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माखन विजयवर्गीय
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देश में आज 69 वां स्वतंत्रता दिवस धूमधाम से मनाया जाएगा , हर शहर में समस्त शासकीय भवनों पर रौशनी होगी एवं समस्त शासकीय भवनों पर ध्वजारोहण किया जाएगा । लेकिन एक सवाल आम नागरिक के लिए है कि क्या आजादी के 68 वर्षों बाद भी सही मायने में आम आदमी स्वतंत्र हो पाया है । क्या आम नागरिक अपने मुलभुत अधिकार जानने के साथ उसकी देश के प्रति क्या जवाबदारी होना चाहिए यह तय कर पाया है । और क्या हमारे जनप्रतिनिधि आम नागरिक को मुलभुत सुविधाएं उपलब्ध करवा पाएं है । एक टीस हर समझदार व्यक्ति के दिमाग में कोंधती है कि आखिर कब हम अपनी जवाबदारी समझ पाएंगे । आजादी के 68 वर्ष बाद भी आज के इस दौर में जहाँ कई ग्रामीण क्षेत्रों में किसान आत्महत्या करने को मजबूर है वहीँ शहरी क्षेत्रों में रसूखदार तो अपने रसूख से गरीब के लिए बनी योजनाओं का फायदा उठा रहे है लेकिन गरीब कि हालत वहीँ कि वहीँ है । कई गरीब परिवार आज भी भूखे सोने को मजबूर है लेकिन प्रशासन ने कभी वास्तविक आकडे सर्वेक्षण करने कि जहमत नही उठाई ।
भारत का स्वतंत्रता दिवस प्रत्येक वर्ष 15 अगस्त को देश भर में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। लगभग 200 वर्षों की पराधीनता के पश्चात् 15 अगस्त 1947 को भारत स्वाधीन हुआ। एक लंबी कालावधि के बाद ब्रिटिश उपनिवेशवाद के चंगुल से छूटने पर भारत के लिए यह एक नए युग का शुभारंभ था। 15 अगस्त 1947 को भारत को ब्रिटिशराज से स्वतंत्र हो गया और भारत के राज व नियंत्रण की बागडोर देश के नेताओं को सौंप दी गई। भारत को स्वाधीनता की कीमत हज़ारों स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान व भारत के विभाजन के रुप में चुकानी पड़ी। हम ब्रिटिश उपनिवेशवाद से तो स्वतंत्र हो गए किन्तु क्या हम वास्तव में स्वतंत्र हैं? क्या हम स्वतंत्रता की बलिवेदी पर चढ़ने वाले अमर शहीदों के सपनों को साकार करने में सफल रहे? क्या हम जनसाधारण को रोटी, कपड़ा और महान दे पाए? क्या हम कश्मीर से कन्या कुमारी तक भारत को एक सूत्र में पिरो पाए? क्या हम भारत की राष्ट्र भाषा के मुद्दे पर एक-मत हो पाए? हम स्वाधीन होकर भी आधार भूत समस्याओं को हल नहीं कर पाए। क्या हम स्वतंत्रता की कसौटी पर खरे उतर पाए? ये कुछ प्रश्न हैं जिनपर विचार ही नहीं बल्कि कुछ ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।
अच्छे शिक्षकों के बावजूद नही मिल रही शिक्षा
शिक्षा के क्षेत्र में इतनी असमानता है, कि गरीब का बच्चा सरकारी स्कूल मे भी नहीं जा पाता और अच्छे स्कूलों में गरीब बच्चों के लिए आरक्षित सीटों पर अमीर बच्चे पढ़ाई करते हैं । सरकार ने सरकारी और गैर-सरकारी स्कूलों को मान्यता प्रदान कर ऐसी विषम परिस्थितियां पैदा कर दी हैं कि इस देश के नागरिकों को समान शिक्षा का अधिकार कभी प्राप्त नहीं हो सकता । किसी भी निजी स्कुल में शिक्षा के अधिकार कानून के अंतर्गत पढ़ने वाले बच्चों कि पारिवारिक स्थिति अगर जानी जाए तो ज्यादातर बच्चे रसूखदार नेता एवं पत्रकारों के ही निकलेंगे, ऐसे में आम गरीब को केसे उसका हक मिलेगा ।
