(डा. शशि तिवारी)
संविधान निर्माता बाबा भीमराव अम्बेडकर ने सपने में भी कभी नहीं सोचा होगा जिस दलित पिछडे, दबे-कुचलों
के लिए जीवन भर संघर्ष कर संविधान में विशेष प्रावधानों का उपयोग कर
इन्हें मुख्यधारा में लाने का जो संकल्प किया था आज उसी का दुरूपयोग उन्हीं
के अनुयायी अम्बेडकर के नाम पर
अपनी-अपनी निहितार्थों की रोटियां सेंकने में मशगूल होंगे। आज आरक्षण प्राप्त एक अभिजात्य वर्ग सांसद, मंत्री, विधायक आई.ए.एस., प्रोफेसर, इंजीनियर, डाॅक्टर
एवं अन्य प्रशासनिक अधिकारी तीन पीढियों से आरक्षण पर अपना एकाधिकार जमाए
बैठा है। अब ये वास्तविकों का हक मार उन्हें मुख्य धारा में आने से रोकने
के लिए उच्च वर्ग की तरह व्यवहार कर रहा है। उसे डर है कि कही ये आरक्षण का
मीठा फल उससे छिन न जायें?
वैसे देखा जाए भारत कई वर्षों तक गुलाम रहा इसलिए यहां के लोग प्रेम की भाषा कम और भय की भाषा ज्यादा समझते है? तथाकथित नेताओं ने स्वतंत्रता के बाद इन 65 वर्षों में विभिन्न जाति समुदायों को जोड़ने का कम तोड़ने का ही ज्यादा काम किया है। इन्हें दंडित कौन करेगा? समतामूलक समाज की जगह विषमतामूलक समाज नित नई समस्याओं को राष्ट्र के सामने खडा कर रहा है जिससे न केवल देश की प्रगति रूक रही है बल्कि देश, जाति, धर्म के ही चक्रव्यूह में बुरी तरह उलझ सा गया है। फिर बात चाहे अनुसूचित जाति/जनजाति/पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक, बहुसंख्यक के नाम पर केवल सवर्ण जाति धर्म की ही क्यों न हो?
वैसे देखा जाए भारत कई वर्षों तक गुलाम रहा इसलिए यहां के लोग प्रेम की भाषा कम और भय की भाषा ज्यादा समझते है? तथाकथित नेताओं ने स्वतंत्रता के बाद इन 65 वर्षों में विभिन्न जाति समुदायों को जोड़ने का कम तोड़ने का ही ज्यादा काम किया है। इन्हें दंडित कौन करेगा? समतामूलक समाज की जगह विषमतामूलक समाज नित नई समस्याओं को राष्ट्र के सामने खडा कर रहा है जिससे न केवल देश की प्रगति रूक रही है बल्कि देश, जाति, धर्म के ही चक्रव्यूह में बुरी तरह उलझ सा गया है। फिर बात चाहे अनुसूचित जाति/जनजाति/पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक, बहुसंख्यक के नाम पर केवल सवर्ण जाति धर्म की ही क्यों न हो?
आरक्षण का यह जिन्न हाल ही में आया निर्णय सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस के. एस. राधाकृष्णन और दीपक मिश्रा की खण्डपीठ ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति को पदोन्नति में आरक्षण न देने के फैसले को बसपा सुप्रीमों बहिन मायावती ने अनुचित बताया। न्यायालय के अनुसार पदोन्नति में आरक्षण तभी दिया जा सकता है जब इसकी जरूरत को जायज ठहराने के लिए समुचित आंकड़े और प्रमाण हो।
सुप्रीम अदालत के इस फैसले से आरक्षण के औचित्य पर एक नई बहस छिड गई है। मसलन आरक्षण क्यों? किसे? कैसे? कब तक? भारत का संविधान क्या कहता है? सर्वोच्च न्यायालय क्या करता है? आरक्षण प्राप्त और वंचित कितने? आंकड़ो पर कार्य करने से अब तक क्यों बचते रहे? आरक्षण के अलावा अन्य विकल्प क्या है? राजनीतिक पार्टियों, जाति के ठेकेदार यदि अनुचित संविधान विरूद्ध बात कर जनता को भड़काता है तो कौन जवाबदेह होगा? आदि-आदि हाल ही में न्यायालय ने एक नेता को भडकाऊ भाषण देने पर 3 वर्ष की सजा सुनाई। गरीब दलितो के नाम पर धनाढ्य दलित कब तक महत्वपूर्ण पदों पर कब्जा बनाए रखेगा? जवाबदेह कौन? आरक्षण की वकालत करने वाले ठेकेदार इस मुद्दे पर मौन क्यों?
