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-- चिंता से नहीं ठोस कदम उठाने से बदलेगी तस्वीर --
प्रदेश की प्रमुख नदियां सूख रही हैं, कुछ तो लुप्त प्रायः हो चुकी हैं और हद यह है कि उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर कुम्भ का आयोजन किया गया, लेकिन उसमें जल भराव के लिए नर्मदा नदी का सहारा लेना पड़ा। बावजूद इसके शिवराज सरकार कुछ ठोस कदम उठाने की बजाय नदियों के चीरहरण पर महज चिंता जाहिर करते हुए विचार प्रकट करती है तो अफसोस होता है। दरअसल निनौरा में आयोजित विचार महाकुम्भ के दौरान देश भर के बुद्धिजीवियों ने प्रधानमंत्री की मौजूदगी में अपने-अपने विचार व्यक्त किए तो वहीं प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नदियों पर अपनी चिंता जाहिर करने वाले विचार रख दिए। उन्होंने कहा कि देश भर की नदियां सूख रही हैं। नदियों को पुनर्जीवित करना चाहिए। नर्मदा और क्षिप्रा के दोनों किनारों पर पेड़ लगाने का अभियान चलाएंगे। इसके साथ ही नर्मदा के उदगम स्थल पर अमरकंटक से संतों के साथ मिलकर विशाल पदयात्रा के माध्यम से पेड़ लगाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करेंगे।
देश भर में फैली पानी की किल्लत और सूखे से आमजन और किसान दोनों परेशान हैं। देश भर में दिन व दिन नदियों का जलस्तर गिरता जा रहा है। यदि यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं जब लोग बूंद-बूंद पानी को तरसेंगे। किसानों को खेती के लिए पानी तो दूर लोगों को पीने का पानी भी नसीब नहीं होगा। नदियों के किनार अतिक्रमण, प्रदूषण और अवैध खनन से नदियों का अस्तित्व खतरे में आ गया है। मध्यप्रदेश में रेत के खनन से नदियों और उसकी जलवायु पर भारी खतरा मंडरा रहा है। शायद ही ऐसी कोई छोटी-बड़ी नदी हो, जिस पर रेत का उत्खनन न हो रहा हो। नर्मदा को मध्यप्रदेश की जीवनदायनी कहा जाता है। रेत माफिया बड़ी बड़ी राक्षसनुमा पोकलेन और जेसीबी मशीनों से बीच नदी से दिन रात रेत का उत्खनन कर रहे हैं। जिससे नदियां टापू में तब्दील होती जा रही हैं। इसके कारण आसपास के क्षेत्रों का जलस्तर गिरता जा रहा है।
नर्मदा का उदगम अमरकंटक से होता है, लेकिन पर्वतमाला से उतर कर चंद किलोमीटर बाद ही खनन माफिया नर्मदा का चीरहरण करता नजर आता है। माफिया रेत का उत्खनन कर अपनी तिजोरियां भरते हैं। जहां जहां से नर्मदा बहती हुई अपना मार्ग प्रशस्त करती है वहां-वहां हर जगह खनन माफियाओं द्वारा रेत खनन बेरोकटोक जारी रहता है। अनूपपुर, डिंडोरी, मंडला, जबलपुर, नरसिंहपुर, होशंगाबाद, सीहोर, हरदा, खंडवा, बड़वानी, धार और झाबुआ सहित ऐसा कोई जिला नहीं है जहां पर रेत का उत्खनन न हो रहा हो। नर्मदा पर वैध और अवैध दोनों तरीकों से शासन-प्रशासन की नाक के नीचे बेरोकटोक खनन जारी है। नर्मदा के अलावा प्रदेश में शायद ही ऐसी कोई नदी बची हो जहां रेत का वैध-अवैध उत्खनन न हो रहा हो। नर्मदा के अलावा महाकौशल में बेनगंगा, पेंच और कनान रेत उत्खनन के सबसे बड़े केंद्र हैं। चंबल मध्यप्रदेश की दूसरी बड़ी नदी है और यह इंदौर के महू से निकलकर धार, रतलाम, मंदसौर, शिवपुरी, भिंड और मुरैना होते हुए इटावा में जाकर यमुना से मिलती है। इन सभी जिलों में उत्खनन का कारोबार बदस्तूर जारी है। इनके अलावा बैतूल में ताप्ती, अनूपपुर, सीधी और सिंगरौली में सोन नदी, रायसेन, विदिशा, गुना, ओरछा की बेतवा, होशंगाबाद की तवा, देवास की काली सिंध और सीहोर की पार्वती नदी ये सभी नदियां बड़ी मात्रा में उत्खनन की शिकार हैं। इसलिए कहने में संकोच नहीं कि नदियों पर चिंता बहुत जरूरी है, लेकिन सिर्फ चिंता से क्या होगा। इसके लिए कोई ठोस कदम उठाने होंगे वो भी बिना किसी भेद-भाव के पूर्ण ईमानदारी के साथ। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जिस प्रकार अपनी चिंता जाहिर की है उसी प्रकार धरातल पर उतरकर नदियों के लिए कार्य करना बहुत जरूरी है। रेत माफियाओं के हौसले तो इतने बुलंद हैं कि खुद मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र बुधनी नसरुल्लागंज को उन्होंने अवैध उत्खनन का सबसे बड़ा गढ़ बना रखा है, क्या शासन-प्रशासन इससे अनभिज्ञ है। अगर ऐसा है तो फिर समझा जा सकता है कि जिसकी नाक के नीचे नदी का चीरहरण हो रहा हो तो बाकी की नदियों का क्या हाल होता होगा आसानी से समझा जा सकता है।
