आतंकवाद के नाम पर कैद निर्दोषों का रिहाई मंच
मुख्यमंत्री का दंगा पीडितों के बीच न जाना षर्मनाक- रिहाई मंच
मुलायम और अखिलेष का रवैया मोदी से भी खतरनाक-रिहाई मंच
दम तोड चुकी भाजपा को जीवित करने में लगी है सपा सरकार
लखनऊ. रिहाई मंच ने फैजाबाद में हुये दंगे के हफ्ते भर बाद भी
मुख्यमंत्री अखिलेष यादव के वहां न पहंुचने की कड़ी आलोचना करते हुए इसे
मुख्यमंत्री का गैर जिम्मेदार रवैया बताया है।
रिहाई मंच की तरफ से दंगा प्रभावित इलाकों से दूसरे चरण की छानबीन करने
के बाद जारी विज्ञप्ति में राजीव यादव, लालचंद, आलोक, ऋशि कुमार सिंह ने
कहा कि प्रभावित लोगों के बीच सरकार की तरफ से मुख्यमंत्री या किसी
वरिश्ठ मंत्री के न जाने से अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के प्रति सरकार के
प्रतिबद्धता पर सवालिया निषान लगता है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री और
दूसरे वरिश्ठ मंत्री सिर्फ लखनउ में बैठ कर दोशियों को सजा देने की बात
कर रहे हैं। जबकि स्थानीय स्तर पर डरे सहमे लोगों में विष्वास बहाली की
कोई कोषिष सरकार की तरफ से नहीं की जा रही है। उल्टे भदरसा में हिंसा के
षिकार मुसलमानों पर ही फर्जी मुकदमे लाद कर उन्हें दंगाई साबित करने की
कोषिष की जा रही है जबकि असली दोशियों को खुला छोड दिया गया है।
जांच दल ने दुर्गा पूजा समिति के नेता और सपा से जुडे मनोज जायसवाल की
भूमिका पर सवाल उठाते हुये कहा कि प्रदेष सरकार में दंगाईयों से निपटने
की इच्छा षक्ति नहीं है। क्योंकि खुद समाजवादी पार्टी से जुडे
हिंदुत्ववादी तत्व ही इस दंगे के मुख्य शडयंत्रकारी हैं। इसीलिये
मुख्यमंत्री लखनउ से तो दोशियों को सजा दिलवाने की बात कर रहे हैं लेकिन
फैजाबाद जाने की हिम्मत नहीं दिखा पा रहे हैं क्योंकि वहां दंगा पीडित
मुसलमान उनसे उन्हीं की पार्टी के नेताओं की भूमिका पर सवाल उठाएंगे।
मानवाधिकार नेताओं ने इन दंगों को सपा द्वारा कमजोर पड चुकी भाजपा को
जिंदा करने की कवायद करार देते हुये कहा कि सपा लोकसभा चुनाव से पहले
साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण कराने पर तुली है।
राजीव यादव और लालचंद ने कहा कि सपा सरकार को अमरीश चंद्र षर्मा से
ज्यादा बेहतर पुलिस अधिकारी प्रदेष का डीजीपी बनाने के लिये नहीं मिला।
इससे भी सरकार के मुस्लिम विरोधी रवैये को समझा जा सकता है। क्योंकि
मौजूदा डीजीपी पर 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद कानपुर में
हिंदुत्ववादी तत्वों को प्रश्रय देने का आरोप है। तब वह वहां एसएसपी के
पद पर तैनात थे। जिस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनउ बेंच के तत्कालीन
न्यायमूर्ति आईएस माथुर के नेतृत्व में जांच आयोग गठित किया गया गया था
जिसने 1998 में ही अपनी रिर्पोट सरकार को सौंप दी थी। जांच दल के सदस्यों
ने कहा कि यदि सपा सच मुच धर्मनिरपेक्ष होती तो माथूर आयोग की रिर्पोट को
सार्वजनिक करते हुये ए सी षर्मा के खिलाफ दंडात्मक कार्यवायी करती। लेकिन
उसने उल्टे उन्हें डीजीपी बना दिया और आठ महीने में ही 9 दंगे हो गये।
मानवाधिकार नेताओं ने अखिलेष सरकार को गुजरात की मोदी सरकार से भी ज्यादा
मुस्लिम विरोधी करार देते हुये कहा कि मोदी ने तो 2002 में चुनाव जीतने
के लिये मुसलमानों के खिलाफ हिंसा करवायी थी लेकिन सपा ने तो मुसलमानों
के सहयोग से ही चुनाव जीतने के बावजूद सत्ता में आते ही मुस्लिम विरोधी
दंगे कराना षुरू कर दिया। नेताओं ने कहा कि घोशित तौर पर मुस्लिम विरोधी
भाजपा सरकार के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी देर से ही सही
लेकिन गुजरात के मुस्लिम पीडितों से मिलने गये थे। लेकिन मुसलमानों के
हमदर्द होने का दावा करने वाले मुलायम सिंह या उनके मुख्यमंत्री बेटे ने
फैजाबाद सहित उनकी सरकार में हुये किसी भी दंगे में अब तक पीडितों से
मिलने का कश्ट नहीं उठाया है।
रिहाई मंच के नेताओं ने मुख्यमंत्री अखिलेष यादव के इस बयान को भी गुमराह
करने वाला करार दिया जिसमें उन्होंने दंगों को उनकी सरकार को बदनाम करने
की विरोधियों की साजिष बताया था। मानवाधिकार नेताओं ने कहा कि प्रतापगढ
के अस्थान गांव में 45 मुसलमानों के घर जलाने की घटना के पीछे तो सपा
सरकार में मंत्री रघुराज प्रताप सिंह के समर्थकों और सपा सांसद षैलेंद्र
कुमार की भूमिका सामने आयी है। अगर उनके मंत्री और सांसद ही सरकार को
बदनाम करने के लिये दंगा करा रहे हैं तो यह उनके नेतृत्व क्षमता पर ही
सवाल उठाता है।
जांच दल के सदस्यों ने कहा कि आने वाले दिनों में कई प्रतिश्ठित
मानवाधिकार नेता, पत्रकार और बुद्धिजीवियों का एक दल भी फैजाबाद दंगा
प्रभावित लोगों से मिलने जाएगा और इस पूरे प्रकरण में सपा सरकार की
भूमिका पर जनता के सामने रिपोर्ट लाएगा।
द्वारा जारी-
राजीव यादव
09452800752, 09415254919