अवधेश पुरोहित // toc news
भोपाल। राजधानी से सटे जिला रायसेन के सेहतगंज में संचालित सोम डिस्टलरी के द्वारा बेतवा के प्रदूषण के मामले को लेकर राज्य विधानसभा की याचिका समिति द्वारा उक्त फैक्ट्री के एक बार नहीं अनेकों बार जांच के दौराननिरीक्षण किया था और पाया था कि सोम डिस्टलरी द्वारा बेतवा को प्रदूषित किया जा रहा है यही नहीं उस समय विदिशा के तत्कालीन सांसद होने के नाते मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा इसके विरोध में एक बाल्टी प्रदूषित पानी लेकर सेहतगंज से राजधानी स्थित प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कार्यालय तक पदयात्रा की थी और वहां उपस्थित एक कार्यपालन यंत्री के मुंह पर कालिख पोतकर अपना विरोध दर्ज कराया था लेकिन यह सब विपक्षी नेता होने के नाते उन्होंने किया था लेकिन आज वह जब सत्ता में हैं तो प्रदेश में प्रदूषण की स्थिति इतनी गंभीर है कि राज्य के विंध्य क्षेत्र के चार जिलों में पैदा होने वाले बच्चे आज भी प्रदूषण के कारण तमाम बीमारियां साथ लेकर जन्म ले रहे हैं
यह स्थिति अभी केवल विंध्य की इसलिये है कि वहां के डॉक्टरों ने इस पर मनन किया और इसका खुलासा करने की हिम्मत जुटाई लेकिन राज्य के अन्य जिलों में जहां बड़े-बड़े कलकारखानों की चिमनियां जहरीला धुंआ उगल रही हैं जिसकी वजह से राज्य का जनजीवन प्रभावित हो रहा है तो वहीं इस प्रदूषण के कारण जलवायु पर भी असर पड़ रहा है,
लेकिन मजे की बात यह है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की स्थापना राज्य में जिस उद्देश्य से की गई थी उसकी पूर्ति होती नजर नहीं आ रही है इसके पीछे का कारण क्या है इसका भी खुलासा सोम डिस्टलरी के द्वारा बेतवा प्रदूषण को लेकर दी गई रिपोर्ट में याचिका समिति द्वारा किया गया था और उसमें कहा गया था कि राज्य के प्रदूषण मण्डल बोर्ड का चपरासी से लेकर अध्यक्ष तक सभी उक्त फैक्टरी के संचालकों से इस तरह से प्रभावित हैं कि वह अपने कर्तव्यों को भूलकर डिस्टलरी के संचालकों के हितों की रक्षा करने में लगे हुए हैं हालांकि यह रिपोर्ट १९९८ में विधानसभा के पटल पर रखी गई थी और उस समय दिग्विजय सिंह का शासनकाल था लेकिन आज जब सोम डिस्टलरी के द्वारा फैलाए जा रहे प्रदूषण के मुद्दे को लेकर जिन शिवराज सिंह चौहान ने प्रदूषण मण्डल बोर्ड के ईई का मुंह काला करके विरोध दर्ज किया था,
वह सत्ता में हैं यह भी नहीं कहा जा सकता कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कर्मचारियों की कार्यप्रणाली से वह परिचित न हों और वह भूल गए हों कि लक्ष्मी दर्शन के फेर में बोर्ड में क्या कुछ चल रहा है मगर शायद अब उन्हें इस प्रदेश में फैल रहे प्रदूषण की चिंता नहीं है तभी तो यह सब खेल धड़ल्ले से चल रहा है और राज्य में दिनोंदिन प्रदूषण बड़ रहा है मजे की बात तो यह है कि जिस प्रदूषण मण्डल के द्वारा राज्य के लोगों को प्रदूषण से मुक्ति दिलाने के लिए भारी भरकम राशि खर्च कर मशीनें तो खरीद रखी हैं लेकिन उनके द्वारा की जिन नमूनों की जांच की जाती है वह सभी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के सामने जाकर फेल हो जाते हैं
