त्योहारी सीजन में हर ओर आवास मेले लग रहे हैं। कोई चार लाख तो कोई पांच लाख रुपए की छूट पर बुला रहा है। सरकार भी सतर्क है। उसने इसके लिए रजिस्ट्रीकरण अधिनियम में संशोधन की तैयारी कर ली है। इतना ही नहीं पावर ऑफ अटॉर्नी के नियमों को भी बदला जा रहा है। ताकि टैक्स की चोरी रोकी जा सके।
इरफान जाफरी
भोपाल (डीएनएन)। फर्जी दस्तावेजों या गलत जानकारी देकर प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री करवाने की शिकायतों पर राज्य सरकार सक्रिय हुई है। जल्द ही ऐसा करने वालों को सात साल तक की सजा दी जा सकेगी। राज्य सरकार ने कानून में संशोधन करने की तैयारी कर ली है। इस संबंध में प्रस्ताव राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को भेजा गया है।
प्रस्ताव में रजिस्ट्री कराने के दौरान कोई व्यक्ति गलत जानकारी या हेरा फेरी किए हुए दस्तावेज प्रस्तुत करता है तो यह अपराध की श्रेणी में आएगा। मामला सामने आने पर रजिस्ट्रार या डिप्टी रजिस्ट्रार एफआईआर करा सकेंगे। इसके बाद प्रकरण सीजेएम कोर्ट भेजा जाएगा। इसमें दोषी व्यक्ति को सात साल की सजा और जुर्माना दोनों से दंडित किया जा सकता है।
व्यावसायिक जमीन को आवासीय बताकर रजिस्ट्री कराए जाने में। रजिस्ट्री कराए जाने के लिए गलत दस्तावेज प्रस्तुत किए गए हों। इसमें प्लाट या मकान कोने का है। सड़क के किनारे का है और दस्तावेजों में इसे नहीं दर्शाया गया है। मकान या खेती का नक्शा गलत प्रस्तुत किए जाने पर। एक बार रजिस्ट्री होने के बाद दोबारा उसे कोई अन्य बेचता है तो वह दोषी होगा। उदाहरण के लिए जमीन का सौदा कोई दूसरा व्यक्ति कर रहा है जो उसका वास्तविक मालिक नहीं है।
वित्तमंत्री जयंत मलैया ने एक अखबार को बताया कि रजिस्ट्री में होने वाली हेराफेरी रोकने के लिए रजिस्ट्री अधिनियम में संशोधन कर कठोर प्रावधान किए गए हैं। इसे मंजूरी के लिए केंद्र सरकार को भेजा गया है। वहां से अनुमति मिलने पर इसे प्रदेश में कड़ाई से लागू किया जाएगा। अभी लागू पंजीयन अधिनियम में हेरा फेरी कर रजिस्ट्री करवाने वालों पर सिर्फ सरकार जांच में गलती पाए जाने पर उनसे प्रॉपर्टी के विक्रय मूल्य का पेनल्टी समेत स्टाम्प शुल्क ही वसूलती है। इससे प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री में धोखाधड़ी करने वाले स्टाम्प शुल्क देकर बरी हो जाते हैं।
पॉवर के नियम भी बदलेंगे
पावर ऑफ अटॉर्नी से प्रॉपर्टी की खरीदी-बिक्री के अधिकार के नियम बदलेंगे। अब सिर्फ परिवार के किसी सदस्य को ही पावर लेकर प्रॉपर्टी बेचने का अधिकार रहेगा। इनमें जमीन मालिक के माता-पिता, भाई-बहन और नाती-नातिन शामिल हैं। किसी अन्य को प्रॉपर्टी बेचने की पावर ऑफ अटॉर्नी देने के लिए रजिस्ट्री के बराबर यानि प्रॉपर्टी की कुल कीमत की 7 प्रतिशत स्टांप ड्यूटी चुकानी होगी। सरकार के प्रस्ताव को मंजूरी का इंतजार है।
