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प्रदेश में इन दिनों आपदा राहत घोटाले की गूंज है ।
घोटाले पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के मध्य वाकयुद्ध छिड़ा है। विपक्ष घोटाले की जांच सीबीआई से चाहता है। सत्ता पक्ष विरोधियों को बोतल में बंद घोटालों का भय दिखा रहा है । दोनों के मध्य "मेरा घोटाला-तेरा घोटाला" को लेकर जंग कुछ ज्यादा तेज हो गई है । दुर्भाग्य से ये कोई पहली बार नहीं हो रहा है । इस राज्य में घोटाले दर घोटाले खुलते रहे हैं । जब भाजपा सत्ता में होती है तो कांग्रेस हल्ला मचाती है और जब कांग्रेस सत्ता में होती है घोटालों की फेहिरस्त लेकर जनता के बीच भाजपा शोर मचा रही होती है । लेकिन इन घोटालों पर सिर्फ सियासत होती है, एक्शन नहीं होता ।
मुख्यमंत्री हरीश रावत ने यदि विपक्ष को कुंभ, स्टर्डिया और महाकुंभ घोटाले की जांच सीबीआई से कराने की मांग करने का मशविरा दिया है तो ये उनका खालिस सियासी दांव है । सवाल उठता है कि यदि किसी मामले में राजकोष डकारा गया है, उसे वित्तीय हानि पहुंचाई गई है और ये विभिन्न जांचों में साबित भी हो चुका है तो सरकार को किस बात का इंतजार है, या तो उसे एक्शन लेना चाहिए या जांच में और ज्यादा गुंजाइश है तो उन्हें और प्रभावी जांच एजेंसी को सौंपना चाहिए ।
लेकिन बिना किसी एक्शन के घोटालों को फाइलों में दबाने का तो एक ही मतलब हो सकता है कि जरूरत पड़ने पर इन्हें ढाल की तरह इस्तेमाल किया जाए, जैसा कि इस राज्य में अब तक होता आ रहा है । राज्य गठन के बाद अंतरिम सरकार में राजधानी निर्माण घोटाला हुआ तो कांग्रेस इसी मुद्दे पर चुनाव लड़ा और सत्ता पर काबिज हुई । लेकिन उसने इस घोटाले को अंजाम देने वालों को सबक नहीं सिखाया । उलटे उसके राज में 56 घोटालों की लंबी फेहरिस्त तैयार हो गई ।
भाजपा ने 56 घोटालों पर चुनाव लड़ा, इनमें दारोगा, पटवारी, उद्यान, सिडकुल घोटालों में तो गंभीर अनियमितता की पुष्टि हो गई थी । भाजपा सत्ता में आई और उसने जांच आयोग बनाकर इन घोटालों की जांच शुरू कर दी, लेकिन एक्शन नहीं लिया । अब बारी कांग्रेस की थी, लिहाजा उसने भाजपा राज के महाकुंभ, स्टर्डिया, एनआरएचएम दवा और 56 प्रोजेक्टों के आवंटन के घोटाले का मुद्दा बनाया । सत्ता में आई तो इन घोटालों की जांच आयोगों को सौंप दी । इन आयोगों ने घोटालों को लेकर जांच तक सौंप दी है ।
महाकुंभ खर्च को लेकर तो कैग तक अनियमितता पकड़ी है । सीएम खुद कह रहे हैं कि स्टर्डिया घोटाला तो "क्रिस्टल क्लीयर" है । सवाल यह है कि जब घोटाले पूरी तरह से साफ हैं तो उन्हें अंजाम देने वाले गुनहगार आजाद कैसे घूम रहे हैं ? सीएम इन घोटालों की जांच सीबीआई को सौंपने की कई बार संकेत दे चुके हैं । लेकिन उनके ये संकेत तभी आते हैं जब विपक्ष हमलावर होता है ।
इस बार सरकार आपदा राहत घोटाले को लेकर विपक्ष के निशाने पर है और एक बार फिर मुख्यमंत्री ने भाजपा राज के घोटालों के जिन्न बोतल से बाहर निकाल दिए हैं। ये इस राज्य का दुर्भाग्य है कि यहां घोटालों का पर्दापाश दोषियों को सजा देने के लिये नहीं होता बल्कि सियासी हमलों से बचने के लिये ढाल की तरह से इस्तेमाल होता है । इस मालग मले में कोई भी सरकार पीछे नहीं रही है।