इसके पीछे क्या कारण है यह वही जानें ऐसा भी नहीं है कि मण्डल में इन मशीनों को संचालित करने वाले एक्पर्टों की कमी हो मगर सब खेल लक्ष्मी दर्शन का है, जिसके चलते राज्य में प्रदूषण फैलाने वाली इकाईयों को बोर्ड का संरक्षण प्राप्त है। ऐसे एक नहीं अनेकों मामले हैं जिनमें राज्य के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्टों में तो सबकुछ ठीकठाक नजर आता है लेकिन ग्रीन ट्रिब्यूनल के सामने उनके द्वारा की गई अधिकांश जांच रिपोर्टें अमान्य नजर आती है फिर चाहे वह मामला विंध्याचल डिस्टलरी का हो या अन्य डिस्टलिरयों का, राज्य में स्थापित आठ डिस्टलरियों में से सात डिस्टलरियों को ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा प्रदूषण फैलाने को लेकर नोटिस जारी किये गये हैं इससे यह साफ जाहिर हो जाता है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में सबकुछ लक्ष्मी दर्शन का खेल चल रहा है।
राज्य की चाहे मण्डीदीप हो या औद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर, नागदा, नीमच का खोर, सतना, सीधी, सिंगरौली, झाबुआ स्थित मेघनगर, बड़वाह, खंडवा, खरगोन, धार, कटनी, रीवा, पीलूखेड़ी या फिर रतलाम का मामला हो राज्य का शायद ही कोई ऐसा औद्योगिक क्षेत्र हो जहां स्थापित उद्योगों द्वारा प्रदूषण न फैलाया जा रहा हो, तो वहीं राज्य के तमाम शहरों के सीवेज फार्मिंग के मामलों की भी यही हालत है पीसीबी के द्वारा जब-जब भी अपनी रिपोर्ट पेश की गई तो वह ग्रीन ट्रिब्यूनल में फेल हो गई, ग्रीन ट्रिब्यूनल के समक्ष पीसीबी के द्वारा नमूनों की जांच के बाद दर्जनों बार ग्रीन ट्रिब्यूनल में बीपीसी की रिपोर्ट्स को फेल होने और कोर्ट के द्वारा आवेदक की उपस्थिति में सेम्पल जांच के आदेश से पीबीसी की विश्वसनीयता पर तमाम सवाल खड़े हो रहे हैं, ऐसा ही नहीं कि पीबीसी की लैब के द्वारा उद्योागों के द्वारा फैलाए जा रहे प्रदूषण के नमूने को ग्रीन ट्रिब्यूनल ने नकारा हो लगभग यही स्थिति पानी के मामले की है, पानी के सेम्पल की रिपोटर््स चार बार फेल हुई तो पीबीसी की ही लैब में बाहरी एक्सपर्ट से जांच कराने के आदेश ग्रीन ट्रिब्यूनल ने दिये।
कुल मिलाकर राज्य में पीबीसी की स्थापना जिस उद्देश्य से की गई थी लगता है उसके अधिकारी उस उद्देश्यों को ध्यान में न रखते हुए राज्य के जनजीवन के साथ खिलवाड़ करने में लगे हुए हैं, यदि यही स्थिति रही तो राज्य में पर्यावरण की क्या हालत होगी यह कहा नहीं जा सकता है, यदि किसी निष्पक्ष जांच ऐसी द्वारा राज्य भर के औद्योगिक केन्द्रों और कलकारखानों के आसपास रहने वाले बस्तियों और शहरों के निवासियों के स्वास्थ्य का परीक्षण कराया जाए तो यह साफ हो जाएगा कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों की लापरवाही के चलते राज्य के अधिकांश लोग कितनी भयंकर बीमारियों से जूझ रहे हैं तो वहीं राज्य के अधिकांश आबादी के निवासियों को पीसीबी के अधिकारियों की लापरवाही के चलते शुद्ध पेयजल भी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है
हालांकि कहने को हर बार जांच होती है और सेम्पल लिये जाते हैं लेकिन राजधानी के तालाबों के पानी के भी कई बार नमूने लिये गये लेकिन यह स्थिति है कि शहर के पास सीवेज फार्मिंग के मामले में हाल ही में जो सुनवाई हुई है, उसमें पीसीबी की चार बार रिपोर्ट फेल हुई है। पांचवीं बार कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा कि सेंपल्स की जांच आवेदक के सामने हो, रिपोर्ट एक्सपर्ट ही तैयार करेंगे। इसका मतलब एक वैज्ञानिक स्तर की संस्था द्वारा तैयार की गई जांच रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर भी सवाल हो सकता है।