प्रदेश में पावर ऑफ अटॉर्नी के नाम पर प्रॉपर्टी के असली मालिक के साथ धोखाधड़ी को रोकने के लिए आईजी मुद्रांक एवं पंजीयन दीपाली रस्तोगी ने राज्य शासन को नियमों में संशोधन का प्रस्ताव भेजा था। इसे सैद्धांतिक तौर पर मंजूरी मिल गई है। जल्द ही अध्यादेश जारी होगा।
पंजीयन विभाग के डीआईजी डॉ. श्रीकांत पांडे ने इसकी पुष्टि की है। नई व्यवस्था में पावर ऑफ अटॉर्नी में प्रॉपर्टी बेचने के अधिकार अब उसके मालिक के परिवार को ही दिए जा सकेंगे। इसके लिए 1000 रु. की स्टांप ड्यूटी और 500 रु. रजिस्ट्रेशन फीस देनी होगी। जबकि अब तक बिचौलिए प्रॉपर्टी का सौदा पक्का कर स्टांप ड्यूटी बचाने के लिए 1000 रु. के स्टांप पेपर पर पावर ऑफ अटॉर्नी ले लेते थे। फिर इसी के आधार पर ज्यादा कीमत पर उसे बेच देते थे।
ओपन एरिया की बंदरबांट बंद होगी
गृह निर्माण सोसायटी हो या बिल्डर द्वारा तैयार कॉलोनी, ओपन और कॉमन एरिया की बंदरबांट की शिकायतें आम हैं। अतिक्रमण या चहेतों को बंदरबांट हो जाती है। इससे मुक्ति पाने और कॉलोनी के रखरखाव के लिए सरकार ने मॉडल बायलॉज बनाए हैं। इससे ओपन और कॉमन एरिया का मालिकाना हक और नियंत्रण रखरखाव गृह निर्माण सहकारी संस्था का होगा। ये संस्था सहकारी अधिनियम के तहत होंगी। इसे बिल्डर्स भी लागू कर सकते हैं।
प्रदेश में करीब सात हजार गृह निर्माण सहकारी समितियां हैं। हजारों की तादाद में बिल्डर्स कॉलोनियां बना रहे हैं। दोनों का फोकस निर्माण तक सीमित होने से बाद में रहवासी मूलभूत सुविधाओं के लिए परेशान रहते हैं। शिकायतों की सुनवाई नहीं होती। कॉलोनी के हस्तांतरण के बाद गृह निर्माण समिति भी जिम्मेदारियों से पीछे हट जाती है। ऐसी शिकायतों के मद्देनजर अब सहकारिता विभाग ने रखरखाव गृह निर्माण सहकारी संस्था के लिए मॉडल बायलॉज बनाए हैं। स्थानीय लोगों की ये संस्था निर्मित आवास, बहुमंजिला प्रकोष्ठ के सदस्यों को मूलभूत सुविधा मुहैया कराएगी। बिजली, पानी, सीवेज, साफ-सफाई के काम भी देखेगी। कॉलोनी का ओपन एरिया, पार्क, कम्युनिटी हॉल, मंदिर सहित अन्य अचल संपत्ति पर स्वामित्व और नियंत्रण होगा। कॉलोनी हस्तांतरण की स्थिति में रखरखाव समिति को इसका स्वामित्व सौंपा जाएगा।
सहकारिता विभाग के प्रमुख सचिव अजीत केसरी ने कहा कि हमारे पास मॉडल बायलॉज की मांग आई थी। अभी निर्माण के बाद की व्यवस्थाओं को लेकर प्रावधान नहीं थे। नए बायलॉज में ओपन या कॉमन एरिया पर स्वामित्व रखरखाव सहकारी संस्था के पास होगा। कॉलोनी हस्तांतरण की स्थिति में समिति को बकायदा मालिकाना हक सौंपा जाएगा।
