Sunday, January 6, 2013

पत्रकार ओमप्रकाश तिवारी के निधन पर शोकसभा



नई पहल : पत्रकारों ने एकत्रित की अनुग्रह राशि
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छतरपुर 5 जनवरी। जिले के वरिष्ठ पत्रकार व एनडीटीवी के छतरपुर ब्यूरो प्रमुख श्री ओमप्रकाश तिवारी के असामयिक निधन पर शनिवार को पत्रकारों द्वारा दैनिक कृष्ण क्रान्ति कार्यालय में एक शोकसभा का आयोजन किया गया। शोकसभा में एक प्रस्ताव पर निर्णय लिया गया कि दिवंगत पत्रकार की पुत्री के भविष्य के लिये राशि एकत्रित की जाये। एक नयी पहल की शुरूआत हुई और मौके पर ही पत्रकारों ने अनुग्रह राशि एकत्रित कर निर्णय लिया कि इस राशि को फिक्स डिपॉजिट कराकर दुखित परिवार को दी जाये।

दोपहर लगभग 3 बजे दिवंगत पत्रकार ओमप्रकाश तिवारी की श्रद्धांजलि सभा को लगभग एकत्रित सभी पत्रकारों ने संबोधित किया। इस दुखद अवसर पर प्रेस क्लब के अध्यक्ष डॉ. अजय दोसाज ने अल्पायु में पत्रकार की आकस्मिक निधन पर इसे व्यक्तिगत रूप से भी आघात माना। संपादक श्याम अग्रवाल ने श्री तिवारी के निधन को पत्रकारिता के लिये अपूर्णनीय क्षति बतलाया। संपादक हरि अग्रवाल ने कहा कि श्री तिवारी के निधन पर आयोजित शोकसभा में सभी पत्रकारों की उपस्थिति स्पष्ट करती है कि श्री तिवारी ने छतरपुर की पत्रकारिता के लिये बहुत कुछ किया है। पत्रकार धीरज चतुर्वेदी ने कहा कि श्री तिवारी को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि सभी पत्रकार एकजुट रहें। संपादक, सुशील दुबे ने श्री तिवारी के परिवार को भरोसा दिलाया कि जिले के सभी पत्रकार प्रत्येक सुखदुख में उनके साथ हैं। पत्रकार मनीष खरया ने श्री तिवारी के सम्मान में प्रत्येक वर्ष कार्यक्रम आयोजित करने का सुझाव दिया। श्री लक्ष्मीकांत चतुर्वेदी ने कहा कि श्री तिवारी की धर्मपत्नि को शासकीय नौकरी दिलाने का प्रयास किया जाये। शीलबंत पचौरी, मनोज सोनी, विनोद अग्रवाल, लोकेश चौरसिया ने श्री तिवारी को याद करते हुये कहा कि वे सदैव सकारात्मक पत्रकारिता करते थे और युवाओं को मार्गदर्शन देने में भी आगे रहते थे।

अंत में सभी पत्रकारों ने श्री ओमप्रकाश तिवारी के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी तथा उनके परिवार को ईश्वर से सम्बल प्रदान करने हेतु कामना की। पत्रकारों ने दो मिनट का मौन भी रखा।  शोकसभा में संपादक डॉ. अजय दोसाज, श्याम अग्रवाल, सुरेन्द्र अग्रवाल, हरिप्रकाश अग्रवाल, सुशील दुबे, पप्पू गुप्ता, रबीन्द्र सौनकिया, विनोद अग्रवाल, लक्ष्मीकांत चतुर्वेदी, कमलेश जाटव, संतोष गंगेले, रबीन्द्र व्यास, प्रमोद खरे, दुर्गेश खरे, रामजी अग्रवाल, रसीद खान, सादाब हमीद, दिनेश पिपरसानियां, पीसी सोनी, शीलबंत पचौरी, रवि गुप्ता, लखन लाल चौरसिया, केशव शर्मा, आशुतोष द्विवेदी, धीरज चतुर्वेदी, मनीष खरया, लोकेश चौरसिया, नरेन्द्र सिंह परमार, राकेश रिछारिया, मनोज सोनी, राजेश चौरसिया, प्रवीण द्विवेदी, मोहम्मद कदीर तथा जिला पंचायत के मीडिया प्रभारी लखनलाल असाटी प्रमुख रूप से उपस्थित थे।

