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मप्र में कांग्रेस की राजनीति एक बार फिर चर्चाओं में है,पीसीसी अध्यक्ष अरूण यादव द्वारा अपनी कार्यकरिणी की घोषणा करने के बाद पार्टी में अंदरूनी और सडकों पर उपजे विवाद से कांग्रेस आलाकमान प्रदेश नेतृत्व में फेरबदल कर सकता है। दिल्ली में पार्टी के बीच मप्र नेतृत्व परिवर्तन को लेकर हुई सुगबुहाट के बाद सूबे की कांग्रेस में राजनीति गर्मा गई है। माना जा रहा है पूर्व केन्द्रीय मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता कमलनाथ को मिशन 2018 को ध्यान में रखकर प्रदेश कांग्रेस की कमान सौपी जा सकती है। गुटबाजी के दलदल में फंसी सूबे की कांग्रेस की नैया पार लगाने के लिए कमल को नाथ बनाकर भेजा जा सकता है। पीसीसी पदाधिकारियों के चयन में मौजूदा अध्यक्ष अरूण द्वारा दरकिनार किए जाने से नाराज पार्टी के कई दिग्गज नेता लगातार नाराज चल रहे है,यहां तक प्रदेश पार्टी दफ्तर के सामने पुतला दहन और नारेबाजी से लेकर गोविंद गोयल ने दो अक्टूबर को गांधी जयंति पर मौन व्रत रखकर ना सिर्फ चरखा चलाया बल्कि मुंडन कराकर खुलेतौर पर अपना विरोध जताया। पूर्व उपाध्यक्ष माणक अग्रवाल भी पार्टी से नाराज चल रहे है। ऐसे में पार्टी के दो दिग्गज दिग्विजय सिंह,ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पीसीसी विवाद को निपटाने के लिए कमलनाथ को जिम्मेदारी सौपी है। कमलनाथ के बुलावे पर बुधवार को माणक अग्रवाल दिल्ली के रवाना भी हो चुके है। वहीं मीडिया में कमलनाथ को मप्र की कमान मिलने सकने की खबर आते ही पार्टी से नाराज चल रहे है विरोधी खेमा भी अब सक्रिय हो चुके है।
सूबे में लगातार हार का सामना कर रही कांग्रेस और गुटों में बिखरी पार्टी को एक सूत्र में पिरोकर मिशन 2018 के लिए एकजुट करना सूबे में सबसे बडी चुनौति है। वह भी उस समय जब बीजेपी का मजबूत संगठन और लगातार सत्ता में काबिज रहकर जनता में सरकार और संगठन की अच्छी छवि है,ऐसे में चाहे प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ क्यों न बन जाए लेकिन कमल को कांग्रेस का नाथ बन नैया पार लगाने में एडी चोटी का जोर लगाना होगा। चाहे मौजूदा प्रदेशाध्यक्ष अरूण यादव हो या नए अध्यक्ष के रूप में कमलनाथ की ताजपोशी होती भी है तो मुश्किल डगर है, विधानसभा चुनाव के दौरान ज्योतिरादित्य सिंधिया का चेहरा आगे किया गया था, लेकिन उस दौरान पार्टी आलाकमान द्वारा ऐन चुनाव के समय लिया गया निर्णय था और सिंधिया पूरे प्रदेश का दौरा भी नहीं कर पाए। लेकिन अब अगर हाईकमान मिशन 2018 को ध्यान में रखकर कमलनाथ के हाथ में कमान सौपती है तो न सिर्फ कमलनाथ के पास पर्याप्त समय होगा कि पार्टी को सूबे में पुर्नजीवित करें बल्कि मजबूत विपक्ष के रूप में सरकार और बीजेपी के सामने चुनौति बन सकते है। लेकिन कांग्रेस के लिए कैंसर बन चुकी गुटबाजी से निपटना सबसे बडी चुनौती है जिससे पीडित आज अरूण यादव भी है। ऐसे में सवाल खडा होना जाजिमी है कि चेहरे बदलने से क्या पार्टी की साख,दिशा और दशा बदलेगी..? राष्ट्रीय राजनीति में मप्र के तीन दिग्गज कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया नेतृत्व कर रहे है। दिग्विजय सिंह दस साल तक मुख्यमंत्री रह चुके है और आज भी उनका ग्राउड जीरों पर कार्यकर्ताओं की फौज तो है लेकिन जनता में छवि खराब है, सिंधिया और कमलनाथ के समर्थकों की कमी तो नहीं पर ये नेता अपने-अपने अंचल तक सीमट कर रह गए है। ऐसे में अगर कमलनाथ मप्र आते है तो प्रदेश में पार्टी की दशा और दिशा बदलने के लिए पार्टी की गुटीय राजनीति को जड से समाप्त करना होगा, चाहे इसके लिए कडे और सख्त फैसले क्यों न लेने पडे।
