नई दिल्ली (लिमटी खरे) घपले, घोटाले, भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी कांग्रेस के खिलाफ माहौल बनाने में विपक्षी पार्टियां विशेषकर भाजपा पूरी तरह असफल ही रही है। विपक्षी दलों के मौखटे भी अब उतरने लगे हैं। संसद या विधानसभाओं में सत्ताधारी दलों के खिलाफ आवाज उठाने में सियासी पार्टियां पूरी तरह असफल साबित हुई हैं। कहा जाता है कि विपक्ष अब सत्ताधारी दल के पैरोल (मासिक वेतन) पर रहकर उसका छद्म विरोध करता है। इसी के चलते जब समाजसेवी अण्णा हजारे ने आवाज उठाई तब सियासी दल घबरा गए। अण्णा से टूटकर अलग हुए अरविंद केजरीवाल की पार्टी बनाने की घोषणा से सियासी दलों की पेशानी पर पसीने की बूंदे छलकने लगी हैं। केजरीवाल ने आम आदमी की पार्टी का एलान किया है। कांग्रेस को इसमें आपत्ति है, कांग्रेस का कहना है कि आम आदमी का नारा कांग्रेस का है। सवाल यह है कि आम आदमी का नारा कांग्रेस का हो सकता है पर आम आदमी की परवाह कर रही है क्या कांग्रेस?
हल्दिया के चलते छूटी जोशी की रेल!
भूतल परिवहन मंत्री सी.पी.जोशी वैसे तो राहुल गांधी की खासे दुलारे माने जाते हैं। त्रणमूल कांग्रेस के सरकार से बाहर होने के उपरांत रेल मंत्रालय का प्रभार सी.पी.जोशी को दे दिया गया। सी.पी.जोशी के पास भूतल परिवहन मंत्रालय जैसे अहम विभाग का प्रभार भी था। जोशी की रेल कैसे छूटी इस बारे में पतासाजी जारी है। प्रधानमंत्री कार्यालय के सूत्रों ने बताया कि बतौर भूतल परिवहन मंत्री जोशी का कार्यकाल संतोषजनक नहीं है। उपर से रेल मंत्रालय का प्रभार मिलने के उपरांत जोशी ने रेल मंत्रालय का प्रभार अघोषित तौर पर योजना आयोग के उपध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया के एक भरोसेमंद गजेंद्र हल्दिया के हवाले कर दिया था। गजेंद्र हल्दिया प्रोटोकाल को दरकिनार कर रेल्वे की बैठकों में बजाए बोर्ड अध्यक्षों के पास बैठने के सीधे जाकर सी.पी.जोशी के बाजू में बैठ जाया करते थे। फिर क्या था, इस बात की सूचना बरास्ता अहमद पटेल पहुंच गई कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी के पास और रेल्वे प्लेटफार्म से जोशी की रेल छूट गई।बनर्जी पर किसी ने नहीं दिखाई ममता!
त्रणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी भले ही अपनी काबलियत के भरोसे पश्चिम बंगाल की सत्ता हासिल करने की दुहाई दें पर यह वाम दलों की असफलता ज्यादा आंकी जा रही है। सियासी गलियारों में ममता बनर्जी को अपरिपक्व राजनेता के बतौर देखा जा रहा है। सदगी भले ही ममता का सबसे खतरनाक हथियार हो, किन्तु खुदरा क्षेत्र में एफडीआई मामले में ममता बनर्जी के कदमताल से साफ हो गया कि वे वाकई में राजनीतिक तौर पर मेच्योर कतई नहीं हैं। इस मामले में अविश्वास प्रस्ताव गिरने से यह भी साफ हुआ है कि संसदीय कार्य मंत्री कमल नाथ के प्रबंधन कौशल को कोई चुनौति नहीं दे सकता है। कहा जा रहा है कि ममता बनर्जी ने इस मसले में सिर्फ नवीन पटनायक और सीपीआई के गुरूदास गुप्ता से भर बात की थी। ममता ने ना तो जयललिता और ना ही सुषमा स्वराज से इस संबंध में बात की।मुसलमान नाराज हैं नेताजी से!
कहा जाता है कि मुसलमानों के बल पर उत्तर प्रदेश की सत्ता हासिल की थी मुलायम सिंह यादव ने। अब वही मुसलमान नेताजी से खासे नाराज बताए जा रहे हैं। अखिलेश के मुख्यमंत्री बनते ही उत्तर प्रदेश दंगों से दहल गया। दंगा प्रभावित फैजाबाद में आसिम आजमी को दौरा करने से रोक दिया गया। आजमी ने भी मुलायम को धमकाना आरंभ कर दिया है। आजम खान भी अखिलेश से खासे नारज चल रहे हैं। शही इमाम भी समाजवादी पार्टी के शासन के तौर तरीकों से नाराज हैं। शाही इमाम ने साफ तौर पर कह दिया है कि सूबे के तीस फीसदी मुस्लिम अगर समाजवादी पार्टी की सरकार बनवाने में मदद कर सकते हैं तो वे अगले आम चुनावों में अपना हाथ खींच भी सकते हैं। वहीं, कांग्रेस के आला नेता उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों का समाजवादी पार्टी से हो रहे मोहभंग पर बरीक नजर रखे हुए हैं।क्रिकेट की नर्सरी पर संकट के बादल!
