Written by रवि यादव
मजदूर दिवस है... लेकिन कल अखबार पढ़ते वक्त मेरी नजर एकाएक उस विज्ञापन पर पड़ी जिसे दिल्ली सरकार ने श्रमिक दिवस के उपलक्ष्य में छपवाया था। जिसमें दिल्ली की मासिक न्यूनतम मजदूरी दरें लिखी हुई थीं जो इस प्रकार हैं.... अकुशल -7020, अर्द्ध कुशल-7748, कुशल -8528. इस प्रकार एक अकुशल मजदूर भी महीने में 7000 से ज्यादा रुपए कमा लेता है। दूसरी ओर पढ़े लिखे...बड़े बड़े इंस्टीट्यूटों से पास आउट छात्र जो लाखों खर्च कर मास कम्युनिकेशन का कोर्स करके आते हैं....वो इतना नहीं कमा पाते। आज मीडिया की हालत इतनी दयनीय है कि नए पत्रकारों को देने के लिए उनके पास एक मजदूर जितना वेतन भी नहीं है। हालात इतने बदतर हैं कि पत्रकारों से अगर उनकी कोई सैलेरी पूछ ले तो मान लो जैसे उसकी इज्जत पे हाथ डाल दिया हो। तमाम चैनलों में पत्रकारों की हालत दयनीय है। पहले नौकरी का झांसा देकर इंटर्नशिप के नाम पर महीनों काम करवाते हैं। नौकरी मांगो तो बोलते हैं कि हमने आपसे कौन सा वादा किया था। आप तो अपनी स्वेच्छा से इंटर्नशिप कर रहे थे। नौकरी देना मेरे हाथ में नहीं।
बेचारा उभरता हुआ पत्रकार करे तो क्या करे। आधी से ज्यादा साल तो एक ही चैनल में इंटर्नशिप में लगा दी। उसके बाद भी नौकरी नहीं मिली करे तो क्या करे। कहीं का नहीं रहा बेचारा। किसी और चैनल या अखबार में इंटर्न करता है तो वहां भी अगर ऐसा ही हुआ तो साल दो साल तो इंटर्न ही करता रह जाएगा। और हां एक बात और बगैर भाई भतीजावाद के यहां मीडिया में नौकरी भी नहीं मिलती। इतनी घिसाई करने के बाद अगर नौकरी मिलती भी है तो सैलेरी इतनी मिलती है कि भई उभरता हुआ पत्रकार बस घर से आफिस और आफिस से घर आने जाने में ही खर्च कर देता है। यकीन नहीं होता तो जरा चैनलों की न्यूनतम सैलेरी के बारे में पता कीजिए। जहां तक मेरे संज्ञान में है। कई ऐसे तमाम चैनल हैं जो 4000 रुपए में काम करवाते हैं। और काम, काम किसी श्रमिक से कम नहीं है। बड़े चैनल अपवाद हैं जहां शुरुआत में ठीक ठाक सैलेरी मिल जाती है। लेकिन वहां नए नवेलों को नौकरी नहीं मिलती।
रवि यादव
पत्रकार
बेचारा उभरता हुआ पत्रकार करे तो क्या करे। आधी से ज्यादा साल तो एक ही चैनल में इंटर्नशिप में लगा दी। उसके बाद भी नौकरी नहीं मिली करे तो क्या करे। कहीं का नहीं रहा बेचारा। किसी और चैनल या अखबार में इंटर्न करता है तो वहां भी अगर ऐसा ही हुआ तो साल दो साल तो इंटर्न ही करता रह जाएगा। और हां एक बात और बगैर भाई भतीजावाद के यहां मीडिया में नौकरी भी नहीं मिलती। इतनी घिसाई करने के बाद अगर नौकरी मिलती भी है तो सैलेरी इतनी मिलती है कि भई उभरता हुआ पत्रकार बस घर से आफिस और आफिस से घर आने जाने में ही खर्च कर देता है। यकीन नहीं होता तो जरा चैनलों की न्यूनतम सैलेरी के बारे में पता कीजिए। जहां तक मेरे संज्ञान में है। कई ऐसे तमाम चैनल हैं जो 4000 रुपए में काम करवाते हैं। और काम, काम किसी श्रमिक से कम नहीं है। बड़े चैनल अपवाद हैं जहां शुरुआत में ठीक ठाक सैलेरी मिल जाती है। लेकिन वहां नए नवेलों को नौकरी नहीं मिलती।
रवि यादव
पत्रकार