मप्र में कांग्रेस की राजनीति एक बार फिर चर्चाओं में है,पीसीसी अध्यक्ष अरूण यादव द्वारा अपनी कार्यकरिणी की घोषणा करने के बाद पार्टी में अंदरूनी और सडकों पर उपजे विवाद से कांग्रेस आलाकमान प्रदेश नेतृत्व में फेरबदल कर सकता है। दिल्ली में पार्टी के बीच मप्र नेतृत्व परिवर्तन को लेकर हुई सुगबुहाट के बाद सूबे की कांग्रेस में राजनीति गर्मा गई है। माना जा रहा है पूर्व केन्द्रीय मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता कमलनाथ को मिशन 2018 को ध्यान में रखकर प्रदेश कांग्रेस की कमान सौपी जा सकती है। गुटबाजी के दलदल में फंसी सूबे की कांग्रेस की नैया पार लगाने के लिए कमल को नाथ बनाकर भेजा जा सकता है। पीसीसी पदाधिकारियों के चयन में मौजूदा अध्यक्ष अरूण द्वारा दरकिनार किए जाने से नाराज पार्टी के कई दिग्गज नेता लगातार नाराज चल रहे है,यहां तक प्रदेश पार्टी दफ्तर के सामने पुतला दहन और नारेबाजी से लेकर गोविंद गोयल ने दो अक्टूबर को गांधी जयंति पर मौन व्रत रखकर ना सिर्फ चरखा चलाया बल्कि मुंडन कराकर खुलेतौर पर अपना विरोध जताया। पूर्व उपाध्यक्ष माणक अग्रवाल भी पार्टी से नाराज चल रहे है। ऐसे में पार्टी के दो दिग्गज दिग्विजय सिंह,ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पीसीसी विवाद को निपटाने के लिए कमलनाथ को जिम्मेदारी सौपी है। कमलनाथ के बुलावे पर बुधवार को माणक अग्रवाल दिल्ली के रवाना भी हो चुके है। वहीं मीडिया में कमलनाथ को मप्र की कमान मिलने सकने की खबर आते ही पार्टी से नाराज चल रहे है विरोधी खेमा भी अब सक्रिय हो चुके है।
सूबे में लगातार हार का सामना कर रही कांग्रेस और गुटों में बिखरी पार्टी को एक सूत्र में पिरोकर मिशन 2018 के लिए एकजुट करना सूबे में सबसे बडी चुनौति है। वह भी उस समय जब बीजेपी का मजबूत संगठन और लगातार सत्ता में काबिज रहकर जनता में सरकार और संगठन की अच्छी छवि है,ऐसे में चाहे प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ क्यों न बन जाए लेकिन कमल को कांग्रेस का नाथ बन नैया पार लगाने में एडी चोटी का जोर लगाना होगा। चाहे मौजूदा प्रदेशाध्यक्ष अरूण यादव हो या नए अध्यक्ष के रूप में कमलनाथ की ताजपोशी होती भी है तो मुश्किल डगर है, विधानसभा चुनाव के दौरान ज्योतिरादित्य सिंधिया का चेहरा आगे किया गया था, लेकिन उस दौरान पार्टी आलाकमान द्वारा ऐन चुनाव के समय लिया गया निर्णय था और सिंधिया पूरे प्रदेश का दौरा भी नहीं कर पाए। लेकिन अब अगर हाईकमान मिशन 2018 को ध्यान में रखकर कमलनाथ के हाथ में कमान सौपती है तो न सिर्फ कमलनाथ के पास पर्याप्त समय होगा कि पार्टी को सूबे में पुर्नजीवित करें बल्कि मजबूत विपक्ष के रूप में सरकार और बीजेपी के सामने चुनौति बन सकते है। लेकिन कांग्रेस के लिए कैंसर बन चुकी गुटबाजी से निपटना सबसे बडी चुनौती है जिससे पीडित आज अरूण यादव भी है। ऐसे में सवाल खडा होना जाजिमी है कि चेहरे बदलने से क्या पार्टी की साख,दिशा और दशा बदलेगी..? राष्ट्रीय राजनीति में मप्र के तीन दिग्गज कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया नेतृत्व कर रहे है। दिग्विजय सिंह दस साल तक मुख्यमंत्री रह चुके है और आज भी उनका ग्राउड जीरों पर कार्यकर्ताओं की फौज तो है लेकिन जनता में छवि खराब है, सिंधिया और कमलनाथ के समर्थकों की कमी तो नहीं पर ये नेता अपने-अपने अंचल तक सीमट कर रह गए है। ऐसे में अगर कमलनाथ मप्र आते है तो प्रदेश में पार्टी की दशा और दिशा बदलने के लिए पार्टी की गुटीय राजनीति को जड से समाप्त करना होगा, चाहे इसके लिए कडे और सख्त फैसले क्यों न लेने पडे।