नई दिल्ली। ऐसा ही एक घोटाला मेरठ में तबके कमिश्नर
भुवनेश कुमार और मेरठ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष रहे जेसी आदर्श ने किया
था। एक तरफ तो प्राधिकरण की आवासीय योजनाओं के लिए जरूरी उस 225 एकड़ जमीन
को बिल्डरों के लिए मुक्त कर दिया गया जिसके अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी
होने वाली थी। दूसरी तरफ शताब्दी नगर योजना के तहत नई टाऊनशिप बनाने के नाम
पर पांच गांवों के किसानों की छह सौ हेक्टेयर जमीन के अधिग्रहण का
प्रस्ताव पास कर दिया। जबकि इसी शताब्दी नगर योजना में 25 साल पहले जिस
जमीन का अधिग्रहण हुआ था अभी तक उसी का मुआवजा किसानों को नहीं दिया गया।
इस मामले में सरकार बदलते ही किसानों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा
खटखटा दिया। न्यायमूर्ति आरके अग्रवाल और न्यायमूर्ति एम अहमद की खंडपीठ ने
राज्य सरकार और प्राधिकरण को नोटिस जारी कर इस मामले में जवाब मांगा है।
हाईकोर्ट में याचिका सुप्रीम कोर्ट के वकील मदन शर्मा ने दायर की है।
उन्होंने इस घोटाले की उच्च स्तरीय जांच कराने की हाईकोर्ट से फरियाद की
है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि मायावती के चहेते अफसरों ने मोटी घूस
लेकर पल्लवपुरम योजना में सवा दो सौ एकड़ जमीन को अधिग्रहण से मुक्त कर
दिया। साथ ही अवैध तरीके से प्राधिकरण के बोर्ड की बैठक में पूरक एजंडा
दर्शाते हुए पांच गांवों के किसानों की छह सौ एकड़ जमीन के जबरन अधिग्रहण के
प्रस्ताव को पास कर दिया। याचिका में आरोप लगाया है कि यह प्रस्ताव
भ्रष्टाचार की मंशा से तथ्यों के छिपा कर पारित किया गया।
जिस समय भट्ठा पारसौल और जेवर-दनकौर में जमीन के जबरन अधिग्रहण के
मायावती सरकार के फैसले के खिलाफ वहां के किसान आंदोलन कर रहे थे उसी दौरान
मेरठ में भी रिठानी, नूर नगर, नगला शेरखां, जैनपुर व मोहम्मदपुर गूम्मी
पांचों गांवों के किसानों ने राष्ट्रीय राजमार्ग पर प्रस्तावित
अधिग्रहण के खिलाफ धरना दिया था। उनका कहना था कि 25 साल पहले प्राधिकरण ने अपनी शताब्दी नगर योजना के लिए उनकी जो जमीन ली थी उसी का अभी तक पूरा मुआवजा नहीं चुकाया गया है। जिनकी जमीन ली जा चुकी है उन्हें अतिरिक्त मुआवजे के तौर पर प्रतिकर का भुगतान नहीं किया है और सात सौ एकड़ पर अभी कब्जा भी नहीं लिया है। ऐसे में नई टाऊनशिप के नाम पर किसानों की जमीन जबरन छीनने की कोशिश बिल्डरों को फायदा पहुंचाने की गरज से की जा रही है। किसानों के तेवर को देख सरकार ने इस प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डाल दिया था।
अधिग्रहण के खिलाफ धरना दिया था। उनका कहना था कि 25 साल पहले प्राधिकरण ने अपनी शताब्दी नगर योजना के लिए उनकी जो जमीन ली थी उसी का अभी तक पूरा मुआवजा नहीं चुकाया गया है। जिनकी जमीन ली जा चुकी है उन्हें अतिरिक्त मुआवजे के तौर पर प्रतिकर का भुगतान नहीं किया है और सात सौ एकड़ पर अभी कब्जा भी नहीं लिया है। ऐसे में नई टाऊनशिप के नाम पर किसानों की जमीन जबरन छीनने की कोशिश बिल्डरों को फायदा पहुंचाने की गरज से की जा रही है। किसानों के तेवर को देख सरकार ने इस प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डाल दिया था।
किसानों को मायावती सरकार के हटने पर राहत महसूस हुई थी। लेकिन
प्राधिकरण में मायावती सरकार के वक्त से ही जमे अफसरों ने उसी गड़े मुर्दे
को सरकार बदलते ही फिर उभार दिया। यह बात अलग है कि घोटाला जब नए कमिश्नर
मृत्युंजय कुमार नारायण की जानकारी में आया तो उन्होंने 25 अप्रैल की मेरठ
विकास प्राधिकरण बोर्ड की बैठक के एजंडे में शामिल प्रस्ताव को टलवा दिया।
हाईकोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि प्राधिकरण के तबके
उपाध्यक्ष जेसी आदर्श पर मुख्यमंत्री मायावती के भाई आनंद कुमार का वरदहस्त
था। आनंद का ही डंका नोएडा, ग्रेटर नोएडा और गाजियाबाद विकास प्राधिकरण
में भी बज रहा था। पल्लवपुरम की जिस जमीन को बिल्डरों ने खरीद लिया था,
याचिका में आरोप लगाया गया है कि उसे गलत तथ्यों के आधार पर अधिग्रहण से
अचानक मुक्त कर दिया गया। जबकि पल्लवपुरम फेस-3 योजना विकसित करने के लिए
जमीन के अधिग्रहण का यह प्रस्ताव 17 नवंबर, 2009 की बोर्ड बैठक में पास हो
चुका था। ज्यादा दर से मुआवजा देने का झूठा बहाना बनाया गया। इसके उलट
शताब्दी नगर की नई टाऊनशिप के लिए पांच गांवों की जिस जमीन के अधिग्रहण का
नया प्रस्ताव पास किया गया, उसका मुआवजा सस्ते में निपट जाने की कहानी गढ़ी
गई।