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भोपाल। मुख्यमंत्री कमलनाथ ने शिवराज सरकार के जनसुनवाई कार्यक्रम को यथावत रखा है, लेकिन जनसुनवाई के दौरान नई व्यवस्था लागू कर दी गई है। अब हर मंगलवार को कलेक्टरोें के साथ जनसुनवाई में स्थानीय विधायक भी मौजूद रहेंगे।
इसके लिए मुख्यमंत्री ने निर्देश जारी कर दिए हैं। इस व्यवस्था से कलेक्टरों को विधायकों की ओर से आने वाली सिफारिशें से मुक्ति मिल जाएगी। क्योंकि राजनीतिक पृष्टभूमि से जुड़ लोग जनसुनवाई में आने से पहले जनप्रतिनिधियों से सिफारिश करवाते है।
मैदानी अफसरों ने जनसुनवाई में लागू किए गए इस नवाचार का स्वागत किया है। अफसरों के अनुसार आमतौर पर जनसुनवाई में सभी विभागों से जुूड़े मामले कलेक्टर के पास आते हैं। जबकि पुलिस, प्रशासन एवं विन विभाग में अलग-अलग जनसुनवाई होती हैं। जब जनसुनवाई में आने के बाद भी कई शिकायतों का निपटारा नहीं होता है तो जनप्रतिनिधि प्रशासन पर दबाव बनाते हैं और कई तरह के आरोप भी लगते हैं। जबकि सामान्य समस्याओ का समाधान हो जाता है।
कुछ शिकायतें ऐसी होती हैं, जिनका निराकरण नियमों के तहत संभव नहीं होता है। राजस्व संबंधी शिकायतों में एक पक्ष आमतौर पर असंतुष्ठ रहता है। वह लगातार शिकायत करता रहता है, जबकि समस्या का प्रशासन स्तर पर निरकारण हो चुका होता है। यदि जनप्रतिनिधि मौजूद रहेंगे तो उन्हें जनसुनवाई के दौरान यह ज्ञात हो सकेगा कि कौनसी शिकायत का निराकरण होगा और कौनसी शिकायत का निराकरण किसी वजह से नहीं होगा। जब प्रशासन स्तर पर किसी भी आवेदन पर कार्रवाई करने से सीधे तौर पर इंकार किया जाता है तो उसका लोगों के बीच नकारात्मक असर होता है। जबकि जनप्रतिनिधियों की ओर से यह कहा जाएगा जब जनता के बीच अलग असर होगा।
*सहायता मिलने में होगी आसानी*
विधायकों के पास निधि रहती है। जिसे वे अपने क्षेत्र के किसी भी जरूरतमंद व्यक्ति को दे सकते हैं। आमतौर पर विधायक निधि के लिए कलेक्टर को पत्र भेजते हैं। यदि वे जनसुनवाई में मौजूद रहेंगे तो तत्काल जरूरतमंद को निधि दे सकेंगे। इसके लिए उन्हें मौके पर ही अनुशंसा करनी होगी। पत्राचार में होने वाले समय की वचत होगी।
*जनसुनवाई की हो रही थी खानापूर्ति*
प्रदेश में जनसुनवाई कार्यक्रम की श्ुारूआत मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लोगों की समस्याओं के निराकरण की मंशा से की थी। पिछले कार्यकाल तक अधिकारी और विभागाध्यक्ष जनसुनवाई कार्यक्रम को गंभीरता से लेते थे। हर मंगलवार को सरकारी कार्यालयों में भीड़ रहती थी। लेकिन पिछले 5 साल में जनसुनवाई महज खानापूर्ति हो गई थी। पंचायत कार्यालय से लेकर प्रदेश मुख्यालय तक भी शिकायतों का निराकरण नहीं होता था। यही वजह है कि नई सरकार बनते ही मुख्यमंत्री कमलनाथ ने जनुसनवाई कार्यक्रम में नई व्यवस्था शुरू कर दी है।
*सीएम हेल्पलाइन में संशय*
प्रदेश में सरकार बदलने के बाद मुख्यमंत्री हेल्पलाइन 181 को जारी रखने पर संशय की स्थिति है। प्रशासनिक सूत्र बताते हैं कि मुख्यमंत्री कमलनाथ सीएम हेल्पलाइन को बंद करने के मूढ़ में हैं। हालांकि अभी तक उन्होंने सीएम हेल्पलाइन का ेलेकर कोई निर्णन नहीं लिया है।