शुरूआत एक नई पहल की समाज को आईना दिखाने वाले पत्रकारों ने दिवंगत पत्रकार श्री ओमप्रकाश तिवारी के आकस्मिक निधन पर दुख व्यक्त करने के साथ समाज के लिये एक नई पहल की शुरूआत की है। पत्रकार धीरज चतुर्वेदी ने प्रस्ताव रखा कि सभी मिलकर एक राशि एकत्रित करें जिसे दिवंगत पत्रकार की बेटी के नाम से फिक्स डिपॉजिट कराकर उस परिवार को सौंप दिया जाये। इस प्रस्ताव पर डॉ. अजय दोसाज, श्याम अग्रवाल, हरि अग्रवाल, सुरेन्द्र अग्रवाल ने अपनी सहमति देते हुये इस प्रस्ताव को तत्काल प्रभाव से पारित कर दिया। शोकसभा में पत्रकारों ने दिवंगत पत्रकार श्री ओमप्रकाश तिवारी की बेटी नीलम तिवारी के विवाह कार्य हेतु अनुग्रह राशि भी एकत्रित की, और तय किया कि एकत्रित अनुग्रह राशि की एफडी बेटी के नाम से बनाकर परिवार को त्रयोदशी संस्कार तक सौंप दी जायेगी। मौके पर ही अनुग्रह राशि एकत्रित कर ली गयी। डॉ. अजय दोसाज ने 5100, श्याम अग्रवाल ने 5500, धीरज चतुर्वेदी ने 5000, दुर्गेश खरे ने 5000, सुशील दुबे ने 6000, विनोद अग्रवाल ने 5000, हरि अग्रवाल ने 2100, शीलवंत पचौरी ने 1000,पप्पू गुप्ता ने 1100, नरेन्द्र सिंह परमार ने 1000, लखन लाल चौरसिया ने 1100, लोकेश चौरसिया ने 1000, लखन लाल असाटी ने 1000, सोनू सदाब ने 500, सुरेन्द्र अग्रवाल ने 1100, संतोष गंगेले ने 1100, मनोज सोनी ने 500, रबीन्द्र व्यास ने 1100, मनीष खरया ने 500, राकेश रिछारिया ने 500, तथा दिनेश पिपरसानियां ने 500 रुपये अनुग्रह सहायता प्रदान की। संतोष गंगेले, मनोज सोनी, राकेश रिछारिया तथा मनीष खरया ने प्रत्येक साल अनुग्रह राशि प्रदान किये जाने का वचन दिया। प्रेस क्लब के अध्यक्ष डॉ. अजय दोसाज ने एक बार फिर अपना दिल खोलते हुये घोषणा की कि दिवंगत पत्रकार की बेटी को सौंपी जाने वाली 51000 की राशि में जो भी कमी आयेगी उसकी पूर्ति वे स्वयं करेंगे।

शिवराज सिंह अपने स्वजाति बीएमओं को बचाने के चक्कर में


शिवराज सिंह अपने स्वजाति बीएमओं को बचाने के चक्कर में हमारी इज्जत को तार - तार कर रहा है
तीसरी बार जांच से दुखी यौन उत्पीडऩ की शिकार महिला स्वास्थ कर्मचारियों का मुख्यमंत्री पर आरोप

बैतूल  // रामकिशोर पंवार

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ जमकर नारेबाजी एवं हंगामा करने वाली लगभग चार दर्जन से अधिक महिला स्वास्थ कर्मचारियों ने खुले आम आरोप लगाया कि प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने स्वजाति बीएमओं को बचाने के लिए हमारी इज्जत को जांच के बहाने तार - तार करने में लगे है। 