प्रदेश में इन दिनों आपदा राहत घोटाले की गूंज है ।
घोटाले पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के मध्य वाकयुद्ध छिड़ा है। विपक्ष घोटाले की जांच सीबीआई से चाहता है। सत्ता पक्ष विरोधियों को बोतल में बंद घोटालों का भय दिखा रहा है । दोनों के मध्य "मेरा घोटाला-तेरा घोटाला" को लेकर जंग कुछ ज्यादा तेज हो गई है । दुर्भाग्य से ये कोई पहली बार नहीं हो रहा है । इस राज्य में घोटाले दर घोटाले खुलते रहे हैं । जब भाजपा सत्ता में होती है तो कांग्रेस हल्ला मचाती है और जब कांग्रेस सत्ता में होती है घोटालों की फेहिरस्त लेकर जनता के बीच भाजपा शोर मचा रही होती है । लेकिन इन घोटालों पर सिर्फ सियासत होती है, एक्शन नहीं होता ।
मुख्यमंत्री हरीश रावत ने यदि विपक्ष को कुंभ, स्टर्डिया और महाकुंभ घोटाले की जांच सीबीआई से कराने की मांग करने का मशविरा दिया है तो ये उनका खालिस सियासी दांव है । सवाल उठता है कि यदि किसी मामले में राजकोष डकारा गया है, उसे वित्तीय हानि पहुंचाई गई है और ये विभिन्न जांचों में साबित भी हो चुका है तो सरकार को किस बात का इंतजार है, या तो उसे एक्शन लेना चाहिए या जांच में और ज्यादा गुंजाइश है तो उन्हें और प्रभावी जांच एजेंसी को सौंपना चाहिए ।
लेकिन बिना किसी एक्शन के घोटालों को फाइलों में दबाने का तो एक ही मतलब हो सकता है कि जरूरत पड़ने पर इन्हें ढाल की तरह इस्तेमाल किया जाए, जैसा कि इस राज्य में अब तक होता आ रहा है । राज्य गठन के बाद अंतरिम सरकार में राजधानी निर्माण घोटाला हुआ तो कांग्रेस इसी मुद्दे पर चुनाव लड़ा और सत्ता पर काबिज हुई । लेकिन उसने इस घोटाले को अंजाम देने वालों को सबक नहीं सिखाया । उलटे उसके राज में 56 घोटालों की लंबी फेहरिस्त तैयार हो गई ।
भाजपा ने 56 घोटालों पर चुनाव लड़ा, इनमें दारोगा, पटवारी, उद्यान, सिडकुल घोटालों में तो गंभीर अनियमितता की पुष्टि हो गई थी । भाजपा सत्ता में आई और उसने जांच आयोग बनाकर इन घोटालों की जांच शुरू कर दी, लेकिन एक्शन नहीं लिया । अब बारी कांग्रेस की थी, लिहाजा उसने भाजपा राज के महाकुंभ, स्टर्डिया, एनआरएचएम दवा और 56 प्रोजेक्टों के आवंटन के घोटाले का मुद्दा बनाया । सत्ता में आई तो इन घोटालों की जांच आयोगों को सौंप दी । इन आयोगों ने घोटालों को लेकर जांच तक सौंप दी है ।
महाकुंभ खर्च को लेकर तो कैग तक अनियमितता पकड़ी है । सीएम खुद कह रहे हैं कि स्टर्डिया घोटाला तो "क्रिस्टल क्लीयर" है । सवाल यह है कि जब घोटाले पूरी तरह से साफ हैं तो उन्हें अंजाम देने वाले गुनहगार आजाद कैसे घूम रहे हैं ? सीएम इन घोटालों की जांच सीबीआई को सौंपने की कई बार संकेत दे चुके हैं । लेकिन उनके ये संकेत तभी आते हैं जब विपक्ष हमलावर होता है ।
इस बार सरकार आपदा राहत घोटाले को लेकर विपक्ष के निशाने पर है और एक बार फिर मुख्यमंत्री ने भाजपा राज के घोटालों के जिन्न बोतल से बाहर निकाल दिए हैं। ये इस राज्य का दुर्भाग्य है कि यहां घोटालों का पर्दापाश दोषियों को सजा देने के लिये नहीं होता बल्कि सियासी हमलों से बचने के लिये ढाल की तरह से इस्तेमाल होता है । इस मालग मले में कोई भी सरकार पीछे नहीं रही है।