तीर्थदर्शन योजना कि उडी धज्जियां
विगत कुछ वर्षों से मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना चालु कि गयी ताकि जो गरीब तीर्थ तक नही जा सकते उन्हें भी इस योजना के माध्यम से लाभ मिल सके । लेकिन यहाँ राजगढ़ जिले में पचोर शहर में तीर्थ दर्शन योजना को जो हश्र देखा उससे साफ़ जाहिर हो रहा है कि इस तरह कि योजनाएं सिर्फ सक्षम एवं जुगाडू लोगों के लिए ही है । विगत दिनों द्वारिका रामेश्वरम सहित अन्य तीर्थाटन के लिए नागरिकों से आवेदन आमंत्रित किए लेकिन जब यात्री रवाना हुए तो उनमे अधिकांश ऐसे यात्री थे जो करोड़पति एवं सक्षम थे शायद ही कोई गरीब इस योजना का लाभ ले पाया हो । शासन को चाहिए कि आम नागरिक एवं गरीबों कि जुडी इन योजनाओं कि मानिटरिंग हो ।
सरेआम हो रही कन्या भ्रूण हत्याएं
जिले में सरेआम निजी डिस्पेंसरियों पर कन्या भ्रूण हत्याएं हो रही है शासन इसके लिए कई योजनाएं बना चूका है लेकिन जब तक आम नागरिक अपनी जवाबदारी नही समझेगा भ्रूण ह्त्या नही रुक सकती । हाल ही में मध्यप्रदेश सरकार ने समस्त सोनोग्राफी सेंटरों को आनलाइन कर निगरानी रखने कि योजना तैयार कि है लेकिन ब्यावरा में ही एक शासकीय चिकित्सक कि पत्नी सरेआम 25 से 40 हजार में ठेका कर पांच से 6 महीने तक के गर्भ को समाप्त करने का कार्य कर रही है ,इसके अलावा भी पचोर शहर में झोलाछाप महिला चिकित्सक भ्रूण हत्या कर रही है जिनके क्लिनिक सिर्फ जिला चिकित्सालय में पंजीकृत ही है लेकिन चिकित्सा विभाग ने कभी गोपनीय जांच इन क्लीनिको कि नही कि है । ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या सोनोग्राफी सेंटर ऑनलाइन होने से ही भ्रूण हत्या रुक पाएगी ।
कब होगा आम नागरिक जागरूक
शासन ने स्वच्छता अभियान चलाया और गाँव गाँव में समग्र योजना के तहत शोचालय बनाए लेकिन अधिकाँश घटिया एवं दोयम दर्जे के शोचालय निर्मित होने कि वजह से आज भी गाँवों में आम आदमी खेतों एवं नदी नालों पर शोच करने जा रहा है । आखिर आम नागरिक कब जागरूक होगा । गंगा कि तर्ज पर हर शहर में स्थानीय नदियों पर स्वच्छता अभियान से आम नागरिकों को जोड़ने कि नितांत आवश्यकता है । आज जिले कि प्रमुख नदियों में कालीसिंध , नेवज , पार्वती, अजनार, गाडगंगा, छापी दुर्दशा कि शिकार है । अगर आम नागरिक जागरूक होकर इन नदियों को अपनी जीवनदायिनी समझे तो नदियों में स्वच्छ एवं निर्मल जल बहेगा । लेकिन इस विषय में आम नागरिक को जागरूक करने के साथ साथ शासन को भी नदियों के किनारे पानी कि सुविधा युक्त शोचालय निर्माण करने एवं जगह जगह कूडादान रखने के साथ ही रोजाना कूडादान कि सफाई कि व्यवस्था करना होगी उसके बाद जागरूकता अभियान चलाए जाए तो शायद नदियों के स्वच्छता कि मुहीम कामयाब हो सके ।