उल्लेखनीय है कि आमला ब्लॉक के तत्कालीन बीएमओ डॉ बीपी चौरिया के विरूद्ध वहां की महिला स्वास्थ्य कर्मचारियों ने यौन उत्पीडऩ, दैहिक शोषण, अपमानजनक आचरण, प्रताडऩा जैसे गंभीर आरोप लगाते हुए कई स्तर पर शिकायतें की, जिसमें बैतूल कलैक्टर बी चंद्रशेखर के निर्देश पर आईएएस अधिकारी के वासुकी ने जांच करने के बाद 22 मई 2012 को अपनी रिपोर्ट प्रशासन को फाइल कर दी। इस रिपोर्ट में डॉ. चौरिया पर लगे आरोपों को सत्य बताते हुए उनके खिलाफ कई धाराओं में प्रकरण दर्ज करने के लिए अनुशंसा की गई। इसी दौरान मध्यप्रदेश राज्य अनुसूचित जाति आयोग ने भी जांच की और जांच के बाद 14 अगस्त 2012 को अपनी जांच रिपोर्ट शासन को दे दी। इस जांच रिपोर्ट में भी डॉ. चौरिया के आचरण पर आरोपों को सही बताया गया और कार्रवाई की अनुशंसा की गई। पूरे मामले में न तो जिला प्रशासन ने कोई कदम उठाया और न ही पुलिस ने किसी प्रकार की कोई कार्रवाई की। इसी दौरान प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता माणक अग्रवाल ने भोपाल में एक पत्रकारवार्ता लेते हुए पूरे मामले में कई सवाल खड़े किए।अचानक ही इस मामले में एक बार फिर जांच खड़ी हो गई, जिसमें स्वास्थ्य विभाग के कमिश्नर द्वारा डिप्टी डायरेक्टर डॉ. तारा सक्सेना के नेतृत्व में तीन सदस्यीय दल नियुक्त किया गया। 

इस दल ने मामले में जांच का विषय डॉ. नमिता नीलकंठ द्वारा की गई झूठी शिकायतों की जांच बताया और इसी आधार पर डॉ. नमिता नीलकंठ सहित 20 अन्य स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को 5 जनवरी दिन रविवार को बैतूल सीएमएचओ कार्यालय तलब किया गया। यौन उत्पीडऩ और दैहिक शोषण जैसे संवेदनशील मामले में जांच के लिए बनाए गए दल में दो पुरूष अधिकारियों को भी शामिल किया गया। बैतूल पहुंचे इस दल ने पहले तो अपने आने के कारण और जांच के विषय को सही स्थिति स्पष्ट करने की जगह लगातार गुमराह करने वाले जवाब दिए।अचानक कर्मचारी संगठनों के नेताओं के पहुंचने के बाद सीएमएचओ कार्यालय में जांच के विषय और तरीके को लेकर हाईवोल्टेज हंगामा हो गया। अजाक्स अध्यक्ष अनिल काप्से, केएल ठाकुर और चौहान ने इस बात पर आपत्ति जताई कि जब जिला प्रशासन एक आईएएस अधिकारी से जांच करा चुका है और इसके बाद अनुसूचित जाति आयोग जैसी संवैधानिक संस्था मामले की जांच कर चुकी है, तो फिर इस जांच का औचित्य क्या है। इन कर्मचारी नेताओं ने इस बात पर भी आपत्ति लगाई कि जांच में जांचकर्ता अधिकारियों द्वारा अपने मनमाने तरीके से बनाई गई प्रश्नावली पर जबरन बयान लिए जा रहे हैं, जो कि किसी भी लिहाज से जांच का सही तरीका नहीं है। इन तथ्यों को लेकर करीब 25 मिनट तक जांचकर्ता अधिकारी और कर्मचारी नेताओं के बीच बहस होते रही। सीएमएचओ कार्यालय में बयान के दौरान पूछे गए सवालों से मुलताई में पदस्थ स्टाफ नर्स वनिता उबनारे की आंखों से आंसू निकल पड़े और उन्होंने जांच की प्रश्नावली के सवालों की भाषा को लेकर भी अपनी पीड़ा जाहिर की। उन्होंने अपनी पीड़ा को जिस तरीके से सार्वजनिक रूप से बयान किया, उससे वहां मौजूद सारे लोग हतप्रभ थे और थोड़ी देर के लिए जांचकर्ता भी सकते में आ गए थे। 

