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नई दिल्ली।। अजमल कसाब को सुरक्षित रखने के लिए महाराष्ट्र सरकार अब तक करीब 50 करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है, लेकिन उसको फांसी पर लटकाने का काम सिर्फ 50 रुपए में ही निपट जाएगा। यह हम नहीं कह रहे हैं, देश का कानून कह रहा है। कानून के मुताबिक किसी अपराधी को फांसी देने के लिए सरकारी बजट में इतने ही रुपए खर्च करने का प्रावधान है।
यरवदा जेल के आईजी मीरन बोरवनकर के मुताबिक फांसी देने वाले जल्लाद को किसी भी अपराधी को फांसी देने के लिए अलग से कोई भी रकम नहीं दी जाती है। नियम के मुताबिक जेल सुपरिटेंडेंट एक अपराधी की बॉडी को ले जाने और उसके अंतिम संस्कार के लिए 50 रुपए तक खर्च कर सकता है।
96 देशों सहित भारत में भी मौत की सजा 1894 में बनाए गए कानून के द्वारा ही दी जाती है। फांसी की तारीख मुकर्रर होने के बाद जेल सुपरिटेंडेंट कसाब को इस बात की सूचना दे सकते हैं कि उसके पास 7 दिनों का वक्त है, जिसमें वह लिखित दया याचिका दायर कर सकता है। इसके बाद महाराष्ट्र के गवर्नर और राष्ट्रपति पर यह बात निर्भर करेगी कि आगे क्या हो। अगर दलीलों को ठुकरा दिया जाता है तो यह सजा दी जा सकती है।
अगर एक अपराधी को मौत की सजा सुनाई जाती है तो जेल कर्मचारियों को सबसे पहले फांसी की सजा पाने वाले व्यक्ति की गर्दन और वजन को मापने के लिए कहा जाता है। इसके बाद एक ऐसे कोण की माप की जाती है, जिसके जरिए जब उसे फांसी दी जाए तो उसके बाएं कान के नीचे के जबड़े पर दबाव बने। फांसी की तारीख तय होने के बाद फांसी देने वाली रस्सियों को मापा जाता है और इनके परीक्षण के बाद कुछ और कानूनी प्रक्रियाओं को पूरा किया जाता है। फांसी देने से पहले जेल अधिकारी, अपराधी के वजन की कोई चीज फांसी पर लटकाकर परीक्षण करते हैं। फांसी की सजा जेल सुपरिटेंडेंट द्वारा अनुमति प्राप्त लोग ही देख सकते हैं, जिनकी संख्या एक दर्जन तक हो सकती है। अपराधी के रिश्तेदार भी चाहें तो सजा देख सकते हैं। हालांकि, कसाब के मामले में ऐसा नहीं होने की संभावना है क्योंकि कसाब का कोई रिश्तेदार भारत में नहीं है।