माखन विजयवर्गीय
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देश में आज 69 वां स्वतंत्रता दिवस धूमधाम से मनाया जाएगा , हर शहर में समस्त शासकीय भवनों पर रौशनी होगी एवं समस्त शासकीय भवनों पर ध्वजारोहण किया जाएगा । लेकिन एक सवाल आम नागरिक के लिए है कि क्या आजादी के 68 वर्षों बाद भी सही मायने में आम आदमी स्वतंत्र हो पाया है । क्या आम नागरिक अपने मुलभुत अधिकार जानने के साथ उसकी देश के प्रति क्या जवाबदारी होना चाहिए यह तय कर पाया है । और क्या हमारे जनप्रतिनिधि आम नागरिक को मुलभुत सुविधाएं उपलब्ध करवा पाएं है । एक टीस हर समझदार व्यक्ति के दिमाग में कोंधती है कि आखिर कब हम अपनी जवाबदारी समझ पाएंगे । आजादी के 68 वर्ष बाद भी आज के इस दौर में जहाँ कई ग्रामीण क्षेत्रों में किसान आत्महत्या करने को मजबूर है वहीँ शहरी क्षेत्रों में रसूखदार तो अपने रसूख से गरीब के लिए बनी योजनाओं का फायदा उठा रहे है लेकिन गरीब कि हालत वहीँ कि वहीँ है । कई गरीब परिवार आज भी भूखे सोने को मजबूर है लेकिन प्रशासन ने कभी वास्तविक आकडे सर्वेक्षण करने कि जहमत नही उठाई ।
भारत का स्वतंत्रता दिवस प्रत्येक वर्ष 15 अगस्त को देश भर में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। लगभग 200 वर्षों की पराधीनता के पश्चात् 15 अगस्त 1947 को भारत स्वाधीन हुआ। एक लंबी कालावधि के बाद ब्रिटिश उपनिवेशवाद के चंगुल से छूटने पर भारत के लिए यह एक नए युग का शुभारंभ था। 15 अगस्त 1947 को भारत को ब्रिटिशराज से स्वतंत्र हो गया और भारत के राज व नियंत्रण की बागडोर देश के नेताओं को सौंप दी गई। भारत को स्वाधीनता की कीमत हज़ारों स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान व भारत के विभाजन के रुप में चुकानी पड़ी। हम ब्रिटिश उपनिवेशवाद से तो स्वतंत्र हो गए किन्तु क्या हम वास्तव में स्वतंत्र हैं? क्या हम स्वतंत्रता की बलिवेदी पर चढ़ने वाले अमर शहीदों के सपनों को साकार करने में सफल रहे? क्या हम जनसाधारण को रोटी, कपड़ा और महान दे पाए? क्या हम कश्मीर से कन्या कुमारी तक भारत को एक सूत्र में पिरो पाए? क्या हम भारत की राष्ट्र भाषा के मुद्दे पर एक-मत हो पाए? हम स्वाधीन होकर भी आधार भूत समस्याओं को हल नहीं कर पाए। क्या हम स्वतंत्रता की कसौटी पर खरे उतर पाए? ये कुछ प्रश्न हैं जिनपर विचार ही नहीं बल्कि कुछ ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।
अच्छे शिक्षकों के बावजूद नही मिल रही शिक्षा
शिक्षा के क्षेत्र में इतनी असमानता है, कि गरीब का बच्चा सरकारी स्कूल मे भी नहीं जा पाता और अच्छे स्कूलों में गरीब बच्चों के लिए आरक्षित सीटों पर अमीर बच्चे पढ़ाई करते हैं । सरकार ने सरकारी और गैर-सरकारी स्कूलों को मान्यता प्रदान कर ऐसी विषम परिस्थितियां पैदा कर दी हैं कि इस देश के नागरिकों को समान शिक्षा का अधिकार कभी प्राप्त नहीं हो सकता । किसी भी निजी स्कुल में शिक्षा के अधिकार कानून के अंतर्गत पढ़ने वाले बच्चों कि पारिवारिक स्थिति अगर जानी जाए तो ज्यादातर बच्चे रसूखदार नेता एवं पत्रकारों के ही निकलेंगे, ऐसे में आम गरीब को केसे उसका हक मिलेगा ।
