💥SC/ST एक्ट में संशोधन💥
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🔻नई दिल्ली, SC/ST ACT में अब फंसने पर और बढ़ेंगी मुश्किलें, आरोपी को ही साबित करना होगा खुद को बेकसूर🔺
आने वाले हफ्ते से जातिगत भेदभाव के केस में फंसने वालों की मुश्किलें और बढ़ने वाली हैं।
संशोधित एसएसटी एक्ट (amended Prevention of SC/ST Atrocities Act या POA) के तहत अब दलित और आदिवासियों के खिलाफ होने वाले अपराध के मामले में आरोपी को ही साबित करना होगा कि वो दोषी नहीं है। संशोधित एक्ट के मुताबिक, कोर्ट यह मानकर चलेगा कि आरोपी अगर पीड़ित या उसके घरवालों का परिचित है तो उसे पीड़ित की जाति के बारे में जानकारी थी, जबतक कि इसका उलट साबित न हो जाए। इससे पहले तक शिकायतकर्ता पर ही सबूत देने की जिम्मेदारी थी।
पिछले शीतकालीन सत्र में संसद ने नया कानून पास किया था, जो मंगलवार से प्रभाव में आएगा। ये कानून ऐसे वक्त में प्रभावी होने वाला है, जब हैदराबाद यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट रोहित वेमुला की आत्महत्या का मामला पूरे देश में छाया हुआ है।
क्या है कानून में:
संशोधित एक्ट में 17 नए अपराधों को शामिल किया गया है, जिसके आधार पर छह महीने से लेकर पांच साल तक की कैद हो सकती है। इनमें ‘अनुसूचित जाति के लोगों या आदिवासियों के बीच ऊंचा आदर हासिल करने वाले’ किसी मृत शख्स का अनादर भी शामिल है। हालांकि, एक्ट में उन मृत आदरप्राप्त लोगों के नाम साफ नहीं किए गए हैं, जिनका ‘लिखित या मौखिक शब्दों से अनादर’ नहीं किया जा सकता।
संशोधित एक्ट में जिन अपराधों को शामिल किया गया है, उनमें सिर के बाल छीलना या मूंछ काटना, चप्पलों की हार पहनाना, सिंचाई की सुविधा देने से इनकार करना, किसी दलित या आदिवासी को मानव या जानवर का शव ठिकाने लगाने के लिए बाध्य करना, जातिगत नामों से गालियां देना, मल ढुलवाना या इसके लिए बाध्य करना, सामाजिक या आर्थिक बहिष्कार, चुनाव लड़ने से एससी या एसटी कैंडिडेट को रोकना, घर या गांव छोडने के लिए बाध्य करना, एससी या एसटी महिला के कपड़े उतरवाकर उसके सम्मान को ठेस पहुंचाना, महिला को छूना या उसके खिलाफ अपशब्दों का इस्तेमाल करना आदि प्रमुख हैं।
अफसरों पर भी होगी कार्रवाई:
इस एक्ट में यह भी कहा गया है कि अगर कोई गैर दलित या गैर आदिवासी पब्लिक सर्वेंट दलितों के खिलाफ होने वाले अपराधों को लेकर अपनी जिम्मेदारियों का ठीक ढंग से पालन नहीं करता तो उसे छह महीने से लेकर एक साल तक की जेल हो सकती है। नए कानून के तहत एससी और एसटी के खिलाफ मामलों के लिए अलग से कोर्ट बनाने का भी प्रावधान है। इन अदालतों को मामले पर खुद से संज्ञान लेने की आजादी होगी। चार्जशीट दाखिल करने के दो महीने के अंदर ये कोर्ट सुनवाई पूरी कर लेंगे।
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🔻नई दिल्ली, SC/ST ACT में अब फंसने पर और बढ़ेंगी मुश्किलें, आरोपी को ही साबित करना होगा खुद को बेकसूर🔺
आने वाले हफ्ते से जातिगत भेदभाव के केस में फंसने वालों की मुश्किलें और बढ़ने वाली हैं।
संशोधित एसएसटी एक्ट (amended Prevention of SC/ST Atrocities Act या POA) के तहत अब दलित और आदिवासियों के खिलाफ होने वाले अपराध के मामले में आरोपी को ही साबित करना होगा कि वो दोषी नहीं है। संशोधित एक्ट के मुताबिक, कोर्ट यह मानकर चलेगा कि आरोपी अगर पीड़ित या उसके घरवालों का परिचित है तो उसे पीड़ित की जाति के बारे में जानकारी थी, जबतक कि इसका उलट साबित न हो जाए। इससे पहले तक शिकायतकर्ता पर ही सबूत देने की जिम्मेदारी थी।
पिछले शीतकालीन सत्र में संसद ने नया कानून पास किया था, जो मंगलवार से प्रभाव में आएगा। ये कानून ऐसे वक्त में प्रभावी होने वाला है, जब हैदराबाद यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट रोहित वेमुला की आत्महत्या का मामला पूरे देश में छाया हुआ है।
क्या है कानून में:
संशोधित एक्ट में 17 नए अपराधों को शामिल किया गया है, जिसके आधार पर छह महीने से लेकर पांच साल तक की कैद हो सकती है। इनमें ‘अनुसूचित जाति के लोगों या आदिवासियों के बीच ऊंचा आदर हासिल करने वाले’ किसी मृत शख्स का अनादर भी शामिल है। हालांकि, एक्ट में उन मृत आदरप्राप्त लोगों के नाम साफ नहीं किए गए हैं, जिनका ‘लिखित या मौखिक शब्दों से अनादर’ नहीं किया जा सकता।
संशोधित एक्ट में जिन अपराधों को शामिल किया गया है, उनमें सिर के बाल छीलना या मूंछ काटना, चप्पलों की हार पहनाना, सिंचाई की सुविधा देने से इनकार करना, किसी दलित या आदिवासी को मानव या जानवर का शव ठिकाने लगाने के लिए बाध्य करना, जातिगत नामों से गालियां देना, मल ढुलवाना या इसके लिए बाध्य करना, सामाजिक या आर्थिक बहिष्कार, चुनाव लड़ने से एससी या एसटी कैंडिडेट को रोकना, घर या गांव छोडने के लिए बाध्य करना, एससी या एसटी महिला के कपड़े उतरवाकर उसके सम्मान को ठेस पहुंचाना, महिला को छूना या उसके खिलाफ अपशब्दों का इस्तेमाल करना आदि प्रमुख हैं।
अफसरों पर भी होगी कार्रवाई:
इस एक्ट में यह भी कहा गया है कि अगर कोई गैर दलित या गैर आदिवासी पब्लिक सर्वेंट दलितों के खिलाफ होने वाले अपराधों को लेकर अपनी जिम्मेदारियों का ठीक ढंग से पालन नहीं करता तो उसे छह महीने से लेकर एक साल तक की जेल हो सकती है। नए कानून के तहत एससी और एसटी के खिलाफ मामलों के लिए अलग से कोर्ट बनाने का भी प्रावधान है। इन अदालतों को मामले पर खुद से संज्ञान लेने की आजादी होगी। चार्जशीट दाखिल करने के दो महीने के अंदर ये कोर्ट सुनवाई पूरी कर लेंगे।