डॉ. पांडे के अनुसार पीसीबी ने दो साल तक मशीनें खराब होने की स्थिति में भी जांच रिपोर्टस तैयार कर दी हैं। सवाल यह उठता है कि बार-बार इस तरह की सेम्पल की जांच रिपोर्टें क्यों फेल होती हैं इसके पीछे कारण जो भी यह जांच का विषय है लेकिन राज्य के निवासियों को शुद्ध पर्यावरण उपलब्ध कराने के लिये जिम्मेदार संस्था आखिर अपने उद्देश्यों से क्यों भटक रही है, सोम डिस्टलरी के द्वारा बेतवा प्रदूषण को लेकर राज्य विधानसभा में रखी गई जांच रिपोर्ट में पीसीबी के अध्यक्ष से लेकर अदने से कर्मचारी तक जिस तरह की बात रिपोर्ट में कही गई थी क्या उस तरह की बोर्ड के अधिकारियों की नीति आज भी जारी है और इसी के चलते वह राज्य के जनजीवन के हितों की रक्षा करने की बजाए अपने हितों की रक्षा में कुछ ज्यादा ही गंभीर नजर आ रहे हैं तभी राज्य में प्रदूषण फैलाने का खेल और जांच नमूने फेल होने का खेल धड़ल्ले से चल रहा है।
जिसकी ओर सोम डिस्टलरी के विरोध में एक बाल्टी पानी लेकर भोपाल तक पदयात्रा करने वाले मुख्यमंत्री को भी उन दिनों की याद ताजा कर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों के खिलाफ कठोर कदम उठाना पड़ेंगे नहीं तो राज्य में प्रदूषण की स्थिति बद से बदतर हो जाएगी वैसे भी राज्य के अनेक शहर भी आज प्रदूषण की चपेट में हैं तो वहीं जनजीवन इस प्रदूषण की मार से तमाम बीमारियों से ग्रस्त है, यदि यही स्थिति बनी रही तो आखिर सरकार का स्वर्णिम विकास की मुहिम किसके लिये यह शोध का विषय है।
भोपाल। राजधानी से सटे जिला रायसेन के सेहतगंज में संचालित सोम डिस्टलरी के द्वारा बेतवा के प्रदूषण के मामले को लेकर राज्य विधानसभा की याचिका समिति द्वारा उक्त फैक्ट्री के एक बार नहीं अनेकों बार जांच के दौराननिरीक्षण किया था और पाया था कि सोम डिस्टलरी द्वारा बेतवा को प्रदूषित किया जा रहा है यही नहीं उस समय विदिशा के तत्कालीन सांसद होने के नाते मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा इसके विरोध में एक बाल्टी प्रदूषित पानी लेकर सेहतगंज से राजधानी स्थित प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कार्यालय तक पदयात्रा की थी और वहां उपस्थित एक कार्यपालन यंत्री के मुंह पर कालिख पोतकर अपना विरोध दर्ज कराया था लेकिन यह सब विपक्षी नेता होने के नाते उन्होंने किया था लेकिन आज वह जब सत्ता में हैं तो प्रदेश में प्रदूषण की स्थिति इतनी गंभीर है कि राज्य के विंध्य क्षेत्र के चार जिलों में पैदा होने वाले बच्चे आज भी प्रदूषण के कारण तमाम बीमारियां साथ लेकर जन्म ले रहे हैं
यह स्थिति अभी केवल विंध्य की इसलिये है कि वहां के डॉक्टरों ने इस पर मनन किया और इसका खुलासा करने की हिम्मत जुटाई लेकिन राज्य के अन्य जिलों में जहां बड़े-बड़े कलकारखानों की चिमनियां जहरीला धुंआ उगल रही हैं जिसकी वजह से राज्य का जनजीवन प्रभावित हो रहा है तो वहीं इस प्रदूषण के कारण जलवायु पर भी असर पड़ रहा है,
