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नाम : अरुणा शानबाग।
पेशा : नर्स।
सपने : मुंबई में आकर कुछ कर दिखाना।
•••••••
स्थिति : 42 सालों से दिमागी तौर पर मृत, हर काम के लिए अपने साथियों पर निर्भर।
चर्चा में क्यों :अरुणा की तरफ से इच्छामृत्यु की अपील, 7 मार्च 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने अरुणा शानबाग की इच्छामृत्यु अपील पर अपना फैसला सुनाया। अरुणा का निधन-18 मई 2015
क्यों की गई अपील : लगातार 42 वर्षों से अरुणा मानसिक रूप से मृत थीं अपने किसी भी काम को कर पाने में अक्षम थीं।
अरुणा का कसूर क्या था: उसने ख्वाब देखे थे मानवता की सेवा के, बीमारों की स्नेहिल मदद के, लेकिन नहीं जानती थी कि एक दिन वह खुद मोहताज हो जाएगी दूसरों की। कसूर महज इतना कि उसने अपनी अस्मिता की रक्षा करना चाही। अपने काम के दौरान एक सफाई कर्मचारी से कुछ कहा सुनी हो गई।
सफाई कर्मचारी ने बदला लेने की ठानी और एक दिन अरुणा को अकेला पाकर अपनी क्रूरतम हैवानियत का शिकार बना डाला। अरुणा के पुरजोर विरोध करने पर पास रखी चैन से उसके सिर में ऐसा वार किया कि फिर अरुणा कभी खड़ी ना हो सकी। 42 साल तक अरुणा चिर बेहोशी की हालत में रहीं। उसकी देखरेख करने वाली सखियों ने गुहार लगाई थी कि उसे इच्छामृत्यु दे दी जाए।
यहाँ से बात शुरू करते हुए पीड़ा सघन हो जाती है। एक बेसुध, बेकसूर और बेबस महिला अपनी मौत की गुहार लगाती रही । तब हम कैसे मना सकते हैं अपना गौरव दिवस? कैसे लहराएँ अपनी अस्मिता का परचम?
अरुणा किंग एडवर्ड मेमोरियल अस्पताल में नर्स के रूप में कार्यरत थी। 27 नवंबर 1973 को अस्पताल के जिस सफाई कर्मचारी ने उसका यौन उत्पीड़न किया था
मात्र पुरुष होने की महत्तम कुंठा के चलते उसने एक स्त्री को किस कगार पर ला खड़ा किया? अरुणा के लिए इच्छामृत्यु के लिए याचिका लेखिका पिंकी विरानी ने दायर की थी। आज अरुणा नहीं रही। अपने जीवन के हर सुनहरे सपने और खूबसूरत लम्हें खो कर वह 42 सालों से जीवन रक्षा प्रणाली पर थीं।
भावभीनी श्रद्धांजलि 💐💐💐
नाम : अरुणा शानबाग।
पेशा : नर्स।
सपने : मुंबई में आकर कुछ कर दिखाना।
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स्थिति : 42 सालों से दिमागी तौर पर मृत, हर काम के लिए अपने साथियों पर निर्भर।
चर्चा में क्यों :अरुणा की तरफ से इच्छामृत्यु की अपील, 7 मार्च 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने अरुणा शानबाग की इच्छामृत्यु अपील पर अपना फैसला सुनाया। अरुणा का निधन-18 मई 2015
क्यों की गई अपील : लगातार 42 वर्षों से अरुणा मानसिक रूप से मृत थीं अपने किसी भी काम को कर पाने में अक्षम थीं।
अरुणा का कसूर क्या था: उसने ख्वाब देखे थे मानवता की सेवा के, बीमारों की स्नेहिल मदद के, लेकिन नहीं जानती थी कि एक दिन वह खुद मोहताज हो जाएगी दूसरों की। कसूर महज इतना कि उसने अपनी अस्मिता की रक्षा करना चाही। अपने काम के दौरान एक सफाई कर्मचारी से कुछ कहा सुनी हो गई।
सफाई कर्मचारी ने बदला लेने की ठानी और एक दिन अरुणा को अकेला पाकर अपनी क्रूरतम हैवानियत का शिकार बना डाला। अरुणा के पुरजोर विरोध करने पर पास रखी चैन से उसके सिर में ऐसा वार किया कि फिर अरुणा कभी खड़ी ना हो सकी। 42 साल तक अरुणा चिर बेहोशी की हालत में रहीं। उसकी देखरेख करने वाली सखियों ने गुहार लगाई थी कि उसे इच्छामृत्यु दे दी जाए।
यहाँ से बात शुरू करते हुए पीड़ा सघन हो जाती है। एक बेसुध, बेकसूर और बेबस महिला अपनी मौत की गुहार लगाती रही । तब हम कैसे मना सकते हैं अपना गौरव दिवस? कैसे लहराएँ अपनी अस्मिता का परचम?
अरुणा किंग एडवर्ड मेमोरियल अस्पताल में नर्स के रूप में कार्यरत थी। 27 नवंबर 1973 को अस्पताल के जिस सफाई कर्मचारी ने उसका यौन उत्पीड़न किया था
मात्र पुरुष होने की महत्तम कुंठा के चलते उसने एक स्त्री को किस कगार पर ला खड़ा किया? अरुणा के लिए इच्छामृत्यु के लिए याचिका लेखिका पिंकी विरानी ने दायर की थी। आज अरुणा नहीं रही। अपने जीवन के हर सुनहरे सपने और खूबसूरत लम्हें खो कर वह 42 सालों से जीवन रक्षा प्रणाली पर थीं।
भावभीनी श्रद्धांजलि 💐💐💐