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(लिमटी खरे)
यह सही है कि रामसेतु आस्था का विषय है, इस पर सेतुसमुंद्रम परियोजना का बुलडोजर चलाया जा रहा है। सवाल यह उठता है कि आखिर किसके कहने पर यह सब किया जा रहा है। एसा करने से फायदा किसे होने वाला है। लगभग 48 किलोमीटर लंबे एडम ब्रिज के नीचे बेशकीमती तत्वों का भण्डार है। इसे सामरिक दृष्टिकोण से अति महत्वपूर्ण माना जाता है। इस सेतु को वानरों ने बनाया, मानव ने बनाया यह रहस्य अभी बरकरार ही है। करोड़ों लोगों की आस्था का प्रतीक बन चुका है रामसेतु। 2007 तक संसद के अस्सी फीसदी सदस्य इस परियोजना से अनजान ही थे। सरकार ने अमरीका के दबाव में गुपचुप तरीके से इस कार्यवाही को अंजाम देने का असफल प्रयास किया। धर्म का नाम आते ही उस पर सियासत करने वालों की संख्या अनगिनत है। रामसेतु में भी धर्म साथ हो लिया है इसलिए अब इससे ना जाने कितने लोगों की आस्थाओं को जोड़ दिया गया है।
भारत देश में धर्म का धंधा चोखा माना जाता है। जहां भी आप धर्म को बीच में ले आएं मतलब आप समझ लीजिए कि लोगों का साथ आपको मिलना तय ही है। देश भर में चाहे जहां देखिए धर्मालय अटे पड़े हैं। इस समय सबसे ज्यादा डिमांड में शिरडी के साई बाबा और उत्तर भारत की त्रिकुटा पर्वत पर विराजी माता वेष्णो देवी हैं। इन दोनों ही के मंदिर चाहे जहां देखने को मिल जाते हैं। एक मित्र ने एक मजेदार वाक्या सुनाया। उसने कहा कि उसने अपने मित्र से पूछा आजकल क्या कर रहे हो? छूटते ही मित्र बोला -''20 लाख पड़े थे, फलां रोड़ पर चार मंदिर डाल दिए हैं।'' कमोबेश इसी तर्ज पर ओह माय गॉड फिल्म भी बनी है।
सेतुसमुंद्रम परियोजना 2005 में आई। इसमें रामसेतु का नाम आते ही सियासत घुस गई इसमें। इसे करोड़ों अरबों लोगों की आस्था का प्रतीक दर्शाया जाने लगा। देखा जाए तो एडम ब्रिज जिसे रामसेतु भी कहा जा रहा है, भारत के दक्षिणपूर्व में रामेश्वरम और श्रीलंका के पूर्वाेत्तर में मन्नार द्वीप के बीच चूने की उथली चट्टानों की चेन है, इसे भारत में रामसेतु व दुनिया में एडम्स ब्रिज ( आदम का पुल ) के नाम से जाना जाता है। इस पुल की लंबाई लगभग 30 मील (48 किमी ) है। यह ढांचा मन्नार की खाड़ी और पॉक स्ट्रेट को एक दूसरे से अलग करता है।
कहा जा रहा है कि परियोजना से तमिलनाडु के पांच जिले, 138 गांव और 10 लाख लोग प्रभावित होंगे। 28 हजार मछुआरों की जीविका छिन जाएगी। इनमें से अधिकांश पहले से ही कर्ज में दबे हैं। मछली मारने की सुविधा समाप्त होने के कारण यहां से प्रति वर्ष 2 लाख टन से अधिक मछली उत्पादन एवं निर्यात समाप्त हो जाएगा। 3268 प्रकार की वनस्पतियां नष्ट होंगी, 377 प्रजातियों के जीव-जंतु तथा दो सौ प्रकार की मछलियों का खात्मा हो जाएगा। समृद्ध मूंगा उद्योग पूरी तरह खत्म हो जाएगा।
इस परियोजना के बारे में सरकार की ओर से कभी भी स्थिति को स्पष्ट करने का प्रयास नहीं हुआ है। कहते हैं कि यह सरकार की ऐसी महत्वाकांक्षी परियोजना का नाम है जो बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के बीच समुद्री मार्ग को सीधी आवाजाही के लिए खोल देगी इस मार्ग के शुरु होने से जहाज़ों को 400 समुद्री मीलों की यात्रा कम करनी होगी जिससे लगभग 36 घंटे समय की बचत होगी। यहां से होकर जाने वाले जहाजों को अभी श्रीलंका से घूमकर जाना होता है। पर यह भी सही बात है कि इस परियोजना के आकार लेने के बाद भी बड़े जहाज पुरानी राह ही पकड़ेंगे क्योंकि यह गहरा रास्ता नहीं है।
कुछ जानकारों का कहना है कि वानरों की सहायता से भगवान विश्वकर्मा के पुत्र नल और नील द्वारा निर्मित इस रामसेतु पर से जब भगवान श्री राम लंका विजय कर लौट रहे थे तब विभीषण ने इस सेतु को खण्डित करने का आग्रह किया था। कहते हैं उस समय भगवान ने तीन स्थानों पर इसे खण्डित कर दिया था वे निशान आज भी साफ दिखाई पड़ रहे हैं। सनातन पंथी मान्यताओं के अनुसार खण्डित वस्तु की पूजा अर्चना वर्जित है, अतः इस रामसेतु की पूजा अर्चना नहीं होना चाहिए।
वहीं कुछ अन्य मान्यताओं ेक अनुसार यह पुल 10 योजन अर्थात 128 किलोमीटर चौड़ा ओर 1468 किलोमीटर लंबा होना चाहिए। आंकड़ों में अगर देखा जाए तो विविदित पुल की लंबाई 30 किलोमीटर ,चौडाई कहीं 10 से कहीं 30 फुट तक ,जबकि रामायण के अनुसार- चौडाई 128 किलोमीटर और लंबाई 1288 किलोमीटर दर्शाई गई है। जानकारों की मानें तो वानरों ने पहले दिन 14 योजन, तीसरे दिन 21 योजन, चौथे दिन 22 योजन और 5वें दिल 23 योजन लंबा पुल बाधा इस तरह नल ने 100 योजन अर्थात 1288 किलोमीटर लंबा पुल तैयार किया, पुल 10 योजन अर्थात 128 किलोमीटर चौडा था।
वहीं वाल्मिमिकी रामायण के अनुसार यह नलसेतु 100 योजन अर्थात 1288 किलोमीटर लंबा था (संस्कृत इंगलिश डिक्शनरी के अनुसार 1 योजन 8-9 मील का होता है। यहां 8 मील मान कर यह किलोमीटर में 1288 का आंकडा दिया है, यदि 9 मील का योजन मानें तो 100 योजन 1468 किलोमीटर होगा) पर अब जो पुल है वह तो केवल 30 किलोमीटर है, शेष 1258 अथवा 1438 किलोमीटर है कहां है।
इसके साथ ही साथ यह भी कहा जा रहा है कि इस रामसेतु के नीचे बहूमूल्य तत्वों का अथाह भण्डार है। इसके नीचे के रसायनिक तत्वों से भारत इतना समृद्ध हो सकता है कि आने वाली पीढियां तर जाएं। विडम्बना ही कही जाएगी कि भारत सरकार द्वारा दुनिया के चौधरी अमरीका के दवाब में आकर इस सेतु को तोड़कर ना केवल आस्था के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है वरन् बहुमूल्य प्रकृतिक संपदाओं से भी हाथ धोने की तैयारी की जा रही है। (साई फीचर्स)