आईएएस अफसर ने मांगी रिश्वत में महिला
न देने पर मातहत निलंबित
सरकारी रिकार्ड में भ्रष्ट आई ए एस के घृणित कारनामे का खुलासा
गौरव चतुर्वेदी
भोपाल। । मध्यप्रदेश के एक अय्याश आई ए एस अफसर ने अपने मातहत को रिश्वत में पांच लाख रूपये और महिला उपलब्ध न कराने के कारण निलंबित कर दिया। सरकार से गुहार लगाने के बाद मातहत को वरिष्ठ अधिकारियों ने बहाल करवा दिया, लेकिन आरोपों से घिरे आई ए एस पर किसी भी प्रकार की कार्रवाई नहीं की गई। उपलब्ध सरकारी दस्तावेजों में भ्रष्ट और अय्याश आई ए एस आशीष उपाध्याय के कारनामों का खुलासा किया गया है।
उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार दिनांक ५ जनवरी २०१२ को आशीष उपाध्याय आयुक्त आदिवासी विभाग के पद पर रहने के दौरान शिवपुरी गये थे। इस दौरे पर भी उपाध्याय ने जिला संयोजक आदिम जाति कल्याण विभाग शिवपुरी से बतौर रिश्वत पांच लाख रूपये और एक महिला की मांग की थी। मीणा द्वारा रिश्वत की पूर्ती न करने पर उन्हें अन्य मामलों एवं मीणा के जाति प्रमाण पत्र में अनियमितता को आधार बनाकर निलंबित कर दिया गया। मीणा के गलत निलंबन किये जाने में तत्कालीन गुना कलेक्टर एवं आयुक्त की भूमिका को भी शासन और उच्च न्यायालय ने अवैध ठहराया। मीणा को निलंबन के पूर्व न तो कारण बताओ नोटिस जारी किया गया और न ही कलेक्टर गुना ने मीणा के उत्तर पर संतुष्टि या असहमति जाहिर की। जिला संयोजक एलआर मीणा को ग्वालियर संभागायुक्त ने कलेक्टर के प्रतिवेदन पर 30 जून 2012 को निलंबित कर दिया था। मीणा पर आरोप था कि उन्होंने तबादला नीति के खिलाफ जाकर जिला स्तर के संवर्गों के कर्मचारियों तबादले किए, छात्रावासों में पदस्थ अध्यापकों और अधीक्षकों की पदस्थापना और प्रभार में संशोधन किया था। कर्मचारियों ने उनके खिलाफ अभद्र व्यवहार की शिकायतें की थीं। अपने निलंबन के खिलाफ मीणा ने हाईकोर्ट की ग्वालियर बैंच में याचिका लगाई और शासन के सामने भी अपना अभ्यावेदन प्रस्तुत किया। हाईकोर्ट ने उनके निलंबन को दुर्भावानापूर्ण बताते हुए आदिम जाति कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव को मामले की सुनवाई कर इसे निपटाने के निर्देश दिए थे।
हाईकोर्ट के निर्देश पर प्रमुख सचिव ने 10 सितंबर को मीणा को सुना और इसके बाद 25 अक्टूबर उनकी बहाली का आदेश मंत्रालय से जारी हुआ। इस आदेश में निलंबन से बहाली के लिए जिला संयोजक के बयान को भी आधार बनाया गया है। अपने बयान में मीणा ने अपने ऊपर लगे आरोपों का बिंदुवार जवाब दिया था। बहाली आदेश में लिखा गया है कि मीणा को गुना कलेक्टर ने बताया गया था कि आयुक्त आदिवासी विभाग आशीष उपाध्याय के निर्देश पर निर्देश गए थे। मीणा ने प्रमुख सचिव को बताया कि उपाध्याय 5 जनवरी को शिवपुरी भ्रमण पर आए थे। उन्होंने उनसे पांच लाख रूपए और एक महिला उपलब्ध कराने की मांग की थी। उनकी यह मांग पूरी नहीं होने पर ही उन्होंने पहले उनका तबादला कराया और बाद में निलंबित करा दिया। उन्हें प्रताडि़त करने के लिए झूठी शिकायत के आधार पर उनके आदिवासी जाति के होने के जाति प्रमाण पत्र की जांच भी कराई। मंत्रालय से जारी हुए मीणा के बहाली आदेश में इन सभी बातों का जिक्र करने इनकी पुष्टि की गई है। इस आदेश के जारी होने के बाद से ही पूरे आदिम जाति कल्याण विभाग और मंत्रालय में हड़कंप की स्थिति मच गई है। आईएएस अफसरों की इस करतूत की सरकारी आदेश में पुष्टि होने के बाद भी सरकार ने अब तक आयुक्त पर न तो कोई कार्यवाही की गई है और न ही स्पष्टीकरण मांगा है। इधर निलंबन से बहाल हुए मीणा को सीधी में सहायक आयुक्त आदिवासी विकास के रिक्त पद पर पदस्थ किया है।