लेकिन मजे की बात यह है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की स्थापना राज्य में जिस उद्देश्य से की गई थी उसकी पूर्ति होती नजर नहीं आ रही है इसके पीछे का कारण क्या है इसका भी खुलासा सोम डिस्टलरी के द्वारा बेतवा प्रदूषण को लेकर दी गई रिपोर्ट में याचिका समिति द्वारा किया गया था और उसमें कहा गया था कि राज्य के प्रदूषण मण्डल बोर्ड का चपरासी से लेकर अध्यक्ष तक सभी उक्त फैक्टरी के संचालकों से इस तरह से प्रभावित हैं कि वह अपने कर्तव्यों को भूलकर डिस्टलरी के संचालकों के हितों की रक्षा करने में लगे हुए हैं हालांकि यह रिपोर्ट १९९८ में विधानसभा के पटल पर रखी गई थी और उस समय दिग्विजय सिंह का शासनकाल था लेकिन आज जब सोम डिस्टलरी के द्वारा फैलाए जा रहे प्रदूषण के मुद्दे को लेकर जिन शिवराज सिंह चौहान ने प्रदूषण मण्डल बोर्ड के ईई का मुंह काला करके विरोध दर्ज किया था,
वह सत्ता में हैं यह भी नहीं कहा जा सकता कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कर्मचारियों की कार्यप्रणाली से वह परिचित न हों और वह भूल गए हों कि लक्ष्मी दर्शन के फेर में बोर्ड में क्या कुछ चल रहा है मगर शायद अब उन्हें इस प्रदेश में फैल रहे प्रदूषण की चिंता नहीं है तभी तो यह सब खेल धड़ल्ले से चल रहा है और राज्य में दिनोंदिन प्रदूषण बड़ रहा है मजे की बात तो यह है कि जिस प्रदूषण मण्डल के द्वारा राज्य के लोगों को प्रदूषण से मुक्ति दिलाने के लिए भारी भरकम राशि खर्च कर मशीनें तो खरीद रखी हैं लेकिन उनके द्वारा की जिन नमूनों की जांच की जाती है वह सभी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के सामने जाकर फेल हो जाते हैं
इसके पीछे क्या कारण है यह वही जानें ऐसा भी नहीं है कि मण्डल में इन मशीनों को संचालित करने वाले एक्पर्टों की कमी हो मगर सब खेल लक्ष्मी दर्शन का है, जिसके चलते राज्य में प्रदूषण फैलाने वाली इकाईयों को बोर्ड का संरक्षण प्राप्त है। ऐसे एक नहीं अनेकों मामले हैं जिनमें राज्य के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्टों में तो सबकुछ ठीकठाक नजर आता है लेकिन ग्रीन ट्रिब्यूनल के सामने उनके द्वारा की गई अधिकांश जांच रिपोर्टें अमान्य नजर आती है फिर चाहे वह मामला विंध्याचल डिस्टलरी का हो या अन्य डिस्टलिरयों का, राज्य में स्थापित आठ डिस्टलरियों में से सात डिस्टलरियों को ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा प्रदूषण फैलाने को लेकर नोटिस जारी किये गये हैं इससे यह साफ जाहिर हो जाता है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में सबकुछ लक्ष्मी दर्शन का खेल चल रहा है।
राज्य की चाहे मण्डीदीप हो या औद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर, नागदा, नीमच का खोर, सतना, सीधी, सिंगरौली, झाबुआ स्थित मेघनगर, बड़वाह, खंडवा, खरगोन, धार, कटनी, रीवा, पीलूखेड़ी या फिर रतलाम का मामला हो राज्य का शायद ही कोई ऐसा औद्योगिक क्षेत्र हो जहां स्थापित उद्योगों द्वारा प्रदूषण न फैलाया जा रहा हो, तो वहीं राज्य के तमाम शहरों के सीवेज फार्मिंग के मामलों की भी यही हालत है पीसीबी के द्वारा जब-जब भी अपनी रिपोर्ट पेश की गई तो वह ग्रीन ट्रिब्यूनल में फेल हो गई, ग्रीन ट्रिब्यूनल के समक्ष पीसीबी के द्वारा नमूनों की जांच के बाद दर्जनों बार ग्रीन ट्रिब्यूनल में बीपीसी की रिपोर्ट्स को फेल होने और कोर्ट के द्वारा आवेदक की उपस्थिति में सेम्पल जांच के आदेश से पीबीसी की विश्वसनीयता पर तमाम सवाल खड़े हो रहे हैं, ऐसा ही नहीं कि पीबीसी की लैब के द्वारा उद्योागों के द्वारा फैलाए जा रहे प्रदूषण के नमूने को ग्रीन ट्रिब्यूनल ने नकारा हो लगभग यही स्थिति पानी के मामले की है, पानी के सेम्पल की रिपोटर््स चार बार फेल हुई तो पीबीसी की ही लैब में बाहरी एक्सपर्ट से जांच कराने के आदेश ग्रीन ट्रिब्यूनल ने दिये।