जब तक इन
कड़वे मुद्दों पर खुले एवं स्वस्थ्य मन से सभी के बीच चर्चा नहीं होगी तब
तक आरक्षण का राग अलापना कोरी बेमानी होगा। अब तो नित नई जातियां आरक्षण की
श्रेणी में खुद को लाने के लिए उग्र आंदोलन भी कर रही है फिर बात चाहे जाट
आंदोलन की ही क्यों न हो? यहां मुझे बाबा साहब अम्बेडकर पुनः याद आ रहे हैं। 8 अगस्त 1930 को शोषित वर्ग के सम्मेलन में अम्बेडकर ने कहा था ‘‘हमें अपना रास्ता स्वयं बनाना होगा और स्वयं राजनीतिक शक्ति शोषितों की समस्या का निवारण नहीं हो सकती, उनका उद्धार समाज में उनका उचित स्थान पाने में निहित हेैं।
उनको अपना बुरा रहने का, बुरा तरीका बदलना होगा, उनको शिक्षित होना चाहिए।’’ एक
बडी आवश्यकता उनकी हीनता की भावना को झकझौरने और उनके अंदर उस दैवीय
असंतोष की स्थापना करने की है जो सभी ऊंचाईयों की सौगात हैं। समता मूलक
समाज कैसे बनेगा? विशेष के नाम पर भेद कब तक?
अब तो संविधान का अनुच्छेद 14 अनुच्छेद 16 भावना का विपरीत जान पडता है जहां अनुच्छेद 14 विधि
के समक्ष समता राज्य भारत के राज्य क्षेत्र में किसी व्यक्ति को निधि के
समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करे गये अर्थात्
समानता की बात करता है। वही अनुच्छेद 16 (1) (2) (3) भी लोक नियोजन के विषय में अवसर समता की बात करता है तो 16 (4) राज्य
को पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में जिनका प्रतिनिधित्व
राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है, नियुक्तियों या
पदों के आरक्षण के लिए उपबंध करने से निर्धारित नहीं करेगी। 16 (4 क) राज्य
के अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के पक्ष में जिनका
प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है।
राज्य के अधीन सेवाओं में सी किसी वर्ग या वर्गों के पदों पर अनुवर्ती
वरिष्ठता सहित
प्रोन्नति के मामलों में आरक्षण के लिए उपबंध करने से निर्धारित नहीं
होगी।
16 (4 ख) इस अनुच्छेद की बात राज्य को किसी एक वर्ष में न भरी गई रिक्तियां जिसे उक्त वर्ष में आरक्षित किया गया था। खण्ड (4 क) में उपबंधों के अंतर्गत आरक्षण के किसी उपबंध के अनुसार उस वर्ष भरे जाने के लिए आरक्षित किया गया था। खण्ड (4क) के अंतर्गत पृथक रिक्तियां मानी जावेगी और अगले वर्ष या वर्षों में भरा जाएगा।
वक्त आ गया है कि संविधान के अनुच्छेद 16(4) से आंकडों के आधार पर न केवल तर्क संगत बनाने, एक बार सुविधा प्राप्त लोगों को इस श्रेणी से बाहर रखने समाज के अंतर्गत व्यक्ति को इस सुविधा का लाभ मिलने के लिये, संशोधन के लिए कानूनविदों, जनप्रतिनिधियों
की उच्च स्तरीय समिति बना आवश्यक संशोधन की पहल करना होगी। तब कहीं जाकर
बाबा अम्बेडकर का समता मूलक समाज का निर्माण का सपना पूरा होगा।