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केदार घाटी से रामबाड़ा के बीच करीब 2000 शव अब भी पड़े हुए हैं। इनमें से कई खुले में हैं, तो कई मलबे में दबे हुए हैं। केदारनाथ में बचाव अभियान के बाद लौटे आईटीबीपी व उत्तराखंड पुलिस की टीम ने गुरुवार को आंखों-देखा हाल बयां किया।
ये जवान भयावह मंजर देखकर अभी तक सामान्य नहीं हो पाए हैं। वहीं राज्य सरकार ने माना कि त्रासदी में तीन हजार लोग लापता हैं। बाढ़ व भूस्खलन के बाद बचाव कार्यों के लिए जवानों की एक टीम कुछ दिनों पहले रामबाड़ा पहुंची थी।
शुरू में इनके जरिए खबर आई कि अकेले रामबाड़ा में 100 शव पड़े हैं। लेकिन बचाव अभियान के बाद वापस लौटे जवान पूरा मंजर देख सदमे में हैं। अपनी पहचान उजागर न किए जाने की बात कहते हुए जवानों ने बताया कि रामबाड़ा से केदारघाटी की ओर हर कदम पर एक लाश पड़ी है।
रामबाड़ा में टूटे होटलों और धर्मशालाओं के प्रत्येक कमरे में चार-पांच शव पड़े हैं। इन जवानों ने कई शवों को सुरक्षित स्थानों पर पाया। इनका मानना है कि उनकी मौत डर व ठंड से हुई होगी।
बहरहाल, यहां-वहां पड़े शवों से फैलने वाले संक्रमण को ध्यान में रखते हुए केदारनाथ और आसपास के क्षेत्रों में जवानों ने ब्लीचिंग पाउडर और गैमक्सीन का छिड़काव किया है। इससे संक्रमण और गिद्द-चील द्वारा शवों को नोचने का खतरा कम हुआ है। (साभार : हिंदुस्तान)
शुरू में इनके जरिए खबर आई कि अकेले रामबाड़ा में 100 शव पड़े हैं। लेकिन बचाव अभियान के बाद वापस लौटे जवान पूरा मंजर देख सदमे में हैं। अपनी पहचान उजागर न किए जाने की बात कहते हुए जवानों ने बताया कि रामबाड़ा से केदारघाटी की ओर हर कदम पर एक लाश पड़ी है।
रामबाड़ा में टूटे होटलों और धर्मशालाओं के प्रत्येक कमरे में चार-पांच शव पड़े हैं। इन जवानों ने कई शवों को सुरक्षित स्थानों पर पाया। इनका मानना है कि उनकी मौत डर व ठंड से हुई होगी।
बहरहाल, यहां-वहां पड़े शवों से फैलने वाले संक्रमण को ध्यान में रखते हुए केदारनाथ और आसपास के क्षेत्रों में जवानों ने ब्लीचिंग पाउडर और गैमक्सीन का छिड़काव किया है। इससे संक्रमण और गिद्द-चील द्वारा शवों को नोचने का खतरा कम हुआ है। (साभार : हिंदुस्तान)