पुलिस
द्वारा अवैध हिरासत एवं गिरफ्तारी के बम्बई उच्च न्यायालय के प्रकरण दाण्डिक रिट याचिका संख्या
1666-10 -सुश्री वीणा सिप्पी बनाम नारायण दुम्ब्रे आदि के निर्णय
दिनांक 05.03.2012 के लिए महिला याचिकाकर्त्री सुश्री वीणा
सिप्पी इस साहसिक कार्य के लिए धन्यवाद की पात्र है जिसने महाराष्ट्र पुलिस
जैसे भयावह संगठन से मुकाबला किया है| प्रकरण के तथ्य इस प्रकार हैं कि वीणा ने
दिनांक 4.4.08 को गामदेवी पुलिस थाने में
एक शिकायत प्रस्तुत की थी अत: वह दिनांक
5.4.08 को लगभग 5 बजे सांय एफ आई आर की नकल लेने थाने गयी | ड्यूटी पर
उपस्थित पुलिस कर्मी ने बड़ा अभद्र व्यवहार कर बताया कि कोई एफ आई आर दर्ज नहीं हुई
है और न ही दर्ज होगी | उसी भवन की
प्रथम मंजिल पर सहायक पुलिस आयुक्त का
कार्यालय है| यद्यपि सहायक पुलिस आयुक्त
से मिलने का समय सांय 4 से 6 बजे निर्धारित है किन्तु उसने याचिकाकर्त्री की उपस्थिति का ज्ञान होने पर
अपना चेंबर अंदर से बंद कर लिया और सन्देश भेजा कि वह 10 मिनट इन्तजार करे|
कई बार दरवाजा खटखटाने के
बाद भी उसने दरवाजा नहीं खोला और अंतत: यह सूचित किया गया कि वह ड्यूटी ऑफिसर के
पास जाकर एफ आई आर लिखवाये| याचिकाकर्त्री ने ड्यूटी पर तैनात पुलिस
अधिकारियों से कहा कि यदि एफ आई आर नहीं लिखी गयी तो वह संयक्त आयुक्त से मिलेगी|
इतना कहते ही उसने याचिकाकर्त्री से कहा कि उसने याचिकाकर्त्री जैसे कई देखें और
वह उसे भी सबक सिखायेगा|
याचिकाकर्त्री
को पुलिस ने अवैध रूप से गिरफ्तार कर पुलिस लोक अप में डाल दिया और उस पर बम्बई
पुलिस अधिनयम, 1959
की धारा 117 सहपठित 112 के आरोप मिथ्या रूप से गढ़ दिए गए| यही नहीं याचिकाकर्त्री की
गिरफ्तारी का कोई पंचनामा तक तैयार नहीं किया गया और न ही उसकी 90 वर्षीय वृद्ध और बीमार माता को कोई सूचना दी
गयी किन्तु इन सभी अभियोगों से बचाव के लिए पुलिस ने फिर कुछ फर्जी दस्तावेज गढे और
महत्वपूर्ण तथ्यों को छुपाया| मजिस्ट्रेट के समुख प्रस्तुत करने पर उसे व्यक्तिगत मुचलके पर रिहा कर दिया गया व अंतत: मजिस्ट्रेट
ने याचिकाकर्त्री को दोषमुक्त कर दिया|
माननीय न्यायालय ने
याचिकाकर्त्री की गिरफ्तारी को अवैध पाया है और प्रासंगिक प्रकरण में निर्णय प्रसारित करते हुए
अन्य बातों के साथ साथ कहा है कि मामले की परिस्थितियों को देखते हुए
याचिकाकर्त्री को 250000रुपये क्षतिपूर्ति जिस दिन उसे अवैध रूप से
गिरफ्तार किया गया अर्थात दिनांक 05.04.2008 से 8% वार्षिक ब्याज सहित दिलाना उचित समझते हैं|
राज्य सरकार इस क्षतिपूर्ति का भुगतान करेगी| याचिकाकर्त्री इस न्यायालय में कम से
कम 22 बार उपस्थित हुई जिसके लिए हम 25000रुपये खर्चे के दिलाना उपयुक्त समझते हैं|
राज्य सरकार इस क्षतिपूर्ति और खर्चे की, दोषी अधिकारियों का दायित्व निर्धारित
करने के पश्चात, उनसे वसूली करने को स्वतंत्र है|
मेरे विनम्र मतानुसार जिन अभियोगों के लिए अधिकतम दंड मात्र 1200रुपये अर्थदंड ही हो और कारावास का कोई
प्रावधान ही न हो उन अभियोगों में तो गिरफ्तार करना सरासर अनुचित और अवैध है| जब
गिरफ्तारी मूल रूप से अवैध हो तो गिरफ्तार व्यक्ति से जमानत /मुचलके की अपेक्षा ही क्यों की जाय अर्थात
मजिस्ट्रेट को उसे दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 59 के अंतर्गत बिना शर्त रिहा करना चाहिए था|
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