ये सुविधा भी देगी संस्था: संस्था सदस्यों को बिजली, टेलीफोन और संपत्ति कर जमा कराने की सुविधा देगी। एमपी ऑनलाइन जैसे केन्द्रों की स्थापना के अलावा संस्था शासन की ओर से सौंपे जाने वाले जनहित के काम करेगी। संस्था का कार्यकाल पांच साल का होगा। इसे हर साल सहकारिता विभाग को अपने आय-व्यय की रिपोर्ट देनी होगी।
अफसरों से मिलकर जमीन का सौदा
राजस्व विभाग के अफसरों और भूमाफिया ने सरकारी रिकॉर्ड में हेरफेर कर भोपाल में तीन एकड़ से अधिक जमीन का गुपचुप तरीके से सौदा कर दिया। इस जमीन की वर्तमान कीमत करीब 12 करोड़ रुपए है। यह जमीन अलग-अलग लोगों के नाम पर थी, जिन्हें भनक भी नहीं लगी और जमीन को बेचने की तैयारी कर ली गई। इनमें से ही एक न्यूरो सर्जन की शिकायत पर जमीन बिकने से पहले ही यह गड़बड़ी सामने आ गई। ईओडब्ल्यू ने इस मामले में आठ लोगों के खिलाफ प्रकरण दर्ज कर लिया है। इनमें राजस्व विभाग एवं रिकॉर्ड सेक्शन के प्रभारी, अधिकारी तथा कर्मचारी भी शामिल हैं।
यह मामला गोंदरमऊ की 3.12 एकड़ जमीन का था। पहले यह जमीन गायत्री देवी सिंह और उनके बेटे मोहन सिंह के नाम थी। मां-बेटे ने उक्त जमीन 2007 से 2013 के बीच रतन असनानी, अशोक मीणा और अनवर मियां को बेच दी थी। 2007-08 में अशोक मीणा ने एक एकड़ जमीन सिग्नेचर बिल्डर को बेची थी। बिल्डर ने वर्ष 2012-13 में एक एकड़ का यह टुकड़ा मेसर्स सनराइज एसोसिएट्स के मालिक न्यूरो सर्जन डॉ. सुनील मलिक को बेच दिया। डॉ. मलिक ने उसी समय जमीन की रजिस्ट्री एवं नामांतरण अपने नाम करवा लिया था। करीब छह महीने पहले समाचार पत्र में जाहिर सूचना प्रकाशित हुई।
इसमें एडवोकेट पवन कुशवाह ने बताया कि उनके पक्षकार संजय मीणा द्वारा गायत्री और मोहन से यह जमीन खरीदी जा रही है। जाहिर सूचना में खसरा नंबर वही था जो डॉ. मलिक की जमीन का था। इसकी जानकारी मिलते ही डॉ. मलिक ने राजस्व विभाग तथा ईओडब्ल्यू में इसकी शिकायत की। ईओडब्ल्यू की जांच में सारी गड़बड़ी सामने आ गई। जांच में पता चला है कि गायत्री, मोहन, एडवोकेट कुशवाह और संजय मीणा इस गड़बड़ी में शामिल थे। उनका साथ दो प्रॉपर्टी ब्रोकर छोटे खां और पवनदीप सिंह सहित सरदार इंद्रपाल सिंह उर्फ ज्ञानीजी ने दिया।
राजस्व विभाग तथा रिकॉर्ड सेक्शन के तत्कालीन प्रभारी, अधिकारी एवं कर्मचारियों ने रेवेन्यू रिकॉर्ड से जमीन के वर्तमान मालिकों के नाम हटा दिए। उनकी जगह गायत्री और मोहन को ही जमीन का मालिक बताया गया। इसके आधार पर जमीन को बेचने की तैयारी कर ली गई थी। ईओडब्ल्यू अभी यह पता लगा रही है कि इस गड़बड़ी के समय विभाग में प्रभारी, अधिकारी एवं कर्मचारी के तौर पर कौन-कौन पदस्थ थे। इन्हें भी आरोपी बनाकर नामजद प्रकरण दर्ज किया जाएगा।