कुल मिलाकर राज्य में पीबीसी की स्थापना जिस उद्देश्य से की गई थी लगता है उसके अधिकारी उस उद्देश्यों को ध्यान में न रखते हुए राज्य के जनजीवन के साथ खिलवाड़ करने में लगे हुए हैं, यदि यही स्थिति रही तो राज्य में पर्यावरण की क्या हालत होगी यह कहा नहीं जा सकता है, यदि किसी निष्पक्ष जांच ऐसी द्वारा राज्य भर के औद्योगिक केन्द्रों और कलकारखानों के आसपास रहने वाले बस्तियों और शहरों के निवासियों के स्वास्थ्य का परीक्षण कराया जाए तो यह साफ हो जाएगा कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों की लापरवाही के चलते राज्य के अधिकांश लोग कितनी भयंकर बीमारियों से जूझ रहे हैं तो वहीं राज्य के अधिकांश आबादी के निवासियों को पीसीबी के अधिकारियों की लापरवाही के चलते शुद्ध पेयजल भी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है
हालांकि कहने को हर बार जांच होती है और सेम्पल लिये जाते हैं लेकिन राजधानी के तालाबों के पानी के भी कई बार नमूने लिये गये लेकिन यह स्थिति है कि शहर के पास सीवेज फार्मिंग के मामले में हाल ही में जो सुनवाई हुई है, उसमें पीसीबी की चार बार रिपोर्ट फेल हुई है। पांचवीं बार कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा कि सेंपल्स की जांच आवेदक के सामने हो, रिपोर्ट एक्सपर्ट ही तैयार करेंगे। इसका मतलब एक वैज्ञानिक स्तर की संस्था द्वारा तैयार की गई जांच रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर भी सवाल हो सकता है।
डॉ. पांडे के अनुसार पीसीबी ने दो साल तक मशीनें खराब होने की स्थिति में भी जांच रिपोर्टस तैयार कर दी हैं। सवाल यह उठता है कि बार-बार इस तरह की सेम्पल की जांच रिपोर्टें क्यों फेल होती हैं इसके पीछे कारण जो भी यह जांच का विषय है लेकिन राज्य के निवासियों को शुद्ध पर्यावरण उपलब्ध कराने के लिये जिम्मेदार संस्था आखिर अपने उद्देश्यों से क्यों भटक रही है, सोम डिस्टलरी के द्वारा बेतवा प्रदूषण को लेकर राज्य विधानसभा में रखी गई जांच रिपोर्ट में पीसीबी के अध्यक्ष से लेकर अदने से कर्मचारी तक जिस तरह की बात रिपोर्ट में कही गई थी क्या उस तरह की बोर्ड के अधिकारियों की नीति आज भी जारी है और इसी के चलते वह राज्य के जनजीवन के हितों की रक्षा करने की बजाए अपने हितों की रक्षा में कुछ ज्यादा ही गंभीर नजर आ रहे हैं तभी राज्य में प्रदूषण फैलाने का खेल और जांच नमूने फेल होने का खेल धड़ल्ले से चल रहा है।
जिसकी ओर सोम डिस्टलरी के विरोध में एक बाल्टी पानी लेकर भोपाल तक पदयात्रा करने वाले मुख्यमंत्री को भी उन दिनों की याद ताजा कर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों के खिलाफ कठोर कदम उठाना पड़ेंगे नहीं तो राज्य में प्रदूषण की स्थिति बद से बदतर हो जाएगी वैसे भी राज्य के अनेक शहर भी आज प्रदूषण की चपेट में हैं तो वहीं जनजीवन इस प्रदूषण की मार से तमाम बीमारियों से ग्रस्त है, यदि यही स्थिति बनी रही तो आखिर सरकार का स्वर्णिम विकास की मुहिम किसके लिये यह शोध का विषय है।