पन्द्रह अगस्त का दिन कहता.
आजादी अभी अधूरी है...।
सपने सच होने बाकी हैं,
रावी की शपथ न पूरी है...।।
जिनकी लाशों पर पग धर कर
आजादी भारत में आई ।
वे अब तक खानाबदोश हैं
ग़म की काली बदली छाई।।
कलकत्ते की फुटपाथों पर जो
आँधी पानी सहते है...।
उनसे पूछो वे पन्द्रह अगस्त के
बारे में क्या कहते हैं...।।
हिन्दू के नाते यदि उनका दुख
सुनते तुम्हें यदि लाज आती.।
तो सीमा के उस पार चलो.
सभ्यता जहाँ कुचली जाती.।।
इन्सान जहाँ बेचा जाता
ईमान खरीदा जाता है.।
इस्लाम सिसकियाँ भरता है
डालर मन में मुस्काता है..।।
भूखों को गोली नंगो को..
हथियार पिन्हाये जाते हैं..।
सूखे कंठों से जेहादी
नारे लगवाए जाते हैं...।।
लाहौर, कराची ढाका पर है.
मातम की काली छाया..।
पख्तूनों पर गिलगित पर है
ग़मगीन गुलामी का साया..।।
बस इसीलिए तो कहता हूँ..
आज़ादी अभी अधूरी है.।
कैसे उल्लास मनाऊँ मैं..
बस थोड़े दिन की मजबूरी है..।।
दिन दूर नहीं खंडित भारत को
पुन :अखण्ड बनाएंगे..।
गिलगित से गारो पर्वत तक
आज़ादी... पर्व मनाएंगे...।।
उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से
कमर कसें बलिदान करें...।
जो पाया उसमे खो न जाएँ
जो खोया उसका ध्यान करें..।।
अटल बिहारी वाजपेयी.
आजादी अभी अधूरी है...।
सपने सच होने बाकी हैं,
रावी की शपथ न पूरी है...।।
जिनकी लाशों पर पग धर कर
आजादी भारत में आई ।
वे अब तक खानाबदोश हैं
ग़म की काली बदली छाई।।
कलकत्ते की फुटपाथों पर जो
आँधी पानी सहते है...।
उनसे पूछो वे पन्द्रह अगस्त के
बारे में क्या कहते हैं...।।
हिन्दू के नाते यदि उनका दुख
सुनते तुम्हें यदि लाज आती.।
तो सीमा के उस पार चलो.
सभ्यता जहाँ कुचली जाती.।।
इन्सान जहाँ बेचा जाता
ईमान खरीदा जाता है.।
इस्लाम सिसकियाँ भरता है
डालर मन में मुस्काता है..।।
भूखों को गोली नंगो को..
हथियार पिन्हाये जाते हैं..।
सूखे कंठों से जेहादी
नारे लगवाए जाते हैं...।।
लाहौर, कराची ढाका पर है.
मातम की काली छाया..।
पख्तूनों पर गिलगित पर है
ग़मगीन गुलामी का साया..।।
बस इसीलिए तो कहता हूँ..
आज़ादी अभी अधूरी है.।
कैसे उल्लास मनाऊँ मैं..
बस थोड़े दिन की मजबूरी है..।।
दिन दूर नहीं खंडित भारत को
पुन :अखण्ड बनाएंगे..।
गिलगित से गारो पर्वत तक
आज़ादी... पर्व मनाएंगे...।।
उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से
कमर कसें बलिदान करें...।
जो पाया उसमे खो न जाएँ
जो खोया उसका ध्यान करें..।।
अटल बिहारी वाजपेयी.