वनिता उबनारे ने धाराप्रवाह तरीके से आक्रोश में एक बार फिर डॉ. चौरिया पर आरोपों की झड़ी लगा दी। मामले में जांच के लिए पहुंची डॉ. नमिता नीलकंठ ने जांच के औचित्य पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि इसका मकसद क्या है। उन्होंने बताया कि पूर्व में यही जांचकर्ता अधिकारी बिना किसी सूचना के आमला पहुंचे थे और बिना बयान लिए वापस आ गए थे। अब इसके बाद पुन: यह सब हो रहा है। उनका कहना था कि जब महिलाएं पहले अपने बयान दे चुकी हैं और आयोग ने अपनी रिपोर्ट दे दी है, तो उस पर कार्रवाई होना चाहिए। उन्होंने जांच के विषय पर ही सवाल खड़े किए हैं। राज्य अनुसूचित जाति आयोग ने 14 अगस्त को शासन को अपनी रिपोर्ट दी है, उसमें डॉ. चौरिया पर लगे आरोपों को सही ठहराते हुए उनके विरूद्ध एट्रोसिटी एक्ट के तहत विशेष पुलिस थाने में प्रकरण दर्ज कराने, 20 वर्ष की सेवा या 50 वर्ष की उम्र पूर्ण करने पर घृणित कृत के लिए अनिवार्य सेवानिवृत्त दिए जाने और इन्हें शासकीय सेवा के योग्य नहीं माना। वहीं डॉ. चौरिया को सहयोग करने वाले चार कर्मचारियों को जिले के बाहर स्थानांतरित करने की अनुशंसा की थी और पूरे मामले में 15 दिन में पालन प्रतिवेदन मांगा।


मैंने पत्रकारों को 5 सौ रुपए वाले लिफाफे दिए, भविष्य में भी दूंगा: धीरू


मैंने पत्रकारों को 5 सौ रुपए वाले लिफाफे दिए, 
भविष्य में भी दूंगा: धीरू 

भोपाल। राष्ट्रीय गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव, पूर्व विधायक एवं सतना जिला पंचायत के पूर्व अध्यक्ष धीरेंद्रसिंह 'धीरू' ने स्वीकार किया है कि उनके द्वारा बुलाई गई पत्रकार वार्ता में उन्होंने पत्रकारों को 5-5 सौ रूपए लिफाफे में दिए। धीरू ने कहा कि ये रूपए किसी लालच में नहीं दिए गए थे, बल्कि मिठाई के थे।
धीरू ने यह बात दैनिक जागरण, सतना के संपादक को लिखे पत्र में कही है। दैनिक जागरण ने 4 जनवरी के अंक में समाचार प्रकाशित किया था कि धीरू ने पत्रकारों को 5-5 सौ रूपए का लिफाफा बांटा। धीरू ने कहा कि मैं आपको अवगत कराना चाहूंगा कि मैंने 5-5 सौ रुपया पत्रकारों को समाचार पत्र या कवरेज के लिए नहीं दिया था।

धीरू के मुताबिक, पत्रकार वार्ता के बाद सभी सम्मानित पत्रकार साथियों को नए वर्ष के उपलक्ष्य में मिठाई खिलाई थी और सभी पत्रकार साथियों से अनुरोध किया था कि आप सभी नये वर्ष की मिठाई मेरे तरफ से अपने अपने घर भी ले जाएं परिवार के लिए, जब सभी पत्रकार साथियों ने मेरे अनुरोध को स्वीकार कर लिया, तब मैंने मिठाई के लिए लिफाफे में 5-5 सौ रूपए दिए हैं। मेरा उद्देश्य लालच देना नहीं था। मेरा मकसद घर आए मेहमान का सम्मान करना था।

धीरू ने पत्र में लिखा है, मैं आपको यह अवगत कराना चाहूंगा कि मैंने 30 दिसंबर 2012 को चुनाव जीतने के संबंध में पत्रकार वार्ता बुलाई थी उसमें भी मैंने चुनाव जीतने के उपलक्ष्य में मिठाई खिलाई थी। घर मिठाई ले जाने के लिए 5-5 सौ रूपए पत्रकार साथियों को दिए थे और बतला दिया था कि नये वर्ष में फिर से पत्रकार वार्ता बुलाउंगा। मैं आपको सविनम्र बताना चाहता हूं कि पिछले पांच वर्षों में मैंने जितनी भी पत्रकार वार्ता बुलाई है। उन सभी में 100-100 रूपया पेट्रोल के लिए लिफाफा दिया है।

