अवधेश पुरोहित
Present - toc news
भोपाल। जिस तरह से पीने वालों को पीने का बहाना चाहिये ठीक उसी तरह से सट्टे के कारोबारियों को भी अपने कारोबार से लाभ कमाने के भी नये-नये तरीके नजर आने लगते हैं, फिर चाहे वह क्रिकेट को लेकर लगने वाला सट्टा हो या फिर बरसात कम पड़ेगी या ज्यादा, यही नहीं सट्टे के कारोबारी राजनीति को लेकर भी सट्टे का खेल खेलते हैं, ऐसा ही खेल इन दिनों इन कारोबारियों ने सिंहस्थ और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को लेकर करोड़ों का सट्टा इस बात को लेकर लग रहा है कि प्रदेश में होने वाले उज्जैन में होने वाले सिंहस्थ को लेकर जो किवदंतियां और भ्रांतियां बनी हुई हैं कि जब-जब सिंहस्थ हुआ है कोई न कोई मुख्यमंत्री या तो सिंहस्थ के बाद या सिंहस्थ के पहले सत्ता की कुर्सी से हटा है।
सिंहस्थ भले ही श्रद्धालुओं और धर्मप्रेमियों के साथ-साथ साधु और संतों के लिए महत्वपूर्ण हो लेकिन लगता है कि यह सिंहस्थ सट्टा कारोबारियों के लिये एक व्यापार का माध्यम बन गया है तभी तो इस समय प्रदेश के सट्टा कारोबारियों ने क्या शिवराज सिंह सिंहस्थ का मिथक तोड़ पाएंगे या नहीं इसको लेकर सट्टा बाजार में दांव लगाने का सिलसिला शुरू हो गया है ।
सूत्रों की यदि मानें तो इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर, रतलाम, बुरहानपुर, खण्डवा, खरगोन, गुना, शिवपुरी सहित प्रदेश के कई शहरों में सटोरिये इस बात को लेकर दांव लगा रहे हैं कि अभी तक इस कारोबार में सटोरियों द्वारा लगाये गये दांव का कारोबार लगभग १३० से १३५ करोड़ रुपये तक पहुंच गया है इसमें से करीब ८०-९० करोड़ का दांव तो केवल इस बात को लेकर लगाया गया था कि २४ सितम्बर को व्यापमं आरोपियों के यहां पड़े सीबीआई के छापे के बाद क्या कोई इस तरह के दस्तावेज इस छापे के दौरान प्राप्त होंगे जिसमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की कुर्सी प्रभावित हो पाएगी या नहीं?
यही नहीं इस छापे के बाद प्रदेश के चौक-चौराहों गली कूचों और होटलों के साथ-साथ राजनीतिज्ञ और कारोबारियों के ड्राइंग रूम के अलावा मंत्रालय से लेकर सड़क तक हर एक की जुबां पर एक ही सवाल था कि क्या व्यापमं घोटाला प्रदेश में राजनैतिक भूचाल ला सकता है या नहीं गौरतलब है कि राजनीतिक और क्रिकेट के खेल के बारे में यह किवदंती हमेशा बनी रहती है कि क्रिकेट का खेल और राजनीति के बारे में कभी कुछ कहा नहीं जा सकता। हालांकि सटोरियों और सट्टे से जुड़े कारोबारियों को इस कारोबार में लाभ कमाने के लिये कोई ना कोई बहाना चाहिये। यह कारोबारी क्रिकेट और राजनीतिक को लेकर सट्टा लगाने का कारोबार करते हैं तो यह कारोबारी इस बात को लेकर भी सट्टे का खेल खेलते हैं कि बरसात कम होगी या ज्यादा ?
