Friday, January 11, 2013

असली मकसद मीणा आदिवासियों को मिटाना


एसपी राजेश मीणा तो एक बहाना है! असली मकसद तो मीणा आदिवासियों को मिटाना है!!

मनुवादी किसी भी सूरत में आदिवासियों को ताकतवर होते हुए नहीं देख सकते हैं| उनके लिये यह असहनीय हो रहा है कि राजस्थान का पुलिस महा निदेशक एक आदिवासी अर्थात् मीणा है| जिसे बदनाम करने के लिये पुलिस को भ्रष्ट दिखाना और वो भी उसी की जाति के राजेश मीणा को भ्रष्टाचार और घूसखोर सिद्ध करना, क्या किसी की समझ में नहीं आ रहा है? केवल इतना ही नहीं राजस्थान की राज्यपाल पुलिस महानिदेशक को बुलाकर कहती हैं कि राज्य में स्त्रियों पर अत्याचार और पुलिस में भ्रष्टाचार बढ रहा है| ये बात गृह मंत्री की ओर से भी कही जा सकती थी, लेकिन जानबूझकर पुलिस महानिदेशक को दबाव में लाने और इस खबर को मीडिया के जरिये जनता के समक्ष लाने की सरकार की नीति को मीणा जनजाति के लोगों को समझना होगा और साथ ही इस बात को भी समझना होगा कि केवल बड़े बाबू बनने या एक पार्टी छोड़कर सत्ताधारी पार्टी का दामन थामकर लाल बत्ती प्राप्त कर लेने मात्र से आदिवासियों का उत्थान नहीं हो सकता! आदिवासी समाज की सेवा करनी है तो लालबत्ती नहीं, आदिवासियों की हरियाली की वफादारी की भावना को जिन्दा रखना होगा|

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

पिछले दिनों राजस्थान के अजमेर जिले के पुलिस अधीक्षक पद पर तैनात राजेश मीणा को कथित रूप से अपने ही थानेदारों से वसूली करते हुए राजस्थान के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने दलाल के साथ रंगे हाथ पकड़ा गया | यह कोई पहली घटना नहीं है, जिसमें किसी लोक सेवक को रिश्‍वत लेते हुए पकड़ा गया हो! हर दिन कहीं न कहीं, किसी न किसी लोक सेवक को रिश्‍वत लेते पकड़ा ही जाता रहता है| ऐसे में किसी को रिश्‍वत लेते पकड़े जाने पर, किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिये| सरकार और प्रशासन अपने-अपने काम करते ही रहते हैं| इसी दिशा में हर एक राज्य का भ्रष्टाचार निरोधक विभाग भी अपना काम करता रहता है| इसी क्रम में राज्य की भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो भी अपना काम कर ही रही है|

सबसे बड़ी आपत्ति यह है कि जिस दिन से राजेश मीणा को कथित रूप से घूस लेते हुए पकड़ा है, उसी दिन से स्थानीय समाचार-पत्रों में इस खबर को इस प्रकार से प्रसारित और प्रचारित किया जा रहा है, मानो केवल मीणा जनजाति के सम्पूर्ण अधिकारी और कर्मचारी ही चोर हैं, बाकी सारे के सारे दूध के धुले हुए हैं| राजस्थान की मीणा जनजाति सहित सारे देश के सम्पूर्ण जनजाति समाज में इस बात को लेकर भयंकर रोष व्याप्त है| रोष व्याप्त होने का प्रमुख कारण ये है कि राजेश मीणा की मीडिया ट्रायल की जा रही है, जबकि दक्षिणी राजस्थान में अपनी मजदूरी मांगने जाने वाले एक आदिवासी मीणा के उच्च जाति के एक ठेकेदार द्वारा सरेआम हाथ काट दिये जाने की सही और क्रूरतम घटना को सही तरह से प्रकाशित और प्रसारित करने में इसी मीडिया को अपना धर्म याद नहीं रहा|