धीरू ने कहा कि आगे जो भी पत्रकार वार्ता बुलाउंगा उन सभी में पेट्रोल के लिए लिफाफा दूंगा। मेरा उद्देश्य अच्छा है क्योंकि मैं पत्रकार वार्ता अपने घर में बुलाता हूं और पत्रकार साथियों के उपर पेट्रोल का भार न पड़े इसलिए लिफाफा देता हूं। पर मैं जो भी लिफाफा देता हूं अच्छे उद्देश्य के लिए देता हूं। इसके बावजूद भी अगर आपको पीड़ा पहुंची हो तो मैं क्षमा मांगता हूं। धीरू ने यह भी कहा कि मेरे लिफाफा बांटने में भारतीय जनता पार्टी का किसी भी तरह का संबंध नहीं है।

प्रेस की समस्‍याओं को छोड़कर सभी मामलों पर बोलते हैं जस्टिस काटजू

प्रेस की समस्‍याओं को छोड़कर सभी मामलों पर बोलते हैं जस्टिस काटजू


कुछ समय पहले तक लोगों की आम धारणा थी कि जस्टिस मार्कंडेय काटजू अच्‍छे आदमी हैं तथा अच्‍छे और कठोर फैसले सुनाते हैं. लोगों को देश के बजबजा चुके सिस्‍टम में काटजू राहत पहुंचाते नजर आते थे. रिटायरमेंट के बाद जस्टिस काटजू को जब पीसीआई यानी प्रेस काउंसिल आफ इंडिया का अध्‍यक्ष बनाया गया तो लगा कि इस नख-दंत विहीन संस्‍था से कम से कम पत्रकारों को राहत मिलेगी. जस्टिस काटजू ईमानदारी से सारी बातों को देखेंगे और गलत करने वाले अखबारों-संस्‍थानों को नसीहत देंगे, पत्रकारों के हितों की रक्षा करेंगे.

पर जल्‍द ही लोगों के सारे अरमान और सोच पर पानी फिर गया. जस्टिस काटजू पत्रकारों तथा देशवासियों को ही बेवकूफ बताना शुरू कर दिया. अपने बात एवं व्‍यवहार से ऐसा दिखाने लगे जैसे वे कांग्रेस के बड़े शुभचिंतक हैं. इसका एक उदाहरण बताए देते हैं, जब तक ममता बनर्जी यूपीए की सहयोगी थीं, जस्टिस काटजू तारीफ करते थे, पर ममता के यूपीए से अलग होते ही काटजू ने उनके खिलाफ बयान जारी कर दिया. समझने वालों को समझ में आ गया कि काटजू साहब की नजर में ममता बनर्जी अचानक विलेन क्‍यों हो गईं?

वैसे भी जस्टिस काटजू जब से पीसीआई के चेयरमैन बने हैं तब से उन्‍होंने प्रेस से जुड़ा ऐसा कोई काम नहीं किया जो चर्चा का विषय बन सके. तमाम लोगों ने प्रेस और अखबारों से जुड़ी अपनी शिकायतें पीसीआई को भेजी पर ज्‍यादातर पर कोई कार्रवाई ही नहीं हुई. जब तेजतर्रार माने जाने वाले जस्टिस काटजू के कार्यकाल में लोगों की शिकायतें नहीं सुनी जा रही हैं तो अन्‍य लोगों के कार्यकाल में ये संस्‍थाएं कितनी कारगर रही होंगी भगवान जाने. यानी काटजू साहब प्रेस से जुड़ी बातों या समस्‍याओं को छोड़कर दुनिया की सारी समस्‍याओं पर उवाच करते हैं, बोलते हैं. नीचे देखिए-पढिए और सोचिए उनके बयान पर.


