Sunday, December 2, 2012

मध्य प्रदेश जनसंपर्क (न्‍यूज..17) जनसंपर्क में मुख्यमंत्री शिवराज की कवायद

जनसंपर्क में मुख्यमंत्री शिवराज की कवायद
मध्यप्रदेश: जनसंपर्क में मुख्यमंत्री शिवराज की कवायद, मध्यप्रदेश-सन्देश में होगा ठेके का सम्पादक
अपनों को उपकृत करने का नया फार्मूला........?
संघ से जुड़े पत्रकार नाराज, विरोध दर्ज कराया.....?
....ये तो कांग्रेस के भी खास, बीजेपी में भी खास....?
राजेश भाटिया
मध्यप्रदेश सन्देश नामक सरकारी पत्रिका को शिवराज सरकार ठेके पर देने का मन बना रही है, इसके लिए सबसे पहले ठेके का सम्पादक सरकार ने तलाश कर उसकी नियुक्ती कर दी है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का भरोसा अपनी व अपनी सरकार की छवि बनाने वाले जनसम्पर्क विभाग व उनके अधिकारीयों से उठ गया है, पिछले दिनों शिवराज ने विभाग की बैठक में साफ-साफ विभाग बंद करने तक की धमकी अधिकारीयों को दे दी थी। अधिकारी हतप्रभ हैं कि क्या करे, क्या न करें? चर्चा का बाजार गर्म है जनसंपर्क विभाग के सूत्र बताते है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने चेतावनी दी थी कि यह बातें बैठक के बाहर नहीं जाना चाहिए, लेकिन बातें धीरे धीरे बाहर आ गई। मुख्यमंत्री अपनी सरकार की पोलें खोलने वाली वेबसाइट व फीचर सेवा पर पहले ही रोक लगा चुके हैं और आगे भी अख़बारों व अन्य मीडिया पर लगाम लगाने के इरादे जाहिर कर चुके हैं।

जनसम्पर्क विभाग के वरिष्ठ अधिकारी बताते है कि अब कुछ खास लोगों को उपकृत करने की मंशा के चलते शिवराज ने विभाग में ठेका प्रथा शुरू करने जा रहे है। और इसकी शुरुआत में सरकार सबसे पहले अपने मुखपत्र ''मध्यप्रदेश सन्देश'' को ही ठेके पर देने जा रही है। गौरतलब है की इस पत्रिका का प्रकाशन बंद कर दिया गया था बाद में पूर्व जनसंपर्क आयुक्त अरुणा शर्मा की पहल पर इसका पुनः प्रकाशन प्राम्भ किया गया पूर्व में जनसंपर्क विभाग के अपर संचालक स्तर के अधिकारी की देखरेख में इस पत्रिका का संपादन होता आया है किन्तु कुछ समय से मुख्यमंत्री शिवराज उसके ले आउट, लेखन सामग्री को लेकर खुश नहीं थे।

सूत्र बताते है इसके लिए सबसे पहले शिवराज सिंह ने अपने मातहतों से ठेके के सम्पादक की तलाश शुरू करवाई। खबर है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने गिरिजाशंकर नामक पत्रकार व अपने निजी मीडिया सलाहकार को सन्देश का सलाहकार सम्पादक बनाने के आदेश दिए व ५०,००० रुपये महीना और अन्य भत्ते के साथ उनकी नियुक्ति ठेके पर मध्यप्रदेश माध्यम से की है।

सूत्र बताते हैं कि बाद में जनसम्पर्क की सहयोगी संस्था माध्यम में राघवेन्द्र सिंह, दीपक तिवारी जैसे पत्रकारों को मीडिया विशेषज्ञ पद से उपकृत करने की योजना है अब विभाग के अफसरान इन नियुक्तियों को लेकर असमंजस में हैं। समस्त अधिकारीयों में गुपचुप चर्चा जारी है कि क्या जनसंपर्क, माध्यम में योग्य अधिकारीयों की कमी है? ठेके पर नियुक्ति की बात अधिकारीयों के गले नहीं उतर रही, किन्तु करें भी तो क्या करें,मुख्यमंत्री के आगे सब विवश हैं ?

पत्रकारों ने मोर्चा खोला :- गिरिजाशंकर को लेकर संघ से जुड़े कई पत्रकारों ने मोर्चा खोल दिया है। विभिन्न पत्रकारों ने अलग अलग रूप से मुख्यमंत्री को अपनी भावना से अवगत कराया है और विरोध दर्ज कराया है सूत्रों की माने तो संघ से जुड़े पत्रकार, पूर्व में इंदौर स्वदेश के संपादक व वर्त्तमान में चरवैती के संपादक जयकिशन गौड़ इस दौड में सबसे आगे थे और किन्तु शिवराज सरकार ने उन्हें लालबत्ती का वादा कर मझदार में छोड दिया वहीँ जबलपुर के वरिष्ठ पत्रकार भगवती धर वाजपेयी भी इस दौड में थे किन्तु नियुक्ति का निर्णय शिवराज द्वारा पूर्व में ही लिया जा चुका था संघ विचारधारा के पत्रकारों का मानना है कि "कांग्रेस शासनकाल में मलाई काटने वाले पत्रकार आज भी सरकार के करीब हैं और संघ की विचाधारा से जुड़े पत्रकार आज भी अपनी सही जगह नहीं पा सके हैं"। वहीँ संघ इस पूरे मामले पर नजर रखे हुए है ।

कौन हैं गिरिजा शंकर :- मूलतः छतीसगढ़ के रहने वाले गिरिजाशंकर पूर्व में कांग्रेस शासन काल में दिग्विजय सिंह व अजित जोगी व छतीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह के भी मीडिया सलाहकार रह चुके है। वे दिग्विजय सिंह के दलित एजेंडा को भी अमली जामा पहना चुके हैं संघ की विचाधारा से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार सूत्रों की माने तो उनका कहना है की "मध्यप्रदेश के जनसंपर्क विभाग से गिरिजाशंकर का समस्त परिवार उपकृत है और मुख्यमंत्री ने वामपंथी विचारधारा के व्यक्ति को सलाहकार संपादक बना अपने लिए एक नयी मुसीबत मोल ले ली है। मुख्यमंत्री का ये मीडिया प्रेम समझ से परे है।"

शिवराज के लिए नित नयी परेशानियां सामने आने के चलते दबी जबान में मंत्रिमंडल सहयोगी भी "मतिभ्रष्ट" शब्द का प्रयोग कर इस मामले पर अपनी कन्नी काट रहे हैं।

वहीँ जनसम्पर्क विभाग से जुड़े लोगों का कहना है-इससे पहले एक बार दिल्ली से आलोक तोमर को पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर के जमाने में मध्यप्रदेश सन्देश का सलाहकार सम्पादक बनाया गया था, लेकिन वह प्रयोग असफल रहा था, अधिकारी मानते हैं ऐसा ही हश्र इस प्रयोग का भी होगा। अब देखना है कि मुख्यमंत्री आगे किसे उपकृत करते हैं? मुख्यमंत्री को भरोसा है कि नयी नियुक्तियों के बाद सरकार के प्रतिदिन काले होते चेहरे में कुछ निखार लाया जा सकेगा ।(दखल)

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