मन्दिर में प्रवेश करने पर मनुवादियों ने दलित जोड़ों को अपमानित कर खदेड़ा!
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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
राजस्थान के अजमेर सम्भाग मुख्यालय से प्रकाशित प्रमुख समाचार-पत्र ‘‘दैनिक नवज्योति’’ 29 अक्टूबर, 2012 के अंक के मुखपृष्ठ पर-‘‘दलित जोड़ों को धक्के मारकर मन्दिर से निकाला’’ शीर्षक से समाचार प्रकाशित हुआ है| जिसमें कहा गया है कि 26 अक्टूबर को अनुसूचित जाति के दो नवविवाहित जोड़े मन्दिर में भगवान के समक्ष नतमस्तक होकर (जिसे स्थानीय आंचलिक बोली में ‘धोक देना’ कहा जाता है) आशीर्वाद लेने गये, लेकिन मन्दिर के पुजारी सहित कुछ मनुवादी लोगों ने और कुछ महिलाओं ने मिलकर न मात्र उन्हें मन्दिर से धक्के देकर बाहर कर दिया, बल्कि उनके साथ जाति सूचक शब्दों का अभद्रतापूर्ण तरीके से उपयोग करते हुए गाली-गलोंच भी की गयी और उन्हें मन्दिर से निकाल दिया गया| इस मामले में खेतड़ीनगर पुलिस ने आठ लोगों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज किया है|
स मामले में जानकारी करने पर सूत्रों का कहना है कि अनुसूचित जाति वर्ग में शामिल‘मेघवाल’जाति के लोगों को स्थानीय सवर्ण जाति के लोग मन्दिरों में प्रवेश नहीं करने देते हैं और जब भी इन लोगों को में से किसी को मन्दिर में स्थापित भगवान का आशीर्वाद लेना होता है तो मन्दिर के सामने रास्ते या जमीन पर खड़े होकर ही भगवान का आशीर्वाद लिया जा सकता है| इस बार दो नव विवाहित जोड़ों ने मन्दिर के अन्दर जाकर न मात्र भगवान का दर्शन करके आशीर्वाद लेने की हिमाकत की, बल्कि मन्दिर में स्थापित भगवान की पूजा-अर्चना करने का भी अपराध भी कर डाला| जो मन्दिर के पुजारी को नागवार गुजरा| जिस पर मन्दिर के पुजारी घीसाराम स्वामी ने कुछ स्थानीय स्त्री-पुरुषों के साथ मिलकर नवविवाहित जोड़ों को मन्दिर से खदेड़ दिया|
सूत्रों का कहना है कि उक्त पुजारी कट्टर हिन्दू है और मनु द्वारा स्थापित ब्राह्मणवादी व्यवस्था को लागू करना अपना पवित्र धार्मिक कर्त्तव्य मानता है| जिसमें स्थानीय उच्च कुलीन हिन्दू साथ देते हैं| सूत्रों का यह भी कहना है कि पकड़े गये लोगों का राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी से निकट सम्बन्ध हैं|
यहॉं विचारणीय गम्भीर प्रश्न यह है कि हो सकता है कि कानून के अनुसार आरोपियों के विरुद्ध मुकदमा चले और कुछ वर्षों के विचारण के बाद कुछ लोगों को सजा भी हो जाये, जिसकी कम ही सम्भावना है, लेकिन असल सवाल ये है कि आखिर मनुवाद द्वारा स्थापित यह कुव्यवस्था कब समाप्त होगी और चरित्र निर्माण की बात करने वाला संघ कब तक मनुवादी लोगों का पोषण तथा संरक्षण करता रहेगा?
जब तक मनुवाद और मनुवाद के पोषक संघ तथा संघ की घृणित और समाज तोड़क दोगली सोच को ध्वस्त नहीं कर दिया जाता है, तब तक अकेला कानून कुछ भी नहीं कर सकता है| क्योंकि राजस्थान और अन्य अनेक राज्यों में आये दिन मनुवादियों द्वारा इस प्रकार की अमानवीय और आदिकालीन सोच की परिचायक घटनाओं को लागातार और बेखोफ अंजाम दिया जाता रहा है| जिसे संघ एवं भाजपा से जुड़े लोगों का खुला राजनैतिक संरक्षण प्राप्त है| जिसका दु:खद परिणाम ये होता है कि आये दिन दलित उत्पीड़न होता रहता है| उत्पीड़न के कुछ मामलों में मुकदमे भी दर्ज होते हैं, लेकिन अधिकतर मामलों में गवाहों को डराया और धमकाया जाता है| डराने और धमकाने से नहीं मानने पर उनके साथ मारपीट की जाती है, उनकी औरतों और लडकियों के साथ अपमानजनक व्यवहार किया जाता है और अन्तत: शोषित तथा भयभीत दलित दर जाते हैं! परिणामस्वरूप अधिकतर मुकदमे निरस्त हो जाते हैं, जिन्हें यह कहकर प्रचारित किया जाता है कि दलित लोगों द्वारा बनावटी मुकदमे दर्ज करवाये जाते हैं|
यदि हम वास्तव में चाहते हैं कि देश में अमन-चैन बना रहे और समाज के सभी दबे-कुचले लोग तरक्की करें और सम्मान के साथ जीवन यापन करें तो हमें मनुवाद को तत्काल प्रतिबन्धित करने और मुनवादी कुकृत्यों को अंजाम देने वालों को देशद्रोही के समान दण्डनीय अपराध घोषित करने की सख्त जरूरत है| जिसके लिये संविधान के भाग तीन के अनुच्छेद 13 (1) एवं 13 (3) में सरकार को सम्पूर्ण अधिकार प्राप्त हैं| यदि सरकार में राजनैतिक इच्छा-शक्ति हो तो इस प्रावधान के तहत मनुवादी दैत्य को नेस्तनाबूद किया जा सकता है| लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है, जिसके पीछे हर पार्टी में मनुवादियों का वर्चस्व होना बड़ा कारण है|