खेत बेचकर रातोंरात अमीर हुए किसानों पर नजर
आयकर विभाग भोपाल, इंदौर सहित अन्य प्रमुख शहरों के पास करोड़ों रुपए की संपत्ति के सौदों पर सक्रिय हो गया है। कैपिटल गेन टैक्स चोरी के मामले में विभाग ने किसानों सहित जमीन के सौदागरों को नोटिस थमाए हैं। जिला पंजीयकों से भी सौदों की जानकारी तलब की है।
सीबीडीटी के निर्देश पर विभाग द्वारा शुरू की गई मुहिम में सामने आया है कि अकेले भोपाल और उसके आसपास ही जमीन एवं अन्य संपत्ति के सौदों में करीब 65 करोड़ के कैपिटल गेन टैक्स की चोरी हुई है। विभाग अब किसानों और जमीन के सौदागरों से टैक्स व जुर्माना वसूल रहा है। इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर, सागर एवं उज्जैन सहित अन्य प्रमुख शहरों के पास हो रहे सौदों की जानकारी सामने आने पर विभाग उनका भी विश्लेषण कर रहा है।
विभाग ने पिछले डेढ़ साल के आंकड़े निकाले तो चौंकाने वाले नतीजे सामने आए। टैक्स चोरी का आंकड़ा करीब 200 करोड़ तक जा सकता है। दो-तीन सालों में जिन लोगों ने करोड़ों रुपए के सौदे किए हैं उनसे भी कैपिटल गेन टैक्स के बारे में तफ्तीश हो रही है। आयकर अफसरों को सीआईबी के जरिए जो खुफिया जानकारियां मिली हैं उसके अनुसार किसानों को भी जमीनों के दस्तावेज और बैंक रिकार्ड के साथ बुलाया गया है।
विभाग को जिला पंजीयकों से देर से ही जो सूचनाएं मिल रही हैं, उनके विश्लेषण चौंकाने वाले हैं। अधिकारियों का कहना है कि शहर और उसके आठ किमी दायरे में जमीन अथवा मकान के सौदों में विक्रेता को कैपिटल गेन टैक्स देना अनिवार्य है अथवा वह सौदे से मिली राशि को छह महीने के भीतर किसी दूसरी प्रापर्टी खरीदने में निवेश कर देता है तो उसे इस टैक्स से छूट मिलती है।
54 एकड़ सीज की जमीन बिल्डर ने मिलीभगत से बेची
भोपाल में करोंद के पास 54 एकड़ सीज जमीन को निजी बताकर बेच दिया गया। मामले की शिकायत आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) में एक साल पहले हुई थी। शिकायत प्रमाणित पाए जाने पर ईओडब्ल्यू ने केस दर्ज कर लिया। इस मामले में सीज जमीन के पूर्व मालिक, बिल्डर और नगर निगम के उन अफसरों के खिलाफ प्रकरण दर्ज किया गया है जो उस वक्त पदस्थ थे।
सीज जमीन में हुआ यह फर्जीवाड़ा
करीब सौ करोड़ रूपए का है। 1992 में सीलिंग एक्ट के तहत करोद के पास स्थित 54 एकड़ जमीन सीज की गई थी। यह जमीन हनुमानगंज जुमेराती निवासी मुरलीधर की थी। वर्ष 1986 में मुरलीधर की मौत होने के बाद जमीन उनके वारिस बेटे अरूण कुमार मालपानी, उसके भाई जगदीश मालपानी और पत्नी मुरलीधर हो गए थे। बेटों ने सीलिंग एक्ट के खिलाफ हाईकोर्ट में परिवाद दायर किया था। वर्ष 2005 में परिवार केस हार गया था। इससे पहले जगदीश, अरूण और मुरलीधर ने जमीन का सौदा बिल्डर श्यामला हिल्स निवासी अशोक गोयल से कर लिया। इसमें जहांगीराबाद निवासी जावेद खान भी शामिल था।