सुनील गावस्कर और सचिन तेंदुलकर जैसे क्रिकेट जगत के हरनफनमौला जिस जगह से खेलकर महान स्टार बने उस क्रिकेट की नर्सरी पर खतरा मंडराने लगा है। यह शिवाजी पार्क ही क्रिकेट की नर्सरी हुआ करता रहा है। शरद पवार के करीबी सूत्रों का कहना है कि पंवार के दबाव के चलते ही सरकार ने शिवाजी पार्क में बाला साहेब ठाकरे की अंत्येष्ठी की इजाजत दी थी। अब हजारों शिवसैनिक ना केवल रोजना शिवाजी पार्क जाकर वहां ठाकरे को श्रृद्धांजली दे रहे हैं, वरन् उनकी मांग यह भी हो गई है कि शिवाजी पार्क को ठाकरे का स्मारक बना दिया जाए। शरद पंवार अब कह रहे हैं कि ठाकरे के स्मारक के बतौर उनके निज निवास मातोश्री ही उपयुक्त होगा। यह ठाकरे का निजी निवास था, राजनेता कभी भी सरकारी संपत्ति को हड़पने का मौका कभी नहीं चूकते हैं। अब सरकार की पेशानी पर पसीना छलक रहा है कि शिवाजी पार्क के मामले में किया जाए तो क्या?भाई ने भाई को जाना मेरी जां खूब पहचाना
पुराना गाना है भाई ने भाई को जाना . . .। इसी तर्ज पर एक केंद्रीय मंत्री ने अपने भाई को उपकृत करने में कोई कसर नहीं रख छोडी है। केंद्र सरकार ने महाराष्ट्र काडर के 1975 बैच के अधिकारी बी.एस.मीणा को बोर्ड ऑफ इंडस्ट्रीज एण्ड फाईनेंशियल रिकंस्ट्री (बीआईएफआर) का सदस्य बना दिया है। मीणा पिछले साल 31 मार्च 2011 को सेवानिवृत हुए थे। अब मीणा 1965 की आयु तक इस पद पर बने रहेंगे। सेवानिवृति के बीस माह बाद मीणा को सदस्य बनाने से सियासी हल्कों में तरह तरह की चर्चाएं आरंभ हो गईं। चर्चाएं आखिर हो भी क्यों ना! दरअसल, बी.एस.मीणा के अपने भाई नमोनारायण मीणा केंद्र सरकार में राज्य मंत्री हैं। नमोनारायण मीणा अगर सिर्फ केंद्र में मंत्री भर होते तो कोई बात नहीं, पर बीआईएफआर सीधे सीधे नमोनारायण मीणा के नियंत्रण में आता है, इसलिए कहा जा रहा है कि भाई ने भाई को जाना, मेरी जां खूब पहचाना . . . .।
हाशिए में ढकेल दी गईं अंबिका!
पूर्व केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी के पुअर परफार्मेंस और मीडिया में कांग्रेस तथा सरकार के खिलाफ हमले ना रोक पाने के चलते अपना पद गंवाने वाली अंबिका सोनी इन दिनों गुमनामी के अंधेरे में ही हैं। अंबिका सोनी की पूछ परख काफी हद तक कम हो चुकी है। अकबर रोड स्थित उनके आवास में आजकल सन्नाटा पसरा हुआ है। सरकार से हटने के उपरांत अंबिका संगठन में शीर्ष पद पाने की जोड़तोड़ में लगीं थीं किन्तु कांग्रेस की हाल ही मे घोषित समितियों ने अंबिका को खासा झटका दिया है। अंबिका को इन समितियों में जगह नहीं मिली है। उन्हें संचार और प्रचार समिति में रखा गया है। अंबिका की मनःस्थिति यह देखकर समझी जा सकती है कि अंबिका को मनीष तिवारी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, दीपेंद्र हुड्डा जैसे अपेक्षाकृत कनिष्ठों को रिपोर्ट करना होगा। कल तक कांग्रेस अध्यक्ष की आंखों का नूर बनीं अंबिका सोनी अब कहां हैं किसी को नहीं पता।फिसलती ही जा रही नेताओं की जुबान
राजनेता पता नहीं क्यों अपनी जुबान पर काबू रखने में पूरी तरह से असफल ही साबित हो रहे हैं। कभी कोई कुछ कहता है तो कभी कोई कुछ। भाजपाध्यक्ष नितिन गड़करी द्वारा स्वामी विवेकानंद के बारे में विवादित बयान के बाद अब मध्य प्रदेश के कबीना मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के बयान चर्चाओं में हैं। विजयवर्गीय ने भगवान राम की तुलना रावण से तो कृष्ण की तुलना कंस से कर मारी। मध्य प्रदेश भाजपा के निजाम प्रभात झा ने हृदय प्रदेश के निजाम शिवराज सिंह चौहान की तुलना देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से करते हुए कह दिया कि जवाहर लाल ‘चाचा नेहरू‘ तो शिवराज सिंह ‘मामा‘ के रूप में पहचाने जाते हैं। कांग्रेस और भाजपा दोनों एक दूसरे की विरोधी पार्टी हैं किन्तु फिर भी नेताओं की तुलना कर प्रभात झा भी चर्चाओं में आ गए हैं।