इन्हें तो कोई न कोई बहाना चाहिये तो इस समय प्रदेश की राजनीति को लेकर कभी व्यापमं तो कभी मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर भी सट्टे का खेल खेला जाता है सटोरियों की यदि मानें तो यह सारा दांवबाजी का पूरा खेल दुबई के नियंत्रण से होता है लेकिन अभी प्रदेश स्तर पर जो सट्टा का दांव चर्चाओं में है
वह इस बात को लेकर है कि मध्यप्रदेश की स्थापना के बाद १९६८ में आयोजित सिंहस्थ के ११ महीने के भीतर १२ मार्च १९६९ को संविद शासनकाल के मुख्यमंत्री गोविंदनारायण सिंह को सिंहस्थ के बाद अपना पद त्यागना पड़ा था और तबसे लेकर आजतक कभी वीरेन्द्र कुमार सखलेचा तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के गुरु सुन्दरलाल पटवा के दो बार के शासनकाल के दौरान सिंहस्थ के बाद उन्हें अपनी कुर्सी गंवाना पड़ी यही नहीं यह सिलसिला २१वीं सदी में २००३ के बाद जहां सिंहस्थ के पहले दिग्विजय सिंह को चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा था
तो वहीं प्रदेश के राजीतिज्ञों में सुन्दालाल पटवा, कैलाश जोशी, कप्तानसिंह सोलंकी, पितृपुरुष के नाम से जाने जानेवाले कुशाभाऊ ठाकरे, राजामा विजयाराजे सिंधिया सहित कई दिग्गज नेताओं के होने के बावजूद भी भारतीय जनता पार्टी ने अपने जनसंघ से लेकर २००३ तक इतने भारी भरकम बहुमत से प्रदेश की सत्ता में काबिज हुई, जितनी की उमा भारती ने भाजपा को दिलाया था और वह सिलसिला आज भी जारी है लेकिन उन उमा भारती को भी भारी भरकम बहुमत होने के बावजूद भी तिरंग के अपमान के चलते प्रदेश चली राजनीतिक उठापटक के चलते कुर्सी गंवानी पड़ी,
अब सवाल यह उठता है कि क्या सिंहस्थ और सिंहस्थ के बाद सत्ता से हटे मुख्यमंत्रियों की श्रृंखला को क्या शिवराज सिंह चौहान कायम रख पाएंगे या नहीं या फिर वह प्रदेश के अभी तक के मुख्यमंत्रियों के सबसे ज्यादा सत्ता पर काबिज होने का जो रिकार्ड तोडऩे में कामयाब हुए हैं वह सिंहस्थ को लेकर भी ऐसा इतिहास बना पाएंगे। सटोरियों की यदि मानें तो मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की कुर्सी को कोई खतरा नहीं बताया जा रहा है, लेकिन फिर भी सट्टे के कारोबार के बारे में शिवराज सिंह चौहान और सिंहस्थ को लेकर करोड़ों का सट्टा लगा हुआ है और जैसे-जैसे सिंहस्थ का समय करीब आएगा यह सट्टे का कारोबार पर शिवराज को लेकर दांव लगाने का क्रम बढ़ता जाएगा।
सटोरियों को लग रहा है कि शिवराज के पक्ष के दांव लगाने से फायदा ज्यादा होगा लिहाजा इस समय शिवराज के पक्ष में एक रुपये पर ७५ पैसे का भाव मिल रहा है जबकि विपक्ष में एक रुपये पर १.३५ का भाव चल रहा है, सट्टा कारोबार में यह प्रचलित है कि जिसके लिये भाव ज्यादा मिलता है उसका मतलब उसकी कम उम्मीद होती है, मामला जो भी हो लेकिन इन दिनों सट्टा कारोबार में सिंहस्थ और शिवराज को लेकर दांव लगाने का क्रम लगातार बढ़ता जा रहा है।
(हिन्द न्यूज सर्विस)
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भोपाल। जिस तरह से पीने वालों को पीने का बहाना चाहिये ठीक उसी तरह से सट्टे के कारोबारियों को भी अपने कारोबार से लाभ कमाने के भी नये-नये तरीके नजर आने लगते हैं, फिर चाहे वह क्रिकेट को लेकर लगने वाला सट्टा हो या फिर बरसात कम पड़ेगी या ज्यादा, यही नहीं सट्टे के कारोबारी राजनीति को लेकर भी सट्टे का खेल खेलते हैं, ऐसा ही खेल इन दिनों इन कारोबारियों ने सिंहस्थ और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को लेकर करोड़ों का सट्टा इस बात को लेकर लग रहा है कि प्रदेश में होने वाले उज्जैन में होने वाले सिंहस्थ को लेकर जो किवदंतियां और भ्रांतियां बनी हुई हैं कि जब-जब सिंहस्थ हुआ है कोई न कोई मुख्यमंत्री या तो सिंहस्थ के बाद या सिंहस्थ के पहले सत्ता की कुर्सी से हटा है।
सिंहस्थ भले ही श्रद्धालुओं और धर्मप्रेमियों के साथ-साथ साधु और संतों के लिए महत्वपूर्ण हो लेकिन लगता है कि यह सिंहस्थ सट्टा कारोबारियों के लिये एक व्यापार का माध्यम बन गया है तभी तो इस समय प्रदेश के सट्टा कारोबारियों ने क्या शिवराज सिंह सिंहस्थ का मिथक तोड़ पाएंगे या नहीं इसको लेकर सट्टा बाजार में दांव लगाने का सिलसिला शुरू हो गया है ।
सूत्रों की यदि मानें तो इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर, रतलाम, बुरहानपुर, खण्डवा, खरगोन, गुना, शिवपुरी सहित प्रदेश के कई शहरों में सटोरिये इस बात को लेकर दांव लगा रहे हैं कि अभी तक इस कारोबार में सटोरियों द्वारा लगाये गये दांव का कारोबार लगभग १३० से १३५ करोड़ रुपये तक पहुंच गया है इसमें से करीब ८०-९० करोड़ का दांव तो केवल इस बात को लेकर लगाया गया था कि २४ सितम्बर को व्यापमं आरोपियों के यहां पड़े सीबीआई के छापे के बाद क्या कोई इस तरह के दस्तावेज इस छापे के दौरान प्राप्त होंगे जिसमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की कुर्सी प्रभावित हो पाएगी या नहीं?