इसके अलावा पिछले दिनों दलित परिवार के दो नवविवाहिता जोड़ों को मन्दिर से धक्के मारकर भगा देने की घटना को इसी मीडिया द्वारा जानबूझकर दबा दिया गया| भ्रूण हत्या के आरोपों में पकड़े जाने वाले उच्च जातीय डॉक्टरों के रंगे हाथ पकड़े जाने के उपरान्त भी खबर को अन्दर के पन्नों पर दबा दिया जाता है| जब पिछड़े वर्ग से आने वाले राजनेता महीपाल मदेरणा का प्रकरण सामने आया तो उसकी भी जमकर मीडिया ट्रायल की गयी| जबकि दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग के लोगों के विरुद्ध होने वाले अपराधों में पकड़े जाने वाले मनुवादी अपराधियों के क्रूर और घृणित अपराधों को जानबूझकर मीडिया द्वारा और प्रशासन द्वारा दबा दिया जाता है|

इन सब बातों का साफ और सीधा मतलब है कि चाहे कानून और संविधान कुछ भी कहता हो जो भी जाति या व्यक्ति मनुवादी व्यवस्था से टकराने का प्रयास करेगा उसे निपटाने मे मनुवादी मीडिया और प्रशासन एवं सत्ता पर काबिज मनुवादी कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे| महीपाल मदेरणा और राजेश मीणा दोनों ही मामलों में मनुवादियों की ओर से पिछड़ों और आदिवासियों को यही संकेत दिया गया है|

राजस्थान में मीणा जाति के बच्चे कड़ा परिश्रम करते हैं| उनके माता-पिता कर्ज लेकर, अपने बच्चों को जैसे-तैसे पढा-लिखाकर योग्य बनाते हैं| जब वे अफसर या कर्मचारी नियुक्त होते हैं तो उस वर्ग की आँखों में खटकने लगते हैं, जो सदियों से मलाई खाता आ रहा है और आज भी सत्ता की असली ताकत उसी के पास है| जबकि जानबूझकर के मीणा जनजाति को बदनाम किया जा रहा है और अफवाह फैलायी जाती है कि मीणा सभी विभागों में और सभी क्षेत्रों में भरे पड़े हैं| जबकि सच्चाई इसके ठीक उलट है|

राजस्थान में आजादी से आज तक एक भी दलित या आदिवासी वकील को, वकीलों के लिये निर्धारित 67 फीसदी वकील कोटे से हाई कोर्ट का एक भी जज नियुक्त नहीं किया गया| इसका अर्थ क्या ये लगाया जाये कि दलित-आदिवासी वकील हाई कोर्ट के जज की कुर्सी पर बैठने लायक नहीं हैं या हाई कोर्ट के जज की कुर्सी दलित-आदिवासियों के बैठने से अपवित्र होने का खतरा है या दलित-आदिवासियों को जज नियुक्त करने पर मनुवादियों को खतरा है कि उनकी मनमानी रुक सकती हैं| कारण जो भी हो, लेकिन राजस्थान हाई कोर्ट में अपवादस्वरूप पदोन्नति कोटे से एक मात्र यादराम मीणा के नाम को छोड़ दिया जाये तो आजादी के बाद से एक भी व्यक्ति सरकार को या जज नियुक्त करने वाले लोगों को ऐसा नजर नहीं आया, जिसे जज के पद पर नियुक्त किया जा सकता!

मीणा क्यों बहुतायत में दिखते हैं? इस बात को भी समझ लेना जरूरी है| चूँकि आदिवासी वर्ग के लोग सरल व भोली प्रवृत्ति के होते हैं, इस कारण वे मनुवादियों की जैसी चालाकियों से वाकिफ नहीं होते हैं और इसी का नुकसान राजस्थान की आदिवासी मीणा जनजाति के लोगों को उठाना पड़ रहा है| सबके सब अपने नाम के आगे ‘मीणा’ सरनैम लिखते हैं| जिसके चलते सभी लोगों को हर एक क्षेत्र में मीणा ही मीणा नजर आते हैं| यदि मीणा अपने गोत्र लिखने लगें, जैसे कि-मरमट, सेहरा, मेहर, धणावत, घुणावत, सपावत, सत्तावत, जोरवाल, बारवाड़, बमणावत आदि तो क्या किसी को लगेगा कि मीणा जाति के लोगों की प्रशासन में बहुतायत है, लेकिन अभी भी मीणा जनजाति के लोगों को इतनी सी बात समझ में नहीं आ पायी है|

