साथियों समस्या ये है की लोग सिर्फ ये देखते है की आदिवासी हिंसा कर रहे है।।।
वो हजारो सालो से जंगलो के भरोसे रहे है,,,आजादी क्या है ,,,पक्के घर और स्कूल क्या होते है ,,,ट्रेन और बस क्या होती है ये उन्हें आज तक पता ही नहीं,,,,,आजादी के 60 साल बाद भी वो घर में लालटेन से ही रौशनी करते है , पानी भरने कई मील जाते है , खाने के लिए जंगल से शिकार और जंगली फलो पर निर्भर है।तेंदू पत्ता कारोबारी और ठेकेदार 20-25 रुपये और कभी कभी सिर्फ दो वक्त का खान खिल कर उनसे 16-16 घंटे मजूरी करवाते है
और आज सरकार वोही जंगलात वेदांता जैसी कंपनियों को बेच कर उन्हें उनके अपने घर यानी जंगल से अलग करना चाहती है .......उनकी कोई नहीं सुनता , प्रशाशन उन्हें आज भी जंगली समझता है ,,और जब इस अनदेखी से तंग आकर उन्होंने शश्त्र उठा लीये तो आप उन्हें हिंसात्मक और देश के लिए ख़तरा बोल रहे हो .
हजारो सालो की इस कमतर हक-नजीरी को अनदेखा कर अगर आप उनके आखिरी गुस्से को भी नहीं पहचान पाये ..तो इसका सिर्फ एक मतलब है की आपकी जानकारी उनके बारे में अभी कम है ,,,,,,(बुरा मत मानियेगा प्लीज )समस्या को समझने के लिये आपको ज्यादा नहीं सिर्फ पिछले 10-20 सालो के आदिवासी जीवन का अध्यन करना पड़ेगा