यही नहीं इस छापे के बाद प्रदेश के चौक-चौराहों गली कूचों और होटलों के साथ-साथ राजनीतिज्ञ और कारोबारियों के ड्राइंग रूम के अलावा मंत्रालय से लेकर सड़क तक हर एक की जुबां पर एक ही सवाल था कि क्या व्यापमं घोटाला प्रदेश में राजनैतिक भूचाल ला सकता है या नहीं गौरतलब है कि राजनीतिक और क्रिकेट के खेल के बारे में यह किवदंती हमेशा बनी रहती है कि क्रिकेट का खेल और राजनीति के बारे में कभी कुछ कहा नहीं जा सकता। हालांकि सटोरियों और सट्टे से जुड़े कारोबारियों को इस कारोबार में लाभ कमाने के लिये कोई ना कोई बहाना चाहिये। यह कारोबारी क्रिकेट और राजनीतिक को लेकर सट्टा लगाने का कारोबार करते हैं तो यह कारोबारी इस बात को लेकर भी सट्टे का खेल खेलते हैं कि बरसात कम होगी या ज्यादा ?
इन्हें तो कोई न कोई बहाना चाहिये तो इस समय प्रदेश की राजनीति को लेकर कभी व्यापमं तो कभी मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर भी सट्टे का खेल खेला जाता है सटोरियों की यदि मानें तो यह सारा दांवबाजी का पूरा खेल दुबई के नियंत्रण से होता है लेकिन अभी प्रदेश स्तर पर जो सट्टा का दांव चर्चाओं में है
वह इस बात को लेकर है कि मध्यप्रदेश की स्थापना के बाद १९६८ में आयोजित सिंहस्थ के ११ महीने के भीतर १२ मार्च १९६९ को संविद शासनकाल के मुख्यमंत्री गोविंदनारायण सिंह को सिंहस्थ के बाद अपना पद त्यागना पड़ा था और तबसे लेकर आजतक कभी वीरेन्द्र कुमार सखलेचा तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के गुरु सुन्दरलाल पटवा के दो बार के शासनकाल के दौरान सिंहस्थ के बाद उन्हें अपनी कुर्सी गंवाना पड़ी यही नहीं यह सिलसिला २१वीं सदी में २००३ के बाद जहां सिंहस्थ के पहले दिग्विजय सिंह को चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा था
तो वहीं प्रदेश के राजीतिज्ञों में सुन्दालाल पटवा, कैलाश जोशी, कप्तानसिंह सोलंकी, पितृपुरुष के नाम से जाने जानेवाले कुशाभाऊ ठाकरे, राजामा विजयाराजे सिंधिया सहित कई दिग्गज नेताओं के होने के बावजूद भी भारतीय जनता पार्टी ने अपने जनसंघ से लेकर २००३ तक इतने भारी भरकम बहुमत से प्रदेश की सत्ता में काबिज हुई, जितनी की उमा भारती ने भाजपा को दिलाया था और वह सिलसिला आज भी जारी है लेकिन उन उमा भारती को भी भारी भरकम बहुमत होने के बावजूद भी तिरंग के अपमान के चलते प्रदेश चली राजनीतिक उठापटक के चलते कुर्सी गंवानी पड़ी,
अब सवाल यह उठता है कि क्या सिंहस्थ और सिंहस्थ के बाद सत्ता से हटे मुख्यमंत्रियों की श्रृंखला को क्या शिवराज सिंह चौहान कायम रख पाएंगे या नहीं या फिर वह प्रदेश के अभी तक के मुख्यमंत्रियों के सबसे ज्यादा सत्ता पर काबिज होने का जो रिकार्ड तोडऩे में कामयाब हुए हैं वह सिंहस्थ को लेकर भी ऐसा इतिहास बना पाएंगे। सटोरियों की यदि मानें तो मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की कुर्सी को कोई खतरा नहीं बताया जा रहा है, लेकिन फिर भी सट्टे के कारोबार के बारे में शिवराज सिंह चौहान और सिंहस्थ को लेकर करोड़ों का सट्टा लगा हुआ है और जैसे-जैसे सिंहस्थ का समय करीब आएगा यह सट्टे का कारोबार पर शिवराज को लेकर दांव लगाने का क्रम बढ़ता जाएगा।
सटोरियों को लग रहा है कि शिवराज के पक्ष के दांव लगाने से फायदा ज्यादा होगा लिहाजा इस समय शिवराज के पक्ष में एक रुपये पर ७५ पैसे का भाव मिल रहा है जबकि विपक्ष में एक रुपये पर १.३५ का भाव चल रहा है, सट्टा कारोबार में यह प्रचलित है कि जिसके लिये भाव ज्यादा मिलता है उसका मतलब उसकी कम उम्मीद होती है, मामला जो भी हो लेकिन इन दिनों सट्टा कारोबार में सिंहस्थ और शिवराज को लेकर दांव लगाने का क्रम लगातार बढ़ता जा रहा है।
(हिन्द न्यूज सर्विस)