ईओडब्ल्यू के मुताबिक बिल्डर अशोक गोयल सीलिंग एक्ट की बात को जानता था। इसके बावजूद उसने 54 एकड़ जमीन को स्वयं की बताकर उसमें आवासीय प्लॉट काटकर लोगों को बेच दिए। बिल्डर ने करोंद में स्थित मुरली नगर और शिव नगर कॉलोनी बनाई। जमीन की डायवर्सन की अनुमति नहीं ली गई थी। इसके अलावा नगर तथा ग्राम निवेश संचालनालय (टी एंड सी पी) से भी अनुमतियां नहीं ली गई थी। ईओडब्ल्यू को तफ्तीश में मालूम हुआ है कि अशोक गोयल ने जिस जमीन को प्लॉट बताकर बेचा था उससे पहले उसने दस्तावेजों में कूटरचना कराई थी।
जिस जमीन को सीज किया गया था उसके लिए पुन: प्रकरण बनाया गया था। नगर निगम और कलेक्ट्रेट में दस्तावेज प्रस्तुत हुए थे। नगर-निगम और कलेक्ट्रेट से उस वक्त के सक्षम अधिकारियों का ब्योरा देने के लिए कहा गया है।
जमीन की रजिस्ट्री में अब नहीं लगेगा ज्यादा वक्त
मकानों, जमीनों की रजिस्ट्री करवाने के लिए नागरिकों को अब रजिस्ट्रार के दफ्तर में चक्कर नहीं लगाने होंगे। जल्द ही पूरे प्रदेश में ऑनलाइन रजिस्ट्री प्रक्रिया शुरू होगी। विदिशा के उप पंजीयक कार्यालय में इसकी तैयारियां तेज हो गई हैं। जिला पंजीयक एके सिंह ने बताया कि विदिशा उप-पंजीयक कार्यालय को ऑनलाइन किए जाने के लिए 27 सर्विस प्रोवाइडर को भोपाल में एक सप्ताह का प्रशिक्षण दिया गया है। जिसमें स्टाम्प विक्रेता आदि शामिल थे।
कम्प्यूटर, मॉडल सहित अन्य सामग्री आने वाली है। पूरा सेटअप जमाने में करीब एक माह का वक्त लगेगा। ऑनलाइन रजिस्ट्रियां प्रारंभ हो जाने पर जिले की किसी भी तहसील का निवासी उप पंजीयक कार्यालय से जमीन की रजिस्ट्री करवा सकता है। विदिशा के बाद सभी तहसीलों के उप पंजीयक कार्यालय भी हाईटेक किए जाएंगे।
इस व्यवस्था के तहत उप पंजीयक कार्यालय में पहली बार आने वाले पक्षकार को टोकन देकर रजिस्ट्री करने का दिन और समय दिया जाएगा। फिर तय दिन पक्षकार के आने पर उसके दस्तावेजों की जांच डाक्यूमेंट मेकर करेगा। इसके बाद वह दुबारा जांच के लिए समय देगा।
फिर दूसरी बार दस्तावेजों की जांच सब रजिस्टार करेंगे। इसके बाद इलेक्ट्रानिक पेन से पक्षकार के हस्ताक्षर लिए जाएंगे। फिर सभी कागजात को स्केन कर कम्प्यूटर पर लोड किया जाएगा। इसके बाद महज 15 मिनट में ऑनलाइन रजिस्ट्री हो जाएगी। सिंह ने बताया कि ऑनलाइन पंजीयन हो जाने के बाद पक्षकार को पिन लॉक नंबर (पासवर्ड) दिया जाएगा। जो पक्षकार के मोबाइल पर आएगा। जिसको अनलॉक किए बगैर कोई भी उक्त अचल संपत्ति की दुबारा रजिस्ट्री नहीं करवा सकता।