तीर्थदर्शन योजना कि उडी धज्जियां
विगत कुछ वर्षों से मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना चालु कि गयी ताकि जो गरीब तीर्थ तक नही जा सकते उन्हें भी इस योजना के माध्यम से लाभ मिल सके । लेकिन यहाँ राजगढ़ जिले में पचोर शहर में तीर्थ दर्शन योजना को जो हश्र देखा उससे साफ़ जाहिर हो रहा है कि इस तरह कि योजनाएं सिर्फ सक्षम एवं जुगाडू लोगों के लिए ही है । विगत दिनों द्वारिका रामेश्वरम सहित अन्य तीर्थाटन के लिए नागरिकों से आवेदन आमंत्रित किए लेकिन जब यात्री रवाना हुए तो उनमे अधिकांश ऐसे यात्री थे जो करोड़पति एवं सक्षम थे शायद ही कोई गरीब इस योजना का लाभ ले पाया हो । शासन को चाहिए कि आम नागरिक एवं गरीबों कि जुडी इन योजनाओं कि मानिटरिंग हो ।
सरेआम हो रही कन्या भ्रूण हत्याएं
जिले में सरेआम निजी डिस्पेंसरियों पर कन्या भ्रूण हत्याएं हो रही है शासन इसके लिए कई योजनाएं बना चूका है लेकिन जब तक आम नागरिक अपनी जवाबदारी नही समझेगा भ्रूण ह्त्या नही रुक सकती । हाल ही में मध्यप्रदेश सरकार ने समस्त सोनोग्राफी सेंटरों को आनलाइन कर निगरानी रखने कि योजना तैयार कि है लेकिन ब्यावरा में ही एक शासकीय चिकित्सक कि पत्नी सरेआम 25 से 40 हजार में ठेका कर पांच से 6 महीने तक के गर्भ को समाप्त करने का कार्य कर रही है ,इसके अलावा भी पचोर शहर में झोलाछाप महिला चिकित्सक भ्रूण हत्या कर रही है जिनके क्लिनिक सिर्फ जिला चिकित्सालय में पंजीकृत ही है लेकिन चिकित्सा विभाग ने कभी गोपनीय जांच इन क्लीनिको कि नही कि है । ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या सोनोग्राफी सेंटर ऑनलाइन होने से ही भ्रूण हत्या रुक पाएगी ।
कब होगा आम नागरिक जागरूक
शासन ने स्वच्छता अभियान चलाया और गाँव गाँव में समग्र योजना के तहत शोचालय बनाए लेकिन अधिकाँश घटिया एवं दोयम दर्जे के शोचालय निर्मित होने कि वजह से आज भी गाँवों में आम आदमी खेतों एवं नदी नालों पर शोच करने जा रहा है । आखिर आम नागरिक कब जागरूक होगा । गंगा कि तर्ज पर हर शहर में स्थानीय नदियों पर स्वच्छता अभियान से आम नागरिकों को जोड़ने कि नितांत आवश्यकता है । आज जिले कि प्रमुख नदियों में कालीसिंध , नेवज , पार्वती, अजनार, गाडगंगा, छापी दुर्दशा कि शिकार है । अगर आम नागरिक जागरूक होकर इन नदियों को अपनी जीवनदायिनी समझे तो नदियों में स्वच्छ एवं निर्मल जल बहेगा । लेकिन इस विषय में आम नागरिक को जागरूक करने के साथ साथ शासन को भी नदियों के किनारे पानी कि सुविधा युक्त शोचालय निर्माण करने एवं जगह जगह कूडादान रखने के साथ ही रोजाना कूडादान कि सफाई कि व्यवस्था करना होगी उसके बाद जागरूकता अभियान चलाए जाए तो शायद नदियों के स्वच्छता कि मुहीम कामयाब हो सके ।