अवधेश पुरोहित // toc news
भोपाल । राजनीति के समयचक्र के चलते मजदूर से विधायक, वरिष्ठ विधायक, वरिष्ठ मंत्री, मुख्यमंत्री और फिर वरिष्ठ मंत्री के सफरनामा तय करने वाले बाबूलाल गौर के साथ इस तरह की अपमानजनक स्थिति की घटना कोई पहली बार नहीं घटी उमा भारती के तिरंगा मामले में मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दिये जाने के बाद २००५ में जब बाबूलाल गौर मुख्यमंत्री थे तब सबकुछ सामान्य रूप से चल रहा था, लेकिन उसी दौरान उनके साथ किसी ने ऐसा कुचक्र चला कि एक छोटी सी घटना को लेकर उनका जहां चरित्र हनन करने का प्रयास किया गया तो वहीं प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के कार्यालय पर उनके खिलाफ धरना-प्रदर्शन आदि का खेल भी खेला गया। इस खेल के पीछे किसका हाथ था और जिस ७४ बंगले में बाबूलाल गौर निवास करते हैं उसी ७४ बंगले स्थित एक बंगले से कौन बाबूलाल गौर के खिलाफ चल रहे माहौल को अंजाम दे रहा था यह कौन था यह सभी जानते हैं, लोगों और खासकर मीडिया को यह भी याद है कि जब गौर के खिलाफ प्रदेश कार्यालय के समक्ष धरना, प्रदर्शन में जाने वाले लोग ७४ बंगले के किस बंगले से निकले थे, यह भी शायद आज मीडिया को याद है कि नहीं या फिर वह यह सब भूल गई यह वही जाने, लेकिन यह सच है कि बाबूलाल गौर को एक झटके में अपमानजनक स्थिति का सामना कोई आज ही नहीं बल्कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के सत्ता में काबिज होने के पूर्व से लेकर आज तक कई बार करना पड़ा, भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेताओं को शायद याद होगा कि जब शिवराज ने सत्ता संभाली और बाबूलाल गौर उनके मंत्रीमण्डल के रूप में शपथ ली इसके बाद गौर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के साथ जब कार्यक्रमों में जाया करते थे तो लोग बुजुर्ग नेता होने के नाते गौर को तवज्जो दिया करते थे इस बात से चिंतित और विचलित मुख्यमंत्री ने पार्टी के उस समय के राष्ट्रीय नेताओं आडवाणी, नायडू आदि से कई बार शिकायत की शायद यही भांपकर गौर ने शिवराज के साथ सरकारी कार्यक्रमों में जाना बन्द कर दिया था, उससे लेकर आज तक ऐसे कई मौके गिनाए जा सकते हैं जब-जब बाबूलाल गौर को अपमानजनक स्थिति का सामना करना पड़ा और इसके पीछे कौन रहे यह भी राजनीति के जानकार जानते हैं, भाजपा के लोगों पर यदि विश्वास करें तो गौर को अपने मंत्रीमण्डल में बनाये रखना शिवराज को कतई नहीं सुहा रहा था और बस वह मौका देख रहे थे लेकिन इस बार उनके खिलाफ २००५ की तरह प्रदर्शन करने और कराने का मौका उनके विरोधियों को नहीं मिला और सीधे उन पर उम्र का तकाजा देकर वार किया गया और उन्हें मंत्रीमण्डल से एक झटके में निकालकर शिवराज ने अपनी बरसों की आस को पूरा किया। देखना अब यह है कि इस उम्र के जाल में आगे कौन-कौन आते हैं और यह सब कब तक चलता है।
भोपाल । राजनीति के समयचक्र के चलते मजदूर से विधायक, वरिष्ठ विधायक, वरिष्ठ मंत्री, मुख्यमंत्री और फिर वरिष्ठ मंत्री के सफरनामा तय करने वाले बाबूलाल गौर के साथ इस तरह की अपमानजनक स्थिति की घटना कोई पहली बार नहीं घटी उमा भारती के तिरंगा मामले में मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दिये जाने के बाद २००५ में जब बाबूलाल गौर मुख्यमंत्री थे तब सबकुछ सामान्य रूप से चल रहा था, लेकिन उसी दौरान उनके साथ किसी ने ऐसा कुचक्र चला कि एक छोटी सी घटना को लेकर उनका जहां चरित्र हनन करने का प्रयास किया गया तो वहीं प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के कार्यालय पर उनके खिलाफ धरना-प्रदर्शन आदि का खेल भी खेला गया। इस खेल के पीछे किसका हाथ था और जिस ७४ बंगले में बाबूलाल गौर निवास करते हैं उसी ७४ बंगले स्थित एक बंगले से कौन बाबूलाल गौर के खिलाफ चल रहे माहौल को अंजाम दे रहा था यह कौन था यह सभी जानते हैं, लोगों और खासकर मीडिया को यह भी याद है कि जब गौर के खिलाफ प्रदेश कार्यालय के समक्ष धरना, प्रदर्शन में जाने वाले लोग ७४ बंगले के किस बंगले से निकले थे, यह भी शायद आज मीडिया को याद है कि नहीं या फिर वह यह सब भूल गई यह वही जाने, लेकिन यह सच है कि बाबूलाल गौर को एक झटके में अपमानजनक स्थिति का सामना कोई आज ही नहीं बल्कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के सत्ता में काबिज होने के पूर्व से लेकर आज तक कई बार करना पड़ा, भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेताओं को शायद याद होगा कि जब शिवराज ने सत्ता संभाली और बाबूलाल गौर उनके मंत्रीमण्डल के रूप में शपथ ली इसके बाद गौर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के साथ जब कार्यक्रमों में जाया करते थे तो लोग बुजुर्ग नेता होने के नाते गौर को तवज्जो दिया करते थे इस बात से चिंतित और विचलित मुख्यमंत्री ने पार्टी के उस समय के राष्ट्रीय नेताओं आडवाणी, नायडू आदि से कई बार शिकायत की शायद यही भांपकर गौर ने शिवराज के साथ सरकारी कार्यक्रमों में जाना बन्द कर दिया था, उससे लेकर आज तक ऐसे कई मौके गिनाए जा सकते हैं जब-जब बाबूलाल गौर को अपमानजनक स्थिति का सामना करना पड़ा और इसके पीछे कौन रहे यह भी राजनीति के जानकार जानते हैं, भाजपा के लोगों पर यदि विश्वास करें तो गौर को अपने मंत्रीमण्डल में बनाये रखना शिवराज को कतई नहीं सुहा रहा था और बस वह मौका देख रहे थे लेकिन इस बार उनके खिलाफ २००५ की तरह प्रदर्शन करने और कराने का मौका उनके विरोधियों को नहीं मिला और सीधे उन पर उम्र का तकाजा देकर वार किया गया और उन्हें मंत्रीमण्डल से एक झटके में निकालकर शिवराज ने अपनी बरसों की आस को पूरा किया। देखना अब यह है कि इस उम्र के जाल में आगे कौन-कौन आते हैं और यह सब कब तक चलता है।