भारत, पाक में अल्पसंख्यकों का सम्मान नहीं : काटजू

नई दिल्ली : भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई) के अध्यक्ष न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजू ने आज कहा कि भारत और पाकिस्तान एक सभ्य समाज की कसौटी पर खरे नहीं उतरे हैं क्योंकि दोनों देशों में अल्पसंख्यकों का सम्मान नहीं किया जाता। काटजू ने कहा, ‘‘हर सभ्य समाज के लिए एक परीक्षा होती है जिसमें यह देखा जाता है कि वह अल्पसंख्यकों के साथ किस तरह पेश आता है। जब तक अल्पसंख्यक गरिमा एवं आदर के साथ न रहें, यह कहा जा सकता है कि यह एक सभ्य समाज नहीं है और इस कसौटी पर भारत और पाकिस्तान खरे नहीं उतरे हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हमने अल्पसंख्यकों का सम्मान नहीं किया- 1984 में सिखों के साथ क्या हुआ, 2002 में मुसलमानों के साथ क्या हुआ। कश्मीरी पंडितों के साथ क्या हुआ। पाकिस्तान के हिंदू भारत आ रहे हैं क्योंकि वहां वह गरिमा के साथ नहीं जी पा रहे हैं। न तो ईसाई, अहमदिया और शिया..न तो भारत एक सभ्य समाज है और न ही पाकिस्तान एक स5य समाज है । हम दोनों अपने अल्पसंख्यकों का सम्मान नहीं करते।’’ काटजू पाकिस्तानी वकील अवैस शेख की किताब ‘सरबजीत सिंहः ए केस ऑफ मिसटेकन आइडेंटिटी’ के विमोचन पर आयोजित एक समारोह को संबोधित कर रहे थे शेख ही सरबजीत सिंह के वकील हैं। (एजेंसी)

Written by B4M Team

Saturday, January 5, 2013

अशोक गोयल पकड़वाने वाले को 1100 रूपये इनाम


अशोक गोयल,शाहिद खान एवं साथी को पकड़वाने वाले को 1100 रूपये का आइसना की तरफ से इनाम दिया जायेगा

ईनाम नगद 1100 रूपये


अड़ीबाज बिल्डर अशोक गोयल की पुलिस को तलाश

अशोक गोयल द्वारा तय गुंडे शाहिद खान एवं उसका एक साथी रिवाल्वर निकालकर अड़ी डालते हुए

बिल्डर अशोक गोयल


 

देखिये बलात्कारी कांग्रेस नेता की पिटाई



गुवाहाटी.  एक तरफ कांग्रेस बलात्कारियो को कड़ी सजा दिलाने की बात कर रही है दूसरी तरफ एक कांग्रेस ने नेता को रेप के आरोप में महिलाओं ने जमकर पिटाई कर दी बारदात उत्तरी असम के चिरांग जिले की है जहा में रेप के आरोपी कांग्रेसी नेता बिक्रम सिंह ब्रह्मा की ग्रामीण महिलाओं ने सार्वजनिक रूप से पिटाई कर दी।जानकारी अनुसार प्रदेश कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य और बोडोलैंड टेरटोरियल काउंसिल के पार्टी कॉर्डिनेटर बिक्रम सिंह सरकारी सुविधाएं और रियायत दिलाने के नाम पर कई महीनों से महिला का यौन शोषण कर रहा था।

"क्या हुआ "
कांग्रेस नेता सुबह अपनी आधिकारिक गाड़ी से गांव पहुंचे और तड़के महिला के साथ बलात्कार किया। इसके बाद स्थानीय लोगों का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। लोगों ने पीड़िता के घर से निकालकर उसकी पिटाई शुरू कर दी। गुस्साईं महिलाओं ने कांग्रेस नेता के कपड़े फाड़ दिए और जमकर पिटाई की।

पुलिस से मिली जानकारी के अनुसार आरोपी नेता को गिरफ्तार कर लिया गया है और शुरुआती जांच में रेप की पुष्टि हुई है। बोडोलैंड टेरटोरियल एरिया के आईजी जीपी सिंह के अनुसार अभी पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट नहीं आई है।

इस मामले पर राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष ममता शर्मा ने कहा कि नेता चाहे किसी भी पार्टी का हो बलात्कार करने वालों के साथ सख्ती से कानून को अपना काम करना चाहिए। इस बीच, खबर आ रही है कि कांग्रेस ने बिक्रम सिंह को सस्पेंड कर दिया गया है।