-सौरभ जैन ‘अंकित’
-- चिंता से नहीं ठोस कदम उठाने से बदलेगी तस्वीर --
प्रदेश की प्रमुख नदियां सूख रही हैं, कुछ तो लुप्त प्रायः हो चुकी हैं और हद यह है कि उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर कुम्भ का आयोजन किया गया, लेकिन उसमें जल भराव के लिए नर्मदा नदी का सहारा लेना पड़ा। बावजूद इसके शिवराज सरकार कुछ ठोस कदम उठाने की बजाय नदियों के चीरहरण पर महज चिंता जाहिर करते हुए विचार प्रकट करती है तो अफसोस होता है। दरअसल निनौरा में आयोजित विचार महाकुम्भ के दौरान देश भर के बुद्धिजीवियों ने प्रधानमंत्री की मौजूदगी में अपने-अपने विचार व्यक्त किए तो वहीं प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नदियों पर अपनी चिंता जाहिर करने वाले विचार रख दिए। उन्होंने कहा कि देश भर की नदियां सूख रही हैं। नदियों को पुनर्जीवित करना चाहिए। नर्मदा और क्षिप्रा के दोनों किनारों पर पेड़ लगाने का अभियान चलाएंगे। इसके साथ ही नर्मदा के उदगम स्थल पर अमरकंटक से संतों के साथ मिलकर विशाल पदयात्रा के माध्यम से पेड़ लगाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करेंगे।
देश भर में फैली पानी की किल्लत और सूखे से आमजन और किसान दोनों परेशान हैं। देश भर में दिन व दिन नदियों का जलस्तर गिरता जा रहा है। यदि यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं जब लोग बूंद-बूंद पानी को तरसेंगे। किसानों को खेती के लिए पानी तो दूर लोगों को पीने का पानी भी नसीब नहीं होगा। नदियों के किनार अतिक्रमण, प्रदूषण और अवैध खनन से नदियों का अस्तित्व खतरे में आ गया है। मध्यप्रदेश में रेत के खनन से नदियों और उसकी जलवायु पर भारी खतरा मंडरा रहा है। शायद ही ऐसी कोई छोटी-बड़ी नदी हो, जिस पर रेत का उत्खनन न हो रहा हो। नर्मदा को मध्यप्रदेश की जीवनदायनी कहा जाता है। रेत माफिया बड़ी बड़ी राक्षसनुमा पोकलेन और जेसीबी मशीनों से बीच नदी से दिन रात रेत का उत्खनन कर रहे हैं। जिससे नदियां टापू में तब्दील होती जा रही हैं। इसके कारण आसपास के क्षेत्रों का जलस्तर गिरता जा रहा है।
नर्मदा का उदगम अमरकंटक से होता है, लेकिन पर्वतमाला से उतर कर चंद किलोमीटर बाद ही खनन माफिया नर्मदा का चीरहरण करता नजर आता है। माफिया रेत का उत्खनन कर अपनी तिजोरियां भरते हैं। जहां जहां से नर्मदा बहती हुई अपना मार्ग प्रशस्त करती है वहां-वहां हर जगह खनन माफियाओं द्वारा रेत खनन बेरोकटोक जारी रहता है। अनूपपुर, डिंडोरी, मंडला, जबलपुर, नरसिंहपुर, होशंगाबाद, सीहोर, हरदा, खंडवा, बड़वानी, धार और झाबुआ सहित ऐसा कोई जिला नहीं है जहां पर रेत का उत्खनन न हो रहा हो। नर्मदा पर वैध और अवैध दोनों तरीकों से शासन-प्रशासन की नाक के नीचे बेरोकटोक खनन जारी है। नर्मदा के अलावा प्रदेश में शायद ही ऐसी कोई नदी बची हो जहां रेत का वैध-अवैध उत्खनन न हो रहा हो। नर्मदा के अलावा महाकौशल में बेनगंगा, पेंच और कनान रेत उत्खनन के सबसे बड़े केंद्र हैं। चंबल मध्यप्रदेश की दूसरी बड़ी नदी है और यह इंदौर के महू से निकलकर धार, रतलाम, मंदसौर, शिवपुरी, भिंड और मुरैना होते हुए इटावा में जाकर यमुना से मिलती है। इन सभी जिलों में उत्खनन का कारोबार बदस्तूर जारी है। इनके अलावा बैतूल में ताप्ती, अनूपपुर, सीधी और सिंगरौली में सोन नदी, रायसेन, विदिशा, गुना, ओरछा की बेतवा, होशंगाबाद की तवा, देवास की काली सिंध और सीहोर की पार्वती नदी ये सभी नदियां बड़ी मात्रा में उत्खनन की शिकार हैं। इसलिए कहने में संकोच नहीं कि नदियों पर चिंता बहुत जरूरी है, लेकिन सिर्फ चिंता से क्या होगा। इसके लिए कोई ठोस कदम उठाने होंगे वो भी बिना किसी भेद-भाव के पूर्ण ईमानदारी के साथ। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जिस प्रकार अपनी चिंता जाहिर की है उसी प्रकार धरातल पर उतरकर नदियों के लिए कार्य करना बहुत जरूरी है। रेत माफियाओं के हौसले तो इतने बुलंद हैं कि खुद मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र बुधनी नसरुल्लागंज को उन्होंने अवैध उत्खनन का सबसे बड़ा गढ़ बना रखा है, क्या शासन-प्रशासन इससे अनभिज्ञ है। अगर ऐसा है तो फिर समझा जा सकता है कि जिसकी नाक के नीचे नदी का चीरहरण हो रहा हो तो बाकी की नदियों का क्या हाल होता होगा आसानी से समझा जा सकता है।
-सौरभ जैन ‘अंकित’