ब्यूरो प्रमुख // संतोष प्रजापति (बैतूल// टाइम्स ऑफ क्राइम)
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बैतूल . जब दीवाली पर पत्रकारों को मिलेगी खैरात का सनसनी खेज समाचार छपा तब कुछ पत्रकारों ने अपना राग रोना जिसे विधवा अलाप भी कहा जाता रहा है वह किया। कुछ को पत्रकारों की लिस्ट में अपना नाम न होने का तथा कुछ को नाम होने का दर्द था। हमारी खबर इतनी सटीक रही कि अधिकारियों के कार्यालयों एवं बंगलो पर खैरात मांगने वाले पत्रकार मंडराते नहीं दिखे।
कुछ लोगों ने मोबाइल पर ही अपनी डिमांड रखी लेकिन जब पता चला कि कुछ अधिकारी मोबाइल टेप कर रहे है तो लोग अपने मांगने का अंदाज बदल कर गोल-मोल कर मांग करने लगे। जिला आबकारी अधिकारी अपने पास आने वालो एवं मोबाइल करने वालो को आबकारी ठेकेदार तक पहुंचाते रहे लेकिन इस बीच जबरदस्त हंगामा हो गया जब एक कुछ पत्रकारों को अपनी कथित औकात के मुताबिक रूपैया नहीं मिला तो उन्होने आसमान सर पर उठा लिया।
जिला आबकारी अधिकारी एवं शराब ठेकेदार की बात माने तो पता चला है कि मिठाई का पैकेट एवं लिफाफे में कम रूपए को लेकर कुछ लोगो द्वारा कुछ देर बार मिठाई का पैकेट पर रूपैया वापस कर आबकारी अधिकारी रूपैया बढ़ाने या दारू की बोतले दिलवाने की बात पर जोर देते रहे है वहीं ठेकेदार ने स्पष्ट कर दिया कि वह अपनी नीति एवं रीति के अनुसार ही रूपैया देगा। रूपए के लेन - देन को लेकर ठेकेदार एवं कुछ तथाकथित पत्रकारों के बीच इतनी ठन गई कि एक वरिष्ठ पत्रकार को आबकारी अधिकारी के समक्ष उपस्थित होकर बीच बचाव करना पड़ा। अधिकारी और ठेकेदार इस बात पर अड़े थे कि जब लिफाफा वापस करना ही था तो फिर लिफाफा लेने ही क्यों गए।
अब बैतूल के उन पत्रकारों को जो कि पत्रकारों की लिस्ट छपने के बाद बांझ होने के बाद प्रसव पीड़ा का दर्द बताते फिर रहे थे उन्हे सोचना चाहिए कि आज बैतूल की पत्रकारिता लिफाफा लेने से बदनाम हुई है या फिर लेकर उसमें अपेक्षा से कम रूपए होने पर वापस कर देने से हुई है...? जब हमने लिखा था तो किसी पत्रकार के नाम के आगे या बाद में न तो हरामी लिखा था और न यह लिखा था कि ए व्यक्ति लिफाफा या खैरात लेने वाला है या नहीं है..? अब चूंकि शराब ठेकेदार रंजीत शिवहरे के मामले को लेकर उन प्रसव पीड़ा का दर्द बयां करने वाले बांझ पत्रकारों को सोचना चाहिए कि अब क्या करे क्योकि इन्ही लोगो के चलते पत्रकारिता बदनाम हो गई है।