यह तो एक बड़ा और दूरगामी सवाल है, जिस पर फिर कभी चर्चा की जायेगी| लेकिन फिलहाल राजस्थान की मजबूत और ताकतवर कही जाने वाली मीणा जनजाति की नौकरशाही को इस बात को समझना होगा कि वे इस मुगालते में नहीं रहें कि वे बड़े बाबू बन गये तो उन्होंने कोई बहुत बड़ा तीर नहीं मार लिया है| क्योंकि सारा देश जानता है कि राजस्थान की ही नहीं, बल्कि सारे देश की पुलिस व्यवस्था अंग्रेजों की बनायी पटरी पर चल रही है| जिसके तहत प्रत्येक पुलिस थाने की बोली लगती है| थानेदार उगाही करके एसपी को देता है और एसपी ऊपर पहुँचाता है, जिसको अंतत: सत्ताधारी पार्टी को पहुँचाया जाता है| हर विभाग में इस तरह की उगाही होती है| पिछले दिनों एक एक्सईएन बतला रहे थे कि राजस्थान का प्रत्येक एक्सईन अपने चीफ इंजीनियर को हर माह पचास हजार रुपये पहुँचाता है, जिसमें से सीएमडी के पास से होते हुए हर माह मोटी राशी सरकार के पास पहुँचायी जाती है|

कहने का तात्पर्य यह है कि सरकारें स्वयं अफसरों से उगाही करवाती हैं और जब कभी कोई अफसर या अफसरों का कोई धड़ा नियम कानून या संविधान के अनुसार काम करने लगता है तो वही सरकार एक पल में ऐसे अफसरों को उनकी औकात दिखा देती है| कौन नहीं जानता कि किस-किस राजनेता का चरित्र कैसा है, लेकिन महीपाल मदेरणा को ठिकाने लगाना था तो लगा दिया| इसी प्रकार से जाट जाति के बाद राजस्थान में दूसरी ताकतवर समझी जाने वाली मीणा जनजाति के अफसरों को ठिकाने लगाने की राजेश मीणा से शुरूआत करके मीणा जाति के सभी अफसरों और कथित मीणा मुखियाओं को सन्देश दिया गया है कि यदि किसी ने अपनी आँख दिखाने का साहस किया तो उसका हाल राजेश मीणा जैसा होगा|

जहॉं तक इस प्रकार के मामले को मीडिया द्वारा उछाले जाने की बात है तो कोई भी नागरिक सूचना के अधिकार के तहत सरकार से पूछ सकता है कि उसकी ओर से किस-किस समाचार-पत्र को कितने-कितने करोड़ के विज्ञापन दिये गये हैं| जिन अखबारों को हर माह करोड़ों रुपये के विज्ञापन सरकार की ओर से भेंटस्वरूप दिये जाते हैं, उन समाचार-पत्रों की ओर से सरकार का हुकम बजाना तो उनका जरूरी धर्म है|

आजकल मीडिया व्यवसाय हो गया है| जिस पर भारत में केवल और केवल मनुवादियों का कब्जा है| मनुवादी किसी भी सूरत में आदिवासियों को ताकतवर होते हुए नहीं देख सकते हैं| उनके लिये यह असहनीय हो रहा है कि राजस्थान का पुलिस महानिदेशक एक आदिवासी अर्थात् मीणा है| जिसे बदनाम करने के लिये पुलिस को भ्रष्ट दिखाना और वो भी उसी की जाति के राजेश मीणा को भ्रष्टाचार और घूसखोर सिद्ध करना, क्या किसी की समझ में नहीं आ रहा है? केवल इतना ही नहीं राजस्थान की राज्यपाल पुलिस महानिदेशक को बुलाकर कहती हैं कि राज्य में स्त्रियों पर अत्याचार और पुलिस में भ्रष्टाचार बढ रहा है| ये बात गृह मंत्री की ओर से भी कही जा सकती थी, लेकिन जानबूझकर पुलिस महानिदेशक को दबाव में लाने और इस खबर को मीडिया के जरिये जनता के समक्ष लाने की सरकार की नीति को मीणा जनजाति के लोगों को समझना होगा और साथ ही इस बात को भी समझना होगा कि केवल बड़े बाबू बनने या एक पार्टी छोड़कर सत्ताधारी पार्टी का दामन थामकर लाल बत्ती प्राप्त कर लेने मात्र से आदिवासियों का उत्थान नहीं हो सकता! आदिवासी समाज की सेवा करनी है तो लालबत्ती नहीं, आदिवासियों की हरियाली की वफादारी की भावना को जिन्दा रखना होगा| एसपी राजेश मीणा तो एक बहाना है! असली मकसद तो मीणा आदिवासियों को मिटाना है|
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