सरकारी रिकार्ड में भ्रष्ट आई ए एस के घृणित कारनामे का खुलासा
गौरव चतुर्वेदी
भोपाल। । मध्यप्रदेश के एक अय्याश आई ए एस अफसर ने अपने मातहत को रिश्वत में पांच लाख रूपये और महिला उपलब्ध न कराने के कारण निलंबित कर दिया। सरकार से गुहार लगाने के बाद मातहत को वरिष्ठ अधिकारियों ने बहाल करवा दिया, लेकिन आरोपों से घिरे आई ए एस पर किसी भी प्रकार की कार्रवाई नहीं की गई। उपलब्ध सरकारी दस्तावेजों में भ्रष्ट और अय्याश आई ए एस आशीष उपाध्याय के कारनामों का खुलासा किया गया है।
उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार दिनांक ५ जनवरी २०१२ को आशीष उपाध्याय आयुक्त आदिवासी विभाग के पद पर रहने के दौरान शिवपुरी गये थे। इस दौरे पर भी उपाध्याय ने जिला संयोजक आदिम जाति कल्याण विभाग शिवपुरी से बतौर रिश्वत पांच लाख रूपये और एक महिला की मांग की थी। मीणा द्वारा रिश्वत की पूर्ती न करने पर उन्हें अन्य मामलों एवं मीणा के जाति प्रमाण पत्र में अनियमितता को आधार बनाकर निलंबित कर दिया गया। मीणा के गलत निलंबन किये जाने में तत्कालीन गुना कलेक्टर एवं आयुक्त की भूमिका को भी शासन और उच्च न्यायालय ने अवैध ठहराया। मीणा को निलंबन के पूर्व न तो कारण बताओ नोटिस जारी किया गया और न ही कलेक्टर गुना ने मीणा के उत्तर पर संतुष्टि या असहमति जाहिर की। जिला संयोजक एलआर मीणा को ग्वालियर संभागायुक्त ने कलेक्टर के प्रतिवेदन पर 30 जून 2012 को निलंबित कर दिया था। मीणा पर आरोप था कि उन्होंने तबादला नीति के खिलाफ जाकर जिला स्तर के संवर्गों के कर्मचारियों तबादले किए, छात्रावासों में पदस्थ अध्यापकों और अधीक्षकों की पदस्थापना और प्रभार में संशोधन किया था। कर्मचारियों ने उनके खिलाफ अभद्र व्यवहार की शिकायतें की थीं। अपने निलंबन के खिलाफ मीणा ने हाईकोर्ट की ग्वालियर बैंच में याचिका लगाई और शासन के सामने भी अपना अभ्यावेदन प्रस्तुत किया। हाईकोर्ट ने उनके निलंबन को दुर्भावानापूर्ण बताते हुए आदिम जाति कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव को मामले की सुनवाई कर इसे निपटाने के निर्देश दिए थे।
हाईकोर्ट के निर्देश पर प्रमुख सचिव ने 10 सितंबर को मीणा को सुना और इसके बाद 25 अक्टूबर उनकी बहाली का आदेश मंत्रालय से जारी हुआ। इस आदेश में निलंबन से बहाली के लिए जिला संयोजक के बयान को भी आधार बनाया गया है। अपने बयान में मीणा ने अपने ऊपर लगे आरोपों का बिंदुवार जवाब दिया था। बहाली आदेश में लिखा गया है कि मीणा को गुना कलेक्टर ने बताया गया था कि आयुक्त आदिवासी विभाग आशीष उपाध्याय के निर्देश पर निर्देश गए थे। मीणा ने प्रमुख सचिव को बताया कि उपाध्याय 5 जनवरी को शिवपुरी भ्रमण पर आए थे। उन्होंने उनसे पांच लाख रूपए और एक महिला उपलब्ध कराने की मांग की थी। उनकी यह मांग पूरी नहीं होने पर ही उन्होंने पहले उनका तबादला कराया और बाद में निलंबित करा दिया। उन्हें प्रताडि़त करने के लिए झूठी शिकायत के आधार पर उनके आदिवासी जाति के होने के जाति प्रमाण पत्र की जांच भी कराई। मंत्रालय से जारी हुए मीणा के बहाली आदेश में इन सभी बातों का जिक्र करने इनकी पुष्टि की गई है। इस आदेश के जारी होने के बाद से ही पूरे आदिम जाति कल्याण विभाग और मंत्रालय में हड़कंप की स्थिति मच गई है। आईएएस अफसरों की इस करतूत की सरकारी आदेश में पुष्टि होने के बाद भी सरकार ने अब तक आयुक्त पर न तो कोई कार्यवाही की गई है और न ही स्पष्टीकरण मांगा है। इधर निलंबन से बहाल हुए मीणा को सीधी में सहायक आयुक्त आदिवासी विकास के रिक्त पद पर पदस्थ किया है।
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