लेना-देना नहीं है, पार्टी इस पर विचार करेगी?
वही भाजपा के शाहनवाज भी बिना मौका गंवाए इसे केन्द्र के कुशासन और भ्रष्टाचार की नीति के खिलाफ जीत बता रहे है। उधर अन्ना फिर हुंकार भर कह रहे है कि कांग्रेस हिसार की हार से सबक ले और जनलोकपाल बिल को शीतकालीन सत्र में ही पास करवाए नहीं तो मैं आगे आने वाले पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में स्वयं जा कांग्रेस के खिलाफ प्रचार करूंगा।
यहाँ कांग्रेस के लिए घड़ी रणनीति, कूटनीति वैचारिक संकट की है। ‘‘बीती ताहे विसार दे, आगे की सुधि ले’’ की तर्ज पर मान, अपमान, अभिमान, अहंकार को छोड़ वास्तविक धरातल
पर कांग्रेस को सोचना होगा। यदि ईमानदारी से भ्रष्टाचार को कांग्रेस हराना ही चाहती है, अन्य पार्टियों को इस मुद्दे पर राजनीति न करने देना चाहती है तो शीतकालीन सत्र का ही इंतजार क्यों? विशेष सत्र बुला तत्काल जनलोकपाल को और कड़े प्रावधानों के साथ बिना किसी राजनीतिक बिरादरी के नफा नुकसान के शीघ्र पास कराना ही सर्वोच्च प्राथमिकता में होना चाहिए। पार्टी में लुटने, बिखरने, छिन्न-भिन्न होने तक
का इंतजार कहां तक उचित होगा? कहते है कि साख बनाने में पूरी उम्र बीत जाती है लेकिन इसे गिराने में एक क्षण, एक पल, एक मिनट ही पर्याप्त होता है।
यहाँ ‘‘समय’’ की भूमिका इसलिए और भी महत्वपूर्ण हो गई है क्योंकि अब सभी की निगाहे उत्तर प्रदेश के दंगल पर टिकी है जहाँ युवा तुर्क राहुल गांधी और राजनीति के कुशल कूटनीतिज्ञ चाणक्य दिग्विजय सिंह दोनों का राजनीतिक भविष्य दांव
पर लगेगा। आगे लिखा जाने वाला इतिहास कभी भी इन छोटी-छोटी भूलों और पाले गए अहंकारों को कभी माफ नहीं करेगा।
(लेखिका सूचना मंत्र पत्रिका की संपादक हैं)
मो. 9425677352