अवैध गिरफ्तारी एवं हिरासत के लिए क्षतिपूर्ति



पुलिस द्वारा अवैध हिरासत एवं गिरफ्तारी के बम्बई उच्च न्यायालय के प्रकरण दाण्डिक रिट याचिका  संख्या  1666-10 -सुश्री वीणा सिप्पी बनाम नारायण दुम्ब्रे आदि के निर्णय दिनांक 05.03.2012 के लिए महिला याचिकाकर्त्री सुश्री वीणा सिप्पी  इस साहसिक कार्य के लिए धन्यवाद की पात्र है जिसने महाराष्ट्र पुलिस जैसे भयावह संगठन से मुकाबला किया है| प्रकरण के तथ्य इस प्रकार हैं कि वीणा ने दिनांक  4.4.08 को गामदेवी पुलिस थाने में एक शिकायत प्रस्तुत की थी अत: वह दिनांक  5.4.08 को लगभग 5 बजे सांय एफ आई आर की नकल लेने थाने गयी | ड्यूटी पर उपस्थित पुलिस कर्मी ने बड़ा अभद्र व्यवहार कर बताया कि कोई एफ आई आर दर्ज नहीं हुई है  और न ही दर्ज होगी | उसी भवन की प्रथम  मंजिल पर सहायक पुलिस आयुक्त का कार्यालय है| यद्यपि  सहायक पुलिस आयुक्त से मिलने का समय सांय 4 से 6 बजे निर्धारित है किन्तु उसने याचिकाकर्त्री की उपस्थिति का ज्ञान होने पर अपना चेंबर अंदर से बंद कर लिया और सन्देश भेजा कि वह 10 मिनट इन्तजार करे|
कई बार दरवाजा खटखटाने के बाद भी उसने दरवाजा नहीं खोला और अंतत: यह सूचित किया गया कि वह ड्यूटी ऑफिसर के पास जाकर एफ आई आर लिखवाये| याचिकाकर्त्री ने ड्यूटी पर तैनात पुलिस अधिकारियों से कहा कि यदि एफ आई आर नहीं लिखी गयी तो वह संयक्त आयुक्त से मिलेगी| इतना कहते ही उसने याचिकाकर्त्री से कहा कि उसने याचिकाकर्त्री जैसे कई देखें और वह उसे भी सबक सिखायेगा|
याचिकाकर्त्री को पुलिस ने अवैध रूप से गिरफ्तार कर पुलिस लोक अप में डाल दिया और उस पर बम्बई पुलिस अधिनयम, 1959 की धारा 117 सहपठित 112 के आरोप मिथ्या रूप से गढ़ दिए गए| यही नहीं याचिकाकर्त्री की गिरफ्तारी का कोई पंचनामा तक तैयार नहीं किया गया और न ही उसकी 90 वर्षीय वृद्ध और बीमार माता को कोई सूचना दी गयी किन्तु इन सभी अभियोगों से बचाव के लिए पुलिस ने फिर कुछ फर्जी दस्तावेज गढे और महत्वपूर्ण तथ्यों को छुपाया| मजिस्ट्रेट के समुख प्रस्तुत करने पर उसे  व्यक्तिगत मुचलके पर रिहा कर दिया गया व अंतत: मजिस्ट्रेट ने याचिकाकर्त्री को दोषमुक्त कर दिया|

माननीय न्यायालय ने  याचिकाकर्त्री की गिरफ्तारी को अवैध पाया है और  प्रासंगिक प्रकरण में निर्णय प्रसारित करते हुए अन्य बातों के साथ साथ कहा है कि मामले की परिस्थितियों को देखते हुए याचिकाकर्त्री को 250000रुपये क्षतिपूर्ति जिस दिन उसे अवैध रूप से गिरफ्तार किया गया अर्थात दिनांक 05.04.2008 से 8% वार्षिक ब्याज सहित दिलाना उचित समझते हैं| राज्य सरकार इस क्षतिपूर्ति का भुगतान करेगी| याचिकाकर्त्री इस न्यायालय में कम से कम 22 बार उपस्थित हुई जिसके लिए हम 25000रुपये खर्चे के दिलाना उपयुक्त समझते हैं| राज्य सरकार इस क्षतिपूर्ति और खर्चे की, दोषी अधिकारियों का दायित्व निर्धारित करने के पश्चात, उनसे वसूली करने को स्वतंत्र है|

मेरे विनम्र मतानुसार जिन अभियोगों के लिए अधिकतम दंड मात्र 1200रुपये अर्थदंड ही हो और कारावास का कोई प्रावधान ही न हो उन अभियोगों में तो गिरफ्तार करना सरासर अनुचित और अवैध है| जब गिरफ्तारी मूल रूप से अवैध हो तो गिरफ्तार व्यक्ति से जमानत /मुचलके की अपेक्षा ही क्यों की जाय अर्थात मजिस्ट्रेट को उसे दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 59 के अंतर्गत बिना शर्